प्रशांत किशोर ने कांग्रेस ज्वाइन नहीं किया, लेकिन खिचड़ी मिल कर ही पका रहे हैं!
कांग्रेस (Congress) और प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) दोनों ने ही म्युचुअल ब्रेक-अप की घोषणा तो कर डाली है, लेकिन दोनों पक्ष जिस तरीके से चीजों को पेश कर रहे हैं - लगता है सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) परदे के पीछे कुछ और ही प्लान कर रही हैं.
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प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने कांग्रेस ज्वाइन करने से इनकार वाला जो ट्वीट किया था, अब वो हाथी के दांत जैसा लगने लगा है - मीडिया में आयी खबरों को दोनों तरफ से खारिज करने की कोशिश हो रही है, लेकिन वो चीजों को स्पष्ट करने की जगह संदेह ही बढ़ा रही हैं.
ये तो 24 मिनट के अंतराल पर आये दोनों पक्षों के ट्वीट से ही लगा था कि जो भी बताया जा रहा है, वो सब आपसी सहमति से हो रहा है. जैसे ट्वीट का टेक्स्ट भी साथ बैठ कर फाइनल किया गया हो - जैसे एक दूसरे को अपने अपने तरीके से प्रोटेक्ट करते हुए आगे बढ़ना तय हुआ हो.
कांग्रेस (Congress) प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला के ट्वीट के बाद सीनियर नेता पी. चिदंबरम आगे आते हैं. इंटरव्यू में बताते हैं कि प्रशांत किशोर के प्रजेंटेशन को लेकर जो मीडिया में खबर आयी वैसा कुछ हुआ ही नहीं. फिर प्रशांत किशोर भी इंटरव्यू देते हैं और कहते हैं मीडिया में प्रजेंटेशन के पुराने ड्राफ्ट को लेकर दावे किये जा रहे हैं - वो सही नहीं हैं.
लेकिन तभी एक और इंटरव्यू में प्रशांत किशोर अलग ही बात बता देते हैं. प्रशांत किशोर के मुताबिक, कांग्रेस में लीडरशिप को लेकर जो बात हुई है वो सिर्फ सोनिया गांधी को पता है. फीडबैक के लिए जो कमेटी बनी थी उसमें से किसी को भी उस बात की भनक तक नहीं है.
जाहिर है, पी. चिदंबरम सच बोल रहे हैं, लेकिन सच तो ये है कि वो जो बोल रहे हैं वो सच है ही नहीं. जितना सच वो जानते थे, बता दिये - 'नेतृत्व के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई.' अगर उनके सामने बात नहीं हुई तो वो कैसे बता सकते हैं भला.
एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर अपनी सफाई को मजबूत करने के लिए पी. चिदंबरम के इंटरव्यू का हवाला देते हैं - और अगली ही बार दूसरे इंटरव्यू में जो बताते हैं उससे मालूम होता है कि पी. चिदंबरम तो आधा सच ही जानते हैं.
असली सच या तो प्रशांत किशोर जानते हैं या फिर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) - और वे बातें निजी तौर पर हुई हैं, इसलिए प्रशांत किशोर का कहना है कि उसे वो पब्लिक नहीं करेंगे. ठीक बात है. पब्लिक तो प्रशांत किशोर और उनके क्लाइंट के बीच हुई डील की कोई भी चीज नहीं होती.
मुद्दे की बात ये है कि नेतृत्व के मुद्दे पर जो बात मीडिया में आयी है, वो भी कमेटी के ही एक सदस्य के हवाले से आयी है. अगर वो कमेटी मेंबर भी औपचारिक तौर पर इंटरव्यू दे रहा होता तो उसका बयान पी. चिदंबरम से अलग थोड़े ही होता. ऑफ द रिकॉर्ड तो बातें और ही होती हैं.
प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच जो कुछ भी हुआ या हो रहा है, उसमें हाथी के दांत तो सबको दिखायी दे रहे हैं. जो कुछ परदे के पीछे चल रहा है वो तो आने वाला वक्त ही सामने ला सकता है - लेकिन ये तो लगने लगा है कि सोनिया गांधी परदे के पीछे कोई व्यूह रचना की कोशिश जरूर कर रही हों. हो सकता है सोचने समझने के लिए उनको वक्त चाहिये हो. हो सकता है, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को समझाने के लिए भी वक्त चाहिये हो - और ये भी हो सकता है कि राजनीतिक विरोधियों की गतिविधियां समझने के लिए ही वक्त चाहिये हो.
सुझावों का असर दिखेगा भी क्या?
जब प्रशांत किशोर ने एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में कहा था कि प्रशांत किशोर के ज्वाइन न करने के बावजूद कांग्रेस उनके कुछ सुझावों पर एक्शन लेगी, तभी ये समझ पाना मुश्किल हो रहा था कि क्या प्रशांत किशोर को ऐसा करने पर कोई आपत्ति नहीं होगी?
लेकिन जब कांग्रेस के ऐसा करने पर प्रशांत किशोर की बातों में आपत्ति की जगह आभार जैसा भाव दिखायी पड़े तो क्या समझा जाये? ये कह भर देना कि प्रशांत किशोर से ज्यादा कांग्रेस को नेतृत्व की जरूरत है, अलग बात है.
प्रशांत किशोर और सोनिया गांधी अलग अलग रह कर किसी संयुक्त रणनीति पर काम कर रहे हैं?
प्रशांत किशोर पेशेवर तरीके से काम करते हैं. अपने काम के लिए अघोषित रकम लेते हैं, लेकिन बदले में सौ फीसदी रिजल्ट भी देते हैं. नतीजों के कुछ अपवाद भी हो सकते हैं, लेकिन उनके पीछे वाजिब वजहें भी लगती हैं.
प्रशांत किशोर का अपने सुझावों पर कांग्रेस का यूं ही अमल करने देना हैरान करता है, अगर वो सब किसी बड़ी डील का हिस्सा न हो. वैसे भी एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने साफ तौर पर बताया है कि कांग्रेस में उनके लिए दरवाजे बंद नहीं हुए हैं - हो सकता है अगले महीने होने जा रहे कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद तस्वीर ज्यादा साफ हो. हो सकता है, राजस्थान को लेकर सोनिया गांधी के फैसले में प्रशांत किशोर के सुझावों की झलक देखने को मिले - और ये भी हो सकता है कि सितंबर, 2022 तक कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सब कुछ शीशे की तरह साफ नजर आने लगे.
और तब तक प्रशांत किशोर का मामला होल्ड समझ लेने में कोई बुराई भी नहीं है. वैसे प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों की बरसी का इंतजार कर रहे हैं. प्रशांत किशोर ने तब कहा था कि आगे से वो चुनाव कैंपेन का काम नहीं करेंगे - अब कह रहे हैं कि उस घोषणा की सालगिरह के मौके पर ही वो अपनी नयी रणनीति शेयर करेंगे.
नेतृत्व के मुद्दे पर बात तो हुई है
द प्रिंट वेबसाइट ने 2024 के आम चुनाव को लेकर प्रशांत किशोर के कांग्रेस को दिये गये सुझावों की खबर कमेटी के दो सदस्यों के हवाले से दी थी - और अलग अलग सूत्रों से भी ऐसी खबर मीडिया में आयी थी. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम और प्रशांत किशोर दोनों ही अपने तरीके से खबर को खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं.
द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत किशोर चाहते थे कि प्रियंका गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाये. राहुल गांधी पार्लियामेंट्री पार्टी के नेता बनें - और सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन बनी रहें.
इंटरव्यू में पूछे जाने पर पी. चिदंबरम बताते हैं, 'प्रशांत किशोर के प्लान में नेतृत्व के मुद्दे पर कुछ नहीं था... प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने जैसा भी कुछ नहीं था... जैसा कि मीडिया के एक वर्ग में जिक्र हो रहा है.
आज तक के खास कार्यक्रम थर्ड डिग्री में पूछे जाने पर प्रशांत किशोर भी गोल मोल जवाब देते हैं. साथ ही, पी. चिदंबरम के बयान का भी जिक्र करते हुए समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जो बात वो कह रहे हैं, कांग्रेस की तरफ से भी तो वही बताया गया है. प्रशांत किशोर को अपनी बात समझाने का पूरा हक है, लेकिन ये समझाने के चक्कर में प्रशांत किशोर कुछ ज्यादा ही समझा दे रहे हैं.
बीबीसी से बातचीत में भी प्रशांत किशोर अपनी तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के सुझाव से जुड़े तमाम अटकलों को खारिज कर देते हैं. प्रशांत किशोर ये भी बताते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा में से कोई भी उनकी पहली पसंद नहीं है.
जब उनकी मन की बात पूछी जाती है तो कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपनी पहली पंसद वो मौजूदा अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का ही नाम लेते हैं.
लेकिन तभी, बीबीसी को, प्रशांत किशोर ये भी बता देते हैं, "कांग्रेस में बदलाव के लिए जो प्रजेंटेशन दिया था... उसमें लीडरशिप को लेकर भी विस्तार से चर्चा की गई थी."
प्रशांत किशोर का कहना है, "जो बातें प्राइवेटली कही गईं... उनके बारे में पब्लिकली नहीं कहूंगा... जो बातें सार्वजनिक हैं, उन्हीं के बारे में कहूंगा... लीडरशिप को लेकर जो मेरे दिमाग में था, मैंने उनको दिखाया. वो पूरी कमेटी ने नहीं देखा. वो कांग्रेस प्रेसिडेंट के लिए था."
प्रशांत किशोर बीबीसी को बताते हैं, '...जहां तक ये बात है कि प्रियंका गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाये, ये बिल्कुल गलत बात है... मैंने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया कि इस व्यक्ति को अध्यक्ष बना दें... मेरा प्रपोजल बस इतना था कि जो कांग्रेस का प्रेसिडेंट हो, वो पार्लियामेंट पार्टी का लीडर न हो.'
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में प्रशांत किशोर की एक स्लाइड दिखायी गयी है, कुछ कंडीशनल सुझाव दिये गये हैं. नेतृत्व को लेकर दो तरह के सुझाव हैं - एक प्रीफर्ड और दूसरा अल्टरनेटिव.
अपने प्रीफर्ड सुझाव में प्रशांत किशोर ने सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया है - और बीबीसी से बातचीत में ऐसे किसी सुझाव से इनकार करते हुए भी वो सोनिया गांधी को भी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपनी पहली पसंद बता रहे हैं - अब जिसे जो समझ आये समझता रहे.
इसी कैटेगरी में प्रशांत किशोर ने किसी पुराने कांग्रेसी को यूपीए का चेयरपर्सन और गैर-गांधी कार्यकारी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनाने की सलाह देते हैं.
नेतृत्व को लेकर प्रशांत किशोर के सुझाव वाली एक स्लाइड
जिस तरीके से प्रशांत किशोर ने यूपीए चेयरपर्सन के लिए किसी पुराने कांग्रेसी (Earstwhile INC Leader) पर जोर दिया है, ऐसा लगता है जैसे वो एनसीपी नेता शरद पवार का नाम सजेस्ट कर रहे हों. शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूले के मुद्दे पर विरोध जताया तो पार्टी से निकाल दिया गया, लेकिन जैसा कि वो बताते हैं, नयी पार्टी बनाते वक्त भी वो कांग्रेस का नाम शामिल किया क्योंकि वो उस विचारधारा के कायल हैं - राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी. अल्टरनेटिव कैटेगरी में प्रशांत किशोर की सलाह है कि सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन बनी रहें लेकिन किसी गैर-गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाये. ऐसी सूरत में उनको किसी कार्यकारी अध्यक्ष की जरूरत नहीं लगती.
ध्यान देने वाली खास बात ये भी है कि प्रशांत किशोर ने दो ही सूरत में राहुल गांधी को संसदीय दल का नेता और प्रियंका गांधी को महासचिव कोऑर्डिनेशन बनाने की सलाह दी है - हालांकि, बाद में ऐसी चीजों को प्रशांत किशोर पुराने ड्राफ्ट का हिस्सा बता कर पल्ला झाड़ने की भी कोशिश की है.
खिचड़ी तो पकाई ही जा रही है
असलियत जो भी हो. वो तो प्रशांत किशोर और सोनिया गांधी ही जानती होंगी. जिस तरीके से चीजों को बारी बारी पेश किया जा रहा है, साफ तौर पर समझ में आता है कि परदे के पीछे खिचड़ी जरूर पकायी जा रही है.
कहने को तो प्रशांत किशोर का फिलहाल कांग्रेस से कोई नाता नहीं है, लेकिन जगह जगह इंटरव्यू देकर चर्चा में तो वो कांग्रेस को ही बनाये हुए हैं - और हर जगह ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस का प्रचार कर रहे हों!
प्रशांत किशोर प्राइवेट बातचीत को किनारे रख कर जो बातें पब्लिक में हैं उन पर अपनी तरफ से स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. हो ये रहा है कि जैसे जैसे प्रशांत किशोर एक के बाद एक इंटरव्यू देते जा रहे हैं - पब्लिक और प्राइवेट बातचीत में फासला कम होता जा रहा है. जब भी ऐसी कोशिशें होती हैं, तो यही लगता है कि जो बताया जा रहा है, वास्तव में सब वैसा ही नहीं हो रहा है.
राजनीति में 'सत्यमेव जयते' भी एक स्लोगन भर है, जिसका सच से कम और राजनीतिक तौर पर करेक्ट होने से ज्यादा नाता होता है. प्रशांत किशोर और कांग्रेस के मौजूदा रिश्ते का सच समझने से ज्यादा जरूरी उसके राजनीतिक मायने समझ लेना भर ही ठीक है. अगर सोनिया गांधी से किये गये वादे के हिसाब से प्रशांत किशोर प्राइवेट बातों को नहीं बता रहे तो दिलचस्पी भले हो, लेकिन कोई उनको सही बताने के लिए बाध्य भी नहीं करने जा रहा है - ठीक वैसे ही ही जैसे सोनिया गांधी के इलाज के लिए अमेरिका जाने को लेकर पूछे जाने पर जैसे कांग्रेस नेता निजता की दुहाई देते हैं और फिर कोई कुछ और नहीं पूछता.
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