'नाकाम' प्रियंका गांधी का राहुल गांधी की नाकामी पर बचाव बेमानी
प्रियंका गांधी वाड्रा का ताजा तेवर कांग्रेस की भविष्य की रणनीतियों से जुड़ा माना जा रहा है. रणनीतियों में राहुल गांधी या दूसरे नेताओं को कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर दिलचस्पी न होने पर प्रियंका को कमान सौंपे जाना भी है - जो सबसे बड़ा चैलेंज है.
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Congress में कोर टीम ही इस वक्त सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है. Priyanka Gandhi Vadra भी काफी आक्रामक हो रही हैं - फिलहाल टारगेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं, बल्कि कांग्रेस के ही जमीनी कार्यकर्ता ही हैं. प्रियंका वाड्रा के मुताबिक, कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार.
सोनिया गांधी सब कुछ चुपचाप देख रही हैं. राहुल गांधी पूरी तरह खामोश हैं. अगर कोई कुछ बोल रहा है तो वो हैं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला. ये भी रणदीप सुरजेवाला ने ही बताया था कि 'राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थे, हैं और रहेंगे' - और 'इस सवाल का कोई मतलब नहीं है' कि कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर क्या तैयारी चल रही है.
ऐसा लगा था कि राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश की प्रक्रिया कोर कमेटी के खारिज कर देने के साथ ही खत्म हो चुकी है - लेकिन पिक्चर अभी बाकी है.
क्या भाई के बचाव में खड़ी हैं प्रियंका?
राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश पर कोर कमेटी ने तो अपना टास्क पूरा कर लिया है. राहुल गांधी का पक्ष अभी सामने नहीं आ सका है. कोर कमेटी भले समझाने की कोशिश कर रही हो कि उसने राहुल गांधी को मना लिया है, लेकिन राहुल गांधी ने तो कहा नहीं कि वो मान गये हैं.
राहुल गांधी की ओर से ही स्थिति स्पष्ट न किये जाने के चलते न सिर्फ ये रहस्य बना हुआ है, बल्कि गहराता भी जा रहा है.
ऐसे में प्रियंका वाड्रा की सक्रियता कांग्रेस में नयी संभावनाओं की ओर इशारा कर रही है - लेकिन क्या प्रियंका वाड्रा कांग्रेस के लिए इतनी उपयोगी हैं कि वो उसे वो सब दिला दें जिसकी फौरन दरकार है?
टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय में एक खास चर्चा का जिक्र आया है - 'प्रियंका गांधी वाड्रा, राहुल गांधी से कमान संभालने वाली हैं.' प्रियंका वाड्रा के आगे आकर कांग्रेस की कमान संभालने की ये संभावना इसलिए जतायी जा रही हैं - क्योंकि राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी है और कांग्रेस में भी दूसरा कोई नेता ये जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं लग रहा है. वैसे कांग्रेस की कमान संभालने को लेकर प्रियंका वाड्रा का नाम उस दिन भी उछला था जिस दिन राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की थी. तब राहुल गांधी ने तपाक से ये प्रस्ताव रिजेक्ट कर दिया था. ये कहते हुए कि 'मेरी बहन को इसमें मत घसीटो'. राहुल गांधी का सख्त लहजा देखते हुए लोग चुपचाप खामोश रह गये थे.
हार और जीत दोनों ही टीम वर्क का नतीजा होते हैं, इसलिए नेतृत्व और कार्यकर्ता दोनों ही जिम्मेदार माने जाते हैं. प्रियंका वाड्रा ने कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार बताकर राहुल गांधी के बचाव की कोशिश की है. सोनिया गांधी ने भी चुनाव में राहुल गांधी के प्रदर्शन की तारीफ में कसीदे पढ़े थे - कुछ कुछ ऐसे कि राहुल गांधी ने बड़े ही साहस के साथ और पूरी शिद्दत से चुनाव लड़े. शक-शुबहा तो राहुल गांधी के साहस और मेहनत पर शायद ही किसी को हो, लेकिन चुनावी राजनीति में मायने तो जीत ही रखती है. अब अगर पांच साल की दुस्साहसिक लड़ाई के बाद भी कांग्रेस को लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष पद हासिल न हो पाये तो ये साहस सिर्फ सर्टिफिकेट के ही काबिल हो सकता है - व्यावहारिक तौर पर तो कोई मतलब नहीं बनता.
प्रियंका वाड्रा के ताजा तेवर क्या राहुल गांधी के बचाव में है?
प्रियंका वाड्रा के रायबरेली में कार्यकर्ताओं को हार के लिए जिम्मेदार ठहराने वाले बयान को भी इस थ्योरी से जोड़ा जा रहा है. प्रियंका वाड्रा का वो बयान भाई राहुल गांधी के बचाव में है. राहुल गांधी भले ही हार की जिम्मेदारी ले चुके हों, लेकिन प्रियंका वाड्रा या कांग्रेस के बाकी शुभेच्छु ये नहीं चाहते कि ये तोहमत राहुल गांधी पर आये.
क्या प्रियंका तैयार हैं राहुल की जगह लेने के लिए?
कांग्रेस की हार की समीक्षा के दौरान ही प्रियंका वाड्रा को यूपी में मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी का चेहरा बनाने की मांग उठी है. दो साल पहले 2017 में विधानसभा चुनावों के दौरान यही सलाह चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी दी थी - लेकिन सबने मिल कर खारिज कर दिया था.
एक तरफ प्रियंका वाड्रा को यूपी में सीएम का चेहरा बनाने की मांग उठ रही है, दूसरी तरफ उन्हें राहुल गांधी का उत्तराधिकारी बनाने के लिए भी माहौल बनने लगा है. वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया का इस बारे में कहना है कि प्रियंका को लेकर उठी इस मांग पर फैसला कांग्रेस नेतृत्व और कोर कमेटी लेगी.
बड़ा सवाल तो ये है कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा खुद बड़े रोल के लिए तैयार हैं?
प्रियंका को कांग्रेस में तुरूप के पत्ते के तौर पर देखा जाता रहा. जब प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस का महासचिव बना कर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया तो माना जाने लगा कि पार्टी नेतृत्व ने ब्रह्मास्त्र चल दिया है. हालांकि, राहुल गांधी ने इसकी वजह भी बतायी कि इस पर फैसला काफी पहले हो चुका था, प्रियंका वाड्रा के बच्चों के बड़े होने का इंतजार किया जा रहा था. दूसरी दलील ये रही कि यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के बनने और उसमें कांग्रेस को जगह नहीं मिलने के कारण प्रियंका के रोल को औपचारिक स्वरूप दिया गया.
प्रियंका वाड्रा ने चुनावों में खुद भी खूब खेल खेले, लेकिन कभी कभी बयानों की वजह से फजीहत भी झेलनी पड़ी. प्रियंका वाड्रा के वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने से लेकर कांग्रेस की यूपी में वोटकटवा की भूमिका को लेकर भी खूब सुर्खियां बनीं. तमाम ऐसी बातों के बीच वो बात छूट गयी जो सबसे बड़ा चैलेंज था - अमेठी. अमेठी से राहुल गांधी हार गये और प्रियंका गांधी वाड्रा कुछ नहीं कर पायीं.
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