बसों की बेकाबू राजनीति अब बेबस मजदूरों को परेशान कर रही है!
कहते हैं आपदा की स्थिति में सभी को मिलजुल कर कार्य करना चाहिए. लेकिन इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार(UP Government) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के बीच जो ड्रामा जारी है उसका नुकसान भी हमेशा की तरह आम नागरिक को हो रहा है. कोरोना (Corona)जैसी राष्ट्रीय आपदा के बीच दोनों ही पार्टी राजनीति का खेल खेलने में जुटी हैं.
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देश में हर दिन दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं, जिसमें बेबस, बेकस और मजबूर मजदूर (Workers) पलायन (Migrant) को मजबूर हैं. रेलवे(Railway) द्वारा श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने के बावजूद सड़कों पर पलायन करने वालों का हुजूम उमड़ा पड़ा हुआ है. देश में लॅाकडाउन (Lockdown) के बाद से ही प्रवासी मजदूरों का पलायन का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. हर राज्य सरकार के अपने अपने दावे हैं कि वह अपने राज्यों में प्रवासी मजदूरों के लिए हर तरीके का बंदोबस्त किए हुए हैं लेकिन मजदूरों की ज़बान पर हकीकत कुछ और है. देश के बड़े बड़े शहरों से पलायन लगातार हो रहा है. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) व बिहार (Bihar) के मजदूरों की संख्या सबसे अधिक है. इस दौरान कई हादसे भी सामने आए जहां इन मजदूरों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी, लेकिन सरकार उनको संवेदना के सिवा कुछ न दे सकी. औरेय्या में हुए हादसे के बाद सरकार पर दबाव बढ़ा तो उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने सड़क पर पैदल चलने को प्रतिबंधित कर दिया और सभी जिलों को निर्देश दिया कि इनके लिए उचित बंदोबस्त करके इनके गृहनगर तक इनको पहुंचा दिया जाए.
अब वो वक़्त आ गया है जब यूपी में प्रवासी मजदूरों को लेकर चल रही राजनीति थम जानी चाहिए
इसके साथ ही 16 मई को प्रियंका गांधी ने भी एक पत्र उत्तर प्रदेश सरकार सौंपा जिसमें उन्होंने योगी सरकार से प्रदेश भर में 1000 बसों को चलाने की अनुमति मांगी गई ताकि जो लोग पैदल ही अपने घरों की ओर जा रहे हैं उन्हें उस बस के द्वारा उनके जिले तक पहुंचाया जा सके. कांग्रेस पार्टी की ओर से भेजे गए इस पत्र को राजनीति से जुड़ा माना ही जा सकता था क्योंकि प्रियंका गांधी ये कदम कांग्रेस शासित प्रदेशों में भी उठा सकती थी लेकिन एक विपक्षी पार्टी होने के नाते उत्तर प्रदेश में बसों को लेकर अनुमति मांगना राजनीति से प्रेरित ही लग रहा था.
प्रियंका गांधी और योगी आदित्यनाथ के बीच चिठ्ठी और ट्वीटर पर जंग जारी है. दोनों ही अपने अपने पत्र को उजागर कर रहे हैं जिसमें दोनों ही ओर से राजनीति की झलक साफ देखने को मिल रही है, इस राजनीति का शिकार अगर कोई हो रहा है तो वह हमेशा की तरह बेबस और मजबूर जनता है.
योगी सरकार किसी भी कीमत पर प्रियंका की मंशा को घेरने की कोशिश में लगी हुयी है तो वहीं प्रियंका गांधी भी अपनी हर कोशिश करके बसों को चलवाना चाहती हैं ताकि उत्तर प्रदेश में वह कांग्रेस की जड़ों में नमी पैदा कर सकें. उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रियंका गांधी के अनुरोध को स्वीकारते हुए कहा कि वह जल्द से जल्द सभी 1000 बसों के नंबर और ड्राइवर सहित तमाम कानूनी दस्तावेज सरकार को सौंप दें.
प्रियंका गांधी की ओर से दिए गए नंबरों में कुछ तीन पहिए वाहन निकले और कुछ दोपहिया वाहनों के इसी को मुद्दा बनाकर पूरी भाजपा कांग्रेस और प्रियंका गांधी को घेरते हुए मैदान में आ गई जबकी कांग्रेसियों से इसपर जवाब देते नहीं बन रहा तो कांग्रेसी कह रहे हैं जिन 850 से अधिक बसों की जानकारी पूरी दी गई है कम से कम उसे तो चलाया जाए ताकि कुछ मजदूरों को ही सही राहत तो मिले.
योगी सरकार इस विषय को बहुत ही सीरियस होकर आंक रही है और इसी लिए उसने उत्तर प्रदेश कांग्रेस के मुखिया अजय कुमार लल्लू के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर लिया है. वहीं काग्रेंस पार्टी का कहना है कि उनकी इस सहायता को राजनीति से जोड़ा जा रहा है. जब बसें राजस्थान बार्डर पर खड़ी हैं तो पहले तो उन्हें लखनऊ लाने के लिए कहा गया फिर सारी बसों को नोएडा भेजने को कह दिया गया.
आखिर ये बस खाली यहां से वहां क्यों फिरायी जाएगी इन पर रास्ते में जा रहे मजदूरों को भेजना चाहिए. दोनों ही ओर से अपने अपने दावे हैं आरोप-प्रत्यारोप जारी है लेकिन समाधान निकलता नहीं दिखाई दे रहा है. बसों के ऊपर ही राजनीति हो रही है आखिर क्या ये समय राजनीति का जब पूरा प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरा देश संकट से जूझ रहा है.
मजदूरों का पैदल पलायन जारी है. लॅाकडाउन के दो माह बीतने को हैं लेकिन अभी भी पलायन का सिलसिला और ऊपर से ये राजनीति हमारे सिस्टम के माथे का कलंक ही साबित होती है.
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