Congress के बुजुर्ग नेता जैसा अध्यक्ष चाहते हैं - Rahul Gandhi कहां तक फिट होते हैं?
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Congress President Sonia Gandhi) को भेजे पत्र में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नाम का जिक्र न होना हैरान करने वाला है - और अब सोनिया गांधी के इस्तीफे की पेशकश ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है!
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कांग्रेस के भीतर एक पूर्णकालिक अध्यक्ष (Congress President) बनाये जाने की डिमांड को लेकर कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने मिलकर एक चिट्ठी लिखी है - और उसका असर ये हुआ है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) कांग्रेस ने अंतरिम अध्यक्ष पद से हटने की इच्छा जतायी है. इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक सोनिया गांधी का कहना है कि अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर वो एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं और पार्टी को अपना नया अध्यक्ष चुन लेना चाहिये.
काफी दिनों से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग उठती रही है. सोनिया गांधी के साथ कांग्रेस की बैठकों में कुछ नेता ये मांग करते रहे हैं, और फिर, कुछ मन से और बाकी सुर में सुर मिलाने के लिए प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, ताकि हाजिरी भी लग जाये और निष्ठा पर भी सवाल भी न उठे.
कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर अब जो मांग उठी है उसके लिए सीनियर नेताओं ने औपचारिक तरीका अख्तियार किया है. कांग्रेस के 23 सीनियर नेताओं ने सोनिया गांधी को बाकायदा पत्र लिख कर पार्टी के लिए एक स्थायी अध्यक्ष की मांग रखी है - और पार्टी के हित में बड़े बदलावों की मांग भी की है. पत्र लिखने वालों में CWC सदस्यों के अलावा 5 पूर्व मुख्यमंत्री, कुछ पूर्व मंत्री और कई सांसद शामिल हैं.
नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष कैसा हो ये तो बताया है, लेकिन राहुल गांधी का नाम नहीं लिया है - सवाल है कि क्या राहुल गांधी नेताओं की अपेक्षा पर खरे उतर रहे हैं या नहीं?
चिट्ठी आयी है
17 अगस्त को कांग्रेस के प्रवक्ता रहे संजय झा ने ट्विटर पर लिखा कि कांग्रेस के करीब 100 नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा है और नेतृत्व परिवर्तन और संगठन के चुनाव की मांग की है. संजय झा ये कहते हुए कि वो तो कांग्रेस के सदस्य भी नहीं है, प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दावा किया है कि कोई ऐसी चिट्ठी सोनिया गांधी को नहीं लिखी गई है और ये फेसबुक मामले से लोगों का ध्यान भटकाने की बीजेपी की साजिश है. मतलब, लोग ये समझें कि संजय झा बीजेपी से मिले हुए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर आने के बाद, संजय झा का नया ट्वीट है कि 23 सीनियर नेताओं के नाम तो सार्वजनिक हैं, लेकिन देश भर के 300 कांग्रेस नेता इस मुहिम में शामिल हैं, लेकिन उनका नाम इसलिए नहीं बताया जा रहा है क्योंकि फिर मुद्दे से ध्यान भटक जाएगा.
Around 300 Congress leaders from all over the country, representing all regions and states are signatories to the letter, over and above the 23 seniors already in the public domain. Their names remain undisclosed as that would distract from the core message of the letter itself.
— Sanjay Jha (@JhaSanjay) August 23, 2020
रिपोर्ट के जरिये जिन नेताओं के नाम सामने आये हैं उनमें से कई नेताओं को कांग्रेस की उस मीटिंग के बाद काफी गुस्से में देखने को मिला था जिसमें राजीव सातव ने यूपीए 2 के शासन पर सवाल उठाये थे. ये सवाल सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की मौजूदगी में हुई कांग्रेस के राज्य सभा सदस्यों की मीटिंग में उठे थे. मीटिंग में कपिल सिब्बल ने कांग्रेस में आत्मनिरीक्षण की सलाह दी थी और उसी पर राहुल गांधी के करीबी समझे जाने वाले राज्य सभा सांसद राजीव सातव आपे से बाहर हो गये थे. ठीक अगले दिन ट्विटर पर मनीष तिवारी, मिलिंद देवड़ा और शशि थरूर ने उस वाकये पर कड़े शब्दों के साथ रिएक्ट किया था. मीटिंग के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उठते सवालों को काउंटर करते ही रहे, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल जैसे नेताओं को भी राहुल ब्रिगेड का आक्रामक होना बहुत बुरा लगा था. ये सभी नेता पत्र लिखने वालों में शामिल हैं. बाकी नेताओं में मुकुल वासनिक, विवेक तनखा, जितिन प्रसाद, भूपिंदर सिंह हुड्डा, राजेंद्र कौर भट्टल, एम. वीरप्पा मोइली, पीजे कुरियन, पृथ्वीराज चव्हाण, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, संदीप दीक्षित अरविंदर सिंह लवली, अखिलेश प्रसाद सिंह, योगानंद शास्त्री, संदीप दीक्षित और कुलदीप शर्मा हैं.
इनमें ऐसे कई नेता हैं जो कभी न कभी पार्टी में बागी तेवर दिखा चुके हैं. अरविंदर सिंह लवली तो कांग्रेस छोड़कर चले जाने के बाद लौटे हैं. संदीप दीक्षित और शशि थरूर तो कांग्रेस में स्थायी नेतृत्व को लेकर कई बार सवाल भी उठा चुके हैं.
पत्र में तमाम बातों के बीच एक महत्वपूर्ण लाइन है - लोकसभा चुनाव में हार के साल भर बाद भी पार्टी ने 'आत्मनिरीक्षण' नहीं किया है.
सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष के पद से इस्तीफे की पेशकश कर दी है - और राहुल गांधी तैयार भी नहीं है
जरा याद कीजिये कपिल सिब्बल की इसी बात पर राजीव सातव ने आपत्ति जतायी थी और बवाल हुआ था. मिलिंद देवड़ा और जितिन प्रसाद किसी जमाने में राहुल गांधी की करीबी युवा ब्रिगेड के सक्रिय सदस्य रहे हैं, लेकिन पत्र लिखने वाले ज्यादातर वे ही हैं जिन्हें राहुल ब्रिगेड सीनियर सिटिजन समझती है क्योंकि कांग्रेस ने तो कोई मार्गदर्शक बनाया भी नहीं है. 2017 के आखिर में जब राहुल गांधी की ताजपोशी हुई थी, कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि पार्टी युवाओं के साथ साथ बुजुर्गों का पूरा सम्मान और ख्याल तो रखेगी ही, उनके अनुभव का भी लाभ लेने की कोशिश होगी.
अब भी जबकि राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़े और उसके बाद सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बने भी एक साल से ज्यादा हो रहे हैं, कांग्रेस उस मोड़ से आगे नहीं नजर आ रही है. कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव के बीच कांग्रेस के अतिशय कमजोर होने पर तो चिंता जतायी ही गयी है, फिक्र इस बात को लेकर भी है कि ये सब देश के लिए भी ठीक नहीं है. बात तो सही है. लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए जिस तरह एक मजबूत सरकार चाहिये होती है, ठीक वैसे ही एक मजबूत विपक्ष की भी दरकार होती है.
कांग्रेस नेताओं ने चिट्ठी के जरिये संगठन के कामकाज को लेकर भी सवाल उठाया है. कहा गया है कि प्रदेश स्तर पर अध्यक्ष सहित बाकी पदाधिकारियों की नियुक्ति में बेवजह देर तो होती ही है, ऐसे नेता भी नहीं भेजे जाते जिनका कार्यकर्ताओं का सम्मान मिले और सभी को स्वीकार्य हों. कांग्रेस नेतृत्व का ध्यान दिलाने की कोशिश की गयी है कि भले ही नेताओं को कमान सौंप दी जाती है, लेकिन फैसलों के लिए वे स्वतंत्र नहीं होते.
बात में दम तो है. अगर ऐसा नहीं होता तो हरियाणा में विधानसभा चुनाव के नतीजे अलग हो सकते थे और कांग्रेस की सरकार बनने की भी संभावना होती. मध्य प्रदेश में भी सरकार बची होती और राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर खतरा नहीं मंडरा रहा होता.
राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग क्यों नहीं
एक आम धारणा तो बन ही चुकी है कि फिलहाल सोनिया गांधी की इच्छा और राहुल गांधी की अनिच्छा का खामियाजा कांग्रेस पार्टी को सीधे सीधे भुगतना पड़ रहा है. कांग्रेस के सीनियर नेताओं के हवाले से प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथ से निकल जाये और यही वजह रही कि अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम करना शुरू किया. द हिंदू अखबार की ताजा रिपोर्ट है कि राहुल गांधी अब भी कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर लौटना नहीं चाहते.
लेकिन एक सच तो ये भी है कि राहुल गांधी का कामकाज अब भी कांग्रेस अध्यक्ष जैसा ही है. तकनीकी तौर पर राहुल गांधी महज कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य हैं, लेकिन वो राजस्थान कांग्रेस में झगड़ा भी सुलझाते हैं और बिहार चुनाव में गठबंधन से लेकर चुनाव मुहिम तक तय कर रहे हैं, जबकि न तो वो राजस्थान के ही प्रभारी हैं और न ही बिहार के.
ध्यान देने वाली बात ये है कि सोनिया गांधी को जो पत्र भेजा गया है उसमें न तो दिग्विजय सिंह का नाम है न कमलनाथ का और न ही अशोक गहलोत का. आखिर ये भी तो कांग्रेस के सीनियर और बेहद सक्रिय नेता हैं. नाम तो पी. चिदंबरम का भी नहीं है - और ऐसा भी नहीं कि ये नाम अन्य नेताओं में शामिल हो सकते हैं.
फिर तो ये समझ आता है कि चिट्ठी अभियान में वे कांग्रेस नेता ही शामिल हैं जो राहुल ब्रिगेड को पसंद नहीं करते. कांग्रेस सूत्रों के हवाले से बीते दिनों आयी खबरों को देखें तो पता चलता है कि ये नेता राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यूं ही रिमोट कंट्रोल वाला नेता पसंद नहीं करते. ऐसे नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी भले ही जो चाहें करें, लेकिन जिम्मेदारी के साथ करें. बिना मतलब हर मामले में दखल देकर लटकायें नहीं.
इकनॉमिक टाइम्स ने 22 अगस्त को ही CWC की मीटिंग की खबर दी थी, लेकिन अब अपडेट दिया है कि मीटिंग रीशिड्यूल हो गयी है और उसकी वजह कांग्रेस की यही अंदरूनी उठापटक ही लगती है. हालांकि, द हिंदू ने कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल के हवाले से खबर दी है कि 24 अगस्त को 11 बजे CWC की वर्चुअल बैठक बुलायी गयी है. बताते हैं कि मीटिंग का एजेंडा तो अभी तय नहीं है, लेकिन मान कर चलना चाहिये कि बात तो कांग्रेस अध्यक्ष पद पर स्थायी नियुक्ति पर ही होगी. हां, वक्त बचा तो बिहार चुनाव को लेकर भी थोड़ी बहुत चर्चा हो सकती है.
'आत्मनिरीक्षण' के साथ साथ कांग्रेस नेताओं के पत्र में जिस बात पर सबसे ज्यादा जोर लगता है, वो है - कांग्रेस अध्यक्ष कैसा हो?
कांग्रेस के शुभचिंतकों के नजरिये से अध्यक्ष पूर्ण-कालिक तो हो ही, सबसे जरूरी ये है कि वो प्रभावी नेतृत्व प्रदान करने वाला हो - शर्त ये है कि वो प्रभावी नेतृत्व न सिर्फ काम करता नजर आये, बल्कि असलियत में जमनी पर उतर कर काम भी करे.
सबसे बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस नेताओं ने नेतृत्व के लिए जो पैमाना बताया है - क्या राहुल गांधी पैमाने पर फिट बैठते हैं?
प्रसंगवश पत्र से जुड़ी दो और बातें हैं जिन पर गौर करना जरूरी हो जाता है. एक पत्र में लिखा है कि 'नेहरू-गांधी परिवार हमेशा पार्टी का अहम हिस्सा रहेगा', लेकिन राहुल गांधी का नाम नहीं लिया गया है - बड़ा सवाल यही है कि ऐसा क्यों है?
अब तो ऐसा लगता है जैसे गिनती के कांग्रेस नेता हैं जो कांग्रेस कार्यकारिणी या आम बैठकों में राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग करने वाले होते हैं, लेकिन ऐसे दिग्गज नेता जिनके नाम पत्र में शामिल हैं वे ऐसा नहीं मानते. ये तो यही बता रहा है कि चापलूसों की टोली के अलावा राहुल गांधी के नेतृत्व में किसी और को भरोसा ही नहीं है.
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