राहुल गांधी समझते क्यों नहीं - सोशल मीडिया लड़ाई का टूल है टारगेट नहीं
दिल्ली रेप (Delhi Rape) पीड़ित बच्ची के परिवार की तस्वीरें शेयर करने के मामले में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) खुद को ममता बनर्जी की तरफ फाइटर नहीं मान सकते - क्योंकि सोशल मीडिया (Social Media) टारगेट तो नहीं हो सकता?
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का ट्विटर अकाउंट एक्टिव तो हो गया, लेकिन चार दिन बाद भी एक्टिविटी जीरो है. ऊपर से फेसबुक ने भी एक नोटिस थमा दिया है, जबकि मामला वही है - दिल्ली कैंट एरिया की रेप पीड़त (Delhi Rape) बच्ची के परिवार की तस्वीर शेयर कर पहचान उजागर करने का.
अभी तक तो राहुल गांधी के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा और बाकी कांग्रेस नेता सिर्फ ट्विटर और बीजेपी प्रवक्ता या छोटे नेताओं से जूझ रहे थे, लेकिन अब तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खुद भी मोर्चा संभाल लिया है - और वो भी तब जब राहुल गांधी केरल में अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के दौरे पर हैं.
केरल के कोझीकोड में बीजेपी दफ्तर का उद्धाटन करते हुए जेपी नड्डा ने राहुल गांधी को सूबे में सियासी सैलानी जैसा बताया - ये याद दिलाते हुए कि कैसे वो यूपी के अमेठी में चुनाव हार गये. असल में अमेठी में बीजेपी की ही स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को दूसरे प्रयास में शिकस्त दे डाली थी. नड्डा ने कहा कि राज्य बदलने से किसी का इरादा, तौर तरीका और लोगों की सेवा करने का समर्पण नहीं बदल जाता है.
दरअसल, राहुल गांधी के खिलाफ बीजेपी के आक्रामक होने की एक और वजह मिल गयी है - रेप पीड़ित बच्ची के परिवार की तस्वीरे शेयर करने को लेकर सहमति को लेकर उठा सवाल. बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस की तरफ से परिवार के कंसेंट को लेकर झूठा दावा किया गया है.
राहुल गांधी बनाम ट्विटर और फेसबुक की लड़ाई अब रविशंकर प्रसाद के केस से भी आगे और एक बड़े ही खतरनाक मोड़ की तरफ बढ़ती नजर आ रही है. रविशंकर प्रसाद तो केंद्रीय मंत्री रहते ट्विटर और बाकी सोशल मीडिया को देश के कानून के अनुपालन के लिए कह रहे थे, लेकिन विवाद इतना बढ़ गया कि उनके मंत्री पद से हटाये जाने की वजह तक माना जाने लगा.
सबसे पहले तो राहुल गांधी के लिए ये समझना जरूरी हो गया है कि सोशल मीडिया (Social Media) किसी भी लड़ाई का माध्यम हो सकता है, लेकिन वो टारगेट नहीं हो सकता. कुछ हद तक ऐसा मुमकिन भी हो सकता है कि राजनीतिक और फिर कानूनी तरीके से लड़ाई लड़ी जाये, लेकिन स्टैंड तो सही होना चाहिये.
ट्विटर के लॉक-अनलॉक के बाद
राहुल गांधी का अकाउंट लॉक करने के हफ्ते भर बाद ट्विटर ने अनलॉक कर दिया था - और न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि अपील की प्रक्रिया के तहत राहुल गांधी का ट्विटर अकाउंट अनलॉक किया गया. ट्विटर के मुताबिक, राहुल गांधी की तरफ से ट्विटर के इंडिया ग्रिवांस चैनल को एक पत्र देने के बाद अकाउंट अनलॉक करने का कदम उठाया गया. वो पत्र, ट्विटर के मुताबिक, तस्वीरों के इस्तेमाल को लेकर एक तरह का अथॉरिटी लेटर है.
राहुल गांधी की नयी मुश्किल ये है कि रेप पीड़ित बच्ची के परिवार की तरफ से दिये गये पत्र और उसे लेकर किये गये दावे पर भी सवाल उठने लगे हैं. बीजेपी की मांग के ट्विटर को राहुल गांधी का अकाउंट फिर से लॉक कर दिया जाना चाहिये क्योंकि पीड़ित परिवार ने तस्वीरें शेयर करने को लेकर किसी भी तरह की सहमति से ही इंकार कर दिया है.
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा कह रहे हैं, 'राहुल गांधी भरोसा खो चुके हैं और वो आदतन झूठे हैं.' बीजेपी प्रवक्ता का कहना है, पब्लिक ने तो कांग्रेस का राजनीतिक अकाउंट लॉक कर ही दिया है, अब ट्विटर को भी राहुल गांधी का अकाउंट लॉक कर देना चाहिये.
राहुल गांधी की बीजेपी से लड़ाई अपनी जगह है, लेकिन सोशल मीडिया का मामला दीवार पर सिर मारने जैसा ही है!
ट्विटर ने भी राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के पत्र के बाद ही राहुल गांधी के अकाउंट के खिलाफ एक्शन लिया था. पहले तो वो ट्वीट होल्ड किया गया और फिर कांग्रेस नेता का अकाउंट लॉक कर दिया गया. अब आयोग के ही पत्र पर फेसबुक की तरफ से राहुल गांधी को नोटिस भेजा गया है.
फेसबुक ने राहुल गांधी को लिखा है, 'आपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर जो एक पोस्ट डाली है वो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के सेक्शन 74 और पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 23 का उल्लंघन करता है. आपसे गुजारिश है कि जल्द से जल्द अपनी पोस्ट हटा लें.'
बाल अधिकार आयोग ने फेसबुक के एक्शन न लेने पर समन भेज कर सफाई देने को कहा था, लेकिन जब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की तरफ से एक्शन टेकेन रिपोर्ट पेश की गयी तो आयोग ने पेशी से छूट दे दी.
राहुल गांधी जब तक ये मामला खत्म करने को लेकर जरूरी फैसला नहीं लेते, हर रोज ऐसी मुश्किलें सामने आती रहेंगी. राहुल गांधी भले ही ट्विटर या फेसबुक पर बीजेपी या मोदी सरकार के दबाव में काम करने के इल्जाम लगायें, लेकिन अगर सोशल मीडिया कंपनियों को कानून के हवाले से एक्शन लेने को कहा जाएगा तो मजबूरन उनको ऐसा करना ही पड़ेगा.
अब ये तो कतई मुमकिन नहीं है कि सोशल मीडिया भी राहुल गांधी के लिए लड़ाई लड़े. सोशल मीडिया राहुल गांधी के लिए लड़ाई लड़ने का टूल तो हो सकता है, लेकिन न तो वो टारगेट बन सकता है, न पैरोकार - और वैसी ऐसी लड़ाइयां या तो कानूनी तरीके से लड़ी जा सकती हैं या फिर संवैधानिक तरीके से.
संवैधानिक तरीका वो धा जो राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाहबानो केस में अख्तियार किया था - और कानूनी तरीका वो है जैसे खुद राहुल गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ मानहानि का मुकदमा लड़ रहे हैं.
ये लड़ाई किस अंजाम तक पहुंचने वाली है?
राहुल गांधी सोशल मीडिया से जो लड़ाई लड़ रहे हैं वो बिलकुल वैसी ही है जैसे कांग्रेस लोकतंत्र को बचाने के लिए लड़ाई लड़ती है - कांग्रेस के नजरिये से लोकतंत्र भी पार्टी ही होती है. कांग्रेस को बचाने की ही लड़ाई को लोकतंत्र का नाम भर दे दिया जाता है.
सोशल मीडिया के खिलाफ राहुल गांधी जो लड़ाई लड़ रहे हैं वो इसलिए भी लंबा नहीं टिकने वाला क्योंकि कोई जनहित का मुद्दा नहीं है. लगता नहीं कि सुप्रीम कोर्ट जाने पर भी कोई जनहित याचिका दाखिल हो पाएगी. हां, निजी हैसियत से वो अदालत से अपने लिए इंसाफ की गुजारिश कर सकते हैं.
हो सकता है इस लड़ाई में राहुल गांधी भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह खुद को फाइटर समझ रहे हैं क्योंकि वो मानते तो यही हैं कि वो केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे है.
ये भी जगजाहिर है कि राहुल गांधी माफी मांग कर अरविंद केजरीवाल की तरह झगड़ा खत्म करने के पक्षधर नहीं हैं. आरएसएस के खिलाफ मानहानि का केस इस बात का सबूत है.
महाराष्ट्र में आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने महात्मा गांधी की हत्या को लेकर संघ पर टिप्पणी के खिलाफ मुकदमा दायर किया - और उसके खिलाफ कांग्रेस नेता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गयी. सुप्रीम कोर्ट ने एक तरीके से साफ साफ बोल दिया कि आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट करके वो झगड़ा खत्म करें या फिर मुकदमा लड़ें.
अदालत का कहना रहा, 'राहुल गांधी अगर अपने बयान के लिए माफी नहीं मांगना चाहते हैं तो फिर उन्हें निचली अदालत में मुकदमे का सामना करना चाहिये. अगर उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा तो उन्हें ट्रायल का सामना करना चाहिये.'
राहुल गांधी ने माफी मांग लेने की जगह ट्रायल फेस करने का फैसला किया और तब से हर तारीख पर हाजिरी लगाते हैं और बयान देते हैं कि राजनीतिक वजहों से उनके खिलाफ साजिश की गयी है.
जिस तरह तस्वीरें शेयर करने का मामला गंभीर होता जा रहा है, नयी नयी परतें खुलने वाली लगती हैं. जिस तरह से तस्वीरों को लेकर कंसेंट लेटर पर सवाल उठा है, अगर आरोप सही पाये गये तो क्या होगा? जो भी होगा उसमें सिर्फ कानूनी फजीहत तो होगी नहीं.
अगर राहुल गांधी को भी ट्विटर के ऐंठन दिखाने पर रविशंकर प्रसाद की तरह ही गुस्सा आ रहा है, तो अपनी सरकार बनने तक इंतजार करें - अगर ये मुमकिन हो पाया तो अपने हिसाब से सोशल मीडिया पॉलिसी बनायें और कंपनियों को बाध्य करें कि वे मानने को मजबूर हों.
या फिर सत्ता हासिल होने पर चीन की तरह सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बैन कर अपनी व्यवस्था करें - लेकिन वैसी कवायद का भी कोई फायदा नहीं होता जैसा मेक इन इंडिया ऐप कू के बारे में देखने को मिला है.
एक और भी रास्ता है - निजी स्तर पर किसी को ट्विटर जैसा प्लेटफॉर्म बनाने का आइडिया दें. ऐसा ऐप बनवायें कि ट्विटर से बढ़ कर हो और लोग उसकी खासियत की वजह से शिफ्ट हो जायें - न कि वैसे जैसे व्हाट्सऐप की जगह सिग्नल पर लोगों ने अकाउंट तो बना लिये, लेकिन इस्तेमाल नहीं किये.
ट्विटर पर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के दबाव में काम करने के विरोध में कांग्रेस ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर ही कई तरह की मुहिम चलायी है - एक अभियान ने कांग्रेस नेता ट्विटर के लोगो को बीजेपी के भगवा रंग में रंग कर शेयर किये थे, लेकिन आंध्र प्रदेश में तो अलग ही रास्ता अख्तियार कर लिया.
आंध्र प्रदेश के कुछ कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी का अकाउंट लॉक किये जाने के विरोध एक खास चीज बना डाली - ट्विटर डिश. कांग्रेस नेताओं के अनुसार वे ट्विटर बर्ड को भी फ्राई करके ये डिश बनाये - और फिर उसे डाक के जरिये ट्विटर को पार्सल किया है.
ट्विटर डिश को लेकर एक वीडियो वायरल हुआ और फिर एजेंसी के जरिये मीडिया में भी आया. विरोध प्रदर्शन करने वाले नेताओं ने बताया कि वो चाहते हैं कि ट्विटर उनके बनाये डिश का स्वाद चखे और आगे से ऐसा कोई कदम उठाने से पहले सोचे.
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