सियासी पिच पर मोदी के लिए खतरे की घंटी है राहुल गांधी का फ्रंट-फुट पर खेलना
राहुल गांधी फ्रंट फुट पर आकर खेलने लगे हैं. एससी-एसटी एक्ट में तब्दीली के विरोध के बाद इंडिया गेट पर आधी रात को धावा बोलना - आखिर ये मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी नहीं तो और क्या है?
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ख्याति अपने फैसलों से चौंकाने की रही है, पर, फिलहाल तो राहुल गांधी ही बाजी मारते देखे जा सकते हैं.
जब पूरा देश कठुआ और उन्नाव गैंग रेप को लेकर चौतरफा गुस्से का इजहार कर रहा था, बीजेपी का पूरा अमला संसद न चलने देने को लेकर दिन भर का उपवास रखे हुए थे. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ बस कांग्रेस को कोसते ही रहे. कठुआ और उन्नाव के मामले में मोदी ने चुप्पी साधे रखी तो शाह और योगी सवालों से बचते रहे.
आधी रात को इंडिया गेट पहुंचने की कॉल देकर राहुल गांधी ने टीम मोदी के रणनीतिकारों को तो हैरत में ही डाल दिया होगा. राहुल की कॉल पर देखते देखते लोग वैसे ही दौड़ पड़े जैसे 2012 में निर्भया कांड के बाद जुटे थे. एससी-एसटी एक्ट में तब्दीली के विरोध के बाद राहुल गांधी का बीजेपी पर ये लगातार दूसरा बड़ा राजनीतिक हमला है.
बीजेपी को लगातार शह दे रही है कांग्रेस
कर्नाटक में भी सरकार बनाने का सपना देख रही बीजेपी को राहुल गांधी और उनकी टीम ने लगातार दूसरी बार शह दी है. कठुआ और उन्नाव गैंग रेप के खिलाफ इंडिया गेट पर कैंडल मार्च से पहले राहुल गांधी ने एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के विरोध का जो फैसला किया वो बीजेपी पर बहुत भारी पड़ा. अपने ही सांसदों और दलितों की नाराजगी से बीजेपी अभी उबर भी नहीं पायी है कि राहुल गांधी के नये एक्शन से दोहरी मार पड़ी है.
जब 1012 के निर्भया कांड का मंजर याद आया...
12 अप्रैल को दिन भर बीजेपी नेता उपवास रखे हुए थे और रात को ठीक 9.39 बजे राहुल गांधी ने ट्वीट कर लोगों से इंडिया गेट पहुंचने को कहा - कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को तो बस मौके का इंतजार था. एक एक कर सभी कुछ ही देर में मौके पर पहुंच भी गये. कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ प्रियंका गांधी भी बेटी और पति रॉबर्ड वाड्रा के साथ पहुंचीं.
Like millions of Indians my heart hurts tonight. India simply cannot continue to treat its women the way it does.
Join me in a silent, peaceful, candlelight vigil at India Gate at midnight tonight to protest this violence and demand justice.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 12, 2018
इंडिया गेट पर लोगों की भीड़ देख कर 2012 के निर्भया कांड के जख्म हरे हो गये - जो कठुआ और उन्नाव की तकलीफों को और भी बढ़ा रहे थे. तब और अब में फर्क ये रहा कि केंद्र में अब बीजेपी की सरकार है और उस वक्त कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार थी. पूछने वाले तो राहुल गांधी से भी पूछ सकते हैं कि जब अपनी सरकार थी तो उन्होंने इतनी तत्परता क्यों नहीं दिखायी?
2012 में भी मनमोहन सरकार की नींद भी तभी खुल पायी जब लोग हजारों लोग सड़कों पर उतर आये थे - जगह जगह से निकला लोगों का हुजूम सत्ता प्रतिष्ठानों को आगे बढ़ कर ललकारने लगा था. हां, राहुल जैसी तत्परता उन दिनों अरविंद केजरीवाल ने दिखायी थी, जो फिलहाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. गुजरात में बीजेपी के कट्टर विरोधी हार्दिक पटेल ने भी कठुआ और उन्नाव के बहाने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से सवाल पूछा है.
Reach India Gate. Defy sec 144. This country belongs to us and not to the govt.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) December 23, 2012
यूपी के उन्नाव और जम्मू-कश्मीर के कठुआ की बलात्कारी घटना के बाद भाजपा सरकार की महिला मंत्री स्मृति ईरानी क्यूँ चुप हैं???दिल्ली की निर्भया को न्याय दिलाने के लिए उस वक़्त के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जी को चूड़ियाँ भेजने वाली स्मृति दीदी आज के प्रधानमंत्री मोदी जी को क्या भेजेगी !
— Hardik Patel (@HardikPatel_) April 13, 2018
राहुल गांधी की गुरिल्ला राजनीति
हर जगह और हर बार हर किसी के काम को कारनामा नहीं समझाया जा सकता. ये पब्लिक सबको जानती है. जो इस बात को वक्त रहते नहीं समझ पाता चीजें ऐसे ही बैकफायर होती हैं. बीजेपी के बड़े नेताओं को ये बात आज नहीं तो कल जरूर समझ में आएगी.
सरकार के प्रति आक्रोश
मालूम नहीं मोदी और शाह इस बात को भांप नहीं पाये या फिर उनके रणनीतिकारों ने ऐसा समझा दिया - जब संसद चल रही थी तब अगर ये उपवास रखा गया होता तो एक बार लोग गंभीरता के साथ सोचते भी. जिस दौर में मुद्दे और सुर्खियां पल पल बदल जाती हों, वहां हफ्ते पर बाद संसद के गतिरोध को लेकर कांग्रेस को कठघरे खड़ा करने की क्या जरूरत रह गयी थी? या तो बीजेपी चुनावी वक्त की नब्ज पहचाना भूलने लगी है, या फिर उसके रणनीतिकार अपने विरोधियों के आरोप को सही साबित करने मौका मुहैया करा रहे हैं - 'बीजेपी नेताओं में अहंकार हो गया है.' ऐसे आरोप सिर्फ विरोधी दल के नेता ही नहीं, बीजेपी में हाशिये पर डाल दिये गये नेताओं की ओर से भी लगाये जाते रहे हैं.
कहीं ऐसा तो नहीं कि बीजेपी को ये भी गुमान हो गया कि भावनाओं में बहे लोग उसके उपवास के आभामंडल में इस कदर डूब चुके होंगे कि दूसरे मुद्दों की ओर ध्यान देने की जहमत उठाना भी नहीं चाहेंगे. अगर वास्तव में सोच ऐसी होने लगी है तो निश्चित तौर पर बीजेपी की सेहत के लिए बेहद खतरनाक है. खासकर तब जब कांग्रेस के रणनीतिककार बीजेपी की छोटी छोटी कमजोरियों को पर नजर टिकाये हुए हैं - और अवसर मिलने पर पूरा लाभ लेने के लिए कूद पड़ रहे हों.
बीजेपी से दलितों की पुरानी नाराजगी अपनी जगह है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मामले में उससे ऐसा कोई अपराध नहीं हुआ है जैसा उसके विरोधियों ने लोगों को समझा दिया. ये कर्नाटक के 19 फीसदी दलित वोट बैंक का कमाल है कि कांग्रेस ने कोर्ड के ऑर्डर के विरोध का फैसला किया - और उसे राजनीतिक माइलेज मिल गया.
सिर्फ यही नहीं, बीजेपी अभी संसद गतिरोध पर उपवास की तैयारी कर रही थी कि कांग्रेस ने दलितों के हक की लड़ाई बताते हुए 9 अप्रैल को ही उपवास कर डाला, भले ही उपवास से ज्यादा चर्चा छोले भटूरे की हुई. बीजेपी अभी 14 अप्रैल से 5 मई तक दलितों के गांव गांव घूमने की तैयारी कर रही है. वैसे बागी दलित सांसदों को काउंटर करने के लिए बीजेपी ने योगी समर्थक सांसदों को आगे कर दलितों के बारे में धारणा बदलने की कोशिश जरूर की है.
अब तो बीजेपी को अहसास हो जाना चाहिये कि राहुल गांधी फ्रंट फुट पर आकर खेलने लगे हैं. गुजरात में 'विकास पागल हो गया है' और कर्नाटक में एससी-एसटी एक्ट में तब्दीली के विरोध जैसे कदम उठाने के बाद इंडिया गेट पर आधी रात को कैंडल मार्च राहुल गांधी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेतृत्व के ऊपर सीधा और सटीक हमला है. आखिर इसे मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी नहीं तो और क्या समझें? कहीं ऐसा न हो कि बीजेपी नेता राहुल गांधी के बड़ा होने का इंतजार करते रहें - और वो इसी बात का फायदा उठाकर उसे छका डालें.
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