क्या है मुलायम के सामने विकल्पः कैसे बचाएंगे पार्टी को टूटने से?
लखनऊ के पार्टी दफ्तर में बुलाई गई मीटिंग को लेकर कयासों का दौर जारी है कि आखिर मुलायम सिंह के तरकश में वो कौन सा तीर है जिसके बूते वो पार्टी में आए इस सबसे बड़े संकट को टाल सकते हैं?
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समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव शायद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. वक्त ऐसा है जब पार्टी और परिवार में बगावत चरम पर है. मुलायम हमेशा से आखिरी वक्त में अपने विरोधियों को चित और चकित करने के लिए भी जाने जाते हैं.
ऐसे में सोमवार को लखनऊ के पार्टी दफ्तर में बुलाई गई मीटिंग को लेकर भी कयासों का दौर जारी है कि आखिर मुलायम सिंह के तरकश में वो कौन सा तीर है जिसके बूते वो पार्टी में आए इस सबसे बड़े संकट को टाल सकते हैं?
नेताजी की काली रात
मुलायम सिंह सोमवार को क्या करेंगे ये तो भविष्य के गर्भ में है. रविवार रात जब पार्टी के भीतर का संकट अपने चरम पर था तब मुलायम 5 विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास से बाहर निकले और सधे हुए कदमों से चलते हुए ये दिखाने कि कोशिश की कि अब भी उनमें संकट के निकलने का माद्दा बाकी है. सत्ता के गलियारों में मान लिया गया है कि मुलायम के पास चार विकल्प हैं और इन्हीं में से एक का ऐलान उन्हें सोमवार को करना है.
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कलह का क्लाइमेक्स
पार्टी मुख्यालय पर बड़े-छोटे नेताओं का जमावड़ा और समर्थकों की भीड़. आप पार्टी के नहीं हैं तो यकीन मानिए रूह कांप जाऐगी पार्टी मुख्यालय के गेट तक पहुंचने में. बहरहाल, लखनऊ में अखिलेश-शिपवाल के बीच भिडंत से लेकर पार्टी के बाहर कुछ कार्यकर्ताओं की पिटाई तक की खबर आ चुकी है. मुलायम अपनी पार्टी और कुनबे के सामने आंसू तक बहा चुके हैं. लिहाजा अब फैसला कितना कठिन क्यों न हो लेने के लिए वह पूरी तरह से तैयार हैं. जानिए क्या हो सकते हैं वह कठिन फैसले-
बैक टू स्कूल? |
विकल्प एक – अमर सिंह का इस्तीफा?
संकट के इस दौर में संभव है कि मुलायम सबसे पहले अमर सिंह का इस्तीफा लें या उन्हें पार्टी से निकाल दें. रविवार को हुई पार्टी की मीटिंग में अखिलेश यादव अमर सिंह को पूरे विवाद की जड़ बताया था. अखिलेश ने अमर सिंह को दलाल तक कह दिया था.
खामी—इस स्थिति में विधायकों में तो आपसी सहमति बनने की उम्मीद रहेगी लेकिन इससे अखिलेश और शिवपाल के बीच का झगड़ा बरकरार रह सकता है और पार्टी के बंटवारे का संकट दूर नहीं होगा.
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विकल्प दो: मुलायम बनें मुख्यमंत्री?
कयास ये भी हैं कि नेताओं की बड़ी तादात मुलायम पर खुद कमान संभालने का दबाव बनाए. लिहाजा उन्हें विधायक दल का नया नेता चुन लिया जाए और वह संकट की इस घड़ी में दोनों सरकार और पार्टी की कमान अपने हाथ में ले लें.
फायदा: इससे चुनाव संबंधी सभी फैसले स्वत: मुलायम के हाथ में आ जाएंगे और शिवपाल और अखिलेष को अपनी-अपनी जगह दिखा दी जाए.
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विकल्प तीन: ‘शिवपाल’ नया चेहरा?
कयास ये भी है कि शिवपाल को सूबे का नया मुख्यमंत्री बना दिया जाए. इससे सरकार की कमान के साथ-साथ पार्टी को एकजुट रखने के लिए शिवपाल को चुनावों का पूरा नेतृत्व मिलेगा.
खामी- इस फैसले पर समाजवादी पार्टी का टूटना तय है. अखिलेश और उनके समर्थक इस फैसले पर कभी राजी नहीं होंगे और वह नई पार्टी बनाने का रास्ता चुन सकते हैं.
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विकल्प चार: चुनाव की मजबूरी?
मुलायम पार्टी से जुडा फैसला लेने का पूर्ण अधिकार अखिलेश को दे दें. उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दें. इससे टिकट बांटने का विशेषाधिकार अखिलेश को मिल जाएगा.
मुश्किल: इससे पार्टी में शिवपाल को उनकी जगह दिखाने का काम कर दिया जाएगा लेकिन संभव है कि शिवपाल इस पर न राजी हों लिहाजा आगामी चुनावों में टिकट बांटने का काम मुलायम अपने पास रखें.
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