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Updated: 31 मार्च, 2019 03:31 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह से हारी थी और भाजपा प्रचंड बहुमत से जीती थी. इस जीत में हिंदुत्व की राजनीति का अहम योगदान था. पिछले कुछ सालों से राहुल गांधी भी कांग्रेस की सेक्युलर छवि को दरकिनार करते हुए सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर चल रहे थे. जनेऊ धारण करने से लेकर गाय तक, सब कुछ राहुल गांधी ने अपना लिया. कुछ महीने पहले ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी को इसका फायदा भी मिला.

अब दोबारा लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं और इस बार राहुल गांधी ने अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ने का फैसला किया है. अमेठी तो ठीक है, लेकिन वायनाड सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा ने सबको हैरान कर दिया है. सोशल मीडिया पर तो भूचाल सा आ गया है. अब सवाल ये उठता है कि राहुल गांधी के वायनाड सीट से चुनाव लड़ने की वजह क्या है? यूपी जैसे महत्‍वपूर्ण राज्‍य में बीजेपी को फ्रंटफुट पर चुनौती देने की बात करने वाले राहुल गांधी केरल के वायनाड क्‍यों चले गए, जहां बीजेपी का वजूद न के बराबर है. मामला ि‍सिर्फ इतना सा नहीं है कि अमेठी में इस बार स्‍मृति इरानी से कड़ी चुनौती मिलने के कारण राहुल ने एक सुरक्षित सीट का रुख ि‍किया है. सोशल मीडिया पर वायनाड सीट का जिस तरह बखान किया जा रहा है, वह राहुल गांधी और कांग्रेस की साफ्ट हिंदुत्‍व वाली राजनीति को नुकसान पहुंंचाएगा. वायनाड सीट मुस्लिम-ईसाई बहुल है, जिसकी वजह से 'जनेऊधारी' राहुल गांधी की सॉफ्ट हिंदुत्व वाली छवि पर सवाल उठ रहे हैं.

राहुल गांधी, अमेठी, वायनाड, लोकसभा चुनाव 2019वायनाड सीट मुस्लिम-ईसाई बहुल है, जिसकी वजह से राहुल गांधी की सॉफ्ट हिंदुत्व वाली छवि पर सवाल उठ रहे हैं.

सोशल मीडिया पर क्या बातें हो रही हैं?

जैसे ही कांग्रेस नेता एके अंटोनी ने राहुल गांधी के केरल की 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम-ईसाई बहुल वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया, सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रिया आना शुरू हो गए. खासतौर पर उनकी 'सॉफ्ट हिंदुत्व' वाली राजनीति को लेकर. कोई उनके 'जनेऊधारी ब्रह्मण' होने पर सवाल उठा रहा है तो वायनाड सीट चुनने के लिए वहां की मुस्लिम-ईसाई बहुल आबादी को वजह बता रहा है. प्रतिक्रिया तो यहां तक आ रही हैं कि अगर राहुल गांधी वायनाड के अलावा देश की किसी भी अन्य सीट को चुनते तो वहां से जरूर हारते, सिर्फ यही उनकी जीत सुनिश्चित करने वाली सुरक्षित सीट है. सवाल ये भी उठ रहे हैं 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में तो राहुल गांधी दो सीट से नहीं लड़े, तो फिर 2019 में क्यों? सोशल मीडिया पर इसकी वजह हार का डर बताया जा रहा है.

राहुल गांधी, अमेठी, वायनाड, लोकसभा चुनाव 2019सोशल मीडिया पर चल रहा है कि अगर राहुल गांधी वायनाड के अलावा देश की किसी भी अन्य सीट को चुनते तो वहां से जरूर हारते.

अमेठी को गठबंधन के लिए छोड़ देना चाहिए था !

हर बार राहुल सिर्फ अमेठी से चुनाव लड़ते थे और जीतते थे. पहली बार उन्होंने एक दूसरी सीट वायनाड से भी चुनाव लड़ने का फैसला किया है. अगर इसकी वजह अमेठी से हारने का डर कहें तो गलत नहीं होगा. पिछली ही बार अमेठी से स्मृति ईरानी महज 1 लाख वोटों से हारी थीं. तब से अब तक ईरानी ने अमेठी में खूब काम किया, पीएम मोदी भी वहां का दौरा करते रहे और हाल ही में एक ऑर्डिनेंस फैक्ट्री तक का उद्घाटन भी कर चुके हैं. अब अमेठी में भाजपा का पलड़ा भारी दिखने लगा है, तो राहुल गांधी ने भी केरल की वायनाड सीट को चुन लिया है, जहां से जीतने की संभावनाएं अधिक हैं.

यहां एक अहम बात ये है कि अमेठी से सपा-बसपा के गठबंधन ने अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है. इसे राहुल गांधी के लिए ही छोड़ा गया है. हो सकता है कि राहुल ने खुद इसकी गुजारिश की हो. लेकिन मौजूदा हालात देखकर यूं लग रहा है कि राहुल ये सीट गठबंधन को ही दे देते तो अच्छा होता. एक तो अमेठी में पहले ही राहुल की पकड़ कमजोर हो गई है और अब केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने के फैसले ने उनके सॉफ्ट हिंदुत्व पर भी सवाल उठा दिए हैं. अमेठी में फिलहाल सिर्फ भाजपा और कांग्रेस का मुकाबला है और इस बार यहां से राहुल गांधी के जीतने की काफी कम उम्मीद है.

राहुल गांधी यूपी में कांग्रेस की संभावना कमजोर कर रहे हैं !

यूपी की राजनीति में हिंदुत्व का एक अहम योगदान रहता है, ये बात दबी-छुपी नहीं है. राहुल गांधी खुद भी ये बात समझते हैं. बावजूद इसके उन्होंने एक ऐसी सीट को चुनाव है को उनके सॉफ्ट हिदुत्व पर सवालिया निशान लगा रही है. माना कि मुस्लिम-ईसाई बहुल वायनाड सीट उनके लिए सुरक्षित है, जहां से जीतने की संभावनाएं अधिक हैं, लेकिन इसकी वजह से यूपी में कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं. वैसे भी, यूपी में कांग्रेस की स्थिति पहले से ही काफी खराब है.

एक चैलेंजर का सुरक्षित सीट ढूंढना विपक्ष के लिए अच्छा संकेत नहीं

इस वक्त राहुल गांधी एक चैलेंजर की भूमिका में हैं. एक बड़ी पार्टी का मुखिया होने के नाते उन्हें ऐसी सीट चुननी चाहिए थी जो उनकी पार्टी की ताकत को बढ़ाने का काम करती. लेकिन राहुल गांधी तो यूपी की अमेठी सीट के अलावा एक ऐसी सीट से लड़ रहे हैं, जहां पर उसका भाजपा से कोई मुकाबला नहीं है. कांग्रेस की सीधी टक्कर भाजपा से होने के नाते राहुल गांधी को सुरक्षित सीट ढूंढ़ने के बजाए मोदी को टक्कर देने वाली सीट चुननी चाहिए थी. इस तरह एक सुरक्षित सीट ढूंढ़ना एक ओर तो राहुल गांधी के हार के डर को दिखा रहा है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के अन्य प्रत्याशियों और बाकी की विरोधी पार्टियों का मनोबल भी तोड़ने का काम कर रहा है. 2014 में मोदी अपने घर से निकल कर यूपी में आए थे, जहां जीतना उनके लिए और भी मुश्किल था, लेकिन राहुल गांधी ने इसका उल्टा किया है, जो विपक्ष के लिए अच्छा संकेत नहीं है.

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