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Updated: 18 जनवरी, 2021 12:12 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) छुट्टियों के बाद काफी तरोताजा होकर लौटे हैं. जल्लीकट्टू के मौके पर चेन्नई दौरे में छुट्टी के बाद लौटने का उत्साह और आत्मविश्वास तो नजर आया ही, विदेश मामलों की संसद की सलाहकार समिति की बैठक में भी कांग्रेस नेता ने काफी तीखे सवाल पूछे - हो सकता है ये सब भी विदेश दौरे का ही असर हो.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर (S. Jaishankar) के साथ कांग्रेस सांसदों की मीटिंग कई मामलों में अनोखी रही - और कुछ मामले में दुर्लभतम भी कही जा सकती है. सलाहकार समिति की बैठक में राहुल गांधी के साथ यूपीए सरकार में विदेश राज्य मंत्री रहे शशि थरूर (Shashi Tharoor) और कांग्रेस नेता आनंद शर्मा भी मौजूद थे.

ये बात अलग है कि तीन घंटे से भी लंबी खिंची सलाहकार समिति की बैठक में नतीजे के नाम पर कुछ सामने नहीं आ सका जिसे अलग से याद रखा जा सके. पूरी मीटिंग राहुल गांधी के सवाल और विदेश मंत्री की सफाई में ही बीत गयी, सिर्फ ये ही कहा जा सकता है.

राहुल गांधी के पास भी तर्क होते हैं!

दिसंबर, 2020 में हुई रक्षा मामलों की संसद की सलाहकार समिति की बैठक से वॉकआउट करते हुए राहुल गांधी ने कहा था - 'बेकार में टाइम वेस्ट किया,' लेकिन विदेश मामलों की कमेटी की बैठक में राहुल गांधी करीब साढ़े तीन घंटे जमे रहे और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ तीखी बहस भी की. आखिर में सब खुशी खुशी विदा लिये - सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के बीच ये दुनिया की दुर्लभ बैठकों में से एक लगती है. कांग्रेस नेताओं ने विदेश मंत्री को कोरानावायरस के चलते लॉकडाउन के दौरान दुनिया के अलग अलग देशों में फंसे भारतीय को सफलतापूर्वक लाकर घर पहुंचाने के लिए धन्यवाद भी कहा.

मीटिंग को लेकर जो सबसे महत्वपूर्ण बात समझ आती है, हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, वो है बहस को लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर की टिप्पणी. ऐसा लगता है पहली बार मोदी सरकार के किसी मंत्री ने राहुल गांधी को गंभीरता से लिया हो - वरना, मुद्दा कोई भी हो सारे मंत्री और बीजेपी नेता मिल कर 'पप्पू' साबित करने में ही जुटे रहते हैं. तभी तो राहुल गांधी ने भरी संसद में ही पिछली मोदी सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बोल भी दिया था, आप मुझे पप्पू समझते हो... समझो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, 'गांधी से बहस का सिलसिला अंतहीन हो सकता है - क्योंकि दोनों के पास अपने-अपने तर्क हैं.'

rahul gandhi, s. jaisahnkarविदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ मीटिंग में राहुल गांधी ने खूब सवाल पूछे!

राहुल गांधी के लिए भी ये मुलाकाती अनुभव भी अपनेआप में अनोखा रहा होगा क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम के किसी व्यक्ति से ये सुनना कि राहुल गांधी के पास भी तर्क होते हैं रेयर ऑफ दर रेयरेस्ट कैटेगरी वाला ही माना जाएगा - फिर भी लब्बोलुआब यही रहा कि तमाम बहस मुबाहिसे के बाद भी आखिर में हासिल जीरो ही रहा.

बमुश्किल छह महीने हुए होंगे. जुलाई, 2020 की बात है. तब राहुल गांधी देश से जुड़े मुद्दों को लेकर वीडियो बनाकर अपनी राय रखा करते थे. राहुल गांधी के कुछ वीडियो ऐसे भी ट्विटर पर शेयर किये गये जिसमें वो किसी न किसी जाने माने एक्सपर्ट से किसी मसले पर बातचीत करते थे.

ऐसे ही एक वीडियो में राहुल गांधी ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल खड़े किये थे - और फौरन ही विदेश मंत्री एक एक करके 10 ट्वीट किये और राहुल गांधी को जवाब दिये थे - एक ट्वीट में यहां तक लिखा था कि जानकारों से पूछिये. मतलब तो यही हुआ कि अगर आपको अंतर्राष्ट्रीय मसलों की समझ न हो तो किसी विशेषज्ञ की मदद से समझने की कोशिश कीजिये.

ऐसा भी नहीं कि मीटिंग में सब अच्छी अच्छी बातें ही हुईं, ऐसे भी मुद्दे उठे और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की ओर से कहे गये जिनको लेकर राहुल गांधी का रवैया काफी हद तक वैसा ही रहा जैसा रक्षा मामलों की समिति की बैठक में हुआ था. रक्षा समिति की बैठक में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत भी मौजूद थे, लेकिन राहुल गांधी अपने साथियों के साथ बीच में ही उठ कर चल दिये थे.

राहुल गांधी और विदेश मंत्री में तीखी नोक-झोंक

मीटिंग से निकल कर जो खबर आयी है, उससे लगता है कि विदेश मामलों की सलाहकार समिति की बैठक में राहुल गांधी पूरी तैयारी के साथ गये थे. राहुल गांधी के साथ कांग्रेस नेता शशि थरूर और आनंद शर्मा भी रहे. मुमकिन है राहुल गांधी को बैठक से पहले शशि थरूर ने भी ब्रीफ किया होगा. शशि थरूर यूपीए की अगुवाई वाली मनमोहन सिंह सरकार में विदेश राज्य मंत्री रह चुके हैं.

मीटिंग के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने करीब एक घंटे का प्रजेंटेशन दिया था - और उसके बाद, बताते हैं, वो खुद और विदेश सचिव हर्ष शृंगला दो घंटे से भी ज्यादा जवाब ही देते रहे.

दरअसल, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विदेश मंत्री के प्रजेंटेशन को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि ये तो 'लॉन्ड्री लिस्ट' है. शशि थरूर ने भी राहुल गांधी की बात को एनडोर्स किया और फिर दोनों पक्षों के बीच तीखी नोक-झोंक भी हुई.

राहुल गांधी का कहना रहा कि सरकार चीन से जुड़े खतरों को लेकर कोई ठोस रणनीति बताये. जब राहुल गांधी को लगा कि सत्ता पक्ष उनकी बात नहीं समझ पा रहा है तो वो बोले, 'आपके दिमाग में कोई स्पष्ट स्ट्रैटेजी है तो जिसे आप तीन वाक्यों में बता सकें?'

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने समझाया कि मल्टी-पोलर दुनिया में कोई सीधा और सरल दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता. विदेश मंत्री का कहना रहा कि भारत की कोशिश है कि और मल्टी-पोलर दुनिया बन सके, लेकिन वो स्थिति हासिल करने के लिए सबसे पहले मल्टी-पोलर एशिया बनाने की कोशिश करनी होगी.

राहुल गांधी के सवालों और अड़ियल रुख को देखते हुए एस. जयशंकर ने 2014 से पहले की नीतियों और व्यवस्था की तरफ ध्यान खींचने की कोशिश की. विदेश मंत्री का कहना रहा कि बीते वक्त में चीन से लगी सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर कोई काम नहीं हुआ - और मौजूदा समस्या उसी का रिजल्ट है. विदेश मंत्री के आरोपों को काउंटर करते हुए कांग्रेस सांसदों ने मनमोहन सरकार की विदेश नीति का बचाव भी किया. बातचीत और बहस के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बतााय कि बीते छह साल में पड़ोसियों के साथ भारत का संपर्क और संबंध मजबूत हुआ है.

राहुल गांधी की एक मांग ऐसी भी रही जिस पर एस. जयशंकर के जबाव ने कांग्रेस नेता को खामोश कर दिया. राहुल गांधी चाहते थे कि मीटिंग के मीनट्स एडवांस में सर्कुलेट किये जायें, लेकिन विदेश मंत्री ने बताया कि ये परंपरा भी यूपीए की सरकार में भी शुरू की गयी. एस. जयशंकर ने बताया कि जब प्रणब मुखर्जी विदेश मंत्री थे तो सुरक्षा वजहों से मीटिंग मिनट्स का सर्कुलेशन बंद करा दिया था. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का हवाला दिये जाने के बाद राहुल गांधी कहते भी तो क्या कह पाते.

सलाहकार समिति की बैठक को लेकर शशि थरूर ने एक ट्वीट किया है, जिसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि कांग्रेस नेता ने राहुल गांधी को न तो टैग किया है न ही उनका जिक्र, बल्कि मीटिंग को विदेश मंत्री एस. जयशंकर और कांग्रेस सांसदों के बीच माना है - क्या शशि थरूर अब राहुल गांधी को भी अपनी ही तरह महज एक कांग्रेस सांसद मानते हैं?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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