रॉबर्ट वाड्रा के बचाव में प्रियंका गांधी का हिंदुत्व कार्ड
संघ परिवार और बीजेपी के 'परिवारवाद' की राजनीति के आरोपों के बीच प्रियंका गांधी ने खुद को एक आदर्श हिंदू पत्नी की तरह पेश किया है - और जनता की अदालत में अपने 'परिवार' के लिए इंसाफ मांगने जा रही हैं.
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मनी लॉडिरिंग के केस में फंसे रॉबर्ट वाड्रा की ओर से ही प्रवर्तन निदेशालय में पेशी की तारीख और वक्त बताया गया था. 6 फरवरी को ही और चार ही बजे पूछताछ के लिए रॉबर्ट वाड्रा के ईडी दफ्तर जाने की कोई बाध्यता नहीं थी. ये सब तो रॉबर्ट वाड्रा के वकील केटीएस तुलसी ने कोर्ट को उस दिन बताया था जब उनकी गिरफ्तारी पर 16 फरवरी तक रोक लगी थी.
प्रियंका गांधी वाड्रा के कांग्रेस दफ्तर में कामकाज संभालने का दिन और समय भी सारी बातें सोच समझ कर ही तय हुए होंगे. प्रियंका गांधी वाड्रा का अपने पति रॉबर्ट वाड्रा को ईडी दफ्तर तक छोड़ कर आना और फिर कांग्रेस दफ्तर में मीडिया से कहना कि वो अपने पति और परिवार के साथ खड़ी हैं आखिर क्या है? ये तो साफ है कि रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताते हुए प्रियंका के खड़े होने के मतलब कांग्रेस का सपोर्ट है - और यही वजह विपक्षी दलों के समर्थन की भी है. ममता बनर्जी ने तो कहा भी है कि रॉबर्ट वाड्रा को मोदी सरकार जानबूझ कर परेशान कर रही हैं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे अखिलेश यादव के साथ हुआ था.
लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी ही है? अब तो प्रियंका गांधी वाड्रा के हिंदू कार्ड पर बहस शुरू हो चुकी है - और एक बीजेपी नेता ने तो प्रियंका के साथ साथ राहुल गांधी को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.
क्या प्रियंका का ये हिंदुत्व कार्ड है?
प्रियंका गांधी वाड्रा के भारत लौटने से पहले ही उनके कुंभ स्नान की चर्चा शुरू हो चुकी थी. अब तक कंफर्म कुछ भी नहीं है लेकिन अभी इस बात से इंकार नहीं किया गया है कि वो कुंभ नहीं जा रही हैं. ऐसा होने की स्थिति में उनके साथ राहुल गांधी भी होंगे.
अब ये महज संयोग है या कोई राजनीति कि प्रियंका गांधी के कुंभ स्नान से पहले ही विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अभियान स्थगित कर दिया है? विहिप के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत भी यही बता रहे हैं कि अब जो भी होगा चुनाव बाद ही होगा - और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन, कैसी और किसकी सरकार होगी?
कांग्रेस को पता है कि राजनीतिक विरोधियों ने जो सवाल सोनिया गांधी को लेकर उठाया था, वे प्रियंका के साथ ऐसा नहीं कर सकते. यूपी चुनाव के वक्त कुछ ही दिन के लिए सही शीला दीक्षित को यूपी की बहू के तौर पर पेश किया जा रहा था. प्रियंका भी तो बहू यूपी की ही हैं. ये ठीक है कि सोनिया गांधी की तरह प्रियंका हर वक्त साड़ी और सिर पर पल्लू नहीं रख रही हैं - लेकिन एक हिंदू परिवार की बहू के तौर पर पति के पीछे मजबूती से डट कर खड़ी हैं.
पति के सवाल पर प्रियंका गांधी कहती भी हैं, 'उनके साथ ईडी दफ्तर तक जाकर मैं सिर्फ यही बताना चाहती थी कि मैं हर कदम पर उनके साथ खड़ी हूं. लोग सब समझते हैं कि चुनाव से ठीक पहले ये क्यों हो रहा है और कौन कर रहा है?'
राजनीति की एक छोटी सी पारी खेल कर पत्रकारिता में लौट आये आशुतोष प्रियंका गांधी के ईडी दफ्तर तक रॉबर्ट वाड्रा को छोड़ने जाने में हिंदुत्व की राजनीति की ओर इशारा किया है. आशुतोष ने ट्विटर पर लिखा, 'हिंदू परंपरा में पत्नी हर हाल में पति का साथ देती है. पति चाहे जैसा भी हो. प्रियंका ने वाड्रा को ईडी तक छोड़ और ये कह गहरा राजनीतिक संदेश दिया है, “मैं अपने पति के साथ खड़ी हूँ.” प्रियंका कह रही हैं कि मैं भारतीय (हिंदू) पत्नी हूं. राजनीतिक खेल चालू आहे.'
बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने आशुतोष के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए टिप्पणी की है - और उसमें राहुल गांधी को भी लपेटा है.
क्या प्रियंका ने बीजेपी के हमलों की काट ढूंढ ली है?
रॉबर्ट वाड्रा की ईडी के सामने पेशी और प्रियंका गांधी के कामकाज संभालने की टाइमिंग तो महत्वपूर्ण है ही, प्रियंका गांधी वाड्रा का हर एक्शन यही बताता है कि कैसे वो दोनों मोर्चों पर एक साथ मुस्तैदी से डटी हुई हैं. पति के साथ भी - और पार्टी के साथ भी. पति रॉबर्ट वाड्रा जब दूसरे दिन ईडी के सामने पेश हो रहे हैं तो प्रियंका गांधी कांग्रेस महासचिवों की मीटिंग में शामिल हो रही हैं जिसमें माइक्रो-लेवल बूथ मैनेजमेंट पर चर्चा होने की बात कही जा रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का सबसे ज्यादा जोर बूथ प्रबंधन में ही होता है. कांग्रेस भी बीजेपी को बीजेपी के ही दांव से शिकस्त देने में जुटी है. 2018 में तीन विधानसभाओं में ये प्रयोग हो चुका है - और नतीजे भी पक्ष में आ चुके हैं. ये बीजेपी को बीजेपी के ही हथियार से मात देने की रणनीति है. हिंदुत्व का ऐंगल भी इसी का हिस्सा है.
प्रियंका कदम कदम पर एक आदर्श हिंदू पत्नी और बहू के तौर पर पति और परिवार के साथ खड़े होने की ओर इशारा कर रही हैं. पत्नी इस बात से पूरी तरह बेफिक्र है कि पति के ऊपर किस तरह के और कितने गंभीर इल्जाम हैं - वो तो बस पतिव्रता धर्म निभाते हुए आखिरी सांस तक खड़े रहने को तैयार है. सात फेरे से सात जन्मों तक.
रॉबर्ट वाड्रा की गिरफ्तारी की आशंका कितनी है?
ईडी का दावा है कि वाड्रा ने लंदन में जो संपत्ति खरीदी है, वो रक्षा सौदों के दलाल संजय भंडारी की थी और वो 2010 में वाड्रा को बेची गयी. ये डील शक के दायरे में इसलिए आयी क्योंकि भंडारी ने जिस कीमत पर खरीदी थी उसी पर वाड्रा को बेच दी जबकि मरम्मत में काफी रकम खर्च हुई थी.
इस जंग का अंजाम क्या है?
बिजनेस टुडे के अनुसार लंदन की ये संपत्ति है तो करीब 18 करोड़ रुपये की ही लेकिन खरीद में हवाला के जरिये पैसे का इस्तेमाल हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक वाड्रा के पास एक 37 करोड़ रुपये और 47 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी के अलावा छह फ्लैट भी हैं. सितंबर 2015 में ईडी ने बीकानेर में मनी लॉन्ड्रिंग के जरिये हुए एक जमीन सौदे को लेकर रिपोर्ट दर्ज की थी - और अब 12 फरवरी को उसी केस में वाड्रा को एक बार फिर ईडी अधिकारियों के सामने हाजिर होना होगा. 2009 में हुई एक पेट्रोलियम डील में भी वाड्रा के फायदा उठाने का इल्जाम है.
बड़ा सवाल ये है कि रॉबर्ट वाड्रा को प्रवर्तन निदेशालय गिरफ्तार भी कर सकता है क्या? 16 फरवरी तक तो गिरफ्तारी पर रोक है लेकिन उसके बाद क्या होगा? प्रवर्तन निदेशालय के सामने हाजिर होकर रॉबर्ट वाड्रा को दिल्ली में लंदन की प्रॉपर्टी के सिलसिले में और जयपुर में बीकानेर वाली जमीन को लेकर अपना पक्ष रखना है.
रॉबर्ट वाड्रा की गिरफ्तारी की आशंका की बात करें तो इस केस में दो अलग अलग पहलू हैं - एक राजनीतिक, दूसरा कानूनी. फैसला राजनीतिक होगा और कानून अपना काम करेगा. गिरफ्तारी के लिए सिर्फ ऐसे सबूतों की जरूरत होती है जिनके आधार पर अदालत में चार्जशीट फाइल की जा सके - सजा दिलाने जैसी कोई शर्त इसके लिए जरूरी नहीं होती.
डर तो कांग्रेस नेताओं को भी पहले से ही है कि रॉबर्ट वाड्रा को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता है - लेकिन अब रॉबर्ट वाड्रा के साथ प्रियंका गांधी पूरी तैयारी के साथ मैदान में कूद पड़ी हैं. प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई समझा रही है - और कट्टर मोदी समर्थकों को छोड़ दें तो हवाओं के साथ बहने वाले लोग भी सोशल मीडिया पर समझने की कोशिश कर रहे हैं कि चल क्या रहा है? गली-मोहल्ले और सड़क की चाय दुकानों पर भी चर्चाएं ऐसी ही हैं.
वस्तुस्थिति ये है कि जिन्हें लगता था कि बीजेपी के सत्ता में आते ही रॉबर्ट वाड्रा जेल में होंगे उनमें निराशा के भाव उकेरे जा रहे हैं. ऐसा ही केजरीवाल समर्थकों को भी लगता होगा कि दिल्ली में आप की सरकार बनते ही शीला दीक्षित जेल में होंगी - और ऐसे हर समर्थक को एक अंतराल के बाद निराशा ही हाथ लगती है. हुआ भी यही है कि केजरीवाल और बीजेपी दोनों खुद ही लोगों को सोचने का ये मौका दे रहे हैं. सत्ताधारी बीजेपी ने तो अपने एक्शन से ही साबित कर दिया है.
रॉबर्ट वाड्रा पर भी विपक्षी एकजुटता वैसे ही उभर रही है जैसे कोलकाता में ममता बनर्जी बनाम केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की जंग में देखने को मिला. रॉबर्ट वाड्रा के केस में भी ममता बनर्जी ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि बीजेपी आम चुनाव से पहले जानबूझ कर ऐसा कर रही है ताकि लोगों को गुमराह किया जा सके. अगले हफ्ते ममता बनर्जी दिल्ली में भी दस्तक देने वाली हैं. रॉबर्ट वाड्रा केस में भी मोदी सरकार को विपक्षी खेमे में वैसे ही खलनायक के तौर पर पेश करने की तैयारी लग रही है जैसे अखिलेश यादव या ऐसे दूसरे मामलों में रहा है.
राम मंदिर मामले में वीएचपी और संघ के बाद ये तो तय है बीजेपी भी बैकफुट पर होगी ही. अब प्रियंका गांधी के यूपी दौरे का कार्यक्रम भी आ चुका है. प्रियंका गांधी 11 फरवरी को लखनऊ पहुंचेंगी और राहुल गांधी भी साथ होंगे. अगले दिन 12 फरवरी को रॉबर्ट वाड्रा से जयपुर में पूछताछ होगी. प्रियंका गांधी का 11-14 फरवरी तक का कार्यक्रम बना है.
प्रियंका गांधी के प्रोग्राम पर गौर करें तो उस दौरान कुंभ में कोई विशेष स्नान का मौका नहीं है. एक मौका बसंत पंचमी का है लेकिन वो 10 फरवरी को है और प्रियंका एक दिन बाद पहुंच रही हैं - और दूसरा माघी पूर्णिमा 19 फरवरी को है तब तक प्रियंका लौट चुकी होंगी. ऐसा तो नहीं कि राम मंदिर के मुद्दे पर संघ परिवार के पीछे हटने के चलते प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इरादा बदल लिया हो.
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