राहुल-सोनिया के लिए सबसे खतरनाक है अशोक गहलोत का सविनय 'अवज्ञा' आंदोलन
पंजाब में कांग्रेस की मुश्किलें तो राजस्थान के मुकाबले कहीं नहीं टिकतीं - जिस तरीके से अशोक गहलोत अब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की हिदायतों को नजरअंदाज करने लगे हैं - वे खतरनाक इशारे करती हैं.
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कांग्रेस नेतृत्व के सामने फिलहाल सिर्फ तीन चुनौतियां ही हैं - बगावत, बगावत और बगावत. कांग्रेस के भीतर भी और बाहर भी. बाहर विपक्षी खेमा कांग्रेस से दूरी बनाने लगा है. बाद में जो भी हो, फिलहाल तो ऐसा ही लगता है.
ऐसा भी नहीं कि ये सब अचानक हुआ है - और ऐसा भी नहीं कि अपनेआप हुआ है. असलियत तो ये है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने ये सब बड़े ही जतन से पाल-पोस कर खड़ा किया है - और काफी दिनों से प्रियंका गांधी वाड्रा भी भरपूर खाद पानी देती आ रही हैं - नतीजा ये हुआ है कि बगावत की फसल लहलहाने लगी है.
बीजेपी तो पहले से ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 'पप्पू' के तौर पर पेश करती आ रही है, लेकिन कांग्रेस के भीतर भी बात सिर्फ G23 तक ही सीमित नहीं रही - और सिर्फ कैप्टन अमरिंदर सिंह की कौन कहे, अशोक गहलोत तो बद अच्छा बदनाम बुरा वाले लहजे में आलाकमान को ही आंखे दिखाने लगे हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह तो सिद्धू को डिप्टी सीएम बनाने के अलावा किसी भी तरीके से एडजस्ट करने को तैयार हैं और समझौते का फॉर्मूला भी पेश कर रहे हैं, लेकिन राजस्थान में तो आलम ये हो चला है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) तक की हिदायतों को अनसुना करने लगे हैं - ऐसा लगता है जैसे अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन चला रहे हों!
कांग्रेस में G-23 से आगे और भी ठिकाने हैं
G-23 नेताओं की चिट्ठी पर तो लगा था जैसे तूफान आ गया हो, ये अशोक गहलोत और अंबिका सोनी जैसे ही नेता रहे जो सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वालों के लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग करने लगे थे. कार्यकारिणी की बुलायी गयी बैठक में किसी ने भी ये जानने या समझने की जहमत नहीं उठायी थी कि चिट्ठी में आखिर लिखा क्या है - लेकिन एक सुर से गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं के खिलाफ सीधे एक्शन की मांग करते रहे.
हाल तक तो हर मीटिंग में अशोक गहलोत की तरफ से एक ही मांग होती रही कि राहुल गांधी फिर से आगे आयें और कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाल लें. अब तो ऐसा लग रहा है कि वो सब अशोक गहलोत के दिखावे की राजनीति थी. अंदर से तो अशोक गहलोत गुस्से से भरे हुए थे. भला अशोक गहलोत कैसे भूलते जब 2019 के आम चुनाव के बाद इस्तीफे की पेशकश के साथ राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और कमलनाथ का नाम लेकर बोल दिया था कि कैसे ये नेता अपने बेटों को टिकट देने के लिए जिद पर अड़ गये थे.
अशोक गहलोत कांग्रेस में जारी बागी माहौल का फायदा उठा रहे हैं या आगे का कोई और भी इरादा है?
राहुल गांधी की बातों को एनडोर्स करते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो यहां तक बोल दिया था कि कांग्रेस के हत्यारे कमरे में ही मौजूद हैं. राहुल गांधी अनौपचारिक तौर पर काम तो सभी करते रहे हैं लेकिन दोबारा कांग्रेस की कमान संभालने को अब तक तैयार नहीं हैं.
अभी खबर आयी थी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और सचिन पायलट को गांधी परिवार ने मुलाकात किये बगैर ही लौटा दिया, जबकि कैप्टन और पायलट राजनीति के अलग अलग छोर पर खड़े नजर आ रहे हैं. एक तो खुद भी बगावत झेल रहा और दूसरा बागी बना हुआ है.
ऊपर से तो ऐसा लगता है जैसे जो टास्क राहुल गांधी की तरफ से कैप्टन अमरिंदर सिंह को असाइन किये गये हैं, ठीक वैसे ही कामों के बारे में अशोक गहलोत से पूछा तक नहीं जा रहा है - लेकिन अंदर से मालूम होता है कि अशोक गहलोत तो कैप्टन से भी आगे निकल चुके हैं. ये बात अलग है कि वो सारे काम खामोशी से करते जा रहे हैं. चूंकि पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं, इसलिए कैप्टन अमरिंदर सिंह को ज्यादा टेंशन है और अशोक गहलोत चुनाव दूर होने के अवसर का पूरा फायदा उठा रहे हैं.
कभी कांग्रेस नेता 'इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा' जैसे जुमले गढ़ा करते रहे, लेकिन अब तो क्या नेता और क्या कार्यकर्ता या कैडर, एक अदना सा सपोर्टर भी कांग्रेस नेतृत्व के अस्थित्व को ही खारिज करने लगा है.
जो हाल पंजाब में है, वैसा ही माहौल राजस्थान में भी नजर आने लगा है. जिस लहजे में कैप्टन अमरिंदर सिंह के ओएसडी फेसबुक पोस्ट लिखते हैं, बिलकुल वैसे ही अशोक गहलोत के समर्थक विधायक प्रेस कांफ्रेंस करके अशोक गहलोत के पक्ष में बयान देते हैं. निर्दलीय विधायक महादेव सिंह खंडेला प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर कर कहते हैं - राजस्थान में अशोक गहलोत ही कांग्रेस हैं.
पंजाब में मुख्यमंत्री के ओएसडी अंकित बंसल के एक फेसबुक पोस्ट ने अलग ही बवाल मचा रखी है जिसमें वो पंजाब में कांग्रेस का मतलब सिर्फ कैप्टन अमरिंदर सिंह बता रहे हैं. अंकित बंसल की पोस्ट पर कड़ा ऐतराज जताते हुए इंडियन यूथ कांग्रेस के प्रवक्ता गौतम सेठ ने कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के पास इस मामले में अपनी शिकायत भी दर्ज करा डाली है.
अंकित बंसल लिखते हैं - 'ये वही आलाकमान है जिसने कैप्टन अमरिंदर सिंह को कम करके आंक रहा था और उसी के चलते पार्टी पंजाब में 10 साल तक सत्ता से दूर रही. पंजाब में कांग्रेस को किसने खड़ा किया... पंजाब में कांग्रेस मतलब कैप्टन अमरिंदर सिंह ही है. जो लोग सपने देख रहे हैं वे फिस से धूल फांकते रहेंगे. हम कैप्टन के साथ हैं.'
कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ ये सब सरेआम होना साबित करता है कि अशोक गहलोत और कैप्टन अमरिंदर सिंह का इनको सपोर्ट हासिल है. बल्कि ये तो गहलोत और कैप्टन के मन की बात ही कर रहे हैं. जो बातें ये नेता खुद नहीं कर पाते ऐसे समर्थकों के मुंह से कहलवा देते होंगे, लगता तो ऐसा ही है.
गहलोत से तो गांधी परिवार को ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी
ये गांधी परिवार का अशोक गहलोत की पीठ पर रखा हाथ ही था जो वो खुलेआम सचिन पायलट को निकम्मा और नकारा बताने के साथ साथ पीठ में छुरा भोंकने वाला बताते रहे.
ऐसा क्यों लगता है जैसे पहले जो बातें सचिन पायलट के लिए अशोक गहलोत कहा करते रहे, उसके निशाने पर राहुल गांधी भी रहे होंगे - 'अच्छी अंग्रेजी बोलने से कुछ नहीं होता. हैंडसम दिखने से कुछ नहीं होता.'
सचिन पायलट के आरोप रहे हैं कि अशोक गहलोत का रवैया पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति बेहद नरम रहता है. एक्शन लेना तो दूर, राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद अशोक गहलोत सरकार वसुंधरा राजे के लिए सरकारी बंगला तक अलॉट कर देती है. पंजाब को लेकर नवजो सिंह सिद्धू भी कैप्टन अमरिंदर सिंह पर ऐसे ही आरोप लगाते हैं - बादल परिवार के खिलाफ कार्रवाई की जगह बचाने का.
जब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ होटल में टिके हुए थे तो कांग्रेस नेतृत्व हर कदम पर अशोक गहलोत के साथ खड़ा नजर आया था. बाद में जब राहुल गांधी से मुलाकात के दौरान समझौता हुआ तो बताया गया कि अशोक गहलोत को वे काम करने होंगे जो कमेटी बताएगी. तब वो कमेटी अहमद पटेल के नेतृत्व में बनी थी, लेकिन उनका निधन हो गया.
लंबे इंतजार के बाद भी अमल न होने पर सचिन पायलट वे बातें याद दिला रहे हैं तो और भी बुरा सलूक होने लगा है. वैसे कांग्रेस नेता अजय माकन ऐसी खबरों को खारिज करते हैं कि सचिन पायलट से कोई बात नहीं कर रहा है. बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने दावा किया था कि गांधी परिवार को 50-60 कॉल करने और कई दिनों तक इंतजार के बाद सचिन पायलट को दिल्ली से बैरंग ही लौट जाने को मजबूर होना पड़ा.
अब तो सुनने में ये भी आ रहा है कि अशोक गहलोत ने अजय माकन को भी रिस्पॉन्स देना बंद कर दिया है. बताते हैं कि अजय माकन ही राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के मैसेंजर बने हुए हैं, लेकिन हालत ये हो चली है, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अशोक गहलोत ने अजय माकन के फोन उठाने भी बंद कर दिये हैं.
अशोक गहलोत की तरफ से बता दिया गया है कि बीमारी की वजह से वो दो महीने तक मिलना जुलना बंद रखेंगे और सरकारी कामकाज भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये कर रहे हैं. कांग्रेस नेतृत्व ने अजय माकन को बोल दिया है कि सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल और दूसरी जगहों पर वो अशोक गहलोत से बोल कर एडजस्ट करायें, लेकिन अशोक गहलोत सुनने को तैयार हों तब तो. देखा जाये तो अजय माकन तो मैसेंजर भर हैं - असल में तो अशोक गहलोत आलाकमान की बातों को ही तवज्जो नहीं दे रहे हैं.
अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में एक विधायक ने जयपुर से फोन पर बताया है - 'राजस्थान में बातें तो यहां तक होने लगी हैं कि अशोक गहलोत तो सोनिया गांधी से भी ज्यादा वसुंधरा राजे की सुनते हैं.'
बातचीत में वही विधायक अशोक गहलोत को कुछ उदाहरण के साथ कठघरे में खड़ा कर देता है. अखबार से विधायक का कहना है, राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले और हमेशा ही भला बुरा कहने वाले कुमार विश्वास की पत्नी को राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बना दिया जाता है, लेकिन कांग्रेस विधायकों को मंत्री नहीं बनाया जा सकता - आखिर गहलोत क्या संदेश देना चाहते हैं?'
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