कांग्रेस और केजरीवाल की यात्राओं का मकसद एक है, बाकी बातें बिल्कुल जुदा!
भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) के दिन ही अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी अपना मिशन शुरू कर रहे हैं. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के मुकाबले आम आदमी पार्टी की यात्रा के साथ उम्मीद जगायी जा रही है, लेकिन कांग्रेस के कार्यक्रम में इसका अभाव है.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और अरविंद केजरीवाल एक ही मकसद वाले अलग अलग मिशन पर हैं. एक ही दिन दोनों की शुरू हुई यात्राओं का रूट तो अलग है, लेकिन नजर 2024 के आम चुनाव पर ही है - हालांकि, दोनों ही अपने पॉलिटिकल एजेंडे को डाउनप्ले करने की कोशिश कर रहे हैं.
दोनों में एक फर्क ये है कि राहुल गांधी के लिए जहां 2024 के पहले होने वाले विधानसभा चुनाव क्षेत्रों को यात्रा के रूट में शामिल किया गया है - अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पूरे भारत की यात्रा की बात कर रहे हैं.
कांग्रेस की बहुप्रचारित भारत जोड़ो यात्रा को कन्याकुमारी से कश्मीर तक के प्रतीकात्मक स्वरूप पर फोकस रखा गया है, जबकि अरविंद केजरीवाल देश के हर हिस्से में जाने की बात कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल आगे क्या करते हैं देखना होगा, लेकिन कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में व्याहारिक तौर पर पूरे भारत को कवर नहीं किया जा रहा है.
कांग्रेस की तरफ से तो यात्रा के पड़ावों की लिस्ट के साथ ही पूरा रूट मैप ही बता दिया गया है, आम आदमी पार्टी की तरफ से अभी इतना ही बताया गया है, 'एक-एक करके सभी राज्यों में जाएंगे और लोगों को जोड़ेंगे... जो जो लोग इस कैंपेन से जुड़ना चाहते हैं वे मिस कॉल करके जुड़ सकते हैं.'
भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) को लेकर राहुल गांधी ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था, भारतीय संस्कृति में... हमारे संस्कारों में... दो चीजें महत्वपूर्ण होती है - पूजा और तपस्या. और तभी ये भी बताया था, 'मैं तपस्या के लिए निकल रहा हूं... मैं इस यात्रा को निजी तपस्या मानता हूं.'
अच्छी बात है. राहुल गांधी ने अच्छी भावना व्यक्त की है, लेकिन मौजूदा समीकरणों में ये पॉलिटिकली करेक्ट बयान भी है क्या? ये सुन कर तो ऐसा ही लगता है जैसे राहुल गांधी अक्सर चुनावों से पहले पूजा पाठ और प्रार्थना के लिए निकल पड़ते हैं. जब राहुल गांधी ऐसे मिशन पर निकलते हैं तो कांग्रेस नेताओं की तरह से उनको जनेऊधारी हिंदू, शिव भक्त और न जाने क्या क्या बताकर अलग से लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश भी शुरू हो जाती है. अपनी तपस्या का दायरा एक्सटेंड करते हुए वो कैलाश मानसरोवर तक भी घूम ही आते हैं.
कहने का मतबल ये है कि पहली बार ऐसी बातों का असर तो होता है, लेकिन बार बार ऐसी आध्यात्मिक बातें काल्पनिक लगने लगती हैं और हर वोटर को प्रभावित नहीं कर पातीं. जब तक लोगों को वैसा कुछ नहीं मिलेगा, जिसकी उनको जरूरत है - ऐसी बातें, सिर्फ बातें बन कर रह जाएंगी. अब तो राहुल गांधी को ये अच्छी तरह समझ में आ जाना चाहिये.
'मेक इंडिया नंबर-1' अभियान अपने जन्म स्थान हिसार से शुरू करने वाले अरविंद केजरीवाल का कहना है कि वो लोगों को जोड़ने के लिए बाकी राज्यों का भी दौरा करेंगे - ध्यान रहे, दोनों ही नेता लोगों को जोड़ने की बात कर रहे हैं, लेकिन लोगों के लिए दोनों के पास अलग अलग पैकेज है.
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि भारत तब तक दुनिया का नंबर 1 देश नहीं बन सकता जब तक कि हर बच्चे को अच्छी और मुफ्त शिक्षा नहीं मिलती. और इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल देश के हर बच्चे को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने का वादा भी कर रहे हैं. प्रधानमंत्री के रेवड़ी कल्चर वाले भाषण और मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई की छापेमारी के बाद ये मुहिम थोड़ी तेज हो चुकी है.
कांग्रेस और केजरीवाल दोनों की ही यात्राओं का राजनीतिक मकसद पूरी तरह साफ है, लेकिन दोनों में एक अंतर नकारात्मक और सकारात्मक दृष्टिकोण का भी लगता है - और यही वो बात है जिससे लोगों पर अलग अलग असर देखने को मिल सकता है. राहुल गांधी को इसकी भनक हो न हो, अरविंद केजरीवाल तो पूरी तरह वाकिफ लगते हैं.
तारीख एक, यात्राएं दो!
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और अरविंद केजरीवाल की भारत को नंबर 1 बनाने की यात्रा को गैर-राजनीतिक यात्रा के तौर पर पेश किये जाने की कोशिश हो रही है. भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह कह भी चुके हैं कि यात्रा का मकसद निश्चित तौर पर राजनीतिक है, लेकिन लगे हाथ ये भी समझाने की कोशिश करते हैं कि यात्रा का दायरा राजनीतिक दल विशेष यानी कांग्रेस तक सीमित नहीं है.
राहुल गांधी पर क्रोध हावी लगता है, जबकि अरविद केजरीवाल के मोदी विरोध में राजनीतिक चतुराई नजर आती है.
कांग्रेस की तरफ से ये सब इसलिए समझाया जा रहा है क्योंकि शुरुआत तो डीएमके के साथ हो ही रही है, रास्ते भर अलग अलग राजनीतिक दलों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है. तमिलनाडु में तो मुख्यमंत्री एमके स्टालिन यात्रा को लेकर ऐसे तत्पर नजर आते हैं जैस कांग्रेस नहीं, बल्कि डीएमके ही यात्रा पर निकल रही हो. जरूरी नहीं कि दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं का राहुल गांधी के प्रति ऐसा ही व्यवहार नजर आये.
एमके स्टालिन तो राहुल गांधी के पीछे वैसे ही खड़े नजर आते हैं जैसे सोनिया गांधी के साथ लालू प्रसाद यादव अब तक खड़े नजर आये हैं. ये लालू यादव ही हैं जो विदेशी मूल के मुद्दे पर सबसे पहले और सबसे आगे खुल कर खड़े नजर आते रहे - और ये एमके स्टालिन ही हैं जो खुल्लम खुल्ला राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का सपोर्ट करते हैं.
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के मुताबिक, यात्रा के राजनीतिक होने के बावजूद मकसद राजनीतिक लाभ लेना नहीं है, बल्कि देश को जोड़ना है. राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही चाहते हैं कि यात्रा में सभी पक्ष शामिल हों - और राजनीतिक मकसद होते हुए भी यात्रा को राजनीतिक रंग न दिया जाये. किसी तरह का कोई ठप्पा न लगे, बचने की पूरी कोशिश हो रही है, लेकिन ये कैसे संभव है भरा? राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल एक दूसरे को फूटी आंख भी देख कहां पाते हैं.
केजरीवाल की यात्रा हड़बड़ी में शुरू हुई लगती है: कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के ज्यादातर विवरण सार्वजनिक तौर पर बताये जा चुके हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल की यात्रा को लेकर लगता है जैसे सब हड़बड़ी में प्लान किया गया है.
हो सकता है अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम की कोशिश लोगों को ये मैसेज देने की हो कि कांग्रेस ही नहीं विरोध के मामले में वो और उनके साथी भी किसी से कम नहीं हैं. कांग्रेस ने जहां यात्रा के हर पड़ाव के साथ समय और दूरी सबकुछ बता दिया है, अरविंद केजरीवाल सिर्फ इतना बता रहे हैं कि वो लोग भी देश के कोने कोने के लोगों को अपनी यात्रा में जोड़ेंगे.
कांग्रेस के मुताबिक, भारत जोड़ो यात्रा कन्याकुमारी से शुरू होने के बाद 150 दिनों में 3, 570 किलोमीटर का सफर श्रीनगर पहुंच कर पूरा करेगी. यात्रा के पड़ाव भी पहले से तय किये जा चुके हैं - तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, नीलांबुर, मैसुरु, बेल्लारी, रायचूर, विकाराबाद, नांदेड़, जलगांव, जामोद, इंदौर, कोटा, दौसा, अलवर, बुलंदशहर, दिल्ली, अंबाला, पठानकोट और जम्मू. ये यात्रा देश के 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से गुजर रही है.
आधा भारत, पूरा भारत: अरविंद केजरीवाल के साथियों का दावा है कि उनके नेता देश के 130 करोड़ लोगों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे, जबकि कांग्रेस की यात्रा ऐसी नहीं लगती. यात्रा लंबी जरूर है और एक छोर से दूसरी छोर तक प्लान भी की गयी है, लेकिन देश के कई राज्य छूट भी जा रहे हैं - ये तो नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस की यात्रा पूरे भारत के लोगों से जुड़ रही है, जैसा दावा अरविंद केजरीवाल की तरफ से किया जा रहा है.
दोनों यात्राओं में सबसे बड़ा फर्क
कहने की जरूरत नहीं, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही नेताओं के निशाने पर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं - लेकिन दोनों ही अलग अलग तरीके से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं.
अगर मोदी के ही कैंपेन स्टाइल में दोनों की तुलना करें तो एक अपने हिसाब और नजरिये से मौजूदा वक्त को बुरे दिन के रूप में पेश कर सिर्फ आलोचना कर रहा है, तो दूसरा अच्छे दिनों के सपने नये सिरे से दिखाने की कोशिश कर रहा है.
राहुल का फोकस सिर्फ मोदी विरोध पर है: जैसा कि जगजाहिर है, राहुल गांधी का बारहों महीने फोकस संघ, बीजेपी और मोदी विरोध पर रहता है, लिहाजा भारत जोड़ो यात्रा के साथ भी वो बदला नहीं है.
यात्रा के दौरान भी राहुल गांधी को जोर मोदी की मुखालफत ही लगती है, मोदी के खिलाफ गुस्से का इजहार ही देखने को मिलने वाला है. कांग्रेस की तरह से यात्रा का जो एजेंडा बताया गया है, उसके मुताबिक, धर्मनिरपेक्ष भावना के लिए देश के लोगों को जोड़ना, करोड़ों भारतीयों की आवाज को बुलंद करना और मौजूदा दौर में देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उनके बारे में लोगों से बात करना है.
देखा जाये राहुल गांधी जैसे हर वक्त मोदी सरकार की बुराइयां बताते रहते हैं, यात्रा के दौरान भी बताने वाले हैं - मुश्किल ये है कि राहुल गांधी पूरी ऊर्जा बुराइयों में ही झोंक देते हैं और लोगों की उम्मीदों पर ध्यान देते नजर नहीं आते. नजर आते भी हैं तो बस बताकर आगे बढ़ जाते हैं.
मालूम नहीं क्यों बार बार असफल होने के बाद भी राहुल गांधी और उनकी टीम का टीना फैक्टर (There Is No Alternative) की तरफ ध्यान नहीं जाता. जब तक राहुल गांधी ऐसी चीजों को नजरअंदाज कर खुद को विकल्प के तौर पर पेश नहीं करेंगे और लोगों के मन में कांग्रेस को लेकर कोई उम्मीद नहीं जगेगी - अच्छे नतीजों की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिये.
केजरीवाल नस पकड़ चुके हैं: जैसे अरविंद केजरीवाल हिंदुत्व की राजनीतिक अहमियत समझ चुके हैं, वैसे ही ये भी जान चुके हैं कि जब तक लोगों को अच्छे दिनों जैसे सपने नहीं दिखाये जाते, वे हाथ नहीं लगने वाले हैं.
जैसे 2014 में नरेंद्र मोदी को आगे कर बीजेपी ने अच्छे दिनों की उम्मीद जगायी, अरविंद केजरीवाल करीब करीब वैसे ही भारत को नंबर वन बनाने और देश को दुनिया में सुपर पावर बनाने के सपने दिखा रहे हैं.
क्या अरविंद केजरीवाल की स्ट्रैटेजी पर गौर किया आपने? अरविंद केजरीवाल भी राहुल गांधी की तरह बीजेपी और मोदी को कठघरे में खड़ा कर तो रहे हैं, लेकिन तरीका बिलकुल अलग है.
जब सीबीआई के छापों के बीच अरविंद केजरीवाल ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट दिखाते हुए दिल्ली के स्कूलों को प्रचारित करना शुरू किया था, केंद्र सरकार की तरफ से भी देश के कई स्कूलों को अपग्रेड करने की बात की जाने लगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया कार्यक्रम के तहत आदर्श स्कूल बनाये जाने की घोषणा की है. प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा था कि देश भर में 14,500 स्कूलों को अपग्रेड किया जाएगा और उनको मॉडल स्कूल बनाया जाएगा, जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति की पूरी झलक मिलेगी.
अरविंद केजरीवाल ने मुद्दा लपक लिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र लिखकर सारे सरकारी स्कूलों को अपग्रेड करने की मांग कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी की पहल की तारीफ तो करते हैं, लेकिन ऐन उसी वक्त उसे नाकाफी साबित कर देते हैं - और ये संदेश देने की कोशिश करते हैं ये सरकार तो सिर्फ कुछ ही स्कूलों का चमका सकती है, जबकि वो सत्ता में आये तो देश भर के सारे स्कूलों का कायाकल्प कर देंगे.
प्रधानमंत्री जी को मेरा पत्र। उन्होंने 14,500 स्कूलों को अपग्रेड करने का एलान किया, बहुत अच्छा। लेकिन देश में 10 लाख सरकारी स्कूल हैं। इस तरह तो सारे स्कूल ठीक करने में सौ साल से ज़्यादा लग जाएँगे। आपसे अनुरोध है कि सभी दस लाख स्कूलों को एक साथ ठीक करने का प्लान बनाया जाए। pic.twitter.com/Cegk9XvIDZ
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 7, 2022
केजरीवाल से राहुल को बच कर रहना होगा ऐसा क्यों लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी से काफी आगे का सोच कर चल रहे हैं? और राहुल गांधी फिर से 2019 वाली ही गलती दोहराते हुए नजर आ रहे हैं.
जैसे 2019 में राहुल गांधी ने लोगों को ये समझाने की कोशिश की कि 'चौकीदार चोर है', लेकिन खुद क्या हैं और क्यों कांग्रेस बीजेपी से अच्छी है वैसे नहीं समझा सके जो लोगों को समझ भी आये.
अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी की तरह हर बात पर मोदी सरकार की बुराई की जगह तारीफ के साथ ही तंज कर रहे हैं कि शिक्षा का जो मॉडल उनके पास है, न तो बीजेपी के पास है न कांग्रेस के पास - तभी तो वो बार बार आजादी के बाद के 75 साल की याद दिला रहे हैं.
कहीं ऐसा न हो, राहुल गांधी अपने प्रयासों से मोदी विरोध की जमीन मजबूत करें - और पूरा फायदा अरविंद केजरीवाल उठा लें. 2014 में भी तो ऐसा ही हुआ था - अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के खिलाफ जमीन तैयार की और फायदा बीजेपी उठा ले गयी.
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