मोहल्ला क्लीनिक पर सियासत दिल्ली में गोरखपुर जैसे हादसे को न्योता देना है
आम आदमी पार्टी की ओर से उप राज्यपाल पर दबाव बनाने की कोशिश हो या फिर कोई भी सफाई दी जाये, उसे ऐसे आरोपों से मुक्त तो होना ही पड़ेगा. आप पर पहले ही कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने के लिए संसदीय सचिव वाली तरकीब पर पेंच फंसा हुआ है.
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बदकिस्मती इससे ज्यादा भला क्या हो सकती है कि इलाज के अभाव में बच्चे दम तोड़ दें. मुल्क तभी बचेगा या तरक्की करेगा जब बच्चे जिंदा बचेंगे. मंगल पर तो बाद में भी जा सकते हैं, मंदिर भी आगे कभी भी बना सकते हैं - और चीन-पाकिस्तान से निबट सकते हैं, लेकिन बच्चों को तो अभी ही बचाना होगा.
गोरखपुर का ऑक्सीजन कांड कोई अकेली घटना नहीं है. झारखंड से भी बच्चों के ऐसे ही बड़ी तादाद में मरने की खबर आई है. कैंसर भी लाइलाज नहीं है - अगर शुरुआती दौर में बीमारी का पता लग जाये तो और कुछ नहीं तो उम्र तो बढ़ाई ही जा सकती है.
मेडिकल साइंस मजबूती से कहता है कि एहतियाती उपाय इलाज से बेहतर होते हैं. दिल्ली में मोहल्ला क्लिनिक का कंसेप्ट इस रूप में काफी कारगर हो सकता है. जो जनता मेडिकल स्टोर से दवा लेकर लौट जाती है या बड़े अस्पतालों में जाने से हिचकती है, वो मोहल्ला क्लिनिक तक इलाज के लिए पहुंच जाती है कम है क्या?
मोहल्ला क्लीनिक का आइडिया
क्या गोरखपुर अस्पताल में होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है? जिन्हें बच्चों की मौत पर भी राजनीति करनी है या पैदा करने वालों को कोसना है, उनकी बात अलग है. ऑक्सीजन की सप्लाई में रिश्वतखोरी और लापरवाही से पल्ला झाड़ने की नौबत आने से बहुत पहले ही मासूम जिंदगियां बचायी जा सकती हैं. इसके लिए बहुत बड़े बड़े अस्पताल खोलने से भी पहले जरूरी सिर्फ ये है कि तबीयत बिगड़ते ही प्रोफेशनल मदद मुहैया करा दी जाये. मीडिया रिपोर्ट देखें तो बहुत सारे बीमार बच्चे दूसरे अस्पतालों से रेफर होने के बाद गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल पहुंचते हैं. उन बच्चों को जिला स्तर तक के अस्पतालों से इसलिए रेफर करना पड़ता है क्योंकि इलाज की जो सुविधा है मरीज उससे ज्यादा हो जाते हैं. या फिर वहां पहुंचते पहुंचते उनकी हालत इतनी खराब हो जाती है कि सीमित सुविधाओं में उनका इलाज संभव नहीं होता.
अगर इन मरीजों को समय से इलाज की सुविधा मिल जाये तो हालत इतनी खराब नहीं हो पाएगी कि उन्हें बचाना मुश्किल हो जाये.
वक्त रहते इलाज मिल जाये, बहुत है...
देश के ज्यादातर हिस्सों में होता यही है कि बीमार होने पर लोग मेडिकल स्टोर से दवा ले लेते हैं और हालत खराब होने पर क्वालिफाईड डॉक्टर तक पहुंचते हैं. मोहल्ला क्लिनिक का कंसेप्ट यहीं सबसे ज्यादा कारगर लगता है.
लोग अपने मामले में भले डॉक्टर के यहां जाने में भले ही लापरवाही करें, लेकिन बच्चों के मामले में शायद ही कोई ऐसा करता होगा. अगर मोहल्ला क्लिनिक में डॉक्टर और दवा दोनों मिलने लगे तो लोगों को मेडिकल स्टोर से दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. समय पर सही इलाज मिल जाने से बीमारी का प्रकोप भी इतना ज्यादा नहीं होगा कि स्थिति गंभीर हो जाये.
दिल्ली में पिछले ही साल डेंगू और चिकनगुनिया का आतंक देखा जा चुका है. निश्चित तौर पर मोहल्ला क्लिनिक ऐसी बीमारियों पर काबू पाने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं.
जुलाई 2015 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के पीरागढ़ी में पहले मोहल्ला क्लिनिक का उद्घाटन किया था. तभी बताया गया कि सरकार की ऐसी एक हजार मोहल्ला क्लिनिक खोलने की स्कीम है. 500 तत्काल और बाकी 500 सौ उसके अगले वित्त वर्ष में. योजना ये थी कि हर विधानसभा क्षेत्र में 15 मोहल्ला क्लिनिक जरूर हो.
अभी तक दिल्ली में 110 मोहल्ला क्लीनिक ही खोले जा सके हैं. दरअसल, मोहल्ला क्लिनिक को लेकर दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने शिकायत दर्ज करायी है - और उसी के आधार पर दिल्ली के उपराज्यपाल ने जांच के लिए विजिलेंस को सौंप दिया है.
आप विधायकों का राजभवन में धरना
माकन की शिकायत के बाद नये मोहल्ला क्लिनिक खोले जाने के रास्ते में रोड़े खड़े हो गये हैं. उपराज्यपाल के दफ्तर से जारी बयान में बताया गया है कि मोहल्ला क्लिनिक का मामला विजिलेंस विभाग की जांच के दायरे में है. दूसरी तरफ, दिल्ली सरकार का कहना है कि शिकायतें झूठी हैं.
मेडिकल स्टोर से दवा लेने से तो बेहतर है मोहल्ला क्लीनिक जाना
दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया है कि मुख्यमंत्री ने फोन कर एलजी अनिल बैजल से इस मामले का मिल बैठकर हल निकालने की गुजारिश की थी लेकिन ठुकरा दिया गया. बाद में आप विधायक सौरभ भारद्वाज ने मुलाकात का वक्त मांगा - और फिर आप के 45 विधायकों ने राजभवन पहुंच कर धरना दे दिया. सभी विधायक घंटों वहां जमे रहे और बीच बीच में फेसबुक लाइव और ट्वीट करते रहे. बताया जा रहा है कि आप की ओर से सिर्फ पांच लोगों की मुलाकात की अनुमति मांगी गयी थी. विधायकों डटे रहने से परेशान होकर पुलिस भी बुलायी गयी लेकिन उनकी सोशल मीडिया पर सक्रियता के चलते पुलिस दूर ही रही.
मोहल्ला क्लीनिक पर सियासत
दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि दिल्ली में गोरखपुर जैसी त्रासदी होने का इंतजार नहीं किया जा सकता. सिसोदिया का कहना है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल इस मसले पर उपराज्यपाल के साथ बैठकर सुलझाने को तैयार हैं.
Mohalla Clinics r much needed to save Delhi from Dengue-chikungunya ... There should be no politics at the cost of peoples lives?
— Manish Sisodia (@msisodia) August 30, 2017
LG office is misrepresenting the facts that CM did not come to meet LG.... CM offered to come anytime in interest of Mohalla Clinic. 1/2
— Manish Sisodia (@msisodia) August 30, 2017
Let's not wait for another Gorakhpur like tragedy in Delhi. CM has offered to discuss it anytime. Let all officers be called right now.2/2
— Manish Sisodia (@msisodia) August 30, 2017
मोहल्ला क्लीनिक में भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले अजय माकन का आरोप है कि ये क्लीनिक उन्हीं इमारतों में खोले गये हैं जो आप कार्यकर्ताओं की हैं. माकन का आरोप है कि आप कार्यकर्ताओं को फायदा पहुंचाने के लिए मार्केट से कई गुणा ज्यादा किराये का भुगतान किया जा रहा है. माकन का दावा है कि इसके लिए उन्होंने दो सौ युवाओं की एक टीम बनाकर मोहल्ला क्लीनिक भेजा और सर्वे कराया. सर्वे में पाया गया कि कोई क्लीनिक किसी पार्षद के घर में खुला है तो कोई आप के ट्रेड विंग के कार्यकर्ता के घर में. माकन के मुताबिक दो करोड़ रुपये सालाना किराये पर खर्च किये जा रहे हैं, अगर एक हजार मोहल्ला क्लीनिक खुल गये तो 20 करोड़ तो सिर्फ किराया हो जाएगा.
आम आदमी पार्टी की ओर से उप राज्यपाल पर दबाव बनाने की कोशिश हो या फिर कोई भी सफाई दी जाये, उसे ऐसे आरोपों से मुक्त तो होना ही पड़ेगा. आप पर पहले ही कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने के लिए संसदीय सचिव वाली तरकीब पर पेंच फंसा हुआ है.
कोई भी काम चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, उसे भ्रष्टाचार की नींव पर इमारत खड़ी करने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती. वैसे माकन ने इल्जाम लगाने के साथ साथ ये भी कहा है कि आप सरकार ने पहले से चल रही एक हजार से ज्यादा डिस्पेंसरियों को नजरअंदाज करके मोहल्ला क्लिनिक शुरू किये. कहीं ऐसा तो नहीं कि माकन को यही बात नागवार गुजरी हो कि कांग्रेस की पहल को हाशिये पर डाल कर केजरीवाल सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक खोली. मामला जो भी तस्वीर साफ सुथरी तो होनी ही चाहिये.
अगर स्वच्छता अभियान पर सियासत नहीं होनी चाहिये तो मोहल्ला क्लिनिक पर भला क्यों हो? पार्टी लाइन से अलग हटकर सभी दल अगर इस सवाल का जवाब खोजें तभी हल निकल सकेगा.
इससे पहले कि एक बेहतरीन आइडिया सियासत का शिकार होकर दम तोड़ दे - इसे बचाने की कोशिश होनी चाहिये. चाहे वो कोशिश कोर्ट की तरफ से हो, नेताओं की तरफ से हो - या फिर आम लोगों की ही तरफ से क्यों न हो.
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