Prashant Kishor से बिहार चुनाव तक तो नीतीश-BJP को खतरा नहीं
प्रशांत किशोर (Prashank Kishor) तत्काल बिहार (Bihar Assembly Election 2020) में कोई नया काम नहीं कर रहे हैं - लेकिन जिस तरह और जिस तरफ बढ़ रहे हैं वो आने वाले समय में नीतीश कुमार और BJP (Nitish Kumar and BJP) दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
-
Total Shares
प्रशांत किशोर (Prashank Kishor) ने जो बोल रखा था, बिहार पहुंच कर किया भी वही. पटना में प्रेस कांफ्रेंस करके प्रशांत किशोर ने अपनी योजनाओं के बारे में अपडेट भी दिया और कुछ कुछ धुंधले संकेत भी. जेडीयू (JDU) से निकाले जाने को लेकर भी कुछ न कुछ कहना ही था और अपनी हदों का भी ख्याल रखना था. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को लेकर जो कुछ भी प्रशांत किशोर ने कहा उसमें भी निशाने पर ज्यादातर बीजेपी ही रही. BJP के साथ बिजनेस का रिश्ता न तो है, न ही हाल फिलहाल कोई संभावना ही है, लिहाजा वो विपक्षी खेमे के अपने क्लाइंट के फायदे वाली राजनीतिक लाइन ही पकड़े रहे. परदे के पीछे को छोड़ दें तो फिलहाल सामने से वो 2021 के बाद भी ममता बनर्जी को सत्ता में बनाये रखने के लिए तृणमूल कांग्रेस के कैंपेन की निगरानी कर रहे हैं.
रही बात बिहार (Bihar Assembly Election 2020) की तो अपनी ओर से प्रशांत किशोर ने कोई नयी बात तो बतायी नहीं है. जो कुच भी कहा है उससे तो नहीं लगता कि प्रशांत किशोर बिहार में कोई नया काम तात्कालिक तौर पर करने जा रहे हैं - ऐसा लगता है जैसे जो काम नीतीश कुमार के लिए या उनके नाम पर करते आ रहे थे उसी को विस्तार देने की कोशिश कर रहे हैं. अभी समझने को इतना ही है कि प्रशांत किशोर अगर नीतीश कुमार और बीजेपी (Nitish Kumar and BJP) के लिए बिहार में कोई खतरा हैं तो टला हुआ समझें, लेकिन खत्म नहीं. भविष्य में लापरवाही की कीमत चुकानी पड़ सकती है.
प्रशांत किशोर से अभी खतरा क्यों नहीं?
बिहार विधानसभा चुनाव में जितना कम वक्त बचा है, प्रशांत किशोर एड़ी चोटी का जोर लगाकर भी जादू की छड़ी तभी आजमा सकते हैं जब कोई मजबूत कंधा मिले. फिलहाल ऐसा कोई कंधा न तो प्रशांत किशोर खुद जुटा पाये हैं और न ही कोई उन्हें ऑफर करने वाला है, अभी तो ऐसा ही लगता है. हां, जिस तरफ बढ़ रहे हैं वो आने वाले समय में नीतीश कुमार और BJP दोनों के लिए आने वाले दिनों में खतरनाक जरूर हो सकता है.
नीतीश कुमार प्रधानमंत्री भले न बन पाये हों, लेकिन अभी तो उनका किस्मत कनेक्शन काफी मजबूत चल रहा है - बीजेपी मजबूती के साथ पीछे से डटी हुई है और विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ है. बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए वैसे ही मार मची है जैसे आम चुनाव के दौरान विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री पद की कुर्सी को लेकर होती आयी है.
नीतीश कुमार और BJP के लिए खतरा सिर्फ वही है जिसके लिए प्रशांत किशोर फील्ड में उतर रहे हैं. प्रशांत किशोर समुद्र मंथन की तरह फील्ड से वे चीजें लाने की कोशिश में हैं जो नीतीश कुमार की सबसे बड़ी कमजोरी रही है और बीजेपी अब तक जिसे हासिल नहीं कर पायी है - नीतीश कुमार की मुश्किल बिहार में मजबूत जनाधार न होना और बीजेपी के लिए नीतीश कुमार जैसा कोई मजबूत नेता न खड़ा कर पाना रहा है.
प्रशांत किशोर के निशाने पर नीतीश कुमार और BJP की कमजोरिया हैं
प्रशांत किशोर की बातों से ही अगर उनके इरादों को समझने की कोशिश करें तो लगता यही है कि वो नीतीश कुमार जैसे नेता और उसके पीछे नौजवानों की फौज खड़ा करना चाहते हैं. ये भी हो सकता है कि वो खुद ही नीतीश कुमार की जगह लेना चाहते हों. जेडीयू में तो वो पदस्थापित कुछ उसी अंदाज में हुए भी थे - और ये नीतीश कुमार ने ही कहा था कि प्रशांत किशोर जेडीयू के भविष्य हैं. अब भविष्य की तरफ बढ़ता वो सफर पटरी से उतर गया है. कोशिश पटरी पर लाने की है. नीतीश कुमार ने तो जेडीयू का भविष्य NDA में फिलहाल तलाश लिया है, लेकिन प्रशांत किशोर को नयी संभावनाओं के लिए खुला छोड़ दिया है.
1. तीन महीने तो सर्वे चलेगा: प्रशांत किशोर की कामयाबी के पीछे एक वजह उनका जमीनी सर्वे रहा है. कोई भी काम शुरू करने से पहले वो जमीनी हकीकत से पूरी तरह वाकिफ होना चाहते हैं.
अब भी वो यही कह रहे हैं कि बिहार के नौजवानों से मिलने जा रहे हैं, 'अगले तीन महीने तक हमारा सारा फोकस इसी बात पर रहेगा कि कम से कम एक करोड़ युवाओं को अपने साथ जोड़ लें. पूरे बिहार में यात्रा करनी है - और फिर तीन महीने के बाद हम खुद आकर बताएंगे कि कहां तक सफल हुए.' ऐसे में तब तक इंतजार करना ही ठीक रहेगा.
2. तीन महीने बाद क्या होगा: जब तक प्रशांत किशोर का ताजा टास्क पूरा होगा, बिहार विधान सभा चुनाव में भी तकरीबन तीन महीने ही बचे होंगे. प्रशांत किशोर को मीडिया के ऐसे तमाम सवालों से जूझना पड़ा जो स्वाभाविक हैं और वो पहले से तैयार होकर भी आये थे - न तो खुद को आजमाने को लेकर, न ही कोई नया राजनीतिक दल बनाने को लेकर. बस इतना ही कह कर पीछा छुड़ाने की कोशिश की - ''आपको जो कहना है कह लीजिए. लेकिन हम इसपर अब जो भी कहेंगे तीन महीने के बाद ही कहेंगे. "
3. लालू परिवार अभी तो परहेज है: अभी तो यही लगता है कि लालू परिवार से प्रशांत किशोर दूरी बना कर चल रहे हैं. तेजस्वी यादव को वो पहले ही बता चुके हैं कि पहले लालू प्रसाद के साये से बाहर निकलें तब दुनियादारी समझ में आएगी. ये भी हो सकता है कि तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और नीतीश के मुकाबले उनके कद की हद भी दूरी बनाये रखने की समझ देती हो. लालू प्रसाद फिलहाल जेल में हैं, हालांकि, चुनाव से पहले तमाम कानूनी कोशिशें भी जारी हैं जिनसे जमानत मिलने की संभावना बनती हो. सशर्त ही सही. जेल से बाहर होने का फर्क तो पड़ता ही है. 2015 में लालू का करिश्मा और जौहर दोनों देखा जा चुका है - सही या गलत बहस का अलग मुद्दा हो सकता है.
तेजस्वी यादव के बारे में जब पूछा जाता है तो प्रशांत किशोर कहते हैं, 'मैं ऐसे लोगों को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करता जिनसे आजतक मिला भी नहीं. जिनके साथ काम नहीं किया... उनके बारे में मेरी कोई राय नहीं है.'
4. महागठबंधन नेताओं के लिए विकल्प खुला है: प्रशांत किशोर का ये कहना कि तेजस्वी के बारे में उनकी कोई राय नहीं का ये मतलब नहीं कि वो अपने मिशन में नो-एंट्री का कोई बोर्ड लगा चुके हैं. ऐसा लगता है वो ऐसे सवालों का जवाब देकर कयासों के लिए मौका नहीं छोड़ना चाह रहे हैं. बिहार में फिलहाल तेजस्वी यादव के साथ साथ मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में मीरा कुमार से लेकर शरद यादव तक के नाम चल रहे हैं.
प्रशांत किशोर की भी नजर हर एक्टिविटी पर है और यही वजह है कि वो संभावनाओं के द्वार भी खोले हुए हैं, 'हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं करंगे. किसी के साथ भी नहीं होंगे. अगर लोग हमारे साथ आएं तो सबका स्वागत रहेगा.'
चुनावी राजनीति के हिसाब से देखें तो जेडीयू में रहने पर भी संभव था प्रशांत किशोर हाशिये पर ही रहते, जैसा आम चुनाव के वक्त हुआ था. ऐसे में उनका जो काम चल रहा था, वही जारी है. अभी वो नीतीश कुमार पर भी सीधा हमला नहीं बोल रहे हैं, बल्कि बचा कर चल रहे हैं. ये तब तक जारी रहेगा जब तक प्रशांत किशोर कोई मजबूत कंधा नहीं तलाश लेते. मान कर चलना होगा, तब तक प्रशांत किशोर मौजूदा राजनीति से दूरी बनाए रखेंगे और फिर साफ है न तो नीतीश कुमार को कोई खतरा है, न ही बीजेपी को बिहार में.
नीतीश-BJP के लिए आगे किस तरह का खतरा?
जेडीयू से बेदखल किये जाने से पहले तक प्रशांत किशोर युवाओं को जेडीयू से जोड़ने में जुटे थे. नीतीश कुमार ने ऐसा ही करने को कहा था. अब उन युवाओं को प्रशांत किशोर अपनी नयी मुहिम से जोड़ने की कोशिश कर रही हैं. नयी मुहिम को साधारण लेकिन लोगों से जोड़ने वाला नाम दिया है - बात बिहार की.
अभी तक, प्रशांत किशोर के अनुसार, 2.93 लाख नौजवानों को जोड़ने में कामयाब रहे हैं - और ये लक्ष्य एक करोड़ का है जिसे तीन महीने में पूरा करना है.
जब प्रशांत किशोर ने युवाओं से जुड़ने या जेडीयू को जोड़ना का अभियान शुरू किया था तभी विवाद हो गया. तब प्रशांत किशोर के एक बयान को जेडीयू के नेताओं ने बहुत तूल दे दिया - और नीतीश कुमार खामोशी अख्तियार कर लिये थे, लिहाजा प्रशांत किशोर को वनवास पर निकलना पड़ा था.
तब युवाओं के एक जमावड़े में बोलते-बोलते प्रशांत किशोर बोल गये कि जब वो नेताओं को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बना सकते हैं तो बिहार के नौजवानों को मुखिया, सरपंच, पार्षद, विधायक और सांसद नहीं बना सकते क्या? ये सुनते ही जेडीयू नेताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया था कि प्रशांत किशोर होते कौन हैं किसी को कुछ बनाने वाले. ये सब काम जनता का है. जनता ही किसी को कुछ भी बनाती या बिगाड़ती है. प्रशांत किशोर ने सार्वजनिक तौर पर जरा भी रिएक्ट नहीं किया और अपने काम में लगे रहे.
बिहार पहुंचते ही, दरअसल, प्रशांत किशोर ने उसी तरफ इशारा किया है. बिहार के नौजवानों को अपना पुराना वादा याद दिलाया है. वो एक करोड़ लोगों को जोड़ कर उन तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं. प्रशांत किशोर के साथ जुड़ने का फायदा ये भी है कि चुनावी राजनीति में काम करने का अनुभव तो मिलता ही है, प्रोजक्ट मिल जाने पर पैसे भी मिल सकते हैं. भला और क्या चाहिये.
नीतीश कुमार ने सुशासन बाबू और चाणक्य जैसे तमगे तो हासिल कर लिये, लेकिन तमाम तिकड़मों के बावजूद जमीन से पूरी तरह जुड़ नहीं पाये. बड़े जनाधार वाले नेता नहीं बन सके. पहले के मुकाबले नीतीश कुमार ने बिहार की जातीय राजनीति में घुसपैठ जरूर कर ली है और उनका महादलित फॉर्मूला भी हिट है. अच्छा खासा वोट बैंक भी बन चुका है, लेकिन ये सब जुगाड़ भर है. ये ठीक है कि नीतीश कुमार के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं है. हालात जरूर करीब करीब वैसे ही हैं जैसे आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने थे, लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिये कि वो नरेंद्र मोदी नहीं हैं जो मौका और दस्तूर माकूल होने की हालत में माहौल को अपने पक्ष में मोड़ लेने की क्षमता रखते हैं. हाल फिलहाल ये ट्रिक भले फेल लगती हो, लेकिन कई बार मोदी ये साबित भी कर चुके हैं. कई राज्यों में बनी बीजेपी की सरकारें इस बात की मिसाल हैं.
प्रशांत किशोर युवाओं के बीच जाकर उनसे संवाद स्थापित करके 'बात बिहार की' को बहस का टॉपिक बनाना चाहते हैं. ऐसे लोगों को एक प्लेटफॉर्म पर खड़ा करना चाहते हैं जो बात बिहार की के कंसेप्ट में यकीन रखते हों. ऐसे लोगों के बीच का एक युवा नेता भी चाहते हैं जो खड़ा होकर बात बिहार की कर सके और नीतीश कुमार से पूछ सके कि 15 साल में आपने जो किया सो किया - ऐसा क्यों नहीं किया कि बिहार भी बाकी राज्यों के साथ बुनियादी सुविधाओं के मामले में कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ा हुआ महसूस करे.
किसी इलाके में एक बीमारी फैलती है तो नतीजे में सिर्फ मौत के आंकड़े ही गिनने को मिलते हैं. लोग बीमारी से निजात पाकर घर क्यों नहीं लौट पाते? अस्पतालों की हालत बदली क्यों नहीं है? बच्चों के लिए भी और बड़ों के लिए भी?
कोसी नदी की कौन कहे, पटना में बाढ़ आ जाती है और जन जीवन ठप हो जाता है. हालात बेकाबू हो जाते हैं. लोगों को समझ नहीं आता निजात पाने का रास्ता क्या है?
प्रशांत किशोर चाहते हैं कि कोई युवा नेता सामने से खड़े होकर नीतीश कुमार से ऐसे सवाल पूछ सके - और यही सबसे बड़ा चैलेंज नीतीश कुमार के लिए भी है और बीजेपी के सामने भी. आज भले न लगे, लेकिन आने वाले कल के लिए ये बड़ा ही खतरनाक चैलेंज है.
इन्हें भी पढ़ें :
Bihar में नए रोल और लंबे प्लान के साथ प्रशांत किशोर की री-एंट्री
बिहार चुनाव के लिए विपक्ष की 'तैयारी' नीतीश कुमार को सुकून देगी
जिन्हें जेल में होना चाहिए अब क्या वही बनेंगे हमारे एमपी-एमएलए!
आपकी राय