तो क्या वाकई चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रहा !
कांग्रेस के अनुसार जो रिश्ता मुख्य चुनाव आयुक्त और प्रधानमंत्री के बीच गुजरात में बना था वो आज भी कायम है. इतने से भी मन नहीं भरने के बाद कांग्रेस ने चुनाव आयोग की शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई.
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गुजरात चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अब इन चुनाव के नतीजों के लिए 18 दिसंबर का इंतजार है. हालाँकि चुनाव नतीजों से पहले ही कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर हमला बोल दिया है. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा ने चुनाव आयोग को बंधक बनाकर रखा है इसलिए वह पीएमओ और पीएम के दबाव में काम कर रही है. कांग्रेस के अनुसार जो रिश्ता मुख्य चुनाव आयुक्त और प्रधानमंत्री के बीच गुजरात में बना था वो आज भी कायम है. इतने से भी मन नहीं भरने के बाद कांग्रेस ने चुनाव आयोग की शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई. पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कम से कम 25 फीसद वीवीपीएटी (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) वोटों का मिलान ईवीएम से कराने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की गुहार लगाई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की याचिका को खारिज कर दिया.
वैसे हाल के चुनावों में यह चलन काफी जोर पकड़ता दिख रहा है कि हारने वाली पार्टियां अपनी नाकामियों का सारा ठीकरा चुनाव आयोग और ईवीएम पर फोड़ते दिख रहे हैं. हालाँकि, अभी गुजरात और हिमाचल चुनावों के नतीजे नहीं आये हैं मगर पूर्वानुमानों के अनुसार कांग्रेस दोनों ही राज्यों में सत्ता से दूर ही रहेगी. ऐसे में कांग्रेस का चुनाव आयोग पर हमला खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे को चरितार्थ करते ही दिख रही है.
इसी साल फ़रवरी, मार्च में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी राजनैतिक पार्टियों ने इसी तरह से चुनाव आयोग और ईवीएम पर दोष मढ़ते नजर आये थे. आम आदमी पार्टी ने तो पंजाब में अपनी हार के लिए सीधे तौर पर चुनाव आयोग को ही दोषी ठहरा दिया, हालाँकि ऐसा करते वक़्त वो दिल्ली में अपने प्रचंड जीत को भूल गए थे जब उन्होंने केंद्र की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दे दी थी. केजरीवाल के सुर में सुर मिलते ही कुछ और पार्टियों ने भी चुनाव आयोग और ईवीएम पर गंभीर सवाल खड़े किये थे. हालाँकि जब चुनाव आयोग ने सभी पार्टियों को अपने ईवीएम हैक कर दिखाने को कहा तो कोई भी पार्टी इसके लिए तैयार ही नहीं हुई.
भारत में लोकतंत्र की जड़े काफी मजबूत हैं और इसे सुचारू रूप से चलाने के लिए चुनाव आयोग ने अद्भुत काम किया है. यह भारतीय लोकतंत्र और चुनाव आयोग की ताक़त ही दिखाता है जब इंदिरा गाँधी द्वारा देश में आपातकाल लगाने के बाद हुए चुनावों में इंदिरा गाँधी को करारी हार को झेलना पड़ी थी. ऐसा ही कुछ लालू यादव के शासन काल में बिहार में भी दिखा जब बूथ लूट और अन्य गड़बडियों की आशंका के बिच चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव करा लोकतंत्र को मजबूत किया. वैसे अभी अपनी ख़राब प्रदर्शन के लिए चुनाव आयोग पर आरोप लगाने वाले कांग्रेस को अपने सत्ता के दौरान हुए चुनाव नतीजों पर भी गौर करना चाहिए. अगर 2014 के आम चुनावों से पहले दो वर्षों के दौरान चुनाव नतीजें देखें तो यह खुद बखुद पता चल जायेगा की कांग्रेस की हार उसकी नीतियों के कारण ही हुई थी. 2012 और 2013 में कुल 16 राज्यों में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को दस राज्यों में करारी हार झेलनी पड़ी थी जबकि कर्नाटक के आलावा पांच छोटे राज्यों में ही वो सत्ता में रह सकी. राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में तो उन्हें जबरदस्त अंतर से हार झेलना पड़ा. मतलब साफ़ है की किसी भी पार्टी हार जीत के लिए जनता का फैसला ही मायने रखता न कि चुनाव आयोग द्वारा पक्षपात.
ऐसे में राजनैतिक पार्टियों को चाहिए की वो हार के लिए अपने नीतियों का विश्लेषण करें न कि चुनाव आयोग पर अपने नाकामियों का दोष मढ़ें.
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