वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में नहीं होगा सुधार तो गांवों में मच जाएगा हाहाकार
राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार दोनों के दावे हैं कि वैक्सीनेशन की रफ्तार भी बहुत तेज़ है और इसकी व्यवस्था भी सुनिश्चित ढ़ंग से की गई है लेकिन हकीकत देखी जाए तो मालूम यही होता है कि सरकारें ग्रामीण इलाकों में अभी भी न तो व्यवस्था ही दे पा रही है और न ही किसी भी प्रकार का भरोसा.
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भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर अपना आतंक दिखा रही है. आज पूरा भारत लाकडाउन या कोरोना कर्फ्यू की जद में है. हज़ारों लाखों परिवार इस संकट से जूझ रहे हैं. इस दौरान जो सबसे बड़ी राहत की खबर है वह यह है कि भारत में वैक्सीनेशन का कार्य भी तेज़ गति के साथ किया जा रहा है. भारत सरकार दावा कर रही है कि वह वैक्सीन की कमी नहीं होने देगी और वैक्सीनेशन को रफ्तार देती रहेगी. दूसरी ओर भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर की रफ्तार अभी थोड़ा हल्की ज़रूर पड़ी है लेकिन ऐसे तमाम अनुमान और कयास लगाए जा रहे हैं कि इसी बीच कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे देगी. इसी तीसरी लहर को लेकर भारत सरकार समेत तमाम राज्यों की सरकारें कमर कस रही हैं और यह सुनिश्चित कर रही हैं कि तीसरी लहर उनके राज्य को अधिक नुकसान न पहुंचा सके. इसी सोच और संकल्प के साथ सभी राज्य सरकारें व्यवस्थाओं पर जोर देती नज़र आ रही हैं. वैज्ञानिकों के तमाम बयानों और उनकी बातों को सुना जाए तो एक बात आईने की तरह साफ हो जाती है कि बिना वैक्सीनेशन के कोरोना पर काबू पाना नामुमकिन सी बात है. किसी भी देश को कोरोना वायरस को कमजोर करने के लिए सबसे बड़े हथियार के रूप में वैक्सीन के अलावा अन्य कोई दूसरा हथियार नहीं है और यह बात भारत पर भी लागू होती है. भारत की कुल आबादी 136 करोड़ के आसपास है जबकि सरकारी डेटा के मुताबिक अबतक महज 19 करोड़ लोगों को ही वैक्सीन लग पाई है.
अब वो वक़्त आ गया है जब वैक्सीनेशन के मद्देनजर सरकार को ध्यान गांवों पर देना चाहिए
यानी मोटा मोटा आंकड़ा माना जाए तो अभी 117 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जानी है. जो कब तक पूरा हो सकेगा इसका आकलन भी नहीं किया जा सकता है. भारत में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया पर नज़र डाली जाए तो अभी भी डोर टू डोर वैक्सीनेशन तो दूर शहर के हर अस्पताल में ही वैक्सीन नहीं पहुंच सकी है और न ही कोई हर अस्पतालों में वैक्सीन सेंटर को बनाया गया है. राज्य सरकारें लाख दावा कर लें कि उनके राज्य में वैक्सीनेशन का कार्य बेहतर ढ़ंग से किया जा रहा है, लेकिन सच्चाई यही है कि हर राज्य की तस्वीर लगभग एक सी है.
शहर के कुछ अस्पतालों में वैक्सीनेशन सेंटर बनाया गया है जहां लंबी लंबी कतारे हैं जबकि शहर का 80-90 प्रतिशत नागरिक अभी भी इन वैक्सीनेशन सेंटरों से दूर है. वहीं भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 65-70 फीसदी नागरिक निवास करते हैं लेकिन वैक्सीनेशन प्रक्रिया में इन्हें पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है. ग्रामीण इलाकों में सीएचसी अस्पतालों में वैक्सीनेशन किया जा रहा है. मगर गांव के लोग अभी इस बात से ही अंजान हैं और जो लोग जानते भी हैं तो वो अफवाहों का शिकार हो गए हैं.
लोग वैक्सीन पर पूरी तरह भरोसा नहीं बना पा रहे हैं. भारत के गांवों में वैक्सीनेशन इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि अब कोरोना वायरस शहर से गांव की ओर मुंह फेर चुका है. हालिया दिनों में ऐसे कई गांवों की खबर सामने आयी हैं जहां पूरा का पूरा परिवार कोरोना से जंग हार गया. गांव के लोग इस खराब हालात को देखते हुए भी टेस्टिंग से तो दूर भागे ही साथ ही वैक्सीन लगवाने से भी गुरेज करते नज़र आए.
गांव के कुछ पढ़े लिखे युवा वर्ग के लोग ज़रूर घर से निकलकर वैक्सीन लगवा लेना चाहते हैं. मगर उनके परिवार वाले ही अफवाहों पर यकीन करके उस युवा को वैक्सीन न लगवाने की हिदायत करते नज़र आसानी से नज़र आ जाते हैं. बाकि कुछ मेहरबानी हमारे सरकारी सिस्टम की है जहां वेबसाइट पर कभी कभी तो रजिस्ट्रेशन ही नहीं हो पाता है जिससे कुछ लोग चाहकर भी वैक्सीन नहीं लगवा पा रहे हैं.
ग्रामीण इलाकों की ओर ध्यान देना किसी भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार के लिए सबसे अहम होता है. गांवों में अफवाहें जल्दी फैला भी करती हैं और उसपर लोगों का यकीन पत्थर की लकीर की तरह हो जाता है. ऐसे में इऩ्हें सबसे पहले तो जागरुक करने का कार्य करना होगा और उसके बाद वैक्सीन को गांव गांव पहुंचाना होगा.
आनलाइन या मोबाइल ओटीपी सिस्टम को खत्म करके आधार या किसी अन्य दस्तावेज के सहारे वैक्सीन लगाने का कार्य शुरू कर देना चाहिए. आधार से इसलिए भी वैक्सीन को जोड़ना चाहिए ताकि भविष्य में आसानी के साथ मालूम किया जा सके कि कितने लोगों व किन किन लोगों ने वैक्सीन को डोज ले लिया और कितने व कौन लोग रह गए हैं और बाद में फिर उन्हीं को तलाश कर वैक्सीऩेशन का कार्य खत्म किया जा सके.
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