अमेठी से गांधी परिवार इस कदर दूरी क्यों बनाने लगा है
कांग्रेस नेतृत्व आम चुनाव में हार की समीक्षा के साथ ही 2022 की तैयारियों में जुट गया है. सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा रायबरेली तक गये लेकिन अमेठी नहीं - क्या विधानसभा चुनावों में अमेठी की कोई भूमिका नहीं होगी?
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अमेठी अब भी खबरों में है. ऐसा नहीं है कि अमेठी खबरों में राहुल गांधी के किसी बयान या कार्यक्रम को लेकर है. ऐसा भी नहीं कि अमेठी प्रियंका गांधी वाड्रा या सोनिया गांधी की यात्रा को लेकर ही है - बल्कि, अमेठी समाजवादी पार्टी के नेता गायत्री प्रजापति के ठिकानों पर CBI की छापेमारी को लेकर है. सीबीआई की ये छापेमारी यूपी के खनन घोटाले की जांच के सिलसिले में बतायी गयी है.
एक दिन कार्यक्रम टालने के बाद सोनिया गांधी रायबरेली पहुंच चुकी हैं और साथ में प्रियंका वाड्रा भी हैं - खास बात ये है कि दोनों ही कांग्रेस नेताओं का अमेठी को लेकर कोई कार्यक्रम नहीं है.
ऐसा क्यों लग रहा है कि गांधी परिवार मिल कर साबित करने में लगा है कि अमेठी के लोगों ने 'मन की बात' कर कोई गलती नहीं की. इससे पहले राहुल गांधी भी वायनाड तो गये लेकिन अमेठी न तो रूख किया और न ही कोई चर्चा ही सुनने को मिली. क्या वास्तव में पूरा गांधी परिवार, सिर्फ एक हार के बाद 'गांधी परिवार के गढ़ रहे' अमेठी से दूरी बनाने लगा है? मगर ऐसा क्यों?
अमेठी की हार की समीक्षा रायबरेली में क्यों?
सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों के प्रति आभार जताते हुए एक पत्र भी लिखा था. पत्र के जरिये सोनिया गांधी ने समाजवादी पार्टी, बीएसपी और स्वाभिमान दल के कार्यकर्ताओं के प्रति भी उनके परिश्रम के लिए आभार जताया था. पत्र में सोनिया ने कहा, 'मेरा जीवन आप सबके सामने एक खुली किताब की तरह रहा है. आप मेरा परिवार हैं. आपसे मुझे जो हौसला मिलता है, वही मेरी असली धरोहर है.'
ऐसा अमेठी को लेकर किसी ने कोई पत्र नहीं लिखा. राहुल गांधी तो सीधे वायनाड ही पहुंचे, लेकिन कहीं अमेठी का नाम तक न लिया - बल्कि, बताने लगे कि लगता है जन्म से ही वहीं के हैं. वैसे दिल्ली में राहुल गांधी के जन्म के समय मौजूद नर्स राजम्मा से भी राहुल गांधी मिले और खुद गले लगते हुए तस्वीर भी ट्विटर पर शेयर की.
रायबरेलीवासियों को संबोधित पत्र में सोनिया ने ये भी कहा है, 'मैं जानती हूं कि आने वाले दिन और भी मुश्किल भरे हैं लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि आपके समर्थन और विश्वास की शक्ति के सहारे कांग्रेस हर चुनौती को पार करेगी. लड़ाई कितनी भी लंबी हो, मैं आपको वचन देती हूं कि देश के बुनियादी मूल्यों की रक्षा के लिए मैं भी अपना सर्वस्व कुर्बान करने में कभी पीछे नहीं हटूंगी.'
अमेठी अचानक रायबरेली से इतना दूर कैसे हो गया?
रायबरेली में कांग्रेस की हार की समीक्षा होनी है. सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा के दो दिन के दौरे का मकसद भी यही है. हार की समीक्षा तो पूरे यूपी की होगी - लेकिन सबसे ऊपर एजेंडे में तो अमेठी ही होगा. वैसे अमेठी की हार की समीक्षा के लिए दो सदस्यीय एक कमेटी पहले ही बनायी जा चुकी है.
सवाल ये है कि अमेठी की हार की समीक्षा रायबरेली में होने की क्या वजह हो सकती है?
क्या रायबरेली का अमेठी से कम दूर होना है, बनिस्बत दिल्ली के?
आखिर हार की ये समीक्षा अमेठी में क्यों नहीं हो रही?
क्या 2022 के लिए अमेठी की जरूरत नहीं है?
सूत्रों के हवाले से मीडिया में आयी खबरों में बताया गया है कि सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों को लेकर भी रणनीति तैयार करने को लेकर विचार विमर्श हुआ. स्थानीय कांग्रेस नेताओं और जिला स्तर के पदाधिकारियों से हार की वजह तो पूछी ही गयी - अगले मिशन के तैयारियों में जुट जाने को कहा गया.
ऐसा पहली बार हो रहा है कि सोनिया गांधी चुनाव नतीजों के इतने कम समय बाद ही रायबरेली पहुंची हैं. 2014 के बाद तो सोनिया गांधी का रायबरेली आना जाना कम ही हो पाया था - क्योंकि तब उनकी सेहत अच्छी नहीं थी. रायबरेली से जुड़े तकरीबन सारे ही कामकाज प्रियंका वाड्रा ही देखती रहीं. तब भी जब उन्हें कांग्रेस का महासचिव या पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नहीं बनाया गया था.
सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा के रायबरेली दौरे के वक्त बहराइच से कांग्रेस उम्मीदवार सावित्रीबाई फुले भी मिलने पहुंची थीं.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बैठक से पहले कांग्रेस के जिला और शहर अध्यक्षों में गुस्सा दिखा. बताते हैं कि ये पदाधिकारी राहुल गांधी के रवैये से बेहद खफा थे - क्योंकि, उनका कहना रहा, पूरे चुनाव में राहुल गांधी की प्रतिक्रिया न के बराबर रही. कांग्रेस पदाधिकारियों की शिकायत रही कि न तो वो प्रत्याशियों के बारे में अपनी राय देते थे, न ही चुनाव के दौरान तय की जाने वाली रणनीति का हिस्सा होते थे. हार की समीक्षा के लिए पूर्वी और पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिलाध्यक्षों को भी बुलाया गया था. पता चला है कि अब यूपी में नये जिला अध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष बनाये जाएंगे, जिसके लिए अच्छे उम्मीदवारों की तलाश की जाएगी.
ये सही है कि न तो खुद राहुल गांधी, न सोनिया गांधी और न ही प्रियंका गांधी वाड्रा किसी ने भी अमेठी में हार की कल्पना भी की होगी. ये भी हो सकता है कि गांधी परिवार के गढ़ में कांग्रेस नेतृत्व ने स्मृति ईरानी को वैसे ही हल्के में ले लिया जैसे 2018 के गोरखपुर उपचुनाव में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने बीएसपी के सपोर्ट से चुनाव लड़ रहे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को ले लिया था. योगी आदित्यनाथ ने तो ये बात मान भी ली, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व तो अभी समीक्षा ही कर रहा है.
एक तरफ गांधी परिवार अमेठी से दूरी बनाये हुए है, दूसरी तरफ बीजेपी नेता स्मृति ईरानी लगातार जुड़ी हुई हैं. एक समर्थक की हत्या के बाद अमेठी पहुंच कर स्मृति ईरानी के कंधा देने की हर तरफ सराहना हुई. सोशल मीडिया पर बीजेपी के विरोध में खड़ी लॉबी भी स्मृति ईरानी की तारीफ करते नहीं थक रही थी.
प्रियंका वाड्रा तो वैसे भी 2022 के विधानसभा की तैयारियों में पहले से ही लगी हैं - लेकिन क्या लोक सभा की हार के बाद विधान सभा चुनाव में अमेठी की कोई भूमिका नहीं होगी?
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