वायनाड से चुनाव लड़कर राहुल गांधी अपनों को ही धोखा देने का काम कर रहे हैं!
जब से कांग्रेस नेता एके अंटोनी ने राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की घोषणा की है, सियासी गलियारे में एक हलचल सी दिखने लगी है. विरोधी भाजपा ही नहीं, कांग्रेस के सुख-दुख की साथी लेफ्ट की ओर से भी राहुल गांधी पर हमला बोला जा रहा है.
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पहली बार लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने दो सीटों से लड़ने का फैसला किया है. एक तो उनकी अपनी परंपरागत सीट अमेठी ही है, लेकिन दूसरी सीट है केरल की वायनाड लोकसभा सीट. जब से कांग्रेस नेता एके अंटोनी ने राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की घोषणा की है, सियासी गलियारे में एक हलचल सी दिखने लगी है. विरोधी भाजपा ही नहीं, कांग्रेस के सुख-दुख की साथी लेफ्ट की ओर से भी राहुल गांधी पर हमला बोला जा रहा है. लेफ्ट को लग रहा है कि कांग्रेस ने उन्हें धोखा दिया है.
भाजपा ने तो ये साफ कहा है कि राहुल गांधी को डर है कि वह अमेठी से हार सकते हैं, इसलिए वह अपने लिए एक सुरक्षित सीट ढूंढ़ रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की यूपीए-1 में सरकार का हिस्सा रही और हर मौके पर कांग्रेस के साथ खड़ी रहने वाली लेफ्ट पार्टी भी राहुल गांधी के इस फैसले के खिलाफ है. दरअसल, केरल में लेफ्ट का दबदबा है और राहुल गांधी का ये कदम लेफ्ट के खिलाफ चुनाव लड़ने वाला है. इस कदम को लेफ्ट ने गलत बताते हुए कहा है कि इस कदम से कांग्रेस का पतन शुरू हो जाएगा.
विरोधी भाजपा ही नहीं, कांग्रेस के सुख-दुख की साथी लेफ्ट की ओर से भी राहुल गांधी पर हमला बोला जा रहा है.
राहुल गांधी को कहा 'पप्पू'
इधर कांग्रेस की ओर से साफ किया गया कि राहुल गांधी वायनाड से चुनाव लड़ेंगे, उधर लेफ्ट के मुखपत्र 'देशभूमि' में कांग्रेस को खूब खरी खोटी सुनाई गई है. यहां तक कि राहुल गांधी को 'पप्पू' तक कह दिया गया है. लेफ्ट ने देशभूमि में साफ कहा है कि राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी परंपरागत सीट अमेठी से हारने का डर सता रहा है.
भाजपा से लड़ने के बजाय लेफ्ट से भिड़ गए राहुल !
सीपीआईएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा है कि राहुल गांधी के वायनाड से चुनावी मैदान में उतरने का मतलब है कि वह नेशनल लेवल पर भाजपा नहीं, बल्कि वामपंथ के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी जैसे उम्मीदवार का केरल में चुनाव लड़ने का मतलब है कि वह वामपंथियों को निशाना बनाने जा रहे हैं. करात ने साफ किया कि लेफ्ट की ओर से इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा और पूरी कोशिश की जाएगी कि वायनाड सीट पर राहुल गांधी को हराया जा सके.
Prakash Karat, CPI(M) ex-General Secy: To pick a candidate like Rahul Gandhi against Left means that Congress is going to target the Left in Kerala. This is something which we will strongly oppose & in this election we will work to ensure the defeat of Rahul Gandhi in Wayanad. pic.twitter.com/uIjLgDhxF4
— ANI (@ANI) March 31, 2019
पिनराई विजयन ने पूछा- आप देश को क्या संदेश देना चाहते हैं?
राहुल गांधी के इस फैसले से लेफ्ट कितना गुस्से में है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी-कभी मीडिया से रूबरू होने वाले केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला ली. उन्होंने कहा- 'इससे ये संदेश जा रहा है कि कांग्रेस भाजपा के खिलाफ नहीं, बल्कि लेफ्ट के खिलाफ लड़ रही है. मुझे नहीं लगता है कि राहुल गांधी की केरल में मौजूदगी से कुछ बदलेगा, लेकिन सवाल ये है कि इससे आप जनता को क्या संदेश दे रहे हैं? कांग्रेस को यह सोचना चाहिए कि देश की मौजूदा स्थिति में ऐसा करना सही है क्या?'
हिंदुत्व छवि पर सवालिया निशान
पिछले कुछ सालों में राहुल गांधी ने कांग्रेस की सेक्युलर छवि को बदलते हुए सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता चुना. उनका ये कदम एक हद तक सही भी था, जिसकी वजह से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का 15 सालों का वनवास पूरा हुआ पार्टी सत्ता में लौटी. राजस्थान के विधानसभा चुनाव में मिली जीत में भी सॉफ्ट हिंदुत्व अहम था. लेकिन अब केरल की जिस वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का राहुल गांधी ने फैसला किया है, वह एक मुस्लिम-इसाई बहुत सीट है. यानी केरल में राहुल गांधी कांग्रेस की सेक्युलर छवि पेश कर रहे हैं. ये सेक्युलर छवि उन्हें वायनाड सीट तो जिता देगी, लेकिन यही कदम देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में कांग्रेस को हार का मुंह देखने पर मजबूर कर सकता है.
राहुल गांधी ने जिस वायनाड सीट को चुना है उसकी अहम वजह तो यही है कि वहां पर उनकी जीत पक्की है. वहीं अगर भाजपा की बात करें तो इस सीट पर भाजपा के प्रत्याशी को कभी 1 लाख वोट भी नहीं मिले. वायनाड सीट से चुनाव लड़ने के राहुल के फैसले पर ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि उन्होंने अपने लिए एक आसान टारगेट चुना है. वह आसानी से यहां से जीत जाएंगे और फिर पूरे देश में घूम-घूम कर अपनी पीठ थपथपाएंगे. लेकिन भाजपा के खिलाफ पूरे विपक्ष को एकजुट करने की जिम्मेदारी निभाने के बजाय राहुल गांधी ने अपनों से ही बैर करना शुरू कर दिया है. यूपी में सपा-बसपा ने उन्हें गठबंधन में शामिल नहीं किया, दिल्ली में वह खुद ही 'आप' के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहते, पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस अलग-थलग सी हो गई है और अब केरल में लेफ्ट को नाराज कर के राहुल गांधी ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला काम किया है.
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