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Updated: 06 मई, 2016 03:24 PM
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पिछले साल कांग्रेस ने दांडी मार्च किया था - और अब अगस्टा क्रांति. फर्क सिर्फ इतना है कि इस 'लोकतंत्र बचाओ' (ज्यादा सूट करता है - 'कांग्रेस बचाओ') मुहिम में रॉबर्ट वाड्रा भी नजर आने लगे हैं. जंतर मंतर पर लगे कांग्रेस के पोस्टर में रॉबर्ट वाड्रा सेंटर ऑफ मोस्ट अटेंशन रहे.

ये पोस्टर क्यों?

कांग्रेस के पोस्टर में रॉबर्ट वाड्रा का होना किस बात के संकेत हैं? क्या यूपी चुनावों से पहले रॉबर्ट वाड्रा की कांग्रेस में एंट्री होने जा रही है - और उन्हें कोई बड़ी भूमिका देने की तैयारी है.

क्या लैंड-डील के मामलों में कांग्रेस उन्हें 'मि. क्लीन' का पॉलिटिकल सर्टिफिकेट दे रही है?

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क्या यूपी के मिशन 2017 के तहत राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और शीला दीक्षित के बाद रॉबर्ट वाड्रा के लिए ये 'माइक टेस्टिंग' जैसी कवायद है? या फिर जल्द ही कांग्रेस की ओर से बयान आनेवाला है - वे पोस्टर कांग्रेस के कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने लगा दिये थे जो कांग्रेस का आधिकारिक पोस्टर नहीं है, या - ये भी नागपुर के इशारे पर वाड्रा को विवादों में लपेटने की कोशिश है.

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हर पोस्टर कुछ कहता है...

वैसे भी कांग्रेस के पोस्टर में सोनिया और राहुल के बाद अगर कुछ संभावित चेहरे बचते हैं तो उनमें सबसे पहले प्रियंका हैं, उनके पति वॉड्रा का नंबर तो बात में आता है. वैसे चुनावों के दौरान रॉबर्ट वाड्रा और उनके बच्चों को गांधी परिवार के गढ़ों में घूमते देखा गया है. लेकिन इस तरह रॉबर्ट वाड्रा कभी किसी पोस्टर में नहीं देखने को मिले हैं.

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्हें हवाई अड्डों पर मिलने वाले वीआईपी ट्रीटमेंट का मामला उछला तो रॉबर्ट ने सोशल मीडिया के जरिये रिएक्ट किया. कई बार उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में भी सरकार को लपेटे में लेते हुए बयान दिये. जब भी वाड्रा का नाम विवादों में उछला कांग्रेस नेताओं ने आगे आकर उनका बचाव किया कि जानबूझ कर उन्हें टारगेट किया जा रहा है.

मई में मार्च

12 मार्च 2015 को भी कांग्रेस की ओर से एक स्पेशल मार्च निकाला गया - दांडी मार्च निकाले जाने के ठीक 85 साल बाद. तब कोयला घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम सम्मन की तामील हुई थी. सोनिया गांधी ने सहयोगियों के साथ कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड से मनमोहन के आवास तक मार्च किया - और हर मुश्किल घड़ी में साथ देने का भरोसा दिलाया.

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करीब साल भर बाद कांग्रेस की 'अगस्टा' क्रांति भी देखने को मिली है. राहुल गांधी, मनमोहन सिंह और दूसरे नेताओं के लाव लश्कर के साथ सोनिया गांधी जंतर मंतर पर खूब गरजीं, "आज हम सब एक संदेश देने के लिए इकट्ठा हुए हैं. एक जोरदार संदेश जिसे केवल रायसीना में बैठे लोग ही नहीं बल्कि नागपुर में बैठे लोग भी सुनें, जिनके इशारे पर मोदी सरकार चल रही है."

सोनिया ने समझाया, "मोदी सरकार अपनी असफलताओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए विपक्ष के नेताओं पर बेबुनियाद आरोप लगा रही है. कांग्रेस के खिलाफ इन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है."

सोनिया ने सत्ताधारी बीजेपी को आगाह करते हुए कहा कि वो जीते जी उनके खतरनाक इरादे पूरे नहीं होने देंगी, "मैं आगाह करना चाहती हूं कि कांग्रेस को कमजोर समझने की भूल न करें, हम नहीं झुकने वाले."

खामोशी भी गरजने लगी

सत्ता में होने पर शायरी का अंदाज और होता है - और बाद में बदल जाता है. कभी, 'हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी' सुना कर लोगों के मन में हजारों सवाल उठा देने वाले मनमोहन सिंह ने नया शेर पढ़ा, "यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहां से. अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा. कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी. सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जमां हमारा." इसके साथ ही मनमोहन सिंह ने कहा कि मोदी जी जहां भी जाते हैं सिर्फ कांग्रेस के सफाए की बात करते हैं, लेकिन 'कांग्रेस बहती गंगा है, जो कभी रुकेगी नहीं.' मनमोहन ने कांग्रेस को भारत की आत्मा बताया.

ये तो हुई सड़क की बात, संसद में भी कांग्रेस मजबूत ही नजर आ रही है - राज्य सभा में उसका तो वैसे भी दबदबा है, अगस्टा मसले पर बीजेपी को सहयोगियों का ही साथ नहीं मिल रहा.

कर क्या रही सरकार?

राज्य सभा में भी कांग्रेस की अगस्टा की क्रांति अब तक बीजेपी सरकार पर भारी पड़ती नजर आ रही है. बीजेपी के साथी सरकारी घेरेबंदी का हिस्सा बनने को तैयार नजर नहीं आ रहे. मोदी सरकार जिस तरह से सुब्रहमण्यन स्वामी को उतार कर सौदे में हुई घूसखोरी के लिए सीधे सोनिया गांधी और उनके सहयोगियों को जिम्मेदार ठहराना चाह रहे हैं, सहयोगी दलों इससे असहमत दिखे. शिवसेना ने तो उल्टे मोदी सरकार को ही लपेटा कि दोषियों पर कार्रवाई नहीं हो रही. शिरोमणि अकाली दल ने भी खुद को इससे से दूर रख रखा है. दूसरी तरफ, तकरीबन पूरा विपक्ष एक्शन न लेने के लिए मोदी सरकार को ही नाकाम बता रहा है.

ऊपर से, अहमद पटेल की इमोशनल अपील भी असरदार रही. अमूमन लो प्रोफाइल मेंटेन करने वाले पटेल भी बहस में कूदे और कहा कि अगर उन्हें दोषी पाया गया तो राज्य सभा से तो इस्तीफा देंगे ही, सार्वजनिक जीवन से भी संन्यास ले लेंगे.

कुल मिला कर बीजेपी जहां एक कदम आगे और दो कदम पीछे करती दिख रही है तो कांग्रेस आरोपों पर सफाई देने की बजाए अगस्टा केस को हमले का हथियार बना रही है.

ये सब तो साफ है. बात एक ही जगह आ कर अटक जा रही है कि रॉबर्ट वाड्रा प्रशांत किशोर की रणनीति का हिस्सा हैं या कांग्रेस के?

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