राहुल गांधी की ओर से 'नफरत के बदले प्यार' का दावा है अधूरा
राहुल गांधी कहते हैं कि बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी नफरत फैलाते हैं, लेकिन वो प्यार बांटने में यकीन रखते हैं. मगर, कुछ कांग्रेस नेताओं की हरकतों से उनका आंखें मूंद लेना उल्टा पड़ रहा है - और दावा अधूरा लगता है.
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राहुल गांधी के साथ साथ दूसरे कांग्रेस नेता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नफरत फैलाने का इल्जाम लगाते हैं. दावा तो ये भी होता है कि कांग्रेस के लोग नफरत के बदले हर तरफ प्यार बांटते हैं. वैसे भी एक बेहतरीन नमूना तो संसद में पूरा देश देख ही चुका है - जब राहुल गांधी ने मोदी से गले मिलने के बाद आंख भी मार दी थी. लगता है गलियों से लेकर गांवों तक कांग्रेस समर्थक दोनों बातों को गंभीरता से ले चुके हैं. हरकतों से तो ऐसा ही लगता है.
कितना अच्छा होता, अगर राहुल गांधी नफरत के बदले प्यार बांटने का दावा करने के साथ साथ इस बात का एहसास भी कराते. जिसके नफरत के बदले प्यार बांटते हैं उसे भी कम से कम इस बात एहसास तो होता. हमेशा नहीं तो कभी कभी ही सही. मणिशंकर अय्यर और सीपी जोशी के माफी मांगने का मतलब तो तब होता जब राहुल गांधी नवजोत सिंह सिद्धू के मामले में भी वैसा ही रूख अख्तियार करते.
ये कैसा प्यार है, बता भी दीजिए!
'चौकीदार चोर है' नारे से कांग्रेस को अब तक फायदा भी खूब हुआ है, लेकिन फजीहत भी कम नहीं हो रही है. राहुल गांधी के वकील सुप्रीम कोर्ट को ये समझाने में नाकाम रहे कि ये जुमले जैसा चुनावी नारा है जो लोगों की जबान पर चढ़ चुका है. दलील तो यही दी गयी थी, लेकिन अदालत को संतोषजनक नहीं लगा लिहाजा साफ कर दिया कि सिर्फ खेद जताने से काम नहीं चलने वाला - आखिरकार, थक हार कर माफी मांगने को राजी होना ही पड़ा.
एक बार चुनावी मौसम में कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री के लिए नीच शब्द का इस्तेमाल किया था और दूसरे ने जाति पर टिप्पणी कर दी थी तो राहुल गांधी ने दोनों से माफी मंगवायी. एक के खिलाफ तो एक्शन भी लिया था. मगर, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के करीबी दोस्त और बड़बोले कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने जो कहा है वो तो बहुत ही गंभीर बात है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिद्धू के बयान का जिक्र कर लोगों का ध्यान खींचा है. होशंगाबाद की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने सिद्धू के बयान का उल्लेख करते हुए कहा, 'मैंने सुना, कांग्रेस के एक बयान बहादुर ने कहा है कि मोदी को ऐसा छक्का मारो कि सीमा पार मरे... कांग्रेस वालों को मोदी से इतनी नफरत हो गई है कि वो मोदी को मारने तक के सपने देखने लगे हैं, लेकिन वो भूल गए है कि मोदी की तरफ से पूरे हिन्दुस्तान की जनता बैटिंग कर रही है.'
ये कैसा तेरा प्यार कैसी नफरत है तेरी?
सिद्धू कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह के लिए चुनाव प्रचार करने भोपाल गये हुए थे. सिद्धू ने पहुंचते ही प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला, 'मच्छर को कपड़े पहनाना, हाथी को गोद में झुलाना और तुमसे सच बुलवाना असंभव है नरेंद्र मोदी.' मगर ये तो बानगी भर रही, असली मिसाइल तो सिद्धू ने बाद में छोड़ी. भोपाल से दिग्विजय सिंह के मुकाबले बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है. चुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू जब अपने रौ में आये तो बहक गये और उनका पाकिस्तान प्रेम बाहर आ गया.
कभी बीजेपी की तारीफ में कसीदे पढ़ने वाले नवजोत सिंह सिद्धू पहले तो मान लिया कि वो बूढ़े हो चुके हैं, लेकिन तत्काल सुधार लिया. बोले, 'जब मैं जवान था, अभी भी जवान हूं... छक्का मारता था तो बॉल बाउंड्री पार... तुम मुझसे तगड़े हो भोपाल वालों, राजा भोज की नगरी वालों, तुम मुझसे तगड़े हो... ऐसा छक्का मारो की मोदी हिंदुस्तान के बाहर मरे... वो मारा मोदी को बाहर उड़ा दिया.'
सिद्धू के बयान पर प्रधानमंत्री मोदी का सवाल है, 'कांग्रेस पार्टी को बताना चाहिए कि वह किस टीम से खेल रही है? भारत की टीम से या पाकिस्तान के सरपरस्तों की टीम से?'
सवाल है कि क्या सिद्धू ऐसी बातें राहुल गांधी से छुप कर कहते हैं या फिर उनकी अनुमति से. ऐसा कैसे हो सकता है कि मणिशंकर अय्यर और सीपी जोशी जैसे नेताओं की बातें राहुल गांधी तक पहुंच जाती हैं, और सिद्धू की नहीं? पाकिस्तान और इमरान खान वाले सिद्धू के बयान पर भी कांग्रेस की ओर से मनीष तिवारी ने बयान जारी किया था - ये सब उनके निजी बयान की कैटेगरी में आते हैं. प्रधानमंत्री मोदी को लेकर छक्का मारने को लेकर न तो कांग्रेस ने पल्ला झाड़ा है और नहीं कोई सफाई आई है.
प्यार का इजहार भी तो जरूरी होता है
कांग्रेस नेतृत्व का नफरत के बदले प्यार बांटने का मामला इजहार के अभाव में जाया होता नजर आ रहा है. कभी कभी तो प्यार के बदले मजाक जैसा भी लगने लगता है.
अमेठी पर प्रियंका वाड्रा का काफी जोर दिख रहा है - और अक्सर उन्हें अमेठी पहुंच कर कुछ न कुछ ध्यान खींचते महसूस किया गया है. अमेठी के ही एक गांव से चुनाव प्रचार का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें बच्चों को नारेबाजी करते देखा गया है. जाहिर है नारेबाजी खिलाफ तो प्रधानमंत्री मोदी के ही होगी. पहले तो प्रियंका मुस्कुराती हैं, लेकिन जैसे ही लगता है गलत हो रहा है तो सतर्क भी हो जाती हैं. यही एक पल की वो चूक है जो कांग्रेस के सारे दावों पर पानी फेर दे रहा है - राहुल गांधी के पास इस पर काबू पाने का कोई कारगर नुस्खा है भी क्या?
बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने ट्विटर पर अमेठी का वही वीडियो शेयर करते हुए सवाल उठाया है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का कहना है - सोचिए एक प्रधानमंत्री को कितना कुछ सहना पड़ता है. फिर पूछती हैं - क्या इससे लुटियंस में गुस्सा दिखाई दिया?
स्मृति ईरानी के शेयर किये हुए वीडियो में प्रियंका वाड्रा के सामने कुछ बच्चे कांग्रेस का फेवरेट स्लोगन दोहरा रहे हैं - चौकीदार चोर है. कई बार ऐसा होता है. असल में एक व्यक्ति ये नारा लगाता है और बच्चे उसे पूरे जोश में दोहराते हैं. तभी वो शख्स दूसरे स्लोगन की लाइन देता है - ‘बेल का पत्ता कड़वा है...’ - और इसके बाद बच्चे जो दोहराते हैं उसमें मोदी के लिए अपशब्द का प्रयोग किया गया है.
लेकिन स्मृति ईरानी का वीडियो अधूरा है. कहानी में ट्विस्ट तब समझ आता है जब पूरा वीडियो देखा जाये. ये सही है कि प्रियंका गांधी 'चौकीदार चोर है' के नारे पर हंसती हैं, लेकिन अपशब्द सुनने के बात उनका रिएक्शन बदल जाता है. प्रियंका वाड्रा के पहले रिएक्शन और दूसरे रिएक्शन के बीच थोड़ा गैप है - ये गैप ही वो चूक है जो नफरत के बदले प्यार बांटने की सारी कवायद पर पानी फेर देता है.
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी!
जब तक प्रियंका वाड्रा बच्चों को रोकती हैं बच्चे दो-तीन बार वो अभद्र स्लोगन दोहरा चुके होते हैं. फिर प्रियंका वाड्रा बच्चों से कहती हैं, 'ये वाला नहीं... ये अच्छा नहीं है. अच्छे बच्चे बनो.' फिर बच्चे 'राहुल गांधी जिंदाबाद' का नारा लगाने लगते हैं - और प्रियंका उनके साथ हंसने लगती हैं.
वीडियो देख कर ये नहीं मालूम हो रहा कि प्रियंका ने बच्चों को मना करने के साथ साथ उस शख्स से कुछ कहा है या नहीं. वीडियो में वो बच्चों के साथ नारेबाजी पर हंसती जरूर हैं लेकिन नारे लगवाने वाले को कुछ नहीं कहतीं.
ये वीडियो इसलिए वायरल हुआ क्योंकि इसमें प्रियंका वाड्रा रहीं. ये नारेबाजी बच्चों के साथ झुंड बनाकर बड़े व्यक्ति गांवों में कर रहे हैं. बच्चे तो बच्चे हैं. बच्चों को क्या पता कि कौन नारा कैसा होता है. बच्चे तो बड़े होकर ही जान पाएंगे कि चुनावों के दौरान कोई आदर्श आचार संहिता भी लागू होती है - लेकिन तब तक उनसे ऐसी नारेबाजी इतनी बार करा दी जाएगी कि वो आदत में शुमार हो जाएगा. यही सबसे बुरी बात है.
क्या बच्चों से नारे लगवाने वाले शख्स को मालूम है कि राहुल गांधी क्या चाहते हैं? क्या उसने कभी सुना होगा कि राहुल गांधी नफरत के बदले प्यार बांटने की बातें करते रहते हैं? जिस तरीके से वो बच्चों से नारेबाजी करा रहा है, उससे तो यही लगता है कि राहुल गांधी सिर्फ ऊपरी तौर पर प्यार बांटने का दावा करते हैं - और उनके समर्थक बच्चों तक को भी नफरत फैलाने में घसीट ले रहे हैं - और जब तक कांग्रेस नेताओं को इस बात एहसाह हो पाये बात आगे निकल चुकी होती है.
कांग्रेस नेतृत्व को ये बात समझनी होगी कि गले मिलने के बाद आंख मारने वाली हरकत विपक्ष के लिए मजाक का विषय होती है, लेकिन उनके समर्थक उसे गंभीरता से लेते हैं. कुछ नेताओं पर एक्शन लेने के बाद सिद्धू जैसे नेताओं को छूट देना भी कांग्रेस के दूसरे नेताओं और समर्थकों को कन्फ्यूज करता है.
राहुल गांधी को ये तो पता हो ही चुका होगा कि 'चौकीदार चोर है' से भी बीहड़ नारे गढ़ लेते हैं और घूम घूम कर लगाते फिरते हैं. ये ऐसे समर्थक हैं जिन्हें इस बात की भी परवाह नहीं होती कि नारे बड़े लगा रहे हैं या बच्चे. ये तो कहिये कि प्रियंका वाड्रा खुद इसकी चश्मदीद हैं, वरना क्या क्या होता है किसे मालूम? राहुल गांधी को गंभीरता के साथ ये समझना होगा कि नफरत के बदले प्यार तभी बांटा जा सकता है, जब उसके प्रति अंदर से भी इमानदारी हो - वरना, बाकी सब तो जुमला है ही.
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