छापे और सियासत: एनडीटीवी और मोदी का टकराव पुराना
यदि कोई ये समझ रहा है कि मोदी के सरकार बनाने के बाद से उनका एनडीटीवी से टकराव हुआ तो वे अपने फैक्ट दुरुस्त कर लें.
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केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारियों ने सोमवार को वरिष्ठ पत्रकार और नई दिल्ली टेलीविजन (एनडीटीवी) के सह संस्थापक प्रणय रॉय और उनके संगठन से जुड़े दूसरे परिसर के आवास पर छापा मारा था. एनडीटीवी ने इसे मीडिया की स्वत्रंता पर हमला बताया है.
सोमवार सुबह, सीबीआई ने दिल्ली से लेकर देहरादून में चार अलग-अलग जगहों पर छापे मारे साथ ही रॉय के निजी घर भी, इस छापेमारी में शामिल थे.
राजनीतिक गलियारों में इसका तीखा विरोध हो रहा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से लेकर बंगाल की मुख्यमंत्री इस छापेमारी का विरोध किया है. साथ ही एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी गहरी चितां व्यक्त की है. उन्होंने बयान जारी कर कहा कि सीबीआई द्वारा एनडीटीवी के दफ्तरों और उसके प्रमोटर्स पर की गई छापेमारी की निंदा की.
कहानी एक पहलू ये भी है कि मोदी सरकार या बीजेपी से एनडीटीवी का टकराव काफी पुराना है, तो आइए कुछ ऐसी पर एक नज़र डालते है :
नवंबर 2016 में मोदी सरकार ने एनडीटीवी ग्रुप के हिंदी न्यूज चैनल एनडीटीवी इंडिया पर एक दिन का बैन लगाने का फैसला किया था. सरकार का कहना था कि एनडीटीवी इंडिया ने पठानकोट आतंकी हमले के दौरान एयरबेस की गोपनीय जानकारी प्रसारित की थी. हालांकि, एनडीटीवी का कहा था कि उस दिन सभी चैनलों की कवरेज एक जैसी ही थी और एनडीटीवी इंडिया की कवरेज संतुलित थी.
साल 2002 में गुजरात में हिन्दू और मुस्लिमों के बीच भयानक दंगे भड़क गये थे. उस समय के देश के तीन बड़े चैनल जी न्यूज, आज तक और स्टार न्यूज (उस वक्त इसका संपादकीय प्रभार एनडीटीवी के पास था) ने इसकी रिपोर्टिंग इसमें शामिल भीड़ के धर्म की पहचान के साथ की थी. दंगे भड़कने पर जी न्यूज और आज तक ने अपने संवाददाताओं को कहा कि वे इस दौरान हिंदू और मुस्लिम टर्म का इस्तेमाल करने से बचे. लेकिन स्टार न्यूज के लिए राजदीप सरदेसाई और बरखा दत्त काम कर रहे थे, इन्होंने पीड़ितों के समुदाय की पहचान जाहिर करने का फैसला लिया. यह घटना का सच दिखाने के लिए जरूरी था. यह जानकारी नलिन मेहता ने अपनी बुक ‘India onTelevision: How Satellite News Channels Have Changed the Way We Think and Act’ में दी है.
इसके बाद नरेंद्र मोदी की छवि एक कट्टरपंथी की बन गई. वहीं मोदी ने बरखा दत्त और राजदीप सरदेसाई के चैनल पर दंगा भड़काने का आरोप लगाया. इसके बाद ही एनडीटीवी और पीएम मोदी में तनातनी शुरू हुई, जो कि अभी तक चल रही है. इसके बाद भी इसके कई उदाहरण देखने को मिले. एक इंटरव्यू में पत्रकार मधु किश्वर से मोदी ने कहा था, ‘गुजरात दंगों के दौरान उन्होंने खुद राजदीप और बरखा दत्त को फोन किया था और दंगे बढ़ाने के लिए उन्हें सुनाया था.’ उन्होंने बताया कि उन्होंने राजदीप को धमकी भी दी थी कि अगर वे अपनी ऐसी रिपोर्टिंग नहीं बंद करेंगे तो उनके चैनल को बैन कर दिया जाएगा. लेकिन चैनल ने अपनी रिपोर्टिंग बंद नहीं की तो नरेंद्र मोदी (तत्कालीन गुजरात सीएम) ने चैनल को एक दिन के लिए बैन कर दिया था.
इसके बाद भी सालों तक एनडीटीवी ने मोदी का 2002 के दंगों को लेकर पीछा नहीं छोड़ा. साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान एनडीटीवी के विजय त्रिवेदी ने पीएम मोदी से एक हेलीकॉप्टर में इंटरव्यू करते हुए 2002 के बारे में सवाल पूछा. इसके बाद मोदी पहले की तरह चुप्पी साध गए. उन्होंने उसके बाद त्रिवेदी के एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया था. इसके बाद कारवां मैगजीन ने रिपोर्ट में लिखा था कि पीएम मोदी ने त्रिवेदी को हेलीकॉप्टर से उतार दिया था और उन्हें सड़क के रास्ते आना पड़ा. मोदी ने बाद में किश्वर को बताया था कि ‘त्रिवेदी ने झूठी अफवाह फैलाई कि जब उन्होंने कठिन सवाल पूछे तो मैं उन्हें आसमान में ही हेलीकॉप्टर से नीचे फेंकने वाला था.’ मोदी ने किश्वर को बताया कि उस दिन उन्होंने तय कर लिया था कि वे कभी भी एनडीटीवी को इंटरव्यू नहीं देंगे और उनके किसी भी सवाल का जवाब नहीं देंगे.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले फिर एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार राजदीप सरदेसाई (उस वक्त सरदेसाई सीएनएन-आईबीएन के लिए काम कर रहे थे) ने पीएम मोदी से 2002 दंगों के बारे में सवाल पूछा. हालांकि, मोदी ने इस बार भी चुप्पी साध ली और राजदीप के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया. चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने एनडीटीवी, बरखा दत्त और राजदीप को कभी भी इंटरव्यू नहीं दिया. हालांकि, एनडीटीवी लगातार अपने स्टूडियो से पूछता रहा कि क्या पीएम मोदी को साल 2002 के दंगों के लिए माफी मांगनी चाहिए?
2014 लोकसभा चुनाव के दौरान एनडीटीवी ने एक ट्वीट में गलत तरीके से सुषमा स्वराज के बारे में जानकारी दी थी, जिसके बाद भाजपा ने एनडीटीवी के किसी भी पैनल डिस्कशन में हिस्सा ना लेने का फैसला किया था. हालांकि, इस ट्वीट को लेकर एनडीटीवी और बरखा दत्त ने बाद में माफी भी मांगी थी.
मई 2016 में मोदी सरकार के कपड़ा मंत्रालय ने एनडीटीवी की टैक्सटाइल विंग के साथ एक डील की थी. लेकिन कथित मोदी समर्थकों के विरोध की वजह से मंत्रालय ने यह डील रद्द कर दी.
( कंटेंट : नीरज चौहान, इंटर्न, ichowk.in )
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