प्रशांत किशोर के CAA-NRC विरोध का मकसद अब सामने है
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) की तरह सीटों का बंटवारा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बिहार में जेडीयू (JDU) बड़ी पार्टी है, जबकि भाजपा (BJP) उसके मुकाबले छोटी.
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जेडीयू (JDU) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) नागरिकता कानून और एनआरसी का विरोध कर रहे हैं. उनके विरोध को देखते हुए कई लोग ये सवाल भी उठा रहे थे कि ये उनका निजी विरोध है या पूरी पार्टी का विरोध? सवाल ये भी उठने लगे कि इसके पीछे कहीं उनका कोई छुपा मकसद तो नहीं. हाल ही में प्रशांत किशोर ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसे देखकर CAA-NRC विरोध के पीछे का मकसद सामने आ गया है. प्रशांत किशोर ने अगले साल दिल्ली चुनाव (Delhi Assembly Election) के बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) का जिक्र किया है. उन्होंने कहा है कि इस चुनाव में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) की तरह सीटों का बंटवारा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बिहार में जेडीयू बड़ी पार्टी है, जबकि भाजपा (BJP) उसके मुकाबले छोटी. यानी वह चाहते हैं कि जेडीयू विधानसभा चुनाव में अधिक सीटों पर लड़े, जबकि भाजपा कम.
प्रशांत किशोर ने कहा है कि बिहार चुनाव में लोकसभा चुनाव का सीट शेयरिंग फॉर्मूला नहीं चलेगा.
क्या कहा है प्रशांत किशोर ने?
प्रशांत किशोर ने कहा है कि लोकसभा चुनाव का सीट शेयरिंग फॉर्मूला बिहार विधानसभा चुनाव में भी दोहराया नहीं जा सकता है. उन्होंने कहा- 'अगर हम 2010 के विधानसभा चुनाव को देखें तो जेडीयू और भाजपा ने एक साथ 1:1.4 के अनुपात में चुनाव लड़ा था. अगर ये भी मान लें कि समय थोड़ा बदल गया है, तो भी इसका ये मतलब नहीं है कि दोनों पार्टियां बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. जेडीयू लगभग 70 विधायकों के साथ बड़ी पार्टी है, जबकि भाजपा के पास करीब 50 विधायक ही हैं.' बता दें कि इसी साल लोकसभा चुनाव में भाजपा और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 6 सीटें राम विलास पासवान की एलजेपी के लिए छोड़ दी थीं.
पहले ही जता दी थी अपनी मंशा
प्रशांत किशोर ने जो बयान दिया है उससे हैरानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अपनी मंशा तो उन्होंने पहले ही जता दी थी. जब उन्होंने नागरिकता कानून और एनआरसी का विरोध किया तो ही लगा था कि वह भाजपा के खिलाफ कुछ ना कुछ तो बोलेंगे. अधिक उम्मीद इसी बात की थी कि उनका बयान बिहार चुनाव से जुड़ा हुआ हो सकता है और वैसा ही हुआ. बता दें, उन्होंने कहा था कि 'ताजा कानून का नागरिकता से कोई लेना देना नहीं है, ये सब धार्मिक आधार पर भेदभाव के साथ मुकदमा चलाने के लिए सरकार के हाथों में घातक कॉम्बो देता है.'
We are told that #CAB is bill to grant citizenship and not to take it from anyone. But the truth is together with #NRC, it could turn into a lethal combo in the hands of Government to systematically discriminate and even prosecute people based on religion.#NotGivingUp
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 12, 2019
उन्होंने तो ये भी कहा था कि '15 से अधिक राज्यों की 55 फीसदी से अधिक आबादी के नॉन-बीजेपी मुख्यमंत्री हैं. अब लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेदारी नॉन-बीजेपी मुख्यमंत्रियों की है.'
15 plus states with more than 55% of India’s population have non-BJP Chief Ministers. Wonder how many of them are consulted and are on-board for NRC in their respective states!!
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) November 20, 2019
The majority prevailed in Parliament. Now beyond judiciary, the task of saving the soul of India is on 16 Non-BJP CMs as it is the states who have to operationalise these acts. 3 CMs (Punjab/Kerala/WB) have said NO to #CAB and #NRC. Time for others to make their stand clear.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 13, 2019
प्रशांत किशोर की बातें साफ करती हैं कि वह भाजपा के विरोध में खड़े हैं. नीतीश कुमार तो इस पर कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन प्रशांत किशोर के बयान पर बिहार के भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा है कि भाजपा डेकोरम और अनुशासन बनाए रखने में भरोसा करती है, ना कि सार्वजनिक रूप से बयानबाजी कर के खबरों की हेडलाइन देती है. 2020 के चुनाव को लेकर कोई भी फैसला सिर्फ पार्टियों के नेतृत्व की ओर से ही लिया जाएगा. अब ये देखना दिलचस्प रहेगा कि प्रशांत किशोर के बयान पर भाजपा क्या कहती है और नीतीश कुमार का रवैया क्या रहता है.
जेडीयू में प्रशांत किशोर का कद छोटा हो गया है !
जिस प्रशांत किशोर ने 2014 में पीएम मोदी को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाने वाली रणनीति बनाई, जिस प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव में नीतीश कुमार को सत्ता में लाने का काम किया, उसी प्रशांत किशोर को जेडीयू में अपने ही अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. यूं लग रहा है मानो जेडीयू उपाध्यक्ष बनने के बाद उनका कद पहले ही तुलना में छोटा हो गया है. पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव के बाद भी प्रशांत किशोर हाशिए पर नजर आए. आम चुनाव में भी प्रचार की मुहिम सीनियर नेता ही संभालते दिखे. यही वजह है कि जेडीयू के भाजपा की सहयोगी पार्टी होने के बावजूद वह भाजपा के खिलाफ न सिर्फ बोल रहे हैं, बल्कि भाजपा विरोधियों की मदद भी कर रहे हैं. प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली में केजरीवाल के लिए चुनावी तैयारियां कर के ये साफ जता रहे हैं कि वह भाजपा के खिलाफ ही हैं.
भाजपा के सहयोगियों का विरोध
पहले महाराष्ट्र में शिवसेना ने भाजपा से किनारा कर लिया और बिहार चुनाव से पहले वहां से भी विरोधी सुर सुनने को मिल रहे हैं. भले ही नीतीश कुमार ने कुछ नहीं कहा है, लेकिन प्रशांत किशोर के अलावा जेडीयू के भी कुछ नेता सीएए और एनआरसी के विरोध में हैं. उधर झारखंड में पहले ही भाजपा ने अपने पुराने सहयोगी आजसू से अलग होकर सत्ता खो दी है. महाराष्ट्र में शिवसेना ने भी भाजपा का दामान छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. अब अगर बिहार में भी भाजपा और जेडीयू अलग-अलग हो जाते हैं, तो यहां भाजपा के लिए चुनाव जीतना फिर से टेढ़ी खीर हो सकती है.
जैसा शिवसेना का साथ किया, वैसा खुद के साथ हो रहा
महाराष्ट्र में हमेशा से शिवसेना अधिक सीटों पर लड़ती थी, जबकि भाजपा कम, लेकिन इस बार वहां उल्टा हुआ था. वजह थी भाजपा की धमक. ठीक वैसा ही बिहार में भाजपा के साथ हो रहा है. यहां भी जेडीयू ने अपनी धमक दिखाते हुए भाजपा को झुकने पर मजबूर करने की कोशिश की है. हालांकि, इस पर आखिरी फैसला नीतीश कुमार का ही होगा. देखते हैं नीतीश कुमार किसकी साइड लेते हैं, भाजपा की या प्रशांत किशोर की.
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