टाटा नैनो को उद्योगपति बनाम किसान के रूप में पेश करते राहुल गाँधी..
गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी जिस तरह से टाटा नैनो प्लांट के बारे में बता रहे हैं उससे लगता है कि नैनो ही उनके गुजरात के सपनो की गाड़ी बनेगी.
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गुजरात में विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक पूर्व में लिए फ़ैसले पर प्रश्न उठाया. कांग्रेस पार्टी के उपधायक्ष ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते टाटा मोटर्स को साणंद में कार फैक्टरी लगने के लिए 33,000 करोड़ का कर्ज़ दिया था, पर सड़क पर एक नैनो कार नज़र नहीं आती है. राहुल गाँधी ने आरोप लगाया कि यह ही नरेंद्र मोदी का विकास मॉडल है जहाँ कुछ उद्योगपतियों को फ़ायदा मिलता है. राहुल ने आगे कहा कि यदि मोदी टाटा को 33,000 करोड़ का कर्ज़ नहीं देते तो वह रकम गुजरात के किसानों की क़र्ज़ माफ़ी में काम आ सकती थी.
हमने राहुल के आरोप सुन लिए, अब तथ्यों की पड़ताल भी कर लेते हैं...
नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते टाटा को साणंद में नैनो कार के लिए ज़मीन आवंटित की थी. जून 2010 में नैनो फैक्टरी का उद्घाटन साणंद में हुआ था. टाटा नैनो बाज़ार में इतनी सफल नहीं रही है और उसकी बिक्री लगातार ढलान पर है. फ़रवरी 2016 से साणंद की उसी फैक्टरी में टाटा की एक दूसरी कार टियागो का निर्माण हो रहा है. जहाँ टाटा नैनो कुछ कमाल नहीं कर पाई है, तो दूसरी तरफ टाटा की कार टियागो ने शानदार प्रदर्शन किया है. फ़रवरी 2016 से अक्टूबर 2017 तक टाटा ने साणंद की फैक्टरी से 1 लाख टियागो कार निर्माण कर बेच दी है. टाटा अपनी कॉम्पैक्ट सिडैन टिगोर को इलेक्ट्रिक पावरट्रेन के साथ अब साणंद प्लांट में निर्माण करने वाला है.
गुजरात की पूर्व की नरेंद्र मोदी सरकार ने व्यवसाय और रोज़गार के विस्तार के लिए टाटा को नैनो प्लांट की स्वीकृति दी थी. एक ख़ास कार का मॉडल सफल हो या विफल, इसमे राज्य सरकार कैसे ज़िम्मेदार हो सकती है? राज्य सरकार का काम व्यापारी वर्ग को मूल भूत सुविधाएँ प्रदान करना है. कार का चलना या पिटना तो ग्राहक और कार कंपनी चलाने वालों के हाथ में है.
हैरानी की बात है कि राहुल गाँधी को नैनो की विफलता तो दिख रही है पर टियागो की सफलता पर उन्होने मौन व्रत धारण किया हुआ है. राहुल, टाटा को फैक्टरी लगाने के लिए दिए गए क़र्ज़ को बड़ी चालाकी से उद्योगपतियों को नाजायज़ मदद के तौर में दिखना चाहते हैं. किसानों की कर्ज़ा माफी की बहस के साथ इस विषय को जोड़कर वह चतुर राजनीति कर रहे हैं.
चुनावों के मौसम में राहुल, सब तरह के तर्क देकर, चाहें वह ग़लत ही क्यों न हो, अपने विरोधी की नीति को ग़लत साबित करने में प्रयास्रत हैं. राहुल के लिए समस्या यह है कि अब जनता में जागरूकता बढ़ गई है, जनता इतनी आसानी से तथ्य के बिना किसी बात पर विश्वास नहीं करती है.
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