Pulwama हमले पर राहुल गांधी का सवाल शहीदों का अपमान है!
पुलवामा हमले की बरसी (Pulwama Attack Anniversary) पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ट्विटर पर तीन सवाल पूछे हैं. दो सवाल तो फिर भी ठीक हैं, लेकिन एक सवाल हमले के फायदे को लेकर है, भले ही राहुल गांधी के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हों, लेकिन ये राजनीति शहीदों के सम्मान के खिलाफ है!
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14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में CRPF के 40 जवान एक आत्मघाती आतंकी हमले में शहीद हो गये थे - अब ठीक एक साल (Pulwama Attack Anniversary) हो चुके हैं. हमले के पीछे पाकिस्तान में अड्डा बनाये आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का रोल सामने आया. सेना ने बदला लेने के लिए पाकिस्तान के बालाकोट स्थित जैश कैंप पर एयर स्ट्राइक भी किया था. जांच की जिम्मेदारी NIA को सौंपी गयी थी, लेकिन अब तक कोई भी ठोस चीज निकल कर सामने नहीं आ सकी है.
कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ट्विटर पर पुलवामा हमले की बरसी पर तीन सवाल पूछते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को निशाना बनाया है. तीन में से एक सवाल तो ऐसा है जिससे लगता है कि सवाल के नाम पर शहीदों का ही अपमान किया जा रहा है.
पुलवामा हमले पर सवाल तो बनते हैं
पुलवामा हमले के बाद जो सवाल खड़े हुए थे, उनके जवाब अब तक नहीं मिल सके हैं.
न ही पुलवामा हमले में हुई चूक के लिए किसी कर्मचारी या अफसर को जिम्मेदार ठहराये जाने की बात सामने आयी है - न ही ऐसा कोई एक्शन लिये जाने की जानकारी सरकार की तरफ से दी गयी है.
राहुल गांधी ने फिर से वही सवाल पूछा है जिनके जवाब का पूरे देश को इंतजार है - सबसे बड़ा सवाल तो यही रहा कि खुफिया जानकारी के बावजूद इतनी बड़ी चूक कैसे हो गयी कि CRPF के 40 जवानों को सरेराह शहादत देनी पड़ी? आखिर भारी मात्रा में RDX वहां तक पहुंचा कैसे? अगर इलाके में पहुंच गया था तो हमले के इरादे से निकले आतंकवादी को बेरोकटोक रास्ता कैसे मिलता गया - कहीं किसी चेक प्वाइंट पर उसे चेक करने और रोकने वाला क्या कोई भी नहीं था? ऐसा क्यों?
एक सवाल का जवाब अब तक नहीं मिल सका कि क्या 40 जवानों की जिंदगी बचायी नहीं जा सकती थी?
तमाम रिपोर्ट आयीं और उनसे ही मालूम हुआ कि हमले की आशंका लिए खुफिया जानकारी पहले ही मिल चुकी थी - फिर भी एहतियाती उपाय नहीं किये जा सके और बस में बैठे बैठे देश के 40 जांबाज उस आतंकवादी हमले के शिकार हो गये.
ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी ने ये सवाल नहीं पूछे हैं. राहुल गांधी ने 40 जवानों की शहादत को याद किया है - और सवाल भी सिर्फ अपनी ओर से नहीं बल्कि देश की जनता की ओर से पूछा है. ऐसा ट्वीट की भाषा से लगता है. सवालों से पहले राहुल गांधी ने लिखा है - 'आज जब हम पुलवामा हमले में शहीद हुए 40 सीआरपीएफ़ जवानों को याद कर रहे हैं - हम पूछ रहे हैं.'
Today as we remember our 40 CRPF martyrs in the #PulwamaAttack , let us ask:
1. Who benefitted the most from the attack?
2. What is the outcome of the inquiry into the attack?
3. Who in the BJP Govt has yet been held accountable for the security lapses that allowed the attack? pic.twitter.com/KZLbdOkLK5
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 14, 2020
राहुल गांधी ने आखिर में जो दो सवाल पूछे हैं, वे भी ठीक हैं. वे ऐसे ही सवाल हैं जो ज्यादातर लोगों के मन में हो सकते हैं. वे ऐसे ही सवाल हैं जिनके बारे में अब कोई चर्चा नहीं होती. वे ऐसे ही सवाल हैं जिनके बारे में पूछने या जवाब देने को लेकर अब कोई जहमत तक नहीं उठाता.
राहुल गांधी के जिस सवाल पर स्वाभाविक आपत्ति है, वो है - 'पुलवामा आतंकी हमले से किसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ?'
पुलवामा हमले के शहीदों पर राजनीति का कोई मतलब नहीं बनता...
बेशक राहुल गांधी को सवाल पूछने का हक है. सवाल पूछने का हक तो भारत के हर नागरिक को है, लेकिन राहुल गांधी को तो केंद्र में सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस का नेता होने के नाते भी सरकार से सवाल पूछने का हक मिला हुआ है - लेकिन क्या राहुल गांधी को ये समझ में नहीं आया कि ऐसा सवाल पूछे जाने पर शहीदों के परिवारों को कैसा लगेगा? यही न कि जवानों की शहादत राजनीतिक दलों के लिए महज एक वाकया है जिसमें से वे बड़े आराम से सियासत करने का मौका ढूंढ लेते हैं.
सवाल नहीं, पुलवामा हमले को लेकर राहुल गांधी के सवाल पूछने का अंदाज और मकसद अपनेआप सवालों के कठघरे में खड़ा हो जाता है.
ये क्या सवाल हुआ?
ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी ने इस तरह का सवाल पहली बार पूछा है. पुलवामा हमले और उसके बाद हुए बालाकोट एयर स्ट्राइक से पहले 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक पर भी राहुल गांधी की टिप्पणी थी - खून की दलाली. बाद में जब देखा कि 2017 के यूपी चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गयी तो खामोश हो गये. फिर राहुल गांधी की तरह से वैसी टिप्पणी कभी नहीं दोहरायी गयी.
पूछने को तो राहुल गांधी ने ये भी पूछा है - 'पुलवामा आतंकी हमले को लेकर हुई जांच से क्या निकला?' और - 'सुरक्षा में चूक के लिए मोदी सरकार में किसकी जवाबदेही तय हुई?'
कम ही लोग ऐसे होंगे कि राहुल गांधी के इस सवाल से इत्तेफाक नहीं रखते होंगे. भला कौन नहीं जानना चाहेगी कि पुलवामा आतंकी हमले की जांच से क्या निकल कर आया?
पिछले साल जब पुलवामा हमला हुआ तो देश में 2019 के आम चुनाव की तैयारी चल रही थी. कांग्रेस में महासचिव बनाये जाने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा लखनऊ पहुंची हुई थीं. रोड शो में राहुल गांधी भी साथ रहे और प्रियंका गांधी को बोलने तक का मौका न मिल सका. हमले के बाद बीच में ही अपना दौरा रद्द कर प्रियंका गांधी को दिल्ली लौटना पड़ा था.
आम चुनाव में प्रधानमंत्री की एक रैली में मंच पर शहीदों की तस्वीरें लगाये जाने पर विपक्ष ने खूब बवाल किया. फिर बीजेपी की तरफ से अमित शाह ने सफाई दी कि तस्वीरें रख कर मंच पर रैली से पहले शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी थी और विपक्ष ये सब समझ ही नहीं पाता. बाद में भी विपक्ष ने मोदी और शाह पर पुलवामा हमले के चुनावी राजनीति में इस्तेमाल के आरोप लगे. पलटवार में बीजेपी की तरफ से राहुल गांधी सहित पूरे विपक्ष पर पाकिस्तान की भाषा बोलने के आरोप लगाये गये.
बाकी बातें अपनी जगह और सौ की एक बात - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साफ साफ जनादेश मिला और 2014 से भी बड़ा बहुमत हासिल हुआ. फिर ये सवाल कहां बचता है कि फायदा किसे हुए और किसे नहीं. जब देश के लोग चुनाव से ठीक पहले हुए हमले को लेकर ऐसे सवालों पर ध्यान नहीं दिये, तो साल भर बाद वही सवाल खड़ा किये जाने का क्या तुक है?
वैसे भी राहुल गांधी को ऐसे सवाल पूछने से कोई नहीं रोक रहा है. राहुल गांधी पूरे चुनाव के दौरान 'चौकीदार चोर है' के नारे लगवाते रहे - लेकिन हुआ क्या? नतीजे आये तो कांग्रेस पार्टी औंधे मुंह जा गिरी. राहुल गांधी अपने ही गढ़ अमेठी में हार गये और अध्यक्ष पद भी छोड़ दिया.
राहुल गांधी ने झारखंड चुनाव के दौरान बलात्कार की बढ़ती घटनाओं को 'मेक इन इंडिया' की तर्ज पर 'रेप इन इंडिया' पर समझाने की कोशिश की थी - जिस पर महिलाओं के अपमान के साथ जोड़ते हुए सड़क से संसद तक बवाल मचाया गया. दिल्ली चुनाव के दौरान भी राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर 'डंडे मारने...' की बात कही थी. रामलीला मैदान में राहुल गांधी 'वीर सावरकर' पर उनके बयान को अपमान माना गया और महाराष्ट्र में गठबंधन साथी शिवसेना ने भी आलोचना की.
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर प्रधानमंत्री मोदी के लिए 'नीच' शब्द का इस्तेमाल कर चुके हैं. कांग्रेस के ही सीपी जोशी प्रधानमंत्री मोदी की जाति को लेकर टिप्पणी कर चुके हैं. दोनों ही मामलों में राहुल गांधी ने नाराजगी जतायी थी. मणिशंकर अय्यर के खिलाफ तो एक्शन भी लिया गया जबकि सीपी जोशी से माफी मंगवायी गयी.
एक तरफ राहुल गांधी अपने नेताओं के बयान पर एक्शन भी लेते हैं और माफी भी मंगवाते हैं - और दूसरी तरफ खुद वैसे ही बयान दे डालते हैं. आखिर अय्यर और जोशी के बयान और राहुल गांधी के 'डंडा मार' बयान में फर्क क्या है? फिर ये डबल स्टैंडर्ड क्यों?
भले ही राहुल गांधी ने अपने राजनीतिक विरोधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करने के लिए पुलवामा हमले में फायदे वाले एंगल से सवाल पूछा हो, लेकिन ये सीधा सीधा CRPF के शहीदों का अपमान है - और कुछ नहीं!
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