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Updated: 23 जनवरी, 2021 10:40 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रियंका गांधी वाड्रा के 10 लाख कैलेंडर (Priyanka Gandhi Vadra Calender) उत्तर प्रदेश में घर घर बांटे जाने का काम शुरू हो चुका है. कांग्रेस से संगठन सृजन कार्यक्रम के तहत पार्टी पदाधिकारी अपने प्रभार वाले इलाकों में डेरा डाले हुए हैं - और अब वे ही ये भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्रियंका गांधी के नये साल के कैलेंडर घर घर पहुंच जायें.

ये कैलेंडर थोड़े हैरान करने वाले भी लगते हैं क्योंकि 12 पेज में से किसी पर भी राहुल गांधी या फिर सोनिया गांधी की एक भी तस्वीर नहीं है. हैरानी इसलिए भी होती है क्योंकि प्रियंका गांधी की वे तस्वीरें भी शामिल की गयी हैं जिन दौरों में राहुल गांधी भी उनके साथ रहे हैं - जैसे हाथरस जाते वक्त कार्यकर्ताओं को पुलिस की लाठी से बचाती तस्वीर और हाथरस पहुंच कर पीड़ित के घर में परिवार की एक सदस्य के साथ गले मिलने की तस्वीर.

ऐसा ही प्रयोग बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आरजेडी के पोस्टर में देखने को मिला था जिसमें तेजस्वी यादव की तस्वीर तो थी, लेकिन लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की नदारद रही. क्या ऐसा राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव हार जाने की वजह से हो सकता है?

अमेठी की तरह सोनिया गांधी की रायबरेली (Raebareli) लोक सभा सीट पर भी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani) की नजर लग चुकी है - और 2024 में वो रायबरेली को भी अमेठी बनाने पर तुली हुई लगती हैं. स्मृति ईरानी ने 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी को अमेठी में हरा दिया था.

कैलेंडर के जरिये कनेक्ट होने की कोशिश में कांग्रेस

उत्तर प्रदेश को लेकर छपे कांग्रेस के कैलेंडर में पहले पेज पर सोनभद्र के उभ्भा गांव की तस्वीर है - ये तब की है जब प्रियंका गांधी वाड्रा नरसंहार के बाद पीड़ितों से मिलने पहुंची थीं. प्रियंका गांधी का ये दौरान काफी सफल रहा क्योंकि वो पीड़ित परिवारों से मिलने के बाद ही लौटी थीं. जब यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के अफसरों ने प्रियंका गांधी को बीच रास्ते में ही रोक कर गेस्ट हाउस पहुंचा दिया तो वो वहीं धरने पर बैठ गयीं और रात भर में ही सरकार को झुकना पड़ा था. अपने वादे के मुताबिक प्रियंका गांधी दोबारा भी वहां गयी थीं. तस्वीर में प्रियंका गांधी की वहां की महिलाओं के साथ तस्वीर लगायी गयी है.

priyanka gandhi vadra, smriti iraniस्मृति ईरानी तो रायबरेली को भी अमेठी बनाने के मिशन में जुट गयी हैं, लेकिन प्रियंका गांधी पहले बीजेपी से यूपी हथियाने के चक्कर में लगती हैं!

कैलेंडर में नवंबर महीने वाले पेज पर आजमगढ़ की एक तस्वीर है जिसमें प्रियंका गांधी एक छोटी सी बच्ची अनाविया के आंसू पोंछ रही है. ये तस्वीर 12 फरवरी, 2020 की है जब प्रियंका गांधी सीएए और एनआरसी को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के बाद बिलरियागंज पहुंची थीं. प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज में अनाविया भी अपनी नानी सरवरी के साथ थी - और पुलिस एक्शन सरवरी सहित कई महिलाएं घायल हो गयी थीं. पुलिस एक्शन से अनाविया काफी डरी हुई थी और जब प्रियंका गांधी पहुंचीं तब भी रो रही थी. प्रियंका गांधी ने अनाविया के आंसू पोंछ कर उसे चॉकलेट देकर चुप कराया था.

ये तो साफ है कि प्रियंका गांधी वाड्रा लोगों से भावनात्मक तौर पर जुड़ने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि पूजा-पाठ जैसी तस्वीरों को छोड़ दें तो ज्यादातर में वो पीड़ित, सताये हुए और मुश्किल घड़ी में लोगों के साथ खड़े होने की अपनी मुस्तैदी दर्ज कराने की कोशिश कर रही हैं.

यूपी को लेकर कांग्रेस के स्थापना दिवस पर कांग्रेस ने तिरंगा यात्रा का कार्यक्रम बनाया था और उसके बाद 3 जनवरी से 25 जनवरी तक संगठन सृजन प्रोग्राम चल रहा है. ये सारे कार्यक्रम जमीनी स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने के मकसद से बनाये गये हैं. इसी दौरान पंचायत स्तर पर कार्यकर्ताओं की टीम बनायी जा रही है और उनके नेता भी तय किये जा रहे हैं. जाहिर है ये सब यूपी में होने जा रहे पंचायत चुनावों के मद्देनजर किया जा रहा है.

कांग्रेस नेताओं का दावा है कि 25 जनवरी तक संगठन सृजन मुहिम पूरी होने तक हर गांव में 15-20 लोग कांग्रेस से जुड़े हुए होंगे. और 60 हजार ग्राम सभा इकाइयों में संगठन को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया है. प्रियंका गांधी के कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू पर है, लेकिन साथ ही साथ प्रियंका गांधी की कोर टीम भी एक्टिव है.

एक बात तो है कि प्रियंका गांधी ने बीजेपी की योगी सरकार के प्रति आक्रामक रुख बनाये रखने के मामले में मुख्य विपक्षी दलों सपा-बसपा के नेताओं अखिलेश यादव और मायावती को काफी पीछे छोड़ दिया है. मायावती की जो भी रणनीति हो, लेकिन वो ज्यादातर वक्त कांग्रेस पर ही हमलावर और बीजेपी सरकार सलाह देती नजर आती हैं. अखिलेश यादव की भी ज्यादातर गतिविधियां बयानबाजी और ट्वीट तक सीमित नजर आती रही हैं, हालांकि, अब वो कोई न कोई बहाना खोज कर जगह जगह दौरा भी करने लगे हैं.

प्रियंका गांधी की कोशिश यही लगती है कि योगी सरकार को घेरने के मामले में जो लीड वो ले रही हैं, उनके और अखिलेश यादव और मायावती के बीच ये फासला आगे भी बरकरार रहे. मतलब, सरकार के विरोध में खड़े होने का क्रेडिट अकेले कांग्रेस को ही मिले, सपा या बसपा को नहीं.

वैसे प्रियंका गांधी के लिए चुनौती महज अखिलेश यादव और मायावती ही नहीं हैं, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के अलावा असदुद्दीन ओवैसी हद से ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं - और जैसे बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया, यूपी में भी ओवैसी की पार्टी कांग्रेस के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. वैसे तो ओवैसी ओम प्रकाश राजभर जैसे छोटी पार्टियों के नेताओं से भी मिल रहे हैं, लेकिन ज्यादा जोर उनका मोहम्मद आजम खां जैसे नेताओं को साथ मिलाने पर है जो आज कल अखिलेश यादव से नाराज बताये जाते हैं.

प्रियंका गांधी की सारी कवायद अपनी जगह है, लेकिन इस बीच रायबरेली में उनकी और सोनिया गांधी दोनों की गैरमौजूदगी शिद्दत से महसूस की जा रही है - और इसी का फायदा उठाते हुए अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी रायबरेली में एक्टिव हो गयी हैं.

रायबरेली को भी अमेठी बनाना चाहती है बीजेपी

2019 के लोकसभा चुनावों के बाद रायबरेली से कांग्रेस के दोनों विधायक, राकेश सिंह और अदिति सिंह तो बागी हो ही गये थे, हाल ही में कांग्रेस के एक पीसीसी सदस्य सहित 35 पदाधिकारियों ने पत्र के जरिये सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भी भेज दिया है - और ये कांग्रेस के लिए तो अच्छी खबर बिलकुल भी नहीं है.

जैसे स्मृति ईरानी 2014 में अमेठी से चुनाव हारने के बावजूद अमेठी में लगातार हाजिरी लगाती रहीं, वैसे ही अब रायबरेली को लेकर सक्रिय नजर आ रही हैं. अब तो स्मृति ईरानी यहां तक कहने लगी हैं कि 2024 में अमेठी की तरह ही रायबरेली में भी कमल खिलेगा.

असल में अमेठी से राहुल गांधी के हार जाने के बाद यूपी में अब रायबरेली ही कांग्रेस के पास बची है. रायबरेली पर नजर तो समाजवादी पार्टी की भी है, लेकिन बीजेपी उसके मुकाबले ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है.

रायबरेली में स्मृति ईरानी का दौरा तो शुरू हो ही गया है, यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को रायबरेली का प्रभारी मंत्री बनाया गया है. साथ ही, कई केंद्रीय मंत्रियों के भी दौरे का कार्यक्रम बनाया जा रहा है. मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा लखनऊ दौरे में रायबरेली को लेकर बीजेपी की रणनीतियों की भी समीक्षा करेंगे ही.

आम चुनाव से पहले 2018 में अमित शाह ने रायबरेली में एक बड़ी रैली की थी और उसी दौरान कांग्रेस एमएलसी दिनेश सिंह बीजेपी में शामिल हुए थे. लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने दिनेश सिंह को ही उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वो सोनिया गांधी से डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से हार गये थे. दिनेश सिंह के भाई राकेश सिंह विधायक हैं और वो भी अदिति सिंह के साथ ही बागी रुख अख्तियार कर चुके हैं. दोनों में से किसी ने भी कांग्रेस तो नहीं छोड़ी है लेकिन उनकी गतिविधियां बीजेपी के पक्ष में ही देखी जाने लगी हैं.

ये ठीक है कि 2024 में काफी देर है और 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले यूपी में पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस को जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की टीम खड़ा करने और उनमें जोश भरने के लिए तिरंगा यात्रा और कैलेंडर मददगार साबित हो सकते हैं, लेकिन ये भी सच है कि स्मृति ईरानी के रायबरेली में सक्रिय होने के बाद कांग्रेस के 'सामने सावधानी हटी दुर्घटना घटी' वाली स्थिति पैदा तो हो ही गयी है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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