हेलो चुनावी कंट्रोवर्सी ! अब होली के बाद मिलते हैं
बिहार-बैटल के कारण बीफ-डीएनए-पिशाच आदि का जो खेल चला है, वह शांत होने वाला है. आप आराम से दिवाली, छठ, क्रिसमस मनाते हुए हैप्पी न्यू ईयर कह सकते हैं - लेकिन सिर्फ होली तक क्योंकि...
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दिल्ली चुनाव के बाद बिहार-बैटल के कारण अखबार या न्यूज चैनलों पर जो बीफ-डीएनए-पिशाच आदि का खेल चला है, वह शांत होने वाला है. आप आराम से दिवाली, छठ, क्रिसमस मनाते हुए हैप्पी न्यू ईयर कह सकते हैं - अगले साल होली तक. जी हां, सिर्फ होली तक ही. और उसके बाद...
असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल. ये चार राज्य हैं, जहां से एक बार फिर राजनीतिक रस्सा-कशी शुरू होगी. इन चारों राज्यों के विधानसभा का सत्र मई 2016 में खत्म होने वाला है. तो स्थिति एकदम स्पष्ट है. नवंबर 2015 से लेकर फरवरी-मार्च 2016 तक देश में 'परम शांति' होगी. विकास हो या न हो, बीफ खाएं या पोर्क... पाकिस्तानी कलाकार देश में रहें या जाएं... इन मुद्दों को जबरन जनता के कान और आंख में ठूंसने का सिलसिला थम जाएगा. लेकिन ध्यान दें... आपके पास मौज मस्ती के लिए सिर्फ 4-5 महीने ही हैं. राजनीति जिनकी रोजी रोटी है, वो आपके पास एक बार फिर आएंगे 'मत-दान' मांगने. मजबूरी है उनकी.
दिख सकता है लव जिहाद का रंग:
अगले बरस होली के रंग सिर्फ लाल-पीले-हरे नहीं रहेंगे. राजनीतिक रंग स्पष्ट देखा जा सकेगा. केरल की राजनीति हमें एक बार फिर से लव जिहाद का रूप दिखाएगी. याद है ना लव जिहाद शब्द का पहला प्रयोग सबसे पहले केरल में ही हुआ था.
बांग्लादेशी शरणार्थियों को बाहर करो:
असम और पश्चिम बंगाल बांग्लादेशी मुस्लिम शरणार्थियों से 'भेंट' करवाएगी. हो सकता है कि एक दो दंगों की खबरें भी आएं.
ममता का डीएनए टेस्ट:
नीतीश कुमार के डीएनए की तरह ममता बनर्जी का भ्रष्टाचार से लिंक खोजने वाले मेडिकल टेस्ट सामने आ सकते हैं.
केरल में फिर से बीफ:
केरल में कभी भी बीफ मुद्दा नहीं बन सकता लेकिन आरएसएस के बुद्धिजीवियों की कलम मार्क्सवादी विचारधारा के खिलाफ दनादन चलती दिखेंगी (चले भी क्यों न, लोकसभा चुनाव में वोट शेयर के मामले में बीजेपी अकेले लीड कर रही थी).
तमिलनाडु में भ्रष्टाचार:
तमिलनाडु की राजनीति की बात करें तो वहां सिर्फ एक ही मुद्दा होगा - भ्रष्टाचार. मतलब मोदी के विकास मॉडल के लिए सबसे उपयुक्त.
क्यों कि राज्यसभा में नंबर-गेम का मामला है:
प्रधानमंत्री मोदी पर बिहार चुनाव प्रचार में जरूरत से ज्यादा ऊर्जा झोंकने के आरोप लगे. कहा गया - वह पूरे देश के पीएम नहीं लग रहे, बिहार के पीएम जैसा व्यवहार कर रहे... मोदी पीएम बन गए हैं लेकिन लगता है अभी भी चुनाव प्रचार मोड में हैं... जनता की स्मृति लोप का फायदा उठाने में नेता कभी नहीं चुकते क्योंकि मोदी से पहले भी देश के अन्य सभी प्रधानमंत्रियों ने राज्यों के लिए चुनाव प्रचार किया है. खैर, इसके पीछे भी एक वजह होती है. वह वजह है राज्यसभा. लोकसभा चुनाव में बहुमत लाकर पीएम बनना एक बात है और अपनी नीतियों के तहत देश चलाना दूसरी बात. और यहीं पर खेल होता है राज्यसभा सांसदों का. अकेले बीजेपी अपने 48 राज्यसभा सांसदों के साथ कांग्रेस के 67 सांसदों से काफी पीछे है. AIADMK के 12, DMK के 4, तृणमुल के 12, CPI (M) के 9 सांसद अभी राज्यसभा में हैं. और अगले 4-5 महीने के बाद यही राजनीतिक दांव-पेच की धुरी तय करेंगे.
खाली होने वाली सीटों पर 'बगुला ध्यान'
बिहार चुनाव में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी तो सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि यहां की जीत और हार से पीएम मोदी की जीत और हार जुड़ी हुई थी. यहां भी मामला राज्यसभा सीट का ही था. 2016 से 18 तक यहां से अकेले 11 राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ठीक उसी तरह 2016-18 के दौरान असम से 2 राज्यसभा सीट खाली हो रही है, तमिलनाडु से 6, पश्चिम बंगाल से 11 और केरल से 6. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत के बाद भी मोदी का एनडीए को साथ लेकर चलने के पीछे भी यही राजनीतिक मजबूरी थी. यह मजबूरी अभी तक बनी हुई है.
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