PM Modi का वीडियो मैसेज लॉकडाउन का बूस्टर डोज है - जैसे जनता कर्फ्यू ट्रायल था
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वीडियो मैसेज (Narendra Modi Video Message) में ताली और थाली की तरह प्रकाश पुंज (Light up on April 5) बिखेरने की जो अपील की गयी है, उसका असली मकसद लॉकडाउन में लक्ष्मण रेखा (Lockdown and Social Distancing) का पूरी तरह पालन ही है - और यही वक्त की सबसे बड़ी जरूरत भी है.
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प्रधानमंत्री का हर संबोधन राष्ट्र के नाम संदेश ही होता है. ये मान कर चलना चाहिये. चाहे वो एक ट्वीट ही क्यों न हो - या फिर एक वीडियो मैसेज (Narendra Modi Video Message). हां, चुनावी भाषण इस कैटेगरी में नहीं आते. कोरोना जैसी महामारी (Coronavirus outbreak in India) से जूझ रहे देश से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार बार ऐसे संदेश देकर लगातार संवाद बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि जोश भी बरकरार रहे और मकसद भी न भूल पाये.
अपने नये वीडियो मैसेज में प्रधानमंत्री मोदी ने 5 अप्रैल को वैसे ही लाइट जलाने (Light up on April 5) की अपील की है जैसे जनता कर्फ्यू के दौरान ताली और थाली बजाने की हुई थी. साथ ही, लॉकडाउन पर फोकस रहते हुए रिहर्सल का नया नुस्खा भी दे दिया है - जो लॉकडाउन के दौरान सोशल डिस्टैंसिंग (Lockdown and Social Distancing) बनाये रखने के लिए बूस्टर डोज ही लगता है.
मेडिकल की भाषा में वैक्सिन के बाद दी जाने वाली एक एक्स्ट्रा खुराक को ही बूस्टर डोज कहते हैं. वैसे भी कोरोना वायरस को लेकर वैक्सीन के आने तक लॉकडाउन ही उसकी भी भूमिका निभा रहा है - और एक खास अंतराल के बाद एक बूस्टर डोज तो बनता ही है. प्रधानमंत्री मोदी ने वीडियो मैसेज के माध्यम से वही तो किया है.
फिर जनता कर्फ्यू क्या था - अगर लॉकडाउन वैक्सीन की पहली खुराक रही?
क्यों - ट्रायल नाम की भी कोई चीज होती है कि नहीं?
ताकि लॉकडाउन थमे नहीं - चलता रहे!
वक्त की मांग क्या है? यही न कि लॉकडाउन पूरी तरह से लागू हो. वैसे भी दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में यही तो एकमात्र कारगर हथियार है जो कोरोना से मुकाबले में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है.
ये तो पता ही है कि कोरोना के संक्रमण की चेन ब्रेक करने का यही एक उपाय है - और उसमें सोशल डिस्टैंसिंग बनाये रखने की शर्त है. सोशल डिस्टैंसिंग को बरकरार रखने के लिए भी लॉकडाउन ही अकेला उपाय भी बचा है.
ये ठीक है कि स्वीडन जैसे मुल्क भी हैं जो लोगों पर ही छोड़ दिये हैं कि हर कोई खुद अपना बचाव करे. अगर वाकई ऐसा होने लगे तो सारे के सारे बच ही जाएंगे, लेकिन भारत में तो अपने मन से ऐसा होने से रहा. जब लॉकडाउन लागू होने की स्थिति में भी लोग मानने को राजी न हों तो भला उन पर छोड़ कर क्या अपेक्षा की जा सकती है.
लॉकडाउन को प्रभावी बनाये रखना है तो ऐसे उपाय तो करने ही होंगे कि लोगों का जोश कम न पड़े - आखिर प्रधानमंत्री ने वीडियो मैसेज में भी तो यही समझाने की कोशिश की है.
1. मन की बात जानते हैं मोदी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर महीने देशवासियों से मन की बात करते हैं. लगातार ऐसा करने से लोगों के मन की बातें भी थोड़ा बहुत तो समझते ही होंगे, भले ही उनके विरोधी ये मानने को कतई राजी न हों.
मोदी का संदेश - आओ मिलकर सभी देशवासी दीये जलायें!
कोरोना के खिलाफ जंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'आज जब हर कोई घर में है तो लोग सोच रहे हैं कि वो अकेले कैसे लड़ाई लड़ेंगे. आपके मन में ये प्रश्न आता होगा कि कितने दिन ऐसे काटने पड़ेंगे. हम अपने घर में जरूर हैं, लेकिन हममें कोई अकेला नहीं है - 130 करोड़ देशवासियों की सामूहिक शक्ति हर व्यक्ति के साथ है.'
सामूहिकता में बड़ा बल होता है - शायद ही कोई ऐसा हो जो इससे इत्तफाक न रखता हो - और प्रधानमंत्री यहीं तो चाहते हैं कि लोग भी इसे समझ लें और गांठ बांध लें. दरअसल, लॉकडाउन में जनता की सामूहिकता साफ साफ नजर आती है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी, लॉकडाउन के समय में देश की और आप सभी की ये सामूहिकता नजर आ रही है. आज जब देश करोड़ों लोग घरों में है, तो किसी को लग सकता है कि वो अकेला क्या करेगा? ये सवाल भी मन में आते होंगे कि कितने दिन और रुकना पड़ेगा? हम अपने घरों में जरूर हैं लेकिन हममें से कोई भी अकेला नहीं है - 130 करोड़ देशवासियों की सामूहिक शक्ति हर व्यक्ति के साथ है.'
मोदी कहते हैं, 'समय समय पर देशवासियों की इस सामूहिक शक्ति कि विराटता और इसकी दिव्यता की अनुभूति करना आवश्यक है,' - और अपने संबोधनों और संदेश से यही तो समझाने का प्रयास कर रहे हैं.
2. सबका विश्वास भी तो जरूरी है : सबका साथ और सबका विकास की बात तो पहले से होती रही थी अब एक और बात भी जोड़ दी गयी है - सबका विश्वास. संकट के समय में तो इसे बनाये रखना और भी जरूरी है. कोई भी खुद को किसी के समझाने पर या बहकावे अलग थलग न समझने लगे.
अंधकार के खिलाफ लड़ाई में प्रकाश किसी आस्था विशेष, परंपरा या मान्यता का मोहताज नहीं होता - फिर भी मोदी के मैसेज में इस बात का विशेष रूप से ख्याल रखा गया लगता है. हो सकता है सिर्फ दीये जलाने की बातें सभी को अच्छी नहीं लगती, इसलिए दीये के साथ साथ कैंडल भी जोड़ा है - और अगर ये भी संभव, उपलब्ध या मन न हो तो टॉर्च या मोबाइल की फ्लैश लाइट जलायी जा सकती है. भला और कितनी आजादी चाहिये देश के लिए एकजुट होकर खड़े रहने के लिए.
3. 9वें दिन, 9 बजे और 9 मिनट : अलंकार और पद्य में तुकबंदी के इंतजाम इसीलिए किये गये हैं कि मैसेज ठीक से याद रहे. हर बात मन मस्तिष्क में इस कदर समा जाये कि लंबे समय तक न भूल पाये.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर जरा गौर फरमाइये - 'रात 9 बजे लोग अपने घरों से बाहर आएं. घरों की लाइटें बंद करें और दरवाजे पर खड़े होकर दीया जलाएं, मोमबत्ती जलाएं या फिर कुछ भी प्रकाश जलाएं. इस शक्ति के जरिए हम ये संदेश देना चाहते हैं कि देशवासी एकजुट हैं.'
130 करोड़ देशवासियों के महासंकल्प को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। 5 अप्रैल,रविवार कोरात 9 बजे मैं आप सबके 9 मिनट चाहता हूं। ध्यान से सुनिएगा,5 अप्रैल कोरात 9 बजे: PM @narendramodi #IndiaFightsCorona
— PMO India (@PMOIndia) April 3, 2020
अपवादों को छोड़ दें तो इतिहास दोहराता ही है - नमक कानून तोड़ने के लिए 5 अप्रैल को ही महात्मा गांधी दांडी पहुंचे थे. अंग्रेजों के खिलाफ वो देश का नेतृत्व कर रहे थे, प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई के एक पड़ाव के लिए वही तारीख चुनी है - अब इस पचड़े में पड़ने से क्या फायदा कि ये संयोग है या प्रयोग.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ट्विटर पर अपने वीडियो मैसेज की घोषणा की तो जाहिर है लोग अपने अपने तरीके से कयास लगाना शुरू कर दिये होंगे. हर किसी को अपने हिसाब से अपेक्षा रही होगी - और ये भी जाहिर है मोदी का मैसेज ऐसे कुछ लोगों की अपेक्षाओं से मैच नहीं किया तो रिएक्ट भी उसी तरीके से करेंगे ही.
Dear @narendramodi,We will listen to you and light diyas on April 5. But, in return, please listen to us and to the wise counsel of epidemiologists and economists.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) April 3, 2020
किसी को गरीबों के लिए पैकेज चाहिये था तो कोई बेरोजगारी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के विचार जानना चाहता था. ये क्या चुनाव का मौका है जो लोगों को ऐसी अपेक्षाएं हो रही हैं - जिंदगी बची रहेगी तो रोजगार के उपाय सरकार न भी करे तो लोग खुद भी कर लेंगे, लेकिन जब जिंदगी ही नहीं बचेगी तो सरकारी आश्वासन किस काम का.
सोशल डिस्टैंसिंग की लक्ष्मण रेखा जरूर याद रहे
किसी भी बड़े ऑपरेशन या मिशन के लिए सबसे बड़ी जरूरत मानसिक तैयारी होती है - जनता कर्फ्यू ये नहीं तो आखिर क्या था. लोगों ने जनता कर्फ्यू को लागू कर खुद के अनुशासित होने का परिचय दिया - ये अगले मिशन की तैयारी के लिए बड़ा फीडबैक साबित हुआ और तीन दिन बाद ही लागू भी कर दिया गया.
ये ठीक है कि जनता कर्फ्यू के बाद कहीं कहीं कुछ लोग और कुछ अफसर भी सड़कों पर निकल गये और लॉकडाउन की हालत में भी कुछ लोग अड़चने पैदा कर रहे हैं. तो ऐसे लोगों से राज्य सरकारें अलग अलग तरीके से निबट भी रही हैं - यूपी में योगी आदित्यनाथ ने पुलिसकर्मियों पर हमला करने वालों पर NSA यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने की घोषणा कर दी है. फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती यही है कि लॉकडाउन पर पूरी तरह अमल कैसे हो. मुख्यमंत्रियों की वर्चुअल मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने धर्मगुरुओं की मदद लेने की बात कही थी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के ऑफिस से बताया गया है कि ये उद्धव ठाकरे का ही आइडिया था जो मोदी को पसंद आया - और सभी मुख्यमंत्रियों को इसे आजमाने का सुझाव दिया.
प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भले ही सरकार के इंतजामों पर हमला बोले, लेकिन लॉकडाउन के आइडिया से लेकर धर्मगुरुओं से अपील की अपील तक उस खेमे में भी वैसी ही सहमति नजर आती है - ये बात अलग है कि लॉकडाउन का सपोर्ट करने के बाद कांग्रेस नेता नये सिरे से कमी ढूंढने लगे हैं, लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का धर्मगुरुओं को पत्र लिखना क्या कहा जाएगा?
सवाल ये है कि ऐसा कितने धर्मगुरु करते हैं और कितनों का लोगों पर असर होता है. कहने को तो तब्लीगी जमात वाले मौलाना साद भी धर्मगुरु ही हैं जिनकी फिलहाल दिल्ली पुलिस को तलाश है. जो लोग मौलाना साद से कुछ दिन पहले ही ज्ञान की और बातें और आध्यात्मिक विमर्श किये हैं उनकी हरकतें अस्पतालों के आइसोलेशन वार्ड में देखी ही जा रही है - डॉक्टरों पर तो थूक ही रहे हैं, नर्सों के सामने अश्लील हरकत और कपड़े तक उतार दे रहे हैं.
वीडियो संदेश में प्रधानमंत्री मोदी ये याद दिलाना भी नहीं भूले कि सोशल डिस्टेंसिंग की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी है. किसी भी हालत में सोशल डिस्टेंसिंग को तोड़ना नहीं है - क्योंकि कोरोना की चेन तोड़ने का यही एक रामबाण इलाज भी है.
लोगों को प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैल तक का टास्क तो दे ही दिया है - अब देखना है कि आगे क्या होगा? कैसे होगा? इसी अवधि में ये भी समझना होगा कि अगर लॉकडाउन हटाया गया तो लोगों का कैसा व्यवहार रहता है. तैयारियां तो चल ही रहीं हैं. मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में मोदी ने कहा भी था कि कोई एक रणनीति तैयार हो जो जिले के स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक एकरूपता दिखाये.
ऐसा भी नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी देश के सभी लोगों को संदेश देकर खुद हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. और कोई माने न माने विपक्ष तो ऐसा ही मानता है और मौका देख कर बताता भी है. फिर भी ये जानना ही चाहिये कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम लॉकडाउन को कामयाबी दिलाने और कोरोना वायरस को शिकस्त देने के लिए कैसे और क्या क्या कर रही है.
1. तड़के उठ कर मॉनिटरिंग : प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के हवाले से आई खबर पर बनी मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि प्रधानमत्री मोदी की अगुवाई में मीटिंग का सिलसिला अक्सर देर रात तक चलता है. याद कीजिये निजामुद्दीन मरकज खाली कराने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल रात के दो बजे मौके पर पहुंचे थे.
लेकिन रात को जितनी भी देर हो, प्रधानमंत्री मोदी अमूमन तीन बजे भोर में उठ जाते हैं और सारे कामकाज की निगरानी शुरू कर देते हैं.
2. मोर्चे पर मोदी, मुस्तैद है टीम : निगरानी के लिए कई टीमें बनायी गयी हैं और सभी को अलग अलग जिम्मेदारियां और टास्क मिले हुए हैं. एक कोर टीम भी है जो बाकी चीजों की निगरानी करती है - यही वो टीम है जो कोरोना के तीसरे स्टेज में कम्युनिटी ट्रांसमिशन रोकने के एहतियाती उपायों में लॉकडाउन लागू करने की सलाह दी थी.
प्रधानमंत्री मोदी की ये टीम तो 24 घंटे काम करती ही है, खुद मोदी बी हर रोज 17-18 काम करते हैं और बीच बीच में समय निकाल कर कभी विशेषज्ञों से संवाद करते हैं तो जरूरत पड़ने पर राष्ट्र के नाम संदेश या वीडियो संदेश तैयार करते हैं.
कोरोना के खिलाफ जारी जंग में तमाम शख्सियतें अपने अपने तरीके से लोगों को जागरुक और उनकी हौसलाअफजाई कर रही हैं. ऐसे में अमिताभ बच्चा के एक ट्वीट में भी संदेश देने का तरीका काफी दिलचस्प नजर आया.
T 3490 - ख़बरदार !!! घर में रहो , बाहर ना निकलो ! इस कमबख़्त 'कोरोना' , को उलटा मत पड़ने दीजिए !!
नहीं नहीं ... आप मेरी बात नहीं समझ रहे हैं !'कोरोना' को उलटा पढ़िए ... हो जाएगा ... 'नारोको" ... !!! ???? pic.twitter.com/UFECkSTFrs
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) April 2, 2020
हर किसी के समझाने का तरीका अलग अलग भले हो, लेकिन मकसद तो एक ही है - है कि नहीं?
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