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Updated: 19 मई, 2021 01:51 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां है जिसकी डोर उपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता.

डायलॉग 1971 में आई हृषिकेश मुखर्जी निर्देशित फ़िल्म आनंद का है. फ़िल्म के लीड में राजेश खन्ना थे जबकि सपोर्टिंग कास्ट में अमिताभ बच्चन और सुनीता सान्याल थे. फ़िल्म में राजेश खन्ना ने एक ऐसे मरीज का रोल किया था जो लिम्फोसर्कोमा आफ इंटेस्टाइन (एक तरह का कैंसर) नामक बीमारी से पीड़ित थे और फ़िल्म में तमाम प्रयासों के बावजूद जिनकी मौत हो जाती है जो एक दोस्त के रूप में अमिताभ को गहरा दुख देती है.

मौत, दुखदाई है. खबर बस आ जाए कि कहीं कोई स्वर्गवासी हो गया है. हम भले ही उसे व्यक्ति को न जानते हों, लेकिन क्योंकि वो परमात्मा की क्षरण में चला गया है तो दुख होता है. मौत भले ही जीवन का एक कटु सत्य और दुखद पहलू हो लेकिन ये डरावनी तब है जब किसी को इस बात का आभास हो जाए कि वो मरने वाला है. फिल्में अलग हैं आम ज़िन्दगी अलग. असल जिंदगी में हम आनंद के राजेश खन्ना नहीं हैं. शायद इस बात को मध्य प्रदेश के भोपाल के उस शख्स ने गांठ बांध लिया हो जिसकी तबियत खराब हुई और जिसने मौत के खौफ से बचने के लिए दोस्तों के सुझाव के बाद केरोसीन पी लिया और अपनी जान दे दी. मामले में सबसे दिलचस्प बात ये थी कि मिट्टी का तेल पीकर अपनी जान देने वाले व्यक्ति की जब कोविड रिपोर्ट आई तो उसमें वो कोविड नेगेटिव पाया गया.

Coronavirus, Covid 19, Death, Kerosene Oil, Madhya Pradesh, Bhopal, Fear, Doctorमध्य प्रदेश के भोपाल में जो हुआ और जिस तरह एक व्यक्ति की जान गयी कारण केवल डर था

क्या था मामला

घटना भोपाल के अशोक गार्डन की है. जहां पेशे से टेलर महेंद्र की अभी कुछ दिन पहले तबियत खराब हुई जिसके बाद महेंद्र का घबराना स्वाभाविक था. ये बात महेंद्र के दोस्तों को भी पता चली. जैसा कि हम भारतीयों का स्वभाव है हम खुद में डॉक्टर समझते हैं और लोगों को फ्री की राय देने से तो बिल्कुल भी नहीं चूकते हैं तो इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. महेंद्र के दोस्तों ने उसे सलाह दी कि वो मिट्टी का तेल पी ले. दोस्तों ने महेंद्र को बताया कि मिट्टी का तेल कोरोना को जड़ से खत्म करता है. यदि वो मिट्टी का तेल पी लेगा तो वो सही हो जाएगा.

कोरोना के खौफ से घबराए महेंद्र ने भी ऐसा ही किया और मिट्टी का तेल पी लिया. मिट्टी का तेल पीने से महेंद्र की तबियत बिगड़ गयी जिसके बाद उसे एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया जहां से उसे एक और अस्पताल में शिफ्ट किया गया और डॉक्टर्स ने उसे मृत घोषित कर दिया.

प्रिकॉशन के तहत मृत्यु के बाद महेंद्र का कोविड सैम्पल लिया गया. लोगों को हैरत तब हुई जब रिपोर्ट सामने आई जिसमें इस बात का साफ जिक्र है कि महेंद्र कोविड नेगेटिव था.

महेंद्र की मौत की दो वजह दोनों से सावधान रहने की ज़रूरत.

भोपाल में घटी इस घटना को देखें और गहनता से इसका अवलोकन करें तो मिलता है कि महेंद्र की मौत का जिम्मेदार कोरोना नहीं बल्कि दो ऐसी चीजें थीं जिससे कहीं न कहीं आज पूरा देश परेशान है. महेंद्र और महेंद्र जैसे तमाम लोग हैं जो सिर्फ इस कारण मर रहे हैं क्यों कि उनका मार्गदर्शन वो लोग कर रहे हैं जो किसी झोला छाप डॉक्टर्स से कम नहीं हैं.

आप देश में कहीं भी चले जाइये. किसी को बस बुखार आने भर की देर है लोगों के पास बीमारी को मार गिराने के ऐसे ऐसे प्लान हैं जो उन डॉक्टर्स के मुंह पर करारा थप्पड़ जड़ते हैं जो इन कोविड मरीजों की जान की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं.

आप खुद कल्पना कीजिये की क्या केरोसीन कोविड का इलाज कर सकती है? बिल्कुल नहीं लेकिन इस मामले में बतौर इलाज महेंद्र के दोस्तों ने उसे केरोसीन पीने का सुझाव दिया और नतीजा हमारे सामने है.

महेंद्र ने जिस कारण केरोसीन पिया वही महेंद्र और महेंद्र जैसे कई लोगों के मरने की बड़ी वजह है. कोरोना की इस दूसरी लहर में जितने भी लोग किसी अपने को छोड़ के गए हैं यदि उनकी मौत को देखें और उसका विश्लेषण करें तो मिलता है कि मौत की एक अहम वजह डर या घबराहट है. सेलेब्रिटीज़ से लेकर आम आदमियों तकइस दूसरी लहर में हम ऐसे तमाम लोगों से दो चार हो चुके हैं जो लगभग ठीक हो चुके थे मगर बीमारी और बीमारी को लेकर डर कुछ ऐसा था कि लोगों की मौत हो गयी.

कुल मिलाकर महेंद्र की मौत ने एकबार फिर उस बात की तस्दीख कर दी है कि कोविड से बदतर उसका खौफ है. यानी रोग से कहीं ज्यादा ऊपर डर है जिसकी वजह से हम एक के बाद एक अपने चाहने वाले लोगों को खोते जा रहे हैं.

पॉजिटिव रहने की जरूरत 

चाहे वो कोविड का मरीज हो या फिर इस मरीज की तीमारदारी में लगा मरीज के घर का कोई परिजन. अब वो समय आ गया है जब हम सबको इस बात को भली प्रकार समझना होगा कि भले ही देश की सरकार द्वारा बार-बार लगातार ये कहा जा रहा हो कि हमें कोरोना के साथ ही जीना है लेकिन अगर हमें इस वायरस को पराजित करना है तो सबसे पहले हमें पॉजिटिव होना और करना सीखना होगा। साथ ही हमें इस बात का भी आत्मसात करना होगा कि कोरोना कोई हव्वा नहीं है. ये किसी को भी हो सकता है. कभी भी हो सकता है.

ध्यान रहे, एक देश के रूप में भारत में ऐसे भी तमाम मामले आ चुके हैं जहां कोरोना को लेकर कुछ इस हद तक हव्वा बनाया गया. प्रोपोगेंडा फैलाया गया कि लोगों ने उन तमाम व्यक्तियों का सोशल बायकाट कर दिया जिसे कोरोना हुआ. आज भी लोगों को यही डर बना हुआ है कि यदि उन्हें कोरोना हो गया तो उसके आस पास के लोग उनसे बातचीत कर उन्हें सिरे से ख़ारिज कर देंगे.

बात सीधी और साफ़ है हम कोविड की चुनौती का सामना पॉजिटिव होकर ही कर सकते हैं. यूं भी फिल्म आनंद ने सिखाया कि मौत तो आनी है लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकते. जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिये. साथ ही आनंद में राजेश खन्ना ने ये कहकर अपनी अंतिम सांस ली थी कि जिंदगी जितनी जियो, दिल खोलकर जियो. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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