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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 02 सितम्बर, 2021 05:38 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) चाह लें तो पंजाब में अब भी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है, भूल सुधार की पूरी गुंजाइश है. सुबह के भूले के लिए शाम तक की डेडलाइन दी जाती रही है, ये तो बस दोपहर से भी थोड़ा पहले का ही मामला लगता है.

अगर राहुल गांधी के पास छत्तीसगढ़ को लेकर टीएस सिंहदेव से ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने वादा तोड़ने की गुंजाइश बन रही है, तो नवजोत सिंह सिद्धू तो हिट विकेट हो ही चुके हैं - और वो भी चौके की जगह, हरीश रावत की मानें तो, सिक्सर जड़ देने की कोशिश में.

राहुल गांधी ने अपनी समझ से या बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के कहने पर या प्रशांत किशोर की सलाह से नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को पंजाब में कांग्रेस का प्रधान बना कर जो संदेश देने की कोशिश की है, वही अब नये सिरे से मौका मुहैया करा रहा है, फिर से फ्रेश मैसेज देने का.

नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ राहुल गांधी एक्शन लेकर ऐसे हर नेता को कांग्रेस में कड़ा और बड़ा संदेश दे सकते हैं - वैसे भी सिद्धू तभी तक उछल रहे हैं जब तक आलाकमान का सपोर्ट सिस्टम साथ है, हल्का सा पीछे खींचते ही वो धड़ाम से गिरेंगे और तब जाकर उनको अक्ल के सही इस्तेमाल की समझ विकसित होगी.

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) के खिलाफ तो सिद्धू का कैंपेन जारी है, लेकिन ईंट से ईंट खड़काने वाले बयान के लिए डैमेज कंट्रोल में जी जान से जुट गये हैं.

घिरे तो पैंतरेबाजी पर उतर आये

नवजोत सिंह सिद्धू उसी मोड़ के करीब पहुंचे हुए नजर आ रहे हैं जहां के बाद फजीहत शुरू होनी शुरू हो जाती है. 2018 के विधानसभा चुनावों में प्रचार के दौरान सिद्धू ने चौके के चक्कर में छक्का ये कहते हुए जड़ दिया था कि 'मेरे कैप्टन राहुल गांधी हैं', लेकिन बाद में डांट पड़ी हो या पीठ पर रखा हाथ पीछे खींच लिया गया हो तो सिद्धू के साथ साथ उनकी पत्नी नवजोत कौर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को पितातुल्य बताने लगी थीं - 2019 के आम चुनाव में हार के बाद जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया तो सिद्धू की पूछ भी कम हो गयी. अगर फिर से सिद्धू के पीठ पर रखा हाथ आलाकमान वापस खींच ले, तो सारी हेकड़ी तत्काल प्रभाव से निकल जाएगी.

नवजोत सिंह सिद्धू ने ईंट से ईंट खड़काने वाली बात बोल कर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ली है - और अब कैप्टन के समर्थकों के पास सिद्धू के खिलाफ एक्शन की मांग करने का मौका मिल गया है, लिहाजा सिद्धू भी अपनी टीम को मोर्चे पर तैनात कर चुके हैं और नया पैंतरा शुरू हो गया है.

rahul gandhi, navjot singh sidhu, capt amrinder singhराहुल गांधी के पास कांग्रेस ही नहीं पंजाब के लोगों के लिए भी इंसाफ का बड़ा मौका है

सिद्धू की टीम से निकल कर हॉकी खिलाड़ी रहे कांग्रेस विधायक परगट सिंह सामने आये हैं - और बचाव के रास्ते की तलाश में कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत को निशाना बना रहे हैं.

टीम सिद्धू की तरफ से परगट सिंह ने हरीश रावत के एक बयान को लेकर लपेटने की कोशिश शुरू कर दी है. दरअसल, हरीश रावत ने कहा था कि 2022 में कांग्रेस पार्टी पंजाब में अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी.

परगट सिंह अब हरीश रावत से सवाल कर रहे हैं कि वो बतायें कि 2022 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस का चेहरा बनाने की बात कब तय हुई?

परगट सिंह पूछते हैं, 'हरीश रावत बतायें कि फैसला कब हुआ? जब पैनल ने कहा कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी लड़ेगी तो फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व की क्या जरूरत है?'

पंजाब समस्या के समाधान के लिए बने मल्लिकार्जुन पैनल की याद दिलाते हुए परगट सिंह हरीश रावत को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि, ये भी बताना नहीं भूलते कि हरीश रावत उनके अच्छे दोस्त भी हैं. फिर भी पूछ रहे हैं, 'पंजाब के बारे में अपने स्तर पर इतना बड़ा फैसला लेने का अधिकार उनको किसने दिया?'

असल बात तो ये है कि हरीश रावत की भूमिका महज एक मैसेंजर भर है - और वो भी ऐसे संदेश पहुंचाने वाले जैसा फील कर रहे हैं जिसके घर में प्रयोजन हो और उसे दूसरों के लिए काम से फुरसत ही नहीं मिल रही हो.

हरीश रावत उत्तराखंड से आते हैं और वहां के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. एक बार फिर उनकी कोशिश मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जे की होगी ही, बशर्ते कांग्रेस इस स्थिति में पहुंचे कि बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर सके.

परगट सिंह का दावा है कि हरीश रावत के बयान से पंजाब में मतदाताओं पर असर पड़ा है. परगट सिंह कह रहे हैं, 'हरीश रावत को ऐसे ऐलान करने के लिए किसने अथॉरिटी दी - ये उनको बताना चाहिये.'

परगट सिंह ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं - ये तब समझ में आता है जब सिद्धू के बयान पर सवाल उठता है.

परगट सिंह अपना ऑब्जर्वेशन भी बता देते हैं - 'मुझे लगता है कि सिद्धू का बयान हरीश रावत के खिलाफ था - पार्टी हाई कमान के खिलाफ नहीं.'

लेकिन जिन लोगों ने सिद्धू का बयान सुन रखा है, वो भला परगट सिंह के दावे से गुमराह हो सकते हैं क्या?

रही बात सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नाम पर पंजाब में चुनाव लड़ने की - ये तो ख्याली पुलाव पकाने लायक भी नहीं लगता. पंजाब में कांग्रेस ने लोक सभा की जो आठ सीटें जीती थी, वे कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे की बदौलत ही, वरना यूपी में पूरा गांधी परिवार मिल कर अपने बरसों पुराने गढ़ में भी कम से कम दो की जगह सिर्फ एक सीट ही बचा पाया - पूरे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस उम्मीदवारों की कौन कहे, सोनिया गांधी तो अपनी सीट बचा भी लीं, राहुल गांधी तो वो भी स्मृति ईरानी के हाथों गवां बैठे.

हो सकता है बीजेपी की देखा देखी कांग्रेस नेताओं को भी कॉपी करने का उपाय सूझा हो. लेकिन अभी तक तो कोई सर्वे भी नहीं आया जिसमें राहुल गांधी या सोनिया गांधी में से कोई भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों की पंसद के मामले में टक्कर देता नजर आया हो - और जब मोदी-शाह मिल कर, सारे तिकड़म आजमाने के बाद भी पश्चिम बंगाल चुनाव में हार का मुंह देखने को मजबूर होते हैं तो कांग्रेस नेतृत्व की क्या बिसात समझें भला.

2014 के आम चुनाव को खास वजहों से छोड़ भी दें तो 2019 में राहुल गांधी और सोनिया गांधी का करिश्मा देखा ही जा चुका है - 2020 में दिल्ली विधानसभा और बिहार के बाद पश्चिम बंगाल छोड़ कर बाकी राज्यों में राहुल गांधी भी अपना चमत्कार दिखा ही चुके हैं - सब जगह ढाक के तीन पात. सिफर ही समझें.

सिद्धू नहीं, नजरें तो राहुल गांधी पर टिकी हैं

अगर राहुल गांधी अब भी अपनी बात पर कायम हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब का कैप्टन बनाकर कोई गलती नहीं की है, तब तो बात ही खत्म हो जाती है - लेकिन अगर वास्तव में ऐसा ही नहीं है तो पूरा मौका है. भूल सुधार का.

जरूरी नहीं कि भूल सुधार की प्रक्रिया सिद्धू को पंजाब कांग्रेस के प्रधान की कुर्सी से बेदखल करने पर ही पूरी होगी. अगर सिद्धू को 'ठोको ताली' टाइप दी हुई छूट ही राहुल गांधी वापस ले लेते हैं तो सिद्धू तत्काल प्रभाव से ठंडे पड़ जाएंगे. ये उबाल तो तभी तक आ रहा है जब तक सिद्ध अपनी पीठ पर राहुल गांधी का वरद हस्त महसूस कर रहे हैं और बयानबाजी के बाद बचाव का कोई कारगर रास्ता ढूंढ रहे हैं.

सबसे सही तरीका होगा, राहुल गांधी पंजाब दौरे में ही किसी रैली में घोषणा कर दें कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ही कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. एक झटके में सब कुछ दुरूस्त हो जाएगा. ऐसा भी राहुल गांधी ने पिछली बार भी किया था क्योंकि तब प्रताप सिंह बाजवा से कमान छीन कर कैप्टन को सौंपी गयी थी. तब भी माहौल ऐसा ही रहा - अब ये सिद्धू की पर्सनालिटी ऐसी है कि उनकी बातें पंजाब से बाहर तक भी सुनाई देने लगती हैं.

हर मामला अलग ट्रीटमेंट मांगता है. राहुल गांधी को चाहिये कि हरीश रावत को जल्द से जल्द पंजाब से रिलीज कर उत्तराखंड रवाना करें - और केसी वेणुगोपाल जैसे किसी और पंजाब का प्रभारी बना दें, जिसे अंग्रेजी के अलावा उत्तर भारत की कोई भी भाषा समझ में न आती हो. बड़ा फायदा ये होगा कि न तो सिद्धू की टीम कुछ समझा पाएगी और न ही प्रभारी को अपने से कुछ समझ आएगा, आधी बीमारी तो ऐसे ही ठीक हो जाएगी.

हां, हरीश रावत से जाते जाते एक मैसेज जरूर भिजवा देते तो अच्छा होता. कभी कभी लाइट मूड की चीजें ज्यादा असरदार साबित होती हैं. सिद्धू को बस इतना बताने की जरूरत है कि अगर वो नहीं माने तो राहुल गांधी पंजाब कांग्रेस का मामला भी अपने हाथ में ले लेंगे और डायरेक्ट देखने लगेंगे. जैसे दिल्ली में देखते हैं चंडीगढ़ भी देख लेंगे - वैसे भी वर्चुअल का जमाना है.

बड़ा नाज रहा होगा, राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी वाड्रा को भी, अपने फैसले पर. सिद्धू को पंजाब सौंप कर कैप्टन को काउंटर करने का उपाय खोज निकालने पर. जैसे राहुल गांधी के तब के फेवरेट रहे प्रताप सिंह बाजवा को पैदल कर कैप्टन ने प्रधान की कुर्सी चुनावों से पहले छीन ली थी, एक बार फिर चुनावों से पहले ही वही कुर्सी छीन कर राहुल गांधी ने बदला ले लिया है. बाजवा को भी काफी सुकून मिल रहा होगा, ये बात अलग है कि सिद्धू के बढ़ते दखल के चलते बाजवा भी अब कैप्टन के खेमे में जा पहुंचे हैं.

ये भी जगजाहिर ही है कि नवजोत सिंह सिद्धू के दिल के करीब होने के कारण राहुल गांधी ने फैसला भी दिल से ही लिया होगा, लेकिन जिस अंदाज में सिद्धू ईंट से ईंट बजाने की बात करने लगे, दिल भी बहुत दुखाया होगा.

कामयाबी की पहली शर्त बतायी जाती है कि दिल की सुननी चाहिये - और राहुल गांधी कई साल से ये प्रैक्टिस कर रहे हैं, लेकिन राजनीति में सब उलटा पुलटा हो जाता है. चूंकि राहुल गांधी राजनीति में ही कामयाबी हासिल करनी है, इसलिए दिल से ही फैसले लेते होंगे, लेकिन राजनीति में दिल से लिये गये फैसले का क्या हाल होता है - राहुल गांधी खुद के लिए भी खुद ही एक मिसाल हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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