New

होम -> सियासत

 |  कर्निका कहेन...  |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 14 अक्टूबर, 2015 11:58 AM
कनिका मिश्रा
कनिका मिश्रा
  @cartkanika
  • Total Shares

मानना पड़ेगा इस देश के राजनीतिज्ञों को. रुपया पाताल में गिरता जा रहा है, दाल आसमान छूती जा रही है लेकिन देश में वाद विवाद हो रहा है गाय पर. व्यापम तो जैसे हम भूल ही गए और ललित मोदी भी गाय के खुरों से उड़ती धूल में कहीं छिप चुके हैं.

कभी कभी लगता है कि हम इस देश के राजनेताओं के हाथों की कठपुतली हैं, हम वही सोचते हैं, उस की ही चर्चा करते हैं, जो वो चाहते हैं. आप, हम सब मिल कर बीफ़ को खाने और न खाने, गाय को मां मानने और न मानने पर सोशल मीडिया पर जमीन आसमान एक किए दे रहे हैं, वहीं कुछ मंझे हुए राजनीतिज्ञ परदे के पीछे से हमारी बुद्धिजीविता और जागरूकता को इस्तेमाल कर, एक और राजनीतिक हथियार पैना कर रहे हैं.

वैसे, ये पहले भी हो चुका है जब एक ज़माने में इस देश को एक नारा दिया गया था "रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे". मंदिर तो नहीं बना, बशर्ते मंदी ज़रूर आ गई. वैसे भी राम मंदिर बहुत ही लोकल टाइप का मुद्दा है, उस के लिए रथ यात्रा करो, अयोध्या जाओ, पसीना बहाओ. आज कल के फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सऐप के समय में उसके सफल से ज़्यादा, असफल होने के आसार ज़्यादा हैं. वहीं गाय तो हर गांव, हर मोहल्ले में मिल जाती है. बस, गाय को एक खूंटे से उतार कर दूसरे खूंटे पर बांध दो, इतना काफी है राजनीति का चुल्हा सुलगाने के लिए. गाय बेचारी, ज़िंदा है तो भी मुद्दा है, मर गई तब और भी बड़ा मुद्दा है. और कहीं कहीं पर तो बस गाय का नाम ही काफी है, जैसे दादरी में हुआ. बीजेपी के एक मंत्री के अनुसार इस 'छोटी सी घटना' के पीछे सिर्फ गाय का नाम ही तो था, गाय तो दूर दूर तक नहीं थी.

kanika_101415110734.png
 

अब बीजेपी भी क्या करे, बिहार के चुनाव में मोदी जी अपनी सभाओं में किस मुंह से जाते. जिन जुमलों पर वो लोकसभा चुनाव जीत कर आए थे, वो सब तो बूमरेंग की तरह उलटा हो कर उन्हीं को घायल करने वाले हो गए हैं. अच्छे दिन आने वाले हैं, ये बोलते ही पब्लिक उनका क्या करती, ये हम आप जानते हैं. गुजरात मॉडल, प्याज, दाल, डॉलर, विकास सब के सब मोदी जी के गले के फंदे बन चुके हैं, उन का नाम लेना भी एक राजनीतिक हत्या जैसा होता. क्या ये संयोग ही था कि इधर अखलाक की मौत हुई और उधर अचानक गौ-मांस बिहार चुनाव का एक ज्वलंत मुद्दा बन गया? ध्यान से देखा जाए तो ये गौ-मांस का मुद्दा राजनीतिक कढ़ाही में पिछले कई महीनों से पक रहा था. पहले महाराष्ट्र में बीफ़ बैन हुआ, फिर पर्युषण के समय मांसाहार. यह एक बार फिर राष्ट्रीय बहस का विषय बना और बिहार चुनाव से ऐन पहले एक अखलाक गौ-मांस खाने के आरोप में मरता है और एक चुनावी मुद्दे के रूप में गाय माता का अवतरण होता है. हम लोग बहस करते करते पागल हो जाते हैं, आग में घी डालते हैं, उस आग में जिसमें हमारे नेता अपनी गरम गरम रोटी पकाने की तैयारी कर रहे हैं.

पता नहीं, ऐसे कितने तीर और हैं इनके तरकश में. पहले इन्हीं लोगों ने राम का नाम लेकर लोगों की भावनाओं को भड़काया था, लेकिन लगता है अब राम भी आडवाणी और जोशी की तरह किसी मार्ग-दर्शक मंडल में शामिल हो चुके हैं. फिलहाल तो गाय माता की जय हो!

विकास तो होने से रहा, अब गाय माता कोई चमत्कार कर दें तो कर दें.

मजबूरी का नाम गाय माता!

#गाय, #दादरी, #नरेंद्र मोदी, गाय, दादरी, नरेंद्र मोदी

लेखक

कनिका मिश्रा कनिका मिश्रा @cartkanika

बेबाक कार्टूनिंग के लिए CRNI अवार्ड पाने वाली पहली महिला

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय