पुलवामा हमला और CRPF जवानों की शहादत को रोका जा सकता था
पहले पठानकोट, फिर उरी और अब पुलवामा आतंकवादी हमला - आखिर ये सिलसिला रुक क्यों नहीं रहा? क्या इसलिए कि सरकार गलतियों से सबक नहीं ले रही? क्या एहतियाती उपाय किये गये होते तो जवानों की जान बचायी नहीं जा सकती थी?
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देश भर में सड़कों पर जगह जगह एक संदेश जरूर लिखा होता है - सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. सड़कों पर चलने वाला शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी नजर ऐसे संदेश पर न पड़ी हो. एक बार या दो बार ही नहीं, बल्कि बार बार नजर पड़ती है. फिर भी हर मोड़ पर दुर्घटनाएं होती रहती हैं.
मान लिया जाता है कि हादसों को टाला नहीं जा सकता. अगर वाकई ऐसा है तो एहतियाती उपाय होते किसलिए हैं?
चाहे उरी अटैक की बात की जाये, या फिर पठानकोट हमले की. हर हमले के बाद सुरक्षा में चूक की बातें सामने आती हैं. आखिर क्यों हम गलतियों से सबक नहीं लेते? पुलवामा अटैक को लेकर भी कई ऐसी बातें सामने आ रही हैं जिन पर गंभीरता से गौर किया गया होता तो हमले को टाला नहीं जा सकता था - और सीआरपीएफ के जवानों की शहादत रोकी जा सकती थी.
अगर खुफिया रिपोर्ट को गंभीरता से लिया गया होता
आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, सुरक्षा एजेंसियों ने 8 फरवरी को एक बड़ा अलर्ट जारी किया था. खुफिया अलर्ट में कहा गया कि आतंकवादी जम्मू कश्मीर में IED हमला कर सकते हैं. जानकारी यहां तक रही कि आतंकवादी उन जगहों पर जहां सुरक्षा बलों की तैनाती है या उनके आने जाने के रास्तों पर ऐसा विस्फोट कर सकते हैं. ऐसे हमलों के सीरिया और अफगानिस्तान की तर्ज पर अंजाम दिये जाने की भी आशंका जतायी गयी थी.
पुलवामा में हुआ क्या है? पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला तो इसी तरह हुआ है.
खुफिया रिपोर्ट पर लापरवाही और खुफिया विभाग की भी चूक
दूसरा अलर्ट चार दिन बाद ही 12 फरवरी को जारी हुआ बताया जाता है. नये अलर्ट में कहा गया था कि जैश-ए-मोहम्मद सुरक्षा बलों पर बड़ा हमला कर सकता है. एक वीडियो में अफगानिस्तान में हुआ एक हमले का फुटेज दिखाते हुए जैश के आतंकियों ने धमकी दी थी कि जम्मू-कश्मीर में भी वो वैसे ही हमले करेंगे. जम्मू-कश्मीर के खुफिया विभाग ने वीडियो के आधार पर सुरक्षा एजेंसियों को पहले ही आगाह कर दिया था.
अगर इतनी पुख्ता जानकारी थी तो सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक भला कैसे हुई? क्या खुफिया जानकारी को राज्य स्तर पर गंभीरता ने नहीं लिया गया? जम्मू-कश्मीर की कमान तो फिलहाल राज्यपाल सत्यपाल मलिक के हाथों में ही है - क्या उन्हें ये जानकारी बेदम नजर आयी? क्या ये जानकारी केंद्र को वक्त रहते नहीं दी गयी? अगर केंद्र तक ये जानकारी पहुंची थी तो क्या एनएसए अजीत डोभाल ने खास तवज्जो नहीं दी होगी? ऐसा लगता तो नहीं है.
वैसे भी अजीत डोभाल जैश सरगना मसूद अजहर को अरसे से जानते हैं. कांधार से लेकर अब तक मसूद अजहर की हर गतिविधि से वो पूरी तरह वाकिफ होंगे ही.
क्या खुफिया रिपोर्टों को गंभीरता से लिया गया होता और उसके अनुसार एहतियाती उपाय किये गये होते तो क्या सीआरपीएफ जवानों की जान नहीं बचायी जा सकती थी?
अगर मसूद अजहर के इरादों को वक्त रहते भांप लिया गया होता
31 अक्टूबर, 2018 को जम्मू-कश्मीर के त्राल में हुई मुठभेड़ में दो आतंकवादी मारे गये थे. दोनों में एक की शिनाख्त मोहम्मद उस्मान हैदर के रूप में हुई. पता चला था मोहम्मद उस्मान जैश सरगना मसूद अहजर का भतीजा था.
ज्यादा दिन नहीं हुए जब मसूद अजहर के भाई अब्दुल राउफ असगर ने पाकिस्तान के पंजाब में सरेआम ऐलान कर रहा था कि अफजल गुरु की फांसी का बदला जल्द ही लिया जाएगा.
क्या मसूद के भाई के ऐलान और खुफिया रिपोर्ट मिल कर कोई इशारा नहीं कर रहे थे? अगर ऐसा था तो क्या मसूद अजहर के भाई के मंसूबों को भांपने में गलती हो गयी?
अगर जवानों को हेलीकॉप्टर से ले जाया गया होता
जम्मू-कश्मीर जैसे आतंकवाद प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों के आने जाने को लेकर एक तय प्रक्रिया बनी हुई है. पैट्रोलिंग और ऑपरेशन को छोड़ कर ऐसा नहीं होता कि गाड़ी स्टार्ट हुई और चल दिये. सुरक्षा बलों का काफिला जब गुजर रहा होता है तो उसे ग्रीन सिग्नल के बगैर आगे नहीं बढ़ना होता. इसके लिए सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बलों की रोड ओपनिंग पार्टी बनी होती है और उसकी हरी झंडी के बाद ही काफिला मंजिल की ओर बढ़ता है.
Bravehearts of CRPF who made the supreme sacrifice and attained martyrdom in the Pulwama attack on 14/02/2019. pic.twitter.com/eHrPnYaSGV
— ????????CRPF???????? (@crpfindia) February 15, 2019
इतना ही नहीं, अमूमन काफिले में करीब 1000 जवान होते हैं, लेकिन जिस काफिले पर आतंकी हमला हुआ उसमें 2500 से ज्यादा जवान शामिल थे.
हैरानी की बात ये है कि बर्फबारी के कारण हफ्ता भर हाइवे बंद रहा और खुलते ही सीआरपीएफ जवानों को रवाना कर दिया गया. आतंकवादियों के पास तैयारी का पूरा वक्त मिला और वे हमला करने में कामयाब रहे.
हमले को लेकर आज तक पर हो रही चर्चा में सीआरपीएफ के पूर्व आईजी आरके सिंह ने जवानों को ले जाये जाने के तरीके पर भी सवाल उठाया. आरके सिंह का सवाल बड़ा सटीक था - अगर आतंकी हमले का अलर्ट था तो जवानों को जम्मू से हेलीकॉप्टर से श्रीनगर क्यों नहीं भेजा गया?
समझने वाली बात है अगर जवानों को हेलीकॉप्टर से भेजा गया होता तो पुलवामा आतंकी हमले को तो टाला ही जा सकता था.
आत्मघाती दस्ते का पता लगा लिया गया होता
ये तो साफ है कि खुफिया रिपोर्ट को गंभीरता से न लिया जाना खतरनाक साबित हुआ, लेकिन बात ये भी है कि खुफिया विभाग से भी बड़ी चूक हुई है. किसी खुफिया रिपोर्ट पर एक्शन न लिये जाने का मतलब ये नहीं होता कि खुद खुफिया विभाग की चूक को नजरअंदाज किया जाये.
हाल की बात है बारामूला को आंतकवाद मुक्त जिला घोषित किया गया था. इसे सुरक्षा बलों के ऑपरेशन ऑल आउट का नतीजा बताया गया. क्या खुफिया विभाग मान कर चल रहा था कि बाकी इलाके भी ऐसे ही आतंकवाद मुक्त हो जाएंगे?
ऐसा पहली बार हुई है कि जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा बलों पर कार बम से आतंकवादी हमला हुआ है.
और ऐसा भी पहली ही बार हुआ है कि जम्मू कश्मीर में स्थानीय स्तर पर आत्मघाती दस्ता तैयार होने लगा है.
आखिर खुफिया विभाग को इसकी भनक क्यों नहीं लगी?
भारी मात्रा में विस्फोटक जमा हो गया. गाड़ी पर लोड हो गया. गाड़ी पर सवार होकर हमलावर निकल भी पड़ा और खुफिया विभाग को हवा तक नहीं लग पायी.
जम्मू-कश्मीर के नौजवान आतंकवाद की ओर आकर्षित हो रहे हैं - और हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद बदला लेने के लिए उसके साथियों ने कई नयी भर्तियां भी कीं. ऑपरेशन ऑल आउट में न सिर्फ बुरहान वानी के साथियों बल्कि बदले के लिए भर्ती हुए स्थानीय आतंकवादियों भी सुरक्षा बलों ने खत्म किया है - लेकिन स्थानीय स्तर पर आत्मघाती दस्ता तैयार हो रहा है. ये तो बड़ी खतरनाक बात है.
ये तो सुना गया था कि जैश के कमांडर अफजल गुरु स्क्वॉड तैयार कर रहे हैं - और श्रीनगर के लाल चौक पर हुए आतंकी हमले के पीछे भी अफजल गुरु स्क्वॉड का ही हाथ माना गया था.
पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने के साथ ही जैश-ए-मोहम्मद ने आदिल अहमद डार की तस्वीर भी जारी की है. मालूम हुआ है कि घटनास्थल के 10 किलोमीटर के दायरे में भी आदिल अहमद डार का घर है.
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी तो अभी अभी ही अफजल गुरु की अस्थियां सौंपे जाने की मांग कर रही थीं. पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कह रहे हैं कि जवानों पर हमला करने वाला कश्मीरी नहीं था.
Kashmiris/Muslims in Jammu didn’t attack our CRPF jawans yesterday, terrorists did. This violence is a convenient tool by some to shift the blame. Let’s unite against terror let’s not allow terror to divide us.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) February 15, 2019
2016 में उरी हमले के 11 दिन बाद ही सर्जिकल स्ट्राइक कर बदला ले लिया गया था. पुलवामा अटैक के लिए भी सुरक्षा बलों को बिलकुल वैसी ही छूट दे दी गयी है. सुरक्षा बलों को सही मौके का और देश को सफल ऑपरेशन का इंतजार है.
ये सब तो ठीक है - लेकिन क्या सीआरपीएफ के जवानों की शहादत को टाला नहीं जा सकता था?
आखिर इतनी बड़ी चूक कैसे हुई कि जैश-ए-मोहम्मद ने सीआरपीएफ के काफिले को टारगेट करने का दुस्साहस किया?
जब हमले की आशंका को लेकर खुफिया जानकारी मिल चुकी थी तो एहतियाती उपाय क्यों नहीं किये गये?
आखिर ये हमला किस स्तर पर लापरवाही के चलते हुआ?
अव्वल तो पठानकोट अटैक के बाद कोई वैसा हमला होना नहीं चाहिये था - अगर सुरक्षा खामियों पर ध्यान दिया गया होता. पठानकोट के बाद उरी अटैक की कोई संभावना नहीं बननी चाहिये थी - और पुलवामा अटैक की तो नौबत ही नहीं आनी चाहिये थी.
फिर भी हमले के बाद हमले होते जा रहे हैं. ये चाक चौबंद सुरक्षा है या सुरक्षा में फटी हुई पैबंद है?
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