कांग्रेस में सिद्धू वेरिएंट 'डरपोक' नेताओं और G-23 ग्रुप के लिए फायर अलार्म है!
पंजाब में नवजोत सिद्धू (Congress' Sidhu Variant) को 'कैप्टन' बनाया जाना, कांग्रेस में कमांड के ट्रांसफर की तरफ साफ इशारा करता है - राहुल और प्रियंका गांधी (Rahul and Priyanka Gandhi) की भाई-बहन की जोड़ी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से नेतृत्व का हैंडओवर ले चुकी है.
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कांग्रेस का 'कैप्टन' तो बदल गया है - और पंजाब बस नमूना भर है. असल बात तो ये है कि आलाकमान ही बदल गया है. सही मौका देख कर कागजी कार्यवाही पूरी होती रहेगी, भले ही उसे तकनीकी तौर पर संगठन का चुनाव बताया या समझा जाये. भले ही वो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का वर्चुअल माध्यम और नमूना बने, लेकिन कोई वजह बची हुई नहीं लग रही जो इनकार कर सके कि कांग्रेस में कमान का हस्तानांतरण नहीं हुआ है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू (Congress' Sidhu Variant) भी कांग्रेस में उसी पीढ़ी अंतराल के संघर्ष की मिसाल हैं जो सोनिया गांधी के निष्ठावान नेताओं और राहुल-प्रियंका गांधी वाड्रा के करीबियों से आमने सामने मुकाबला कर रहे थे, लेकिन अब वो दौर करीब करीब खत्म हो चुका है. जैसे हरीश रावत ने सिद्धू पर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के फैसले की पहले ही झलक दिखा दी थी, सिद्धू एपिसोड भी भविष्य के कांग्रेस की छोटी सी झांकी ही है.
नये आलाकमान को लेकर कहने या सोचने समझने की भी जरूरत नहीं रह गयी है - और भी कि अघोषित नये नेतृत्व को कांग्रेस की पंजाब में सत्ता वापसी में भी कोई खास दिलचस्पी रह गयी है, अगर ऐसा होता तो जानबूझ कर जोखिम उठाने की जरूरत की क्या थी?
बेशक कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री हैं और 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का चेहरा पहले की तरह बने रहेंगे, लेकिन नये चेहरे की चमक पुराने मॉडल को फीकी नहीं करेगी, ऐसा कैसे हो सकता है. अब जब इतना सब हो ही चुका है तो उम्मीदवारों की सूची में दबदबा भी नये निजाम का ही होगा.
कई बार छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए भी बड़ी चीजें गंवानी पड़ती है या जोखिम उठाना पड़ता है - क्योंकि उसके पीछे एक खास सोच होती है. एक खास मकसद होता है. मकसद तो मालूम है, लेकिन नफा नुकसान के हिसाब से ये सोच कैसी समझी जाये है ये तो नतीजे ही बताएंगे - और ये नतीजे पंजाब चुनाव के नहीं, बल्कि आने वाले दिनों की कांग्रेस की दशा और दिशा भी तय करेंगे - दरअसल, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा (Rahul and Priyanka Gandhi) की तरफ से ये सख्त मैसेज देने की कोशिश है - जिसके दायरे में सिर्फ G23 ही नहीं, बल्कि वे नेता भी हैं जो राहुल गांधी के पैमाने पर निडर नहीं साबित होते.
कांग्रेस भी बीजेपी की तरह नर्सरी तैयार कर रही है
जैसे बीजेपी नेतृत्व मोदी कैबिनेट के जरिये क्षेत्रीय नेताओं दिल्ली में नर्सरी तैयार कर रहा है, नवजोत सिंह सिद्धू को भी कांग्रेस के पॉलिटिकल प्ले स्कूल के केस स्टडी के तौर पर लिया जाना चाहिये.
नवजोत सिंह सिद्धू ऐसे तीसरे नेता हैं जिन्हें कांग्रेस ने एक महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी की कमान सौंपी है - सिद्धू से पहले महाराष्ट्र में नाना पटोले और तेलंगाना में विरोध के स्वर की परवाह न करते हुए रेवंत रेड्डी को पीसीसी सौंपी जा चुकी है. इंदिरा गांधी के ऑपरेशन ब्लू स्टार और चौरासी के दिल्ली सिख दंगों की वजह से पंजाब पर कांग्रेस नेतृत्व के लिए बड़ा स्टैंड ले पाना हमेशा ही मुश्किल रहा है - और ये तो सीधे आग में हाथ डाल कर दो दो हाथ करने जैसा लगता है.
अगर ये कांग्रेस का भाजपायीकरण नहीं तो क्या है - अब तक तो बीजेपी के कांग्रेसीकरण की बातें हुआ करती थीं, अब तो कांग्रेस में भाई-बहन की जोड़ी भी मोदी-शाह की आंख मूंद कर कॉपी करने लगी है.
सिर्फ पंजाब नहीं, सिद्धू के साथ ही कांग्रेस का भी 'कैप्टन' बदल गया है!
राहुल गांधी अब तक जो भी प्रयोग करते रहे हैं. हमेशा ही विरोध फेस करने पड़े हैं. राहुल गांधी ने कांग्रेस में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत करनी चाही तो विरोध होने लगा. कोशिशें की और कुछ हद तक कामयाब भी हुए, लेकिन ओल्ड-गार्ड के आगे हथियार डाल देने पड़े. राफेल से लेकर जम्मू-कश्मीर और चीन ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख करने को लेकर भी हमेशा ही राहुल गांधी के सामने सलाहियत की फेहरिस्त खड़ी कर दी गयी.
सोनिया गांधी भले ही 2019 में बीजेपी को सत्ता में आने से रोक देने के दावे करती रहीं, लेकिन राहुल गांधी का अमेठी के साथ साथ केरल के वायनाड से नामांकन साफ साफ संदेश था कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को भी अनहोनी की आशंका हो चुकी थी. नामांकन के वक्त मौके पर मौजूद प्रियंका गांधी ने अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी थी.
प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्विटर पर लिखा, "मेरा भाई, मेरा सच्चा दोस्त - और अब तक जितने लोगों को मैं जानती हूं, उनमें सबसे साहसी इंसान. वायनाड के लोगों आप बस खयाल रखना, वो आपको निराश नहीं करेंगे."
My brother, my truest friend, and by far the most courageous man I know. Take care of him Wayanad, he wont let you down. pic.twitter.com/80CxHlP24T
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) April 4, 2019
तब से लेकर अब तक प्रियंका गांधी वाड्रा अपने भाई राहुल गांधी के साथ बिलकुल वैसे ही खड़ी नजर आयी हैं. बगैर इस बात की परवाह किये कि राहुल गांधी किस मुद्दे पर क्या स्टैंड लेते हैं, प्रियंका गांधी वाड्रा की हर हां में हां नजर आती रही है. ये बात तब भी दिखी जब 2019 की हार के बाद कार्यकारिणी की पहली मीटिंग में राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की - और अब भी जब पंजाब को लेकर राहुल गांधी सिद्धू से भी मिलने को तैयार नहीं हो रहे थे. प्रियंका गांधी ने पूरा ताना बाना राहुल गांधी के मन मुताबिक ही बुना और उसे अंजाम तक पहुंचाने तक डटी रहीं.
राहुल गांधी के कमान संभालने और कांग्रेस अध्यक्ष कुर्सी छोड़ने तक कांग्रेस में दो-दो पावर सेंटर बने रहे - और इसके लिए एक तरफ से मोर्चे पर अहमद पटेल हुआ करते और दूसरी तरफ से राजीव सातव अपनी अपनी श्रद्धा के मुताबिक मोर्चा संभाले रहते थे. ये पार्टी की बदकिस्मती रही कि ये दोनों ही नेता दुनिया ही छोड़ कर चले गये.
राहुल गांधी ने कांग्रेस में निडर और डरपोक नेताओं की आरएसएस के नाम पर जो लाइन तय की है - उसमें प्रियंका गांधी वाड्रा की भूमिका भर ही नहीं है, वो पूरी तरह उसमें फिट भी हो जाती हैं.
काफी दिनों से राहुल गांधी भी महसूस करते आ रहे हैं कि कांग्रेस में अगर कोई उनकी लाइन वाली राजनीति की ब्लाइंड-सपोर्टर है तो वो सिर्फ प्रियंका गांधी वाड्रा ही हैं. बेटे की जगह कोई और होता तो कुछ और भी समझा जाता, लेकिन ये तो साफ है कि सोनिया गांधी अब अपनी राजनीतिक विरासत पूरी तरह सौंप चुकी हैं - तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी कहता है कि भाई-बहन की ये जोड़ी कांग्रेस की कमान पूरी तरह अपने हाथों में ले चुकी है.
समझने के लिए भी, फर्ज कीजिये - अगर उत्तर प्रदेश में कोई अदना सा नेता भी बीजेपी से बगावत करके कांग्रेस की तरफ हाथ बढ़ाये तो भाई-बहन आगे बढ़ कर हाथ थामने की कोशिश करेंगे, कहीं ऐसा न हो अखिलेश यादव झटक लें. तेलंगाना का केस अलग है, लेकिन महाराष्ट्र में तो नाना पटोले ने बीजेपी में बगावत तभी की थी जब केंद्र में मोदी सरकार के साथ साथ महाराष्ट्र में भी सरकार की अगुवाई बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ही कर रहे थे. इसलिए यूपी में बीजेपी की सत्ता में वापसी तय होने के बावजूद अगर कोई बगावत कर बैठे तो अचरज की बात नहीं हो सकती.
कैप्टन और सिद्धू दोनों कांग्रेस के एक ही दौर के दो अलग अलग मॉडल हैं - और सिद्धू ने नये मेक-अप के साथ खुद को नये वेरिएंट के तौर पर पेश किया है जो भाई बहन की राजनीति को पसंद भी आ रहा है.
सिद्धू की पाकिस्तान परस्त छवि को प्रश्रय मिलना राजनीतिक के मौजूदा दौर में काफी जोखिमभरा लगता है - लेकिन भाई-बहन ने आगे बढ़ कर ये कैलकुलेटेड रिस्क लिया है - जिस तरह सिद्धू अपने पाकिस्तान प्रेम के चलते देशद्रोही कठघरे में खड़े हुए, कैप्टन तो असली देशभक्त ही साबित होते हैं - और पाकिस्तान के प्रति उनका साफ और सख्त स्टैंड भी ऐसा रहा है कि बीजेपी कम से कम राष्ट्रवाद के एजेंडे में उनका शिकार करने की कोशिश भी नहीं कर पायी.
आम चुनाव में तो राहुल गांधी को भी बीजेपी ने एंटी-नेशनल एलिमेंट के रूप में ही प्रचारित किया था - जिसके भाषणों पर सरहद पार पाकिस्तान में ताली बजती है, जो पाकिस्तान हेडलाइन बनने के लिए काम करते हैं.
ऐसा लगता है, राहुल गांधी को सिद्धू में भी अपनी जैसी ही छवि नजर आती होगी - खुद के लिए प्रोटेक्ट करना किसी के लिए भी मुश्किल होता है, लेकिन किसी दूसरे को मोहरा बना कर काउंटर तो किया जा सकता है.
चूंकि राहुल गांधी लोगों में ऐसी पैठ नही रख पाये हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह अपने नाम के पहले चौकीदार जोड़ कर कांग्रेस के 'चौकीदार चोर है...' या फिर 'हूं छूं विकास', 'हूं छूं गुजरात' बोल कर 'विकास पागल है' जैसे हिट कैंपेन की हवा निकाल दें. राहुल गांधी ने ठीक वैसे ही बीजेपी की मुहिम को काउंटर करने के लिए सिद्धू को आगे कर दिया है.
सिद्धू के नाम पर कांग्रेस नेतृत्व की मुहर के जरिये ये संदेश देने की भी कोशिश लगती है कि पार्टी ने अब राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला नये तरीके से करने जा रही है. ये भी संभव है कि अगले साल के आखिर में गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी न मंदिरों में घूमते दिखें और न ही शिवभक्त जनेऊधारी के तौर पर उनको दिखाने की कोशिश हो.
संभव था, अगर अहमद पटेल होते तो राजीव सातव के तमाम प्रयासों के बावजूद कैप्टन अमरिंदर को ये दिन नहीं देखने पड़ते - लेकिन राहुल गांधी जब अपने कॉलेज के दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया की परवाह नहीं करते तो राजीव गांधी के दून स्कूल के सहपाठी कैप्टन अमरिंदर सिंह को भला क्यों तवज्जो देते?
मान कर चलना होगा, राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के झगड़े में पंजाब की पुनरावृत्ति देखने को नहीं मिलेगी - क्योंकि अपनी अपनी वजहों से दोनों ही राहुल गांधी के कांग्रेसी होने की परिभाषा के दायरे से बाहर हो जाते हैं.
पंजाब जैसा नहीं होगा राजस्थान का फैसला
राहुल गांधी के मन में ये तो है ही कि अशोक गहलोत और कमलनाथ ने अपने बेटों को टिकट दिलाने के लिए पार्टी की परवाह नहीं की. प्रियंका गांधी ने भी तो ऐसे नेताओं को कांग्रेस पार्टी का हत्यारा ही बता डाला था - देखा जाये तो अशोक गहलोत और कमलनाथ दोनों के लिए ही खतरे की घंटी बज रही है.
अहमद पटेल के बाद सोनिया गांधी के चलते ही कमलनाथ एक्टिव हुए थे. ये बात अलग है कि कमलनाथ में गांधी परिवार की हर पीढ़ी के साथ ट्यूनिंग फिट कर लेने की खूबी है. इंदिरा गांधी के जमाने में तो संजय गांधी के दोस्त ही रहे. राजीव गांधी आये भी तो इंदिरा गांधी रही हीं, वैसे ही राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद भी संभालने के लिए सोनिया गांधी के मन के खिलाफ बहुत कुछ तो नहीं ही हो पाता रहा.
गांधी परिवार के करीबी बन कर अशोक गहलोत ने जो उत्पात मचा रखा है, भाई-बहन की नजर उस बात पर भी तो होगी ही. वो भी समझ रहे हैं कि कैसे अजय माकन को नजरअंदाज कर अशोक गहलोत एक तरीके से सोनिया गांधी को ही इग्नोर करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वो शायद भूल चुके हैं कि पावर सेंटर अब 12, तुगलक लेन में शिफ्ट हो चुका है. सिद्धू के आइडिया ऑफ न्यू पंजाब पर पहला विचार भी वहीं हुआ था और मुहर भी वहीं लगी थी - 10, जनपथ तो सिर्फ दस्तखत करने के लिए कागज भेजा गया था.
अशोक गहलोत और कमलनाथ ने भले ही G23 की सदस्यता के लिए चिट्ठी पर हस्ताक्षन न किये हों, लेकिन रिस्क जोन में तो दाखिल हो ही चुके हैं - अब 'सरवाइवल ऑफ फिटेस्ट' के पैमाने पर कौन फिट होता है, ये उनकी अपनी काबिलियत होगी.
राहुल गांधी की पुरानी टोली में से गौरव गोगोई ही अपने नेता की नजरों में बेदाग बचे हुए हैं - नये पैमाने में गौरव गोगोई को निडर कांग्रेसी भी समझा जा सकता है, लेकिन सचिन पायलट की तरह ही मिलिंद देवड़ा भी नये नेतृत्व की नजरों में G23 के आस पास ही नजर आ रहे होंगे. अब ऐसे सारे नेताओं को या तो डर के आगे जीत के फॉर्मूले पर हर बात पर हां में हां मिलाने को तैयार हो जाना चाहिये - या फिर जल्द से जल्द रिटायरमेंट प्लान या नया ठिकाना चुन लेना चाहिये - कांग्रेस अब एक ऐसे पड़ाव की तरफ बढ़ रही है - स्क्रैप से शुरुआत के संकेत दे रहा है.
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