ब्लू व्हेल मजाक नहीं, मोदी जी ये 'मौत' है!
भारत में इस गेम के जानलेवा हो जाने के पीछे मोदी, उनके मंत्रियों, पुलिस और प्रशासन की नाकामी ही जिम्मेदार है. वो इसे फैलने से रोक नहीं पाए. ब्लू व्हेल चैलेंज किसी कलाकार या इंजीनियर की परिकल्पना हो सकता है, लेकिन इसने लोगों की जान ले ली.
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ब्लू व्हेल के बारे में मोदी जी को पता भी नहीं होगा लेकिन उन्होंने मजाक मजाक में एक बड़ी गलती कर डाली. उन्होंने गुजरात चुनावों के नतीजों को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए ब्लू व्हेल चैलेंज गेम बताकर उनका मजाक उड़ाया. मोदी जी एक अच्छे वक्ता माने जाते हैं. और लोगों की भावनाओं के तारों को छूने में उन्हें महारत हासिल है. लेकिन वो यहां बुरी तरह फेल हो गए.
ब्लू व्हेल गेम कोई मजाक नहीं है. इसे इस अमानवीय तरीके से और मजाक में पेश करना मोदी की असंवेदनशीलता को दिखाता है. आइए हम बताते हैं क्यों-
साल की शुरुआत इंडिया टुडे द्वारा मुंबई में एक बच्चे का कथित तौर पर ब्लू व्हेल गेम चैलेंज की वजह से आत्महत्या कर लेने की खबर ब्रेक करने के बाद ये गेम भारतीय मीडिया की सुर्खियों में छा गया था. ब्ले व्हेल गेम में प्रतिभागी को 50 दिन तक रोजाना एक चैलेंज लेना होता है. 50वां चैलेंज किसी बिल्डिंग से कूदकर अपनी जान देने का होता है.
ब्लू व्हेल चैलेंज से बच्चे की मौत की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. कई मीडिया हाउस ने तो हर सुसाइड केस को ब्लू व्हेल से ही जोड़ने का नियम बना लिया. लेकिन पुलिस ने हर बार यही कहा कि ब्लू व्हेल के एंगल को भी ध्यान में रखकर जांच की जाएगी. लेकिन तब तक आग में घी पड़ चुका था. अभिभावकों में दहशत का माहौल बन गया था और बच्चों में ब्लू व्हेल चैलेंज को आजमाने का जुनून चढ़ गया था. राज्य और केंन्द्र की जांच एजेंसिया इस ब्लू व्हेल चैलेंज के ओर-छोर का पता लगाने में नाकाम साबित हो रही थी.
अभवाहों ने इसके बाजार को और गर्म कर दिया. लेकिन कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए इस घातक गेम के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने की कोशिश की. लेकिन विडम्बना ये है कि अफवाहें रॉकेट की स्पीड से चलती हैं जबकि सच्चाई कछुए की तरह रेंगता रहता है. एक तरफ जहां राज्य सरकारों और सुप्रीम कोर्ट तक ने केंद्र सरकार से इस गेम को रोकने की गुहार लगाई. वहीं तब तक ये गेम 'घातक' रूप धारण कर चुका था. लेकिन सरकार बुरी तरह नाकाम रही.
कई लोगों की जान लेने वाले इस गेम को मजाक में भी सही नहीं कहा जा सकता
वैसे एक सवाल ये भी उठता है कि अगर सरकार नाकाम रही तो फिर आखिर अब ब्लू व्हेल चैलेंज की खबरें क्यों नहीं आतीं? इसका जवाब मैं भी जानना चाहता हूं लेकिन एक पत्रकार होने के नाते मैं ये बताना जरुरी समझता हूं कि अब अगर हमें ऐसी कोई खबर मिलती भी है तो हम उसे कवर नहीं करते. क्योंकि अब हम जनता में और दहशत नहीं फैलाना चाहते. हो सकता है मेरा ये फैसला गलत हो. लेकिन एक जिम्मेदार पत्रकार होने के नाते मुझे यही सही लगा कि बच्चों को अब नए तरीके न बताए जाएं. ये फैसला मैंने इसलिए भी लिया क्योंकि ये गेम उन बच्चों को ही अपना शिकार बनाता है जो मानसिक रूप से परेशान होते हैं. डिप्रेशन में होते हैं.
इसलिए ही पीएम मोदी के ब्लू व्हेल वाले मजाक से मुझे आपत्ति हुई. भारत में इस गेम के जानलेवा हो जाने के पीछे मोदी, उनके मंत्रियों, पुलिस और प्रशासन की नाकामी ही जिम्मेदार है. वो इसे फैलने से रोक नहीं पाए. ब्लू व्हेल चैलेंज किसी कलाकार या इंजीनियर की परिकल्पना हो सकता है, लेकिन इसने लोगों की जान ले ली. पत्रकारों ने इसे और बदतर बना दिया. और पुलिस की नाकामी ने इसे घातक रूप लेने का मौका दे दिया.
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