प्रशांत किशोर के आने से कितना बदलेगी कांग्रेस?
प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री पक्की हो गयी है. कोई हो न हो सोनिया और राहुल उनकी बातों से राजी भी हैं. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या पीके की ये एंट्री मृत्यु शैया पर पड़ी कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो पाएगी? कहीं न कहीं इसका जवाब हमें खुद कांग्रेस ने दे दिया है.
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पिछले लगभग 1 साल से चल रही बैठकों और मुलाकातों के दौर के बाद अब कांग्रेस में प्रशांत किशोर की एंट्री करीब-करीब तय ही है. पिछले एक सप्ताह में प्रशांत किशोर और कांग्रेस नेताओं की तीन बार मुलाकात हो चुकी है. 20 अप्रैल को दिल्ली में हुई बैठक में प्रशांत किशोर के अलावा कांग्रेस नेता जयराम रमेश, मुकुल वासनिक, केसी वेणुगोपाल, अंबिका सोनी, दिग्विजय सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी हिस्सा लिया. ऐसे में अब कांग्रेस में प्रशांत किशोर की एंट्री औपचारिकता मात्र ही लगती है.
प्रशांत किशोर का कांग्रेस में आना किसी बड़े जीवनदान से कम नहीं है
किशोर कांग्रेस की मजबूरी भी हैं और जरूरत भी
वर्तमान में कांग्रेस जिस स्थिति में है वैसे में प्रशांत किशोर कांग्रेस के लिए मजबूरी के साथ साथ जरुरी भी नजर आते हैं. हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी बुरा रहा था, जहां पंजाब में पार्टी सत्ता में होने के बावजूद 20 सीटों से भी कम के आकंड़ें पर सिमट गयी थी, तो वहीं उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी अपेक्षा के अनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाई. उत्तर प्रदेश में तो पार्टी और भी खस्ताहाल रही, जहां प्रियंका गांधी के एक्टिव होने और कई तरह के चुनावी घोषणाओं के बावजूद कांग्रेस बमुश्किल अपना खाता खोल पाई.
हालांकि यह पहला मौका नहीं हैं जब कांग्रेस की चुनावों में इतनी बुरी गति हुई हैं, बल्कि 2014 के आम चुनावों में हार के बाद से ही कांग्रेस का प्रदर्शन चुनावों में कुछ बेहतर नहीं रहा हैं. अगर कुछ राज्यों के चुनावों को छोड़ दिया जाये तो कांग्रेस ज्यादातर चुनावों में सत्ता में आने में नाकामयाब रही है तो वहीं कई मामलों में अपनी सत्ता बचाने में भी चूक गयी है.
2014 में कांग्रेस और उसके सहयोगियों की 12 राज्यों में सरकार थी जबकि बीजेपी और उसके सहयोगी 10 राज्यों में ही सत्ता में थे. हालांकि 2022 में यह आकंड़ा उल्टा हो गया है आज भाजपा और उसके सहयोगी 17 राज्यों की सत्ता में है, वहीं कांग्रेस और सहयोगियों की सरकार 5 राज्यों में ही है. इन 5 राज्यों में भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही है, जबकि बाकि के तीन राज्य महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखण्ड में कांग्रेस जूनियर पार्टनर के रूप में सरकार में शामिल है.
PK कांग्रेस में क्या नया कर सकते हैं?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रशांत किशोर (PK ) को कांग्रेस में महासचिव का पद दिया जा सकता है। PK इस पद पर रहते हुए स्ट्रैटजी और अलायंस पर काम करेंगे, यानी अगले लोकसभा चुनाव के लिए PK कांग्रेस के लिए चुनावी रणनीति के साथ साथ दूसरी पार्टियों के साथ कांग्रेस के गठबंधन पर भी विशेष काम करेंगे. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस में पहली बार इस तरह के पद बनाए जाएंगे.
PK पिछले एक दशक के दौरान अलग-अलग नेताओं के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम कर चुके हैं. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली के CM अरविन्द केजरीवाल, तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन, बंगाल के CM ममता बनर्जी, बिहार के CM नीतीश कुमार, पंजाब के पूर्व CM कैप्टन अमरिंदर सिंह और आंध्र प्रदेश के CM जगनमोहन रेड्डी प्रमुख हैं. ऐसे में PK के कांग्रेस से जुड़ने की स्थिति में कांग्रेस के लिए विपक्षी दलों का चेहरा बनने में मदद मिल सकती है यानि कांग्रेस के साथ तमाम विपक्षी दलों को एक प्लेटफार्म पर लाने में PK मददगार हो सकते हैं.
प्रशांत किशोर ने पिछले कुछ सालों में बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे चुनावी रूप से अहम राज्यों में काम किया है. ऐसे में इन राज्यों में PK का अनुभव कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. मजेदार बात यह भी है कि PK प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के साथ भी काफी काम कर चुके हैं, ऐसे में वह भाजपा की कमजोरी और मजबूती से भी बेहतर तरीके से भी वाकिफ होंगे जो कांग्रेस के लिए बड़े काम कि बात साबित हो सकती है.
PK चुनावों में सोशल मीडिया और अन्य तरह के तकनिकी चीजों का इस्तेमाल करना काफी बेहतर तरीके से जानते हैं, जबकि कांग्रेस इन मुद्दों पर लगातार भाजपा से काफी पीछे रही हैं. ऐसे में PK कांग्रेस को बेहतर प्रोफेशनल तरीके से चुनाव लड़ने में मदद कर सकते हैं. यानि PK कम से कम इस प्लेटफार्म पर कांग्रेस को बीजेपी के बराबरी पर ला सकते हैं.
PK को कई चुनौतियों से भी निपटना होगा
PK जरूर वर्तमान में कमजोर दिख रही कांग्रेस में जान फूंक सकते मगर इसके लिए उन्हें कई तरह की चुनैतियों से भी पार पाना होगा. पिछले कुछ सालों में कांग्रेस जिस कमी से जूझ रही है वो है जमीन से जुड़ा संगठन, ऐसे में कमजोर संगठन के साथ चुनाव जीतना किसी दुरूह कार्य से कम नहीं है, इस चुनौती से निपटने के लिए PK को काफी मसक्कत करनी पड़ेगी.
कांग्रेस में अंदरुनी कलह चरम पर है। पंजाब में कांग्रेस के हार के पीछे जो सबसे बड़ी वजह थी वो भी कांग्रेस के नेताओं की अंदुरुनी कलह ही थी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार होने के बावजूद पार्टी एकजुट नहीं है। कांग्रेस का यही हाल उन राज्यों में भी है जहां पार्टी विपक्ष में है. ऐसे में अंदरुनी कलह से जूझती कांग्रेस को एक साथ एक मंच पर लाना भी PK के लिए बहुत बड़ी चुनौती होने वाली है.
इसके अलावा, प्रशांत किशोर के सामने पार्टी के भीतर बने G-23 नेताओं को भी साथ लेकर चलने की चुनौती होगी। पार्टी के अंदर वरिष्ठ नेताओं का एक बड़ा तबका हार के लिए कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाता रहा है। इन नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को संगठन में बदलाव को लेकर कुछ सुझाव भी दिए हैं। पार्टी उनके सुझावों पर अमल के बजाए प्रशांत की कार्ययोजना पर काम करती है, तो उनकी नाराजगी और बढ़ सकती है। ऐसे में PK कैसे इनको साथ लाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा.
कांग्रेस और PK के काम करने के तरीका अलग अलग है, PK काम करने में पूरी आज़ादी चाहते हैं, इन्हीं कारणों से अलग अलग पार्टियों के कई नेता उनपर अपनी मनमानी करने का आरोप भी लगा चुके हैं. हालांकि कांग्रेस में अपनी मनमर्ज़ी से काम करना इतना आसान भी नहीं होगा, कांग्रेस पार्टी के नेताओं की अपनी पसंद नापंसद है. ऐसे में कैसे PK कैसे सबको साथ लेकर बीजेपी को चुनौती देते हैं इसकी झलक शायद इसी साल गुजरात और हिमाचल के चुनावों में देखने को मिल सकता है.
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