राहुल गांधी: लोकसभा चुनाव में हार से नाराजगी विधानसभा चुनाव भी न ले डूबे!
तीन राज्यों में चुनाव हैं और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी चुनावों में प्रचार प्रसार के बजाए वायनाड में हैं. कह सकते हैं कि इस बर्ताव के द्वारा राहुल गांधी अपनी पार्टी के लोगों से उस शर्मिंदगी का बदला ले रहे हैं जो उन्हें 2019 के चुनाव में पार्टी की हार के बाद मिली थी.
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महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा तीन राज्यों में चुनाव हैं. सभी प्रमुख पार्टियों की तरफ से टिकटों का बंटवारा हो चुका है. नामांकन प्रक्रिया अपने अंतिम दौर में है. 21 अक्टूबर को पोलिंग हैं फिर 24 तक परिणाम घोषित हो जाएंगे. यानी इन तीन राज्यों के मद्देनजर लगभग सभी दलों की तैयारी पूरी है. बात भाजपा की हो तो इन तीनों ही राज्यों में जीत को लेकर न सिर्फ भाजपा बेहद उत्साहित है. बल्कि चुनाव कैसे जीतना है इस रणनीति पर उसने जी जान लगा दी है. पहले 2014 फिर 2019. इन पांच सालों के बीच में अलग अलग राज्यों में भाजपा की परफॉरमेंस ने खुद भाजपा की गंभीरता का एहसास पूरे देश को करा दिया है.
अब बात कांग्रेस की. एक ऐसे वक़्त में जब महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा के चुनाव कांग्रेस की प्रतिष्ठा से जुड़े हों, पार्टी का इन्हें नजरंदाज करना, खुद इस बात की तस्दीख कर देता है कि पार्टी अपनी राजनितिक आत्महत्या कर चुकी है.इसके लिए जिम्मेदार न तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माना जाएगा और न ही इसका ठीकरा अमित शाह पर फोड़ा जाएगा. बल्कि प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इसके जिम्मेदार पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हैं. जिन्हें जब चुनाव प्रचार कर पार्टी को मजबूत करना चाहिए, गायब हैं. चाहे महाराष्ट्र हो या फिर झारखंड और हरियाणा, कांग्रेस इस चुनाव को एक इवेंट मान रही है. जिसमें उसकी सोच बस इतनी है कि यदि जीत गए तो बहुत अच्छी बात है, वरना हार के लिए तो यूं भी आलाकमान है ही.
तीन राज्यों में चुनाव प्रचार की जगह राहुल गांधी का वायनाड जाना उनकी गंभीरता दर्शाता नजर आ रहा है
सवाल होगा कि राहुल कहां हैं? तो जवाब है केरल. राहुल को केरल केवायनाड में देखा गया है जहां वो उन युवाओं के समर्थन में बैठे हैं जो National Highway 766 पर Night Ban के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं और बीते कई दिनों से भूख हड़ताल पर हैं.
I am in Wayanad, Kerala to stand in solidarity with the youth who have been on hunger strike, protesting against the travel ban on National Highway 766. Earlier I visited those who have had to be hospitalised, as a result of the prolonged fast. pic.twitter.com/eVqbHWMZJG
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 4, 2019
पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का इस तरह गायब होना, न सिर्फ पार्टी की कमजोरी दर्शा रहा है. बल्कि ये तक बता रहा है कि कहीं न कहीं राहुल गांधी पार्टी के नेताओं से लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त का बदला ले रहे हैं. चुनावों के दौरान फ्रंट फुट पर खेलने के बजाए उनका वायनाड जाना साफ़ तौर पर पार्टी के लोगों के प्रति उनका गुस्सा दर्शाता नजर आ रहा है.
I met with members of the press in Wayanad, earlier today. I’m attaching a short video with highlights of that interaction. pic.twitter.com/MA9aDNB93V
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 4, 2019
आइये उन कारणों पर नजर डाल लें जो ये बताते हैं कि चुनावों के इस दौर में, कांग्रेस द्वारा इन महत्वपूर्व चुनावों को नकारना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से ज्यादा कुछ नहीं है.
भाजपा की तैयारी पूरी कांग्रेस का तो भगवान ही जाने
हम पहले ही इस बात से अवगत करा चुके हैं कि इन तीनों ही राज्यों में जैसी तैयारी भाजपा ने की ही है. वो चुनावों के प्रति उसकी गंभीरता दर्शा रही है. प्रत्याशियों के चुनाव से लेकर टिकटों के बंटवारे तक और रैलियों में उठाए गए मुद्दों से लेकर उनकी रिसर्च तक भाजपा ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. जबकि आंतरिक कलह से जूझने के कारण कांग्रेस की हालत पस्त है. कांग्रेस में चुनाव से ज्यादा ध्यान इस बात पर दिया जा रहा है कि कौन अपनी कार्यप्रणाली से पार्टी आलाकमान या ये कहें कि सोनिया गांधी की नजरों में जगह बना पाएगा. कांग्रेस में चाटुकारिता का ऐसा दौर चल रहा है कि इन तीन राज्यों के मद्देनजर पार्टी भगवान भरोसे हो गई है.
कांग्रेस का भविष्य प्रवक्ताओं के भरोसे
भाजपा और कांग्रेस में यही फर्क है कि भाजपा का काम चला करता है जबकि कांग्रेस तबी जागती है जब चुनाव बिलकुल मुहाने पर खड़े होते हैं. महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. एक ऐसे समय में, जब खुद राहुल गांधी को आना चाहिए और मजबूत हाथों से मोर्चा लेना चाहिए. पार्टी का सारा दारोमदार प्रवक्ताओं के कंधों पर है. दिलचस्प बात है कि वर्तमान परिपेक्ष में पार्टी के प्रवक्ता भी गुटों में न बंट गए हैं और प्रत्येक गुट चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए अपनी ऊर्जा अपने आका को संतुष्ट करने में लगा रहा है.
कांग्रस समझे कि सोशल मीडिया कैम्पेन से कुछ नहीं होता.
चुनाव जीतने के लिए जमीन पर आना और मुद्दों को पकड़ना बहुत जरूरी है. महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा के मद्देनजर जैसा रवैया राहुल गांधी का है. वो ये साफ़ बता रहा है कि पार्टी के आंतरिक गतिरोध और राहुल गांधी की नाराजगी का खामियाजा तीन राज्यों में कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा. 'सब कुछ ठीक है' कि नीयत से भले ही पार्टी सोशल मीडिया कैम्पेन चला रही हो मगर क्योंकि उसे सही नेतृत्व नहीं मिल रहा. पार्टी का इन चुनावों में पिछड़ा तय माना जा रहा है. यानी ये खुद में स्पष्ट हो जाता है कि आज जैसी हालत कांग्रेस की है उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदार वो खुद है.
राहुल गांधी ने बदला लिया है और क्या खूब लिया है
2019 के लोकसभा चुनाव बीते अभी ज्यादा वक़्त नहीं हुआ है. कांग्रेस में यदि किसी ने सबसे ज्यादा मेहनत की थी तो वो और कोई नहीं बल्कि राहुल गांधी थे. लोकसभा चुनावों के चलते राहुल ने खूब मेहनत की थी और राफेल, महंगाई, नोटबंदी, बेरोजगारी जैसी कई जरूरी चीजों को मुद्दा बनाया था. चुनाव हुए, परिणाम आए.
कांग्रेस को देश की जनता ने पूरी तरह खारिज कर दिया था. बाद में इस हार का अवलोकन कांग्रेस स्पर्टी द्वारा किया गया सामने ये आया कि देश में कांग्रेस को इस तरह खारिज किये जाने की जड़ कार्यकर्ता और पार्टी के नेता हैं. तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप लगे. कई बातें हुईं.
आज जब तीन राज्यों के चुनाव हमारे सामने हैं और राहुल गांधी इस तरह इनसे दूरी बनाए हुए हैं कहा यही जा सकता है तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में राहुल, लोकसभा चुनावों का बदला लें रहे हैं. शायद राहुल पार्टी के लोगों को ये बताना चाह रहे हों कि जब उन्होंने लोकसभा में उनका साथ नहीं दिया तो वो आखिर क्यों विधानसभा में उनका साथ दें.
इन तीन राज्यों में मेहमत कांग्रेस को नए आयाम दे सकती थी
ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस ने तीन राज्यों के चुनावों में कोई ध्यान नहीं दिया है. यदि राहुल गांधी चाहते तो सिर्फ इन तीन राज्यों के दम पर पार्टी को वो स्टार स्टेटस दे सकते थे जो 2014 के आम चुनावों के बाद कहीं खो सा गया है. सवाल होगा कैसे ? तो बता दें कि जैसी हालत देश की है राहुल गांधी के पास गिरती हुई अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्या, नक्सलवाद जैसे कई अहम मुद्दे थे जिनमें अभी केंद्र की सरकार नाकाम दिखाई पड़ रही है.
यदि राहुल सक्रिय रूप से आते और इन मुद्दों को भुनाते तो निश्चित तौर पर पार्टी को बड़ा फायदा मिलता और पार्टी उस मुकाम पर आ जाती जहां कभी वो थी.
राहुल गांधी का वायनाड जाना ये साबित कर देता है कि राहुल राजनितिक रूप से एक अपरिपक्व नेता हैं. यदि आज पार्टी का ये हाल हुआ है तो इसकी एक बड़ी वजह राहुल का वो ईगो भी है जो दिनों दिन पार्टी के अस्तित्व को खोखला कर रहा है.
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