वक़्त ने राहुल गांधी को आखिरकार गंभीर कर ही दिया!
चुनावी ग्राफ में लगातार नीचे आती गई कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कई दूसरे बदलावों के साथ-साथ इस फर्क से भी सामंजस्य बैठाना नहीं सीखा. उन्होंने संसद के भीतर आवंटित समय को कुछ ऐसी किताबी बातों को बताने और याद दिलाने में खर्च कर दिया जो चुनावी ‘व्यावहारिकताओं’ से परे है.
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संसद में दिए अपने ताज़ा भाषण में कई किताबी बातें कीं. किताबी बातों का अपना एक चार्म होता है. वो सुनने में अच्छी लगती हैं. किताबी बातों को किताबी इसलिए भी कहते हैं क्योंकि ज़मीन पर उनका लागू होना जटिल और मुश्किल होता है. ज़मीन पर व्यावहारिकता होती है. व्यावहारिकता से चुनाव जीते जाते हैं. लोगों के व्यवहार में अगर जाति-धर्म-वर्ग-रंग को लेकर भेदभाव गहरा हो तो इसे ‘व्यावहारिक’ मान लेना काफी सुविधाजनक है. लेकिन वास्तविकता की कसौटी पर इस तरह का कोई भी भेद या पक्षपात गलत है, नुकसानदेह है, अपराध है. चुनाव में दिए जाने वाले भाषणों और संसद के भीतर दिए जाने वाले वक्तव्यों में व्यावहारिकता और वास्तविकता का यही फर्क होता है. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये फर्क मिटा है. चुनावी ग्राफ में लगातार नीचे आती गई कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कई दूसरे बदलावों के साथ-साथ इस फर्क से भी सामंजस्य बैठाना नहीं सीखा.
सदन में अपनी बात रखते कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी
उन्होंने संसद के भीतर आवंटित समय को कुछ ऐसी किताबी बातों को बताने और याद दिलाने में खर्च कर दिया जो चुनावी ‘व्यावहारिकताओं’ से परे है. अब आप ही सोचिए कि रैलियों से लेकर संसद तक प्रखर राष्ट्रवाद के गूंजते नारों और उन नारों पर बजती तालियों के शोर के बीच ये बात कितनी बोरिंग लगती है कि संविधान के फलां अनुच्छेद में फलां बात लिखी गई है और उस बात का फलां मतलब है.
राहुल गांधी ने किसी अनुच्छेद का ज़िक्र नहीं किया लेकिन ये ज़रूर कहा कि संविधान में भारत को राष्ट्र नहीं बल्कि ‘राज्यों का संघ’ अर्थात ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ कहा गया है. देश की सर्वोच्च किताब के अनुच्छेद 1 में इसका ज़िक्र है लेकिन चूंकी सामान्य मान्यता के मुताबिक किताबी बातें बोरिंग होती हैं इसलिए हम इसकी डीटेल में नहीं जाएंगे. दिलचस्प क्या है ये जानने के लिए आपको बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के ट्विटर हैंडल पर जाना चाहिए.
राहुल गाँधी जी की मानसिकता जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धांत का है।कल लोकसभा में दिया उनका भाषण देश को टुकड़ों में बॉंटने की साज़िश है,आज उनके ख़िलाफ़ @loksabhaspeaker जी को विशेषाधिकार हनन व ग़लतबयानी का नोटिस दिया @ANI @PTI_News @MathewLiz @payalmehta100 @awasthis @amitabhnews18 pic.twitter.com/MiOYfoT8Dz
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) February 3, 2022
निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी के भाषण के दौरान भी पेगासस का मुद्दा आते ही खड़े होकर टोका था और नियम गिनाए थे. अपने इस ट्वीट में निशिकांत जी ने जानकारी दी है राहुल गांधी के खिलाफ़ लोकसभा स्पीकर को विशेषाधिकार हनन का नोटिस सौंपा गया है. नोटिस को ध्यान से पढ़ने पर आप पाएंगे कि उसमें राहुल गांधी की उसी बात के खिलाफ़ शिकायत की गई है जिसका ज़िक्र हम ऊपर कर रहे थे.
दुबे जी का मानना है कि राहुल गांधी ने राज्यों को उनके अधिकारों के प्रति उकसाकर देश को टुकड़ों में बांटने की साज़िश की है.
Dear @RahulGandhi, I thank you on behalf of all Tamils for your rousing speech in the Parliament, expressing the idea of Indian Constitution in an emphatic manner. (1/2)
— M.K.Stalin (@mkstalin) February 3, 2022
देश को टुकड़ों में बांटने वाला आरोप राहुल गांधी पर सत्ताधारी पार्टी के एक संसद सदस्य ने लगाया है तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए. लेकिन किसी राज्य का मुख्यमंत्री अगर उसी भाषण के लिए राहुल गांधी को धन्यवाद कह रहा है तो उसे और अधिक गंभीरता से लेना ही पड़ेगा. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राहुल के भाषण के बाद उन्हें ट्विटर पर धन्यवाद दिया है.
You have voiced the long-standing arguments of Tamils in the Parliament, which rest on the unique cultural and political roots that value Self Respect. (2/2)
— M.K.Stalin (@mkstalin) February 3, 2022
एमके स्टालिन ने संविधान की मूल भावना को संसद के सामने रखने और तमिलनाडु की आवाज़ उठाने के लिए शुक्रिया कहा है. स्टालिन ने इसे तमिलों के आत्म सम्मान की आवाज़ कहा है. अब आपको सोचना ये है कि एक ही भाषण को देखने के दो इतने अलग-अलग नज़रिए कैसे हो सकते हैं. दिक्कत वाली बात ये है कि इनमें से एक नज़रिया, प्रतिक्रियात्मक आरोप है.
आरोप भी कोई छोटा-मोटा नहीं बल्कि ‘राष्ट्रद्रोह’ की टक्कर का. आख़िर इस टकराव की स्थिति से निपटने का रास्ता मौजूदा दौर के हमारे नेता क्यों नहीं ढूंढ पाते ? राहुल गांधी ने अपने भाषण में सत्तापक्ष की ओर मुख़ातिब होकर एक और बात कही. उन्होंने ज़ोर देकर कहा, ‘मैं आपसे भी सीखता हूं और ये मज़ाक नहीं है ..’’ राहुल गांधी ने बीजेपी से अबतक क्या सीखा और क्या सीख रहे हैं ये उनके अलावा कोई और नहीं बता सकता.
लेकिन अच्छी बात ये है कि वो अपने विरोधियों से सीख रहे हैं और इसे खुलेआम मानने से परहेज़ नहीं कर रहे. अगर इस सीखने-सिखाने के फ़लसफ़े को धैर्य से समझिए तो आपको ऊपर पूछे गए सवाल का जवाब मिल सकता है. अलग-अलग आवाज़ों, मतों की प्रासंगिकता और उनका महत्व समझ में आ सकता है. लेकिन आख़िर बवाल केन्द्र और राज्यों के अधिकारों वाली बात पर ही क्यों.
इसे कुछेक उदाहरणों से समझते हैं. सबसे ताज़ा उदाहरण है आईएएस की पोस्टिंग-ट्रांसफर को लेकर केन्द्र और राज्य के बीच छिड़ा विवाद. केन्द्र सरकार आईएएस कैडर नियम 1954 में संशोधन करने जा रही है. संशोधन का ड्राफ्ट तैयार है और कहा जा रहा है कि सरकार संसद में बिल लाने की तैयारी में है. इस बदलाव से आईएएस अफसरों के ट्रांसफर का पावर सीधे-सीधे केन्द्र सरकार के हाथ में आ जाएगा और राज्यों की शक्ति घट जाएगी.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केन्द्र सरकार के पास चिठ्ठी लिखकर इसपर आपत्ति जताई है. उन्होंने लिखा है कि ये कदम संघीय तानेबाने और मूलभूत ढांचे को नष्ट करने वाला है. ओड़िशा और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी विरोध दर्ज कराया है. दिलचस्प बात ये है कि मध्य प्रदेश, बिहार और मेघालय की सरकारों में भी इसे लेकर नाराज़गी है.
ज़ाहिर है केन्द्र और राज्यों में सरकारें बदलती रहती हैं लेकिन नियम एक बार लागू हो जाने पर कभी न कभी हर पार्टी की राज्य सरकारों को समस्या आएगी ही. इस मुद्दे पर आगे और बवाल हो सकता है. इससे थोड़ा पीछे चलें तो सीमावर्ती राज्यों में बीएसएफ(सीमा सुरक्षा बल) की शक्तियां बढ़ाए जाने पर भी केन्द्र और राज्यों के बीच मतभेद उभरकर सामने आए थे.
गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल, असम और पंजाब में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया था. पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने संघीय ढांचे के उल्लंघन और राज्य पुलिस के अधिकारों के हनन का मुद्दा उठाकर केन्द्र सरकार के इस कदम की आलोचना की थी. राज्यों ने तर्क दिया कि चूंकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है इसलिए बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में बढ़ोतरी राज्य की शक्तियों का उल्लंघन है.
इन सबके अलावा एक विवाद नीट की परीक्षा को लेकर भी है जिसपर तमिलनाडु विधानसभा ने एक बिल पारित किया जो कहता है कि तमिलनाडु के छात्र नीट की परीक्षा में हिस्सा नहीं लेंगे और 12वीं में हासिल अंकों के अनुसार ही उन्हें राज्य के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिलेगा. इस विधेयक की मौजूदा स्थिति ये बताई जाती है कि राज्यपाल ने अभी तक इसे राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए नहीं भेजा है और इसलिए ये कानून नहीं बन सका है.
पिछले महीने जब प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु में 11 नए सरकारी मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया तो मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम को धन्यवाद देते हुए अनुरोध किया कि केन्द्र सरकार तमिलनाडु को नीट से छूट देने पर सकारात्मकता से विचार करे. इसी विवाद का ज़िक्र आज राहुल गांधी ने अपने भाषण में किया.
इस तरह के विवाद देश की राजनीति में नए नहीं हैं. लेकिन विवादों को सुलझाने के लिए चर्चा और विचारों का आदान-प्रदान ज़रूरी है. ज़रूरी नहीं कि जो गलतियां पहले की गईं उसे फिर से एक बार दोहराया जाए. और सबसे बड़ी बात कि विरोधी मतों को ‘राष्ट्रद्रोह’ के आरोपों से दबाने की कोशिश ख़तरनाक है. राहुल गांधी ने सदन में अपने भाषण के दौरान सत्तापक्ष के नेताओं की तरफ मुखातिब होते हुए कहा कि हम सभी नेशनलिस्ट हैं इसलिए चर्चा करने से न रोकें.
राहुल गांधी की राजनीति और उनके विचारों से लाख असहमति होने के बाद भी उनके इस जेस्चर की तारीफ़ होनी चाहिए. संसद के भीतर पहले के दशकों में होने वाले स्वस्थ वाद-विवाद को नॉस्टेल्जिया के तौर पर याद करना ही काफी नहीं है (ऐसा प्रधानमंत्री कई बार कर चुके हैं). उस प्रचलन को फिर से एक बार व्यवहार में लाने के लिए कोशिश करने की ज़रूरत है. राहुल गांधी ने आज अच्छा प्रयास किया है. बाकी नेता भी इस प्रयास को आगे बढ़ाएं.
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