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Updated: 22 जुलाई, 2022 02:03 PM
सरिता निर्झरा
सरिता निर्झरा
  @sarita.shukla.37
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द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने की खबर... जिस दिन से ये नाम आया लोगो ने ढूंढ कर उनके बारे में पढ़ा, प्रेरित हुए और ख़ुशी हुई की एक बार फिर महिला राष्ट्रपति भारत की राजनीति का हिस्सा बनेगी. हालांकि आज के भारत की राजनीति पूरी तरह से शतरंज की बिसात है. अब आप उसमे चलने वाले प्यादे हैं या बाहर से देख कर समझने वाले दर्शक ये आप पर निर्भर है. सभी नामों को ठोंक बजा कर देखने के बाद द्रौपदी मुर्मू का नाम उनके व्यक्तित्व की तरह ही मज़बूत निकला. जीतना पहले दिन से तय था. स्त्री, आदिवासी और सेल्फ मेड यानि की अपने दम पर अपनी जीवन में मकाम हासिल करने वाला जुझारू व्यक्तित्व. यकीनन द्रौपदी मुरमु का चुनाव शत प्रतिशत सही और गरिमा के अनुरूप है. एक शिक्षिका जो अपने इलाके की पहली ग्रेजुएट थी और जिन्होंने अपनी जीवन की तमाम दुश्वारियों के बाद भी शिक्षा के प्रति अपने समर्पण को कम नहीं होने दिया.

Draupadi Murmu, President, Presidential Election, Yashwant Sinha, Narendra Modi, UPA, Women Empowermentआखिरकार द्रौपदी मुर्मू यशवंत सिन्हा को हराकर देश की राष्ट्रपति बन गयीं

उनके निजी जीवन के दुखों को रेखांकित न करते हुए मात्र उनकी हिम्मत और जिजीविषा की बात करें तो हम पाएंगे कि जिस स्त्री शक्ति की हम बात करते हैं मुर्मू उसका जीता जगता उदाहरण है. हालांकि एक स्त्री के उच्च पद पर पहुंचने पर मनाई जाने वाली कुछ अधिक ख़ुशी इस बात का द्योतक है की अभी स्त्रियां बराबरी से कहीं दूर हैं इसलिए ऐसी कोई भी उपलब्धि, 'ब्रेकिंग द ग्लास सीलिंग' वाला एहसास देता है.

द्रौपदी का कर्मक्षेत्र

हाल ही में द्रौपदी मुर्मू के गांव तक सड़क बन गयी है और यकीनन रंगरोगन भी नया हुआ होगा. मयूरभंज के जिस इलाके को हम राष्ट्रपति के घर के रूप में देख कर गौरान्वित होने की प्रक्रिया में हैं. उस प्रक्रिया में इस इलाके के हालिया सालों के हालात टाट में पैबंद लगते हैं. ये इलाका भारत के सबसे पिछड़े प्रदेशों में से एक है और आज भी कुछ बरसाती नदियों नालों को पार करने को बांस के पुल बने हैं और नन्हें बच्चे और बुज़ुर्ग उसी पर जाने आने को मजबूर है.

अपनी निजी जीवन की त्रासदियों को दरकिनार कर अपने घर को ही पाठशाला में बदलने वाली मुर्मू शिक्षा के प्रति यकीनन बहुत सजग और समर्पित हैं. किन्तु इनका कर्मक्षेत्र अपने ही देश के इलाकों के प्रति पिछली सरकारों की उदासीनता को दर्शाता है. आखिर क्या वजह रही की खनिज सम्पदा से भरपूर राज्य में सबसे गरीब इलाके हैं.

क्यों हम अपने देशवासियों को बराबर के शिक्षा अधिकार और सहूलियतें नहीं दे पाए ये सवाल आज 75 साल बाद भी बना हुआ है.

शासन एवं प्रशासन

द्रौपदी मुर्मू का नाम भले ही बहुत लोगो को नया लगे किन्तु द्रौपदी मुर्मू 1997 में ओडिशा के रायरंगपुर जिले से पहली बार जिला पार्षद चुनी गयी थी. साथ ही यह रायरंगपुर की उपाध्यक्ष भी बनी. इसके अलावा साल 2002 से लेकर के साल 2009 तक मयूरभंज जिला भाजपा का अध्यक्ष बनने का मौका भी मिला.

साल 2004 में यह रायरंगपुर विधानसभा से विधायक बनने में भी कामयाब हुई और आगे बढ़ते बढ़ते साल 2015 में इन्हें झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य के राज्यपाल के पद को संभालने का भी मौका मिला. शासन और प्रसाशन से भली भांति परिचित है मुर्मू और ज़मीनी भारत की समस्यायों को इन्होने खुद देखा है, झेला है और कुछ हद तक सुलझाया भी होगा.

स्त्री सशक्तिकरण का परचम

द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आना इसलिए भी खास है क्योंकि कहीं न कहीं एक तीर से दो निशाने लग रहे है. आदिवासी इलाकों से उच्च पद पर आसीन होने वाली पहली महिला होंगी और इससे महिलाओं को सक्रिय राजनीति में लाने का भाजपा का संकल्प भी दिखाई देता है.

हालांकि राष्टपति के अधिकार भारतीय राजनीति के परिपेक्ष्य में सिमित हैं. किन्तु फिर भी एक उम्मीद जगती है की इतने लम्बे राजनितिक सफर में तय की हुए तमाम मील के पत्थर द्रौपदी मुर्मू के जीवन का हासिल है. जिसे वो यकीनन स्त्री और शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग में ला सकती है.

द्रौपदी मुर्मू का नाम जब भारत के किसी गांव में बैठी कोई बच्ची राष्ट्रपति के रूप में पढ़ेगी तो उसकी आंखों में भी मेहनत और सफलता के सपने जागेंगे. अब इस सफलता से ज़मीनी तौर पर भी कोई बदलाव आएगा या नहीं ये देखना होगा.

आने वाला वक़्त बताएगा ही कि क्या द्रौपदी मुर्मू नाम मात्र को स्त्री सशक्तिकरण का नाम बनेंगी या इस पद पर भी अपने व्यक्तित्व की अलग छाप छोड़ जाएंगी. फिलहाल ये एक बड़ा कदम है जो भारत के इतिहास की तारिख में दर्ज हो गया है.

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लेखक

सरिता निर्झरा सरिता निर्झरा @sarita.shukla.37

लेखिका महिला / सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं.

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