मोदी की 'कश्मीरियत' में नियम और शर्तें भी हैं
जहां तक आतंकवाद के खात्मे की बात है उसे जड़ से खत्म तो सेना और सुरक्षा बल ही कर सकते हैं - लेकिन आम लोगों का सहयोग सबसे अहम है. ये राजनीतिक नेतृत्व ही है जो घाटी के लोगों का नजरिया बदल सकता है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर कश्मीरियत पर जोर दिया है. जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि केंद्र सरकार कश्मीरियत की दुश्मन नहीं है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ है.
अगर कश्मीर के लोग इस बात को समझ लें तो घाटी में अमन कायम होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. दरअसल, पाकिस्तान परस्त अलगाववादी और कुछ स्थानीय नेता लोगों को इसी बात को लेकर भड़काते हैं - और कश्मीरी नौजवान कभी पत्थर तो कभी बंदूक उठा लेते हैं. इस कड़ी में स्थानीय स्तर पर आत्मघाती दस्ता तैयार होना सबसे खतरनाक है.
सुरक्षा बलों की अपनी सीमाएं हैं. वे ऑल आउट जैसे ऑपरेशन को तो कामयाब बना सकते हैं, बारामूला की तरह दूसरे इलाकों को भी आतंकवाद मुक्त क्षेत्र बाना सकते हैं - लेकिन आगे की राह सिर्फ राजनीतिक नेतृत्व के हाथों में है. इसीलिए लगता है कि घाटी की समस्या का समाधान तो 'कश्मीरियत' में ही छिपा है.
कश्मीरियत के खिलाफ कौन?
14 फरवरी के पुलवामा हमले के बाद देश के कई हिस्सों में कश्मीरी लोग हिंसा के शिकार हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में ऐसी 10 घटनाओं का जिक्र था. याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और 11 राज्यों से जवाब तलब किया है. ये राज्य हैं - उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, मेघालय, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली. कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि पुलवामा हमले के कारण कश्मीरियों के खिलाफ होने वाली किसी भी हिंसा, धमकी या सामाजिक बहिष्कार के मामलों में फौरन एक्शन लें. साथ ही, मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेश पर यूजीसी ने भी देश भर के कैंपस में छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पत्र लिखा है.
देखा जाये तो कश्मीरियों पर भी हमले के लिए वे ही तत्व जिम्मेदारा हैं जो किसी न किसी बहाने मॉब लिंचिंग को अंजाम देते रहते हैं. ऐसे असामाजिक तत्वों को तो बस बहाना चाहिये. कानून व्यवस्था के लिए मुश्किलें खड़ा करना ही तो उनकी फितरत है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा पर चिंता जतायी है. राजस्थान के टोंक पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चंद लोग ऐसा करते हैं तो वे 'भारत तेरे टुकड़े...' का नारा लगाने वालों को आशीर्वाद देने वालों को मजबूत करते हैं. साफ है निशाने पर कांग्रेस रही, जिस पर प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि वो पाकिस्तान की भाषा बोल रही है. कांग्रेस को लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी ऐसी ही बातें कही थी. राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट टोंक विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि कश्मीरी बच्चों के साथ हिंदुस्तान के किसी कोने में क्या हुआ, क्या नहीं हुआ, मुद्दा ये नहीं है, बल्कि इस देश में ऐसा होना नहीं चाहिए.
प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाते हुए कहा, 'कश्मीरी बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है. कश्मीर का बच्चा-बच्चा आतंकवादियों के खिलाफ है. हमें उसे अपने साथ रखना है.' मोदी ने लोगों को समझाने की कोशिश की कि कश्मीर का बच्चा-बच्चा आतंकवाद से पीड़ित है और वो आतंकवाद को खत्म करने के लिए हमारे साथ आने के लिए तैयार है, हमें उसको साथ रखना है. कश्मीर के लोगों की तारीफ करते हुए मोदी ने ये भी याद दिलाया - 'अमरनाथ की यात्रा में हजारों श्रद्धालुओं का जो ख्याल रखता है तो वो कश्मीर का बच्चा है. अमरनाथ में लोगों को गोलियां लगी तब कश्मीर के नौजवान उनके लिए खड़े हुए उन्हें अपना खून दिया. जिस तरह से देश के अन्य हिस्सों से लोग शहीद होते हैं ऐसे ही कश्मीर के लोग भी आतंकवाद से लड़ते हुए शहीद होते हैं.'
सचिन पायलट के इलाके में मोदी ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया - 'कांग्रेस पाकिस्तान की भाषा बोलती है.'
कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाने के साथ साथ प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी साफ किया - 'मैं आपसे कहना चाहता हूं कि हमारी लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ है... हमारी लड़ाई कश्मीर के लिए है, कश्मीरियों के खिलाफ नहीं है.'
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी को टैग करते हुए शुक्रिया कहा है - 'आज आपने हमारे दिल की बात कह दी.' कश्मीरी छात्रों पर हमले को लेकर उमर अब्दुल्ला के साथ साथ महबूबा मुफ्ती ने भी गंभीर चिंता जतायी थी - और सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की थी.
ये 'कश्मीरियत' की ही बातें हैं जो घाटी के लोगों के जख्मों पर मरहम का काम करती हैं - और ये सिलसिला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू किया था.
समस्या का हल भी 'कश्मीरियत' में ही है
जम्मू-कश्मीर में जब बीजेपी और पीडीपी की साझा सरकार बनी थी तब भी प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीरियत की बात की थी. बाद के मौकों पर भी गृह मंत्री राजनाथ सिंह कश्मीरियत की बातें दोहराते रहे. महबूबा सरकार से बीजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद ये बातें थोड़ी थम सी गयी थीं. अपने मौजूदा कार्यकाल के आखिरी पड़ाव पर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर कश्मीरियत के सिद्धांत पर जोर दिया है - अच्छी बात है.
कश्मीरियत के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी रहे. वाजपेयी ने घाटी की खुशहाली के लिए तीन सूत्रीय फॉर्मूला सुझाया और उसी में समस्या का समाधान छिपा है - 'कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत.' ये वो तीन बातें हैं जो कश्मीरियों को काफी सुकून देती हैं - लेकिन हकीकत ये है कि ये बात बातों से आगे बढ़ ही नहीं पाती.
मुश्किल ये है कि महबूबा मुफ्ती कश्मीरियत की आड़ में अलगाववादियों के साथ भी खड़ी हो जाती हैं. जब सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में स्थानीय आतंकवादी मारे जाते हैं तो महबूबा उन्हें कंधा देने पहुंच जाती हैं. मान कर चलना चाहिये अलगाववादियों से सुरक्षा कवर वापस लिया जाना भी उन्हें अच्छा नहीं लगा होगा - क्योंकि यासीन मलिक सहित 150 अलगाववादियों को हिरासत में लिया जाना भी उन्हें नागवार गुजरा है.
ट्विटर पर विरोध जताते हुए महबूबा मुफ्ती ने लिखा है, 'पिछले 24 घंटे में कई हुर्रियत नेताओं और जमात संगठन के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया. इस तरह के एकतरफा कदम समझ से परे हैं, ये केवल मुद्दे को भड़काने का काम करेंगे. किस आधार पर इन लोगों की गिरफ्तारी हुई है? आप केवल एक व्यक्ति को जेल में डाल सकते हैं, उसके विचारों को नहीं.'
हाल ही में बारामूला को आतंकवाद मुक्त क्षेत्र घोषित किया गया. ऐसा सुरक्षा बलों के ऑपरेशन ऑल आउट की बदौलत मुमकिन हो सका. इसे लेकर सुरक्षा बलों और पुलिस के आला अफसरों की राय रही कि फोर्स की सीमा बस इतनी ही है. आगे का रास्ता सियासत तय करती है. ये अच्छी बात है कि मोदी सरकार घाटी में अमन कायम करने की दिशा में तेजी से बढ़ रही है. बेहतर होता अभी हो रहे सारे उपाय पहले ही किये गये होते - या कम से कम उरी हमले के बाद तो ऐसी कोशिशें होनी ही चाहिये थीं.
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