चुनावों की 'नीच' डिबेट के ठीक बाद संसद में सकारात्मक बहस कैसे संभव है !
पहले हिमाचल प्रदेश, फिर गुजरात बैक-टू-बैक कैंपेन. अभी नेताओं की थकावट भी नहीं मिटी की प्रधानमंत्री चाहते हैं कि वे चुनावी राजनीति छोड़ कर आदर्श संसदीय राजनीति वाले मोड में लौट आयें. कहीं ज्यादा मुश्किल टास्क नहीं है ये?
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संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन दो अच्छी बातें सुनने को मिलीं. एक बात कही उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने. एक और अच्छी बात कही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने.
नायडू ने सदस्यों से 'मैं विनती करता हूं.' जैसी बातों से बचने की सलाह दी, 'बस यही कहिये कि मैं दस्तावेज सदन के पटल पर रखने के लिए खड़ा हुआ हूं.'
फिर वो अपने चिरपरिचित अंदाज में बोले, 'विनती करने की जरूरत नहीं... ये स्वतंत्र भारत है. ये मेरा सुझाव है, आदेश नहीं.'
प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में अच्छी और सकारात्मक बहस पर जोर दिया, जो देश के लिए अच्छा होगा. निश्चित रूप से इससे बढ़िया क्या बातें हो सकती हैं, लेकिन गुजरात चुनावों की 'नीच' बातचीत के कुछ ही दिन बाद संसद में सकारात्मक बहस संभव हो पाएगी, लगता तो मुश्किल है.
सकारात्मक बहस जरूरी तो है, लेकिन...
प्रधानमंत्री की सकारात्मक बहस की अपील है तो बहुत अच्छी लेकिन गुजरात चुनावों में 'नीच' डिबेट के तत्काल बाद आई है, इसलिए मुश्किल लगती है. खासकर तब जबकि कांग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री के बयान को भी बेहद गंभीर बता रही हो - और उसी दौरान मणिशंकर अय्यर के मामले में राहुल गांधी नजीर पेश कर चुके हों.
बीति ताहि बिसारि दे... मगर कैसे?
संसद के शीतकाली सत्र के शांतिपूर्ण रहने की उम्मीद के साथ प्रधानमंत्री ने कहा, "आम तौर पर दिवाली के साथ-साथ ठंड का मौसम शुरू हो जाता है, लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के चलते ठंड अभी भी ठीक से नहीं आई है. हमारा विंटर सेशन आज से शुरू हो रहा है. 2017 में शुरू हो रहा सत्र 2018 तक चलेगा. इसमें सरकार के कई अहम कामकाज होंगे, जो दूरगामी प्रभाव पैदा करने वाले हैं. अच्छी बहस हो, सकरात्मक बहस हो. इनोवेटिव सुझावों के साथ बहस हो तो संसद के समय का उपयोग देश के लिए अच्छा होगा... सर्वदलीय बैठक में भी तय हुआ कि देश को आगे बढ़ाने की दिशा में सदन का सत्र चलेगा... देश लाभान्वित होगा."
प्रधानमंत्री की इस अपील के बाद भी सदन का तापमान कुछ ज्यादा ही गर्म रहा. कांग्रेस इस बात पर अड़ी है कि प्रधानमंत्री मोदी को गुजरात चुनाव में 'पाकिस्तान' के इस्तेमाल पर संसद में सफाई देनी ही होगी.
बहस का तो बेसब्री से इंतजार रहता है, मगर...
तीन तलाक पर कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही मोदी सरकार ने इस मसले पर अपना इरादा जाहिर कर दिया है. तय है तीन तलाक पर कानून लाने के लिए विधेयक पेश किया जाएगा. मौजूदा सत्र में 14 कार्य दिवस होंगे और इसी दौरान अपेक्षित कामकाज निबटाने होंगे. सरकार की कोशिश होगी कि कुछ अहम बिलों की जैसे भी हो मंजूरी मिल जाये. जीएसटी में हुए बदलावों को लेकर भी संशोधन पेश किये जाने हैं.
और सब तो ठीक है, लेकिन कांग्रेस चाहती है कि पाकिस्तान पर अपने बयान में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को घसीटने वाले पीएम मोदी माफी मांगें.
कांग्रेस के सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद ने चुनाव में 'पाकिस्तान' के जिक्र पर कहा, "पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व उपराष्ट्रपति और नौकरशाहों पर गुजरात चुनाव के लिए पाकिस्तान के साथ साजिश का आरोप लगाया है. प्रधानमंत्री को संसद में इस पर सफाई जरूर देनी चाहिए.'
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस पर नियम 267 के तहत कार्य स्थगन का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उसे नामंजूर कर दिया गया. इस मुद्दे पर टकराव इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के लिए 'नीच' शब्द का इस्तेमाल करने पर कांग्रेस नेता मणिशंकर पांडेय से न सिर्फ माफी मंगवाई गयी, बल्कि उन्हें सस्पेंड भी कर दिया गया. राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस किसी भी सूरत में मर्यादा का पूरा ख्याल रखेगी. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पद के सम्मान में कांग्रेस का बेहद कामयाब सोशल मीडिया कैंपेन तक वापस ले लिया - और साथियों को भी हद में रहने और 'मीठा' बोलने की सलाह दी है.
अब कांग्रेस भी प्रधानमंत्री से वैसा ही व्यवहार करने की अपेक्षा रखती है. कांग्रेस चाहती है कि इस गंभीर मसले पर तस्वीर साफ हो - क्या वास्तव में गुजरात चुनाव को लेकर पाकिस्तान की ओर से कोई साजिश हो रही थी. वैसे भी देश का प्रधानमंत्री किसी ऐसे देश के बारे में वैसी ही बातें करे जैसी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर होती आयी हों तो - स्वाभाविक है मामला गंभीर तो लगेगा ही.
कौन बनेगा करोड़पति के 11वें सीजन में एक बार अमिताभ बच्चन ने एक्टर होने का मतलब समझाया. अमिताभ ने बताया कि एक्टर एक ही वक्त पर अलग अलग किरदारों के साथ जीता है. एक ही दिन में डिमांड के अनुसार एक्टर को कई तरह के अलग अलग किरदारों में जीना पड़ता है.
ऐसा क्यों लगता है कि अमिताभ के इन बातों की झलक राजनीति में भी मिलने लगी है. क्या प्रधानमंत्री मोदी भी नेताओं से वैसी ही अपेक्षा रख रहे हैं जिसका जिक्र अमिताभ ने केबीसी में किया था? वो भी तब जबकि सारे नेता पहले हिमाचल और फिर गुजरात की थकावट से ठीक से उबर भी नहीं पाये हैं - क्या गुजरात में कुछ दिन गुजारने के बाद ऐसा ही होता है? पाकिस्तान के जिक्र के असलियत पर से पर्दा तो तब तक नहीं उठ पाएगा जब तक कि एक बार फिर अमित शाह ये न कह दें - 'वो तो बस चुनावी जुमला था.'
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