नागरिकता कानून विरोध के नाम पर प्रशान्त किशोर क्या विपक्ष को एकजुट कर पाएंगे?
जब प्रशांत किशोर (Prashant Kishor campain against CAA) ने JDU ज्वाइन किया तो नीतीश कुमार (NItish Kumar) ने कहा था - वो पार्टी के भविष्य हैं. आज वो भविष्य खतरे में लगता है - क्योंकि प्रशांत किशोर नये भविष्य गढ़ने में लग गये हैं.
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प्रशांत किशोर (Prashant Kishor campain against CAA) को नीतीश कुमार (NItish Kumar) ने जेडीयू (JDU) ज्वाइन करते वक्त पार्टी का भविष्य बताया था. भविष्य से नीतीश कुमार को जो भी मतलब रहा हो, फिलहाल तो वो खतरे का निशान पार करता हुआ नजर आ रहा है. लग तो ये रहा है कि वो भविष्य जल्द ही भूतकाल का हिस्सा भी बन सकता है. नीतीश कुमार के साथ PK यानी प्रशांत किशोर की होने वाली मुलाकात से क्या निकल कर आता है - देखना होगा.
जेडीयू की सक्रिय राजनीतिक सीन से अरसे से गायब प्रशांत किशोर हाल फिलहाल खासे एक्टिव हैं. नागरिकता कानून को लेकर वो लगातार सवाल उठा रहे हैं - और कई बार तो ऐसा लगता है नीतीश कुमार भी उनके निशाने पर हैं. हां, गैर-बीजेपी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को वो एक मंच पर लाने की कोशिश करते हुए भी लगते हैं - आगे आगे देखिये होता है क्या?
मुख्यमंत्रियों का मोर्चा तो बनने से रहा
प्रशांत किशोर ज्यादा ट्वीट नहीं करते. सितंबर, 2018 में पीके ने पहला ट्वीट किया था. अब तक 22 किये गये हैं - और इनमें आखिर के चार नागरिकता बिल और कानून बन जाने को लेकर हैं. ये सब ट्विटर पर ही मुमकिन भी है. प्रशांत किशोर अब तक या तो अपने क्लाइंट के लिए काम करते रहे हैं - या फिर अपनी पार्टी जेडीयू का उपाध्यक्ष होने के नाते. अपने क्लाइंट भी वो सोच समझ कर चुनते हैं. 2016 में भी सुनने में आया था कि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी पीके की सेवाएं लेना चाहती थी, लेकिन पीके की ओर से मना कर दिया गया. तब नीतीश कुमार भी महागठबंधन में थे और असम में बदरुरद्दीन अजमल को कांग्रेस लाने की कोशिश भी किये थे - संभव नहीं हुआ.
वक्त गुजरने के साथ कई सारे बदलाव आते हैं. फिलहाल प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की चुनावी तैयारियों में लगे हैं - और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्विटर पर ही बताया है कि प्रशांत किशोर की संस्था IPAC आम आदमी पार्टी के लिए काम करने वाली है. 20 नवंबर को एक ट्वीट में प्रशांत किशोर ने 'का चुप साधि रहेउ बलवाना...' वाले अंदाज में गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों की हौसलाअफजाई करने की कोशिश की थी.
15 plus states with more than 55% of India’s population have non-BJP Chief Ministers. Wonder how many of them are consulted and are on-board for NRC in their respective states!!
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) November 20, 2019
13 दिसंबर के ट्वीट में प्रशांत किशोर ने याद दिलाया कि तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नागरिकता कानून और NRC को लागू करने से साफ साफ मना कर दिया है - ऐसा करके वो ऐसे 16 मुख्यमंत्रियों को ललकार रहे थे. मंशा तो नीतीश कुमार को भी चैलेंज करने के तौर पर दिखी है.
The majority prevailed in Parliament. Now beyond judiciary, the task of saving the soul of India is on 16 Non-BJP CMs as it is the states who have to operationalise these acts.
3 CMs (Punjab/Kerala/WB) have said NO to #CAB and #NRC. Time for others to make their stand clear.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 13, 2019
12 दिसंबर को भी प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्रियों को आगाह करने की कोशिश की थी - और समझाने की कोशिश रही कि ताजा कानून का नागरिकता से कोई लेना देना नहीं है. प्रशांत किशोर का कहना है कि ये सब धार्मिक आधार पर भेदभाव के साथ मुकदमा चलाने के लिए सरकार के हाथों में घातक कॉम्बो देता है.
We are told that #CAB is bill to grant citizenship and not to take it from anyone. But the truth is together with #NRC, it could turn into a lethal combo in the hands of Government to systematically discriminate and even prosecute people based on religion.#NotGivingUp
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 12, 2019
ये पॉलिटिक्स ट्विटर पर तो अच्छी चलेगी. ट्वीट पर मीडिया खबर भी बनाएगा. लोग रीट्वीट भी करेंगे और चर्चाएं भी होंगी, लेकिन उससे आगे. क्या उससे आगे भी कभी ये बात बढ़ पाएगी?
प्रशांत किशोर का ये प्रयास विपक्ष को एकजुट करने का लग रहा है, लेकिन ये NDA और UPA से इतर कोई तीसरे मोर्चे जैसी ही कोशिश लग रही है. तीसरे मोर्चे की हकीकत अब तक यही रही है कि ये एक-दो मीटिंग से आगे कभी नहीं बढ़ पाता. मुख्यमंत्रियों के लिए कहीं ऐसे एकजुट होने में क्या दिलचस्पी हो सकती है?
जेडीयू का भविष्य किधर जा रहा है?
मुख्यमंत्रियों के लिए नागरिकता बिल को लागू न करने की बात पर अड़े रहना कहां तक संभव हो सकेगा, ये भी देखना होगा. सातवीं अनुसूची में होने के चलते, सरकारी अधियारियों के हवाले से आ रही खबरें बताती हैं, राज्यों के लिए लागू न करना संभवत: संभव न होगा. तस्वीर तो तभी साफ हो पाएगी जब पूरी जानकारी सामने आये या फिर केंद्र सरकार की तरफ से ये सब बताया जाये.
JDU में PK का 'भविष्य' ठहर गया है
पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव के बाद से प्रशांत किशोर जेडीयू में हाशिये पर ही नजर आये हैं. आम चुनाव में भी प्रचार की मुहिम जेडीयू के सीनियर नेता संभाल रहे थे - और प्रशांत किशोर उनसे सबक ले रहे थे. ये बात भी प्रशांत किशोर ट्विटर पर ही बतायी थी.
बिहार में NDA माननीय मोदी जी एवं नीतीश जी के नेतृत्व में मजबूती से चुनाव लड़ रहा है।
JDU की ओर से चुनाव-प्रचार एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी पार्टी के वरीय एवं अनुभवी नेता श्री RCP सिंह जी के मजबूत कंधों पर है।
मेरे राजनीति के इस शुरुआती दौर में मेरी भूमिका सीखने और सहयोग की है।
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) March 29, 2019
अब ये सब जेडीयू के सीनियर नेताओं के विरोध के चलते हुआ या बीजेपी के दबाव में - ये तो नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर ही ठीक से समझ रहे होंगे.
नागरिकता संशोधन कानून पर प्रशांत किशोर के बागी रूख को लेकर जेडीयू के महासचिव आरसीपी सिंह का दो टूक बयान भी आ चुके हैं - अगर प्रशांत किशोर पार्टी छोड़कर जाना चाहें तो वह इसके लिए स्वतंत्र हैं.'
अब क्या बचा है. आरसीपी सिंह अक्सर ऐसे विवादित मसलों पर बोलते रहे हैं. खासकर वे बातें जो केसी त्यागी मीडिया में नहीं बताया करते. केसी त्यागी जेडीयू के प्रवक्ता हैं और वो हमेशा ही नीतीश कुमार के मन की बात शेयर करते हैं - तो क्या पीके पर जेडीयू महासचिव का बयान पार्टी का आधिकारिक बयान नहीं माना जा सकता?
पार्टी छोड़ने की सलाह के साथ ही, आरसीपी सिंह ने एक और महत्वपूर्ण बात कही है - 'उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं क्योंकि वह पार्टी में फिलहाल कोई महत्वपूर्ण पद नहीं संभाल रहे हैं.'
क्या जेडीयू में उपाध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण नहीं होता? तो क्या जानबूझ कर प्रशांत किशोर को फुसलाने के लिए ये पद दिया गया था? फिर क्या नीतीश कुमार का प्रशांत किशोर को जेडीयू का भविष्य बताया जाना भी महज एक जुमला था?
11 दिसंबर के एक ट्वीट में प्रशांत किशोर ने बड़े ही सख्त लहजे में नीतीश कुमार को कोई मैसेज देने की कोशिश की थी. इस ट्वीट में 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव का जिक्र है - जो महागठबंधन की तरफ से लड़ा गया था और चुनावी मुहिम का नेतृत्व प्रशांत किशोर ने ही किया था.
While supporting #CAB, the JDU leadership should spare a moment for all those who reposed their faith and trust in it in 2015.
We must not forget that but for the victory of 2015, the party and its managers wouldn’t have been left with much to cut any deal with anyone.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 11, 2019
किसी राजनीतिक पार्टी को चुनाव जिताना एक अलग तरह का काम है. चुनावी गठबंधन में कुछ पार्टियों के बीच डील करना भी और बात है - लेकिन विपक्षी दलों को किसी एक मंच पर लाना सबसे मुश्किल टास्क है. अभी तक तो ऐसा नहीं हो पाया है. जरूरी ये भी तो नहीं कि जो नहीं हो पाया वो होगा ही नहीं - क्या पता ये सब पीके के नाम ही लिखा हुआ हो.
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