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Updated: 09 जुलाई, 2020 12:33 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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गलवान घाटी को लेकर चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद पर देश में चल रही राजनीति करवटें बदलने लगी है. राजनीतिक सवाल जवाब के तीखे दौर के बाद अब ये मसला जांच और जेल की तरफ बढ़ने लगा है - गांधी परिवार से जुड़े ट्रस्टों (Gandhi Family Trusts) में गड़बड़ी के बीजेपी के आरोपों के बाद मोदी सरकार ने जांच बिठा दी है.

गांधी परिवार के खिलाफ मोदी सरकार के एक्शन पर रिएक्शन में कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार (Narendra Modi) चीन से लड़ने के बजाय कांग्रेस से लड़ने में व्यस्त है. राहुल गांधी ने भी ट्विटर पर अपनी टिप्पणी में यही जताने की कोशिश की है कि कांग्रेस नेतृत्व ऐसी बातों से डरने वाला नहीं है.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रूख से तो ऐसा लग रहा है जैसे वो बीजेपी नेतृत्व को ललकार रहे हों और शिद्दत से चाहते हों कि केंद्र सरकार गांधी परिवार के खिलाफ एक्शन ले - और ये सब एक रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा है.

जांच के दायरे में गांधी परिवार और करीबी

गांधी परिवार पर ताजा संकट केंद्रीय गृह मंत्रालय का वो आदेश है जिसमें गड़बड़ी के आरोपों को लेकर तीन ट्रस्टों की जांच करायी जा रही है - राजीव गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट और इनकम टैक्स के नियमों के उल्लंघन का इन ट्रस्टों पर आरोप लगा है. गृह मंत्रालय ने जांच के लिए एक इंटर मिनिस्ट्रियल कमेटी भी बनाई है.

ED यानी प्रवर्तन निदेशालय के एक स्पेशल डायरेक्टर जांच टीम की अगुवाई करेंगे. हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आरोप लगाया था कि राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से चंदा मिला है जो कांग्रेस के चीन के साथ संबंधों को साबित करता है.

मोदी सरकार के इस एक्शन पर कांग्रेस की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आयी है. राहुल गांधी और रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भी अपने अपने तरीके से सरकार के एक्शन पर विरोध जताया है - कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार चीन की जगह कांग्रेस से ही दो-दो हाथ करने में व्यस्त है.

जो भी ट्रस्ट जांच के दायरे में आये हैं उनमें सीधे सीधे राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर तो आंच आने वाली है ही, करीबियों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पी. चिदंबरम जैसे नेता भी ट्रस्टी हैं. पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई कोर्ट से जमानत पर छूटे हुए हैं.

rahul, priyanka, sonia gandhiगांधी परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर जांच की आंच आने लगी है

ये तो साफ साफ नजर आ रहा है कि चीन के मुद्दे पर विपक्षी खेमे में कांग्रेस और कांग्रेस के भीतर भी राहुल गांधी अकेले पड़ चुके हैं - फिर भी बगैर रुके या किसी बात की परवाह के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राहुल गांधी के हमले जारी हैं - ऐसा यूं ही तो नहीं ही हो रहा होगा. ये तो मानना ही पड़ेगा कि राहुल गांधी एक खास रणनीति के तहत मोदी सरकार को एक्शन लेने के लिए ललकार रहे हैं.

राहुल गांधी का इरादा क्या है?

1977 में भ्रष्टाचार के आरोप में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी को छोड़ दें तो राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई के ज्यादातर चुनावी वादे जुमला ही साबित हुए हैं - हाल फिलहाल पी. चिदंबरम अपवाद हैं. कांग्रेस नेता को लुका-छिपी भरे बड़े ड्रामे के बाद सीबीआई के अफसरों ने दीवार फांद कर गिरफ्तार किया था.

रॉबर्ट वाड्रा के साथ कभी कभार ही ऐसा होता होगा जब गिरफ्तारी की तलवार न लटकती नजर आती हो. हरियाणा में विधान सभा के दो चुनाव हो गये, लेकिन चुनावी जुमलों से बात कभी आगे नहीं बढ़ पायी. 2019 के आम चुनाव से पहले ED ने रॉबर्ट वाड्रा से कई बार लंबी पूछताछ जरूर की. दिल्ली में भी और जयपुर बुलाकर भी. चुनाव बीतने के बाद से अब तक वाड्रा पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर कोई चर्चा तो सुनने को नहीं ही मिली है.

राहुल गांधी मानहानि के आरोपों से जुड़े कई मामलों में देश में जगह जगह अदालतों के चक्कर काटते रहे हैं. राहुल गांधी और सोनिया गांधी, दोनों ही नेशनल हेराल्ड केस में जमानत पर छूटे हुए हैं. सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार और कांग्रेस के मौजूदा कोषाध्यक्ष अहमद पटेल से हाल फिलहाल कई कई घंटे की पूछताछ हुई है.

और अब ये भी मान कर चलना होगा कि ट्रस्टों की जांच के दौरान राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ साथ मनमोहन सिंह और पी. चिदंबरम पर भी जांच की आंच आनी ही है. इसलिए भी क्योंकि ये चारों ही चीन के साथ सीमा विवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को घेर कर लगातार सवाल पूछते रहे हैं. सोनिया गांधी ने तो चीन के मुद्दे पर बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में सवालों की झड़ी ही लगा दी थी. सोनिया गांधी के सवालों पर प्रधानमंत्री मोदी को जवाब देना पड़ा, जिसमें उनका कहना था, 'न वहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है और न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है.'

प्रधानमंत्री के इस बयान पर कांग्रेस नेताओं के अलावा कई एक्सपर्ट ने भी सवाल उठाये. राहुल गांधी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी ऐसे बयान न देने की सलाह दी जिसका चीन गलत इस्तेमाल करे. बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से मोदी के बयान पर सफाई भी दी गयी. हालांकि, कांग्रेस और मोदी सरकार के बीच तकरार के बीच एनसीपी नेता शरद पवार प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री के बचाव में बयान देते रहे. ममता बनर्जी सहित कई मुख्यमंत्रियों ने भी प्रधानमंत्री मोदी का सपोर्ट किया. राजनीतिक दलों में शरद पवार के साथ साथ मायावती भी मोदी के सपोर्ट में खड़ी रहीं.

अब जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री के बीच हुई बातचीत के बाद चीन की फौज पीछे लौट चुकी है, कांग्रेस की तरफ से पूछा जाने लगा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी देश से माफी मांगेंगे? दलील ये है कि अगर चीन की फौज घुसी ही नहीं थी तो पीछे लौटने की बात कहां से आयी - और घुस आयी थी तो प्रधानमंत्री मोदी ने न घुसने की बात क्यों कही?

ट्रस्टों की जांच कराये जाने की घोषणा के बाद राहुल गांधी ने इसे सच की लड़ाई बताया है और कहा है कि जो लोग सच के लिए लड़ते हैं उनको न तो खरीदा जा सकता है और न ही डराया जा सकता है.

लोगों को गुरु पूर्णिमा की बधायी देते हुए भी राहुल गांधी ने अपनी लड़ाई को सच से जुड़ा समझाने की कोशिश की थी. गौतम बुद्ध के हवाले से राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा था - तीन चीजें जो देर तक छिप नहीं सकतीं - सूर्य, चंद्रमा और सत्य.

हाल ही में कांग्रेस कार्यकारिणी की मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कांग्रेस नेतृत्व के हमले को लेकर काफी देर तक चर्चा हुई थी. चर्चा में कई नेताओं ने खुल कर इसका विरोध किया, लेकिन फिर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ साथ उनके करीबी नेताओं ने विरोध करने वालों को चुप करा दिया. कई ऐसे भी रहे जो मन ही मन विरोध कर रहे थे लेकिन माहौल को देखते हुए चुप रह गये.

सवाल ये उठता है कि आखिर राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके साथियों को टारगेट करने के पीछे इरादा क्या है?

जवाब समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया. इसे काफी देर से लिये गये फैसले के तौर पर देखा गया. राहुल गांधी ने तब बताया था कि सब पहले से ही तय था लेकिन बच्चों के चलते फैसला रुका हुआ था. राहुल गांधी ने ये भी बताया कि चूंकि बच्चे बड़े हो गये हैं इसलिए वो अब तैयार हो गयी हैं. चुनावों में प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस को हुए नफा नुकसान की अलग बात है, लेकिन तभी कुछ मीडिया रिपोर्ट में प्रियंका गांधी के ये फैसला लेने की परिस्थियां अलग ही बतायी गयीं. बताया गया कि ऐसा कई बार लगा कि रॉबर्ड वाड्रा को जेल जाना पड़ सकता है. फिर तय हुआ कि ये सब ऐसे नहीं चलेगा, बल्कि सामने से मोर्चे पर भिड़ना ही होगा. पीछे हटने या हाथ पर हाथ धरे रख बैठने से कुछ नहीं मिलने वाला.

देखा भी गया कि किस तरह प्रियंका गांधी ED दफ्तर पर रॉबर्ट वाड्रा को छोड़ने गयीं और फिर लौट कर कांग्रेस दफ्तर में काम करने लगीं. जब पूछा गया तो बड़ी मजबूती के साथ कहा कि वो अपने परिवार के साथ हैं. दरअसल, ये लोगों को मैसेज देने का तरीका रहा. प्रियंका गांधी को एक पारिवारिक भारतीय महिला के तौर पर पेश किया गया जो मुसीबत के वक्त अपने परिवार और पति के साथ डट कर खड़ी रहती है. तब रॉबर्ट वाड्रा से कई बार घंटों पूछताछ भी हुई, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई. भारत-चीन विवाद के बीच कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि उसने मोदी सरकार को घेर लिया है. खासकर, मोदी के बयान पर प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान से राहुल गांधी के इरादे को बल मिला है. लिहाजा वो चाहते हैं कि ये मुद्दा हाथ से न जाने पाये.

रही बात जांच की तो ऐसा लगता है, राहुल गांधी ने इस मामले में भी प्रियंका गांधी की ही तरह सामने से भिड़ने का फैसला कर लिया है. हो सकता है ये भाई, बहन और मां तीनों का संयुक्त फैसला हो और इस पर करीबी और कानूनी सलाहकारों की भी सहमति बनी हो.

ये तो साफ है कि कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और विपक्ष के बीच भी अकेले पड़ चुकी है. ऐसा सिर्फ चीन के साथ सरहद विवाद को लेकर ही नहीं, धारा 370 और CAA जैसे मुद्दों पर भी कांग्रेस का अलग ही स्टैंड रहा जो जिसके चलते उसे अकेले रहना पड़ा है. मरता क्या न करता. बिलकुल करो या मरो जैसी हालत हो चुकी है.

अब तो यही लगता है कि कोई और रास्ता न देख राहुल गांधी तय कर चुके हैं कि अब चाहे जांच हो या जेल - लड़ाई जारी रहेगी. ऐसा करके वो एक तरीके से प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ललकार रहे हैं कि एक्शन लो, जो भी एक्शन लेना हो ले लो - लेकिन अब रुकने वाले नहीं हैं चाहे जेल हो जाये.

सवाल ये है कि क्या बीजेपी नेतृत्व को भी राहुल गांधी के इरादों में ऐसी कोई बात नजर आ रही है - अगर आ रही है तो क्या सरकार अधिकारियों को किसी भी हद तक जाने की छूट देगी? और अगर ऐसा कुछ हुआ तो उसके नतीजे क्या होंगे? भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते लोग कांग्रेस को हमेशा के लिए भुला देंगे या किसी तरह की कोई सहानुभूति पैदा हो सकती है? राहुल गांधी की रणनीति तो दादी इंदिरा गांधी जैसी ही जेल जाने की लगती है, लेकिन लगता नहीं कि बीजेपी नेतृत्व कांग्रेस इतने राजनीतिक फायदे उठाने का मौका देगा?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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