बाल ठाकरे की विरासत पर 'राज' की तैयारी से BJP-शिवसेना झगड़ा और बढ़ेगा!
बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackeray) ने तो अपनी तरफ से उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को पूरी शिवसेना को हैंडओवर कर दिया था, लेकिन उनके राजनीतिक तेवर की विरासत पीछे छूट गयी थी - राज ठाकरे (Raj Thackeray) उसी को हथियाने की कोशिशें चल रही हैं.
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महाराष्ट्र में राज ठाकरे (Raj Thackeray) का नया अवतार सामने आ गया है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने राज ठाकरे के नये अवतार को एक खास नाम भी दे दिया है - हिंदू जननायक. जाहिर है, मनसे का मकसद राज ठाकरे को कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाले नेता के तौर पर नये सिरे से स्थापित करना है.
राज ठाकरे के नये अवतार के जो पोस्टर लगाये गये हैं, उसमें उनको बाला साहेब ठाकरे की तरह पेश किया गया है - माथे पर टीका से लेकर चश्मे के फ्रेम तक और भगवा चोला भी काफी हद तक मिलता जुलता है. टीका तो उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे भी लगाते हैं, लेकिन राज ठाकरे के पोस्टर में उग्र मिजाज दिखाने की कोशिश की गयी है.
और एक पोस्टर में तो एंग्री हनुमान के साथ राज ठाकरे की तस्वीर लगायी गयी है. हनुमान के बहाने हिंदुत्व का रक्षक जताने की कोशिश है. मनसे का एंग्री हिंदू नेता ही हिंदू जननायक है. महाराष्ट्र की राजनीतिक बिसात पर ये शिवसेना को शह देने की कवायद है.
बाकियों की तरह शिवसेना में भी, बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackeray) के जमाने में ही, नरम दल और गरम दल बन गये थे. नरम दल के नेता उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) हुआ करते थे और गरम दल के राज ठाकरे. बेशक बाल ठाकरे को भी अंदाज तो राज ठाकरे का ही ज्यादा पसंद आता होगा, लेकिन वो बेटे तो थे नहीं लिहाजा उद्धव ठाकरे को ही चुनना पड़ा क्योंकि विरासत तो बेटे को ही सौंपनी थी. 2005 में ये फैसला हो जाने के बाद राज ठाकरे ने अलग रास्ता अख्तियार करने का फैसला किया - और सारा घर बार छोड़ दिया.
राज ठाकरे की शुरू से ही कोशिश रही है, खुद को बाल ठाकरे के मिजाज वाली राजनीति का वारिस साबित करने की. राज ठाकरे ने अपनी नयी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने के बाद अपने कार्यकर्ताओं को सड़कों पर पुरानी शिवसेना की तरह उत्पात मचाने के लिए छोड़ दिया. पहले ये बाहरियों के खिलाफ हुआ करता था. महाराष्ट्र में बाहरी बोले तो यूपी-बिहार यानी पूर्वांचल के लोग होते हैं.
संघ के मनमाफिक राज ठाकरे ने बदला पैंतरा: अब ट्रेंड बदला है. स्थानीय और बाहरी की लड़ाई में हिंदुत्व की राजनीति में ही बंटवारा हो जाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ये कतई नहीं चाहता. राज ठाकरे भी अब निशाना बदल चुके हैं. अब उनके निशाने पर वे लोग हैं जो हिंदुत्व के खिलाफ हैं - तभी तो योगी आदित्यनाथ की वो मिसाल देते फिर रहे हैं और यूपी की बीजेपी सरकार की खुले मन से तारीफ.
संघ कभी शिवसेना के खिलाफ जाने की बात नहीं करता. शिवसेना से गठबंधन तोड़ने के बाद देवेंद्र फडणवीस का तोड़ फोड़ करके 72 घंटे के लिए मुख्यमंत्री बन जाना संघ को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा होगा. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तो देवेंद्र फडणवीस को आगाह भी किया था, लेकिन वो नहीं माने.
राज ठाकरे के निशाने पर अभी सिर्फ मुसलमान हैं. वो चाहते हैं कि केंद्र सरकार मुस्लिम बस्तियों में छापेमारी करे. राज ठाकरे का दावा है कि महाराष्ट्र की मुस्लिम बस्तियों में पाकिस्तान समर्थक रहते हैं - और मस्जिदों से लाउडस्पीकर न उतारने पर वो अल्टीमेटम भी दे चुके हैं - मस्जिदों के सामने लाउडस्पीकर से तेज आवाज में हनुमान चालीसा बजाया जाएगा.
उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब ठाकरे की राजनीति का जो हिस्सा छोड़ दिया, राज ठाकरे का मकसद उसी को हासिल करना है.
संघ का मानना है कि हिंदुत्व की राजनीति तभी सफल हो सकेगी जब जातीय राजनीति खत्म होगी. यूपी चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह और योगी आदित्यनाथ की मदद से संघ का ये काम आसान कर दिया है.
और देखिये - महाराष्ट्र में भी राज ठाकरे जातीय राजनीति का मुद्दा उठा रहे हैं. एनसीपी नेता शरद पवार पर वो जातीय राजनीति करने का बड़ा आरोप लगा रहे हैं. शरद पवार को नास्तिक साबित करके उनको भी कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के जरिये घेरने की कोशिश हो रही है - शरद पवार और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाने के बाद तो उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व की राजनीति को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश हो रही है.
और तो और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी पत्र लिख कर उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व को ललकार चुके हैं. कोविड 19 के प्रकोप के बाद मंदिरों को खोलने को लेकर उद्धव ठाकरे पर ऐसे ही ताना मारा जाता रहा है.
उद्धव ठाकरे भी मौका निकाल कर बताते रहते हैं कि जो लोग अपने हिंदुत्व के श्रेष्ठ होने का ढिंढोरा पीट रहे हैं, उनसे बड़े मकसद के साथ वो हिंदुत्व की राजनीति करते हैं - और उसमें नफरत की गुंजाइश नहीं होती. संघ और बीजेपी के विरोधी उन पर हिंदुत्व के नाम पर नफरत फैलाने के आरोप लगाते हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मुंह से अक्सर ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं. और अब वैसी ही बातें उद्धव ठाकरे भी करने लगे हैं. वैसे भी महाराष्ट्र की सरकार में दोनों नेताओं की पार्टियां पार्टनर जो हैं.
बाल ठाकरे की विरासत हासिल करने की जंग
बाला साहेब ठाकरे ने तो अपने हिसाब से अपनी विरासत बेटे उद्धव ठाकरे को सौंप दी थी. राज ठाकरे को तभी समझ में आ गया था कि राजनीतिक विरासत को संपत्ति की तरह किसी के हवाले नहीं किया जा सकता. चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और अपने राजनीतिक मिजाज को राज ठाकरे अच्छी तरह समझते थे - शायद इसीलिए उम्मीद नहीं छोड़ी और अपनी मुहिम में जुट गये.
उद्धव ठाकरे के हाथ में कमान आते ही शिवसेना बदलने लगी. और बदलती बदलती यहां तक आ पहुंची कि नये नेतृत्व ने विचारधारा के उस पार जाकर कांग्रेस और उसी की पैदाइश एनसीपी जैसी पार्टी से हाथ मिला लिया. शिवसेना सत्ता पर काबिज हो चुकी है, जबकि राज ठाकरे की पार्टी के पास एकमात्र विधायक है.
राज ठाकरे ने कोशिशें तो बहुत की लेकिन अब तक फेल ही होते रहे हैं. राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के विपरीत पुराने मिजाज वाली शिवसेना के नक्शे कदम पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन वो ओरिजिनल और डुप्लीकेट का फर्क नहीं समझा पाये. मनसे की सारी पैंतरेबाजी धरी की धरी रह गयी और लोगों का ध्यान नहीं खींच सकी.
सड़कों पर जब मनसे कार्यकर्ताओं को लोगों ने शिवसैनिकों की तरह नहीं स्वीकार किया तो राज ठाकरे नये नुस्खे अपनाने की कोशिश करने लगे. चुनावों में लोगों का समर्थन न मिलना मनसे के मौजूदा स्वरूप को खारिज किये जाने का सबूत रहा है.
2020 में राज ठाकरे ने पार्टी का झंडा बदल दिया. बदलाव के लिए मौका भी खास चुना गया, जिस दिन शिवसेना बाल ठाकरे की जयंती मना रही थी - 23 जनवरी. राज ठाकरे ने झंडा तो बदला ही, अवसर विशेष का ध्यान रखते हुए बेटे अमित ठाकरे को भी पार्टी में विधिवत एंट्री दिला दी.
एक तरह से ये मातोश्री के युवराज आदित्य ठाकरे के समानांतर बेटे को लांच करने की राज ठाकरे की कोशिश रही. आदित्य ठाकरे के रूप में पहली बार कोई चुनाव मैदान में उतरा था और जीतने के बाद राज्य सरकार में मंत्री भी बना.
पहले मनसे के झंडे में नीला, सफेद, भगवा और हरा जैसे कई रंग थे. कट्टर हिंदुत्व के राजनीतिक मिजाज के बावजूद झंडे के जरिये सर्वधर्म समभाव का संदेश देने की कोशिश रही होगी. ताकि सर्वमान्य स्वीकार्यता मिल सके.
बदलाव दोनों ही सूरत में जरूरी होता है. लगातार असफल होने पर नया कलेवर देने की कोशिश में - और लगातार सफल रहने पर उसे नया कलेवर देकर कायम रखने के लिए. राज ठाकरे ने भी ऐसा ही कुछ सोच कर किया होगा.
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का नया झंडा पूरी तरह भगवा रंग में तैयार किया गया. झंडे में शिवाजी महाराज के शासन काल की मुद्रा को भी जगह दी गयी - और संस्कृत में श्लोक भी लिखा गया. फिलहाल उसी प्रयास को आगे बढ़ाने की कवायद चल रही है.
हनुमान जयंती के पहले ही एक्टिव हो गये थे राज ठाकरे: जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मोरबी में वीडियो कांफ्रेंसिग के जरिये हनुमान की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का उद्घाटन कर रहे थे, राज ठाकरे हनुमान जयंती पर पुणे के हनुमान मंदिर में महाआरती की तैयारियों में जुटे हुए थे.
दूसरी तरफ, शरद पवार की पार्टी एनसीपी की तरफ से पुणे में ही सर्वधर्म कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थी, जिनमें मंदिर में इफ्तार की बातें भी बतायी गयी थीं. बिहार चुनाव के दौरान चिराग पासवान तो खुल कर अपने को मोदी का हनुमान बता रहे थे, राज ठाकरे ने ऐसा भले न कहा हो लेकिन राजनीतिक लाइन तो वैसी ही लग रही है. जैसे यूपी चुनाव में मायावती को बीजेपी की सबसे बड़ी मददगार के तौर पर महसूस किया गया.
राज ठाकरे ने मौके की नजाकत को काफी पहले ही भांप लिया था. तभी तो महाराष्ट्र के साथ साथ अजान के खिलाफ लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा के पाठ का असर यूपी में बनारस तक देखने को मिल रहा है.
राज ठाकरे ने ऐलान कर रखा है, 'मस्जिदों में लाउडस्पीकर 3 मई तक बंद हो जाने चाहिये... नहीं तो हम लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा चलाएंगे.' कहते हैं, ये धार्मिक नहीं सामाजिक मुद्दा है... मैं राज्य सरकार को कहना चाहता हूं कि हम इस मुद्दे पर पीछे नहीं हटेंगे - आप जो चाहें कर लें.'
शिवसेना और मनसे आमने सामने
केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए शिवसेना ने हाल ही में बीजेपी के साथ आमने सामने की लड़ाई शुरू करने का फैसला किया था. ऐसा तब हुआ जब केंद्रीय जांच एजेंसियों ताबड़तोड़ कार्रवाई हो रही थी. एनसीपी नेताओं अनिल देशमुख और नवाब मलिक को तो गिरफ्तार ही कर लिया गया, संजय राउत की पत्नी और उद्धव ठाकरे के साले की तो करोड़ों की संपत्ति ही जब्त कर ली गयी.
लेकिन अब तो ऐसा लग रहा है जैसे शिवसेना और राज ठाकरे की मनसे आमने सामने आ खड़े हुए हों - और बीजेपी नेतृत्व परदे के पीछे बैठ कर मंद मंद मुस्कुरा रहा हो.
राज ठाकरे को इग्नोर करने की कोशिश हो रही है: राज ठाकरे के बयानों पर शरद पवार ने तो रिएक्ट किया है, लेकिन उद्धव ठाकरे परहेज कर रहे हैं. कंगना रनौत केस में उद्धव ठाकरे कह चुके हैं कि जवाब न देने का मतलब ये नहीं होता कि जवाब नहीं है.
अब तक शिवसेना की तरफ से प्रवक्ता संजय राउत ही राज ठाकरे को जवाब देते रहे हैं, लेकिन उनकी टिप्पणियों से मनसे कार्यकर्ता ज्यादा आक्रामक होते जा रहे हैं. शायद इसीलिए आदित्यनाथ ठाकरे ने मोर्चा संभाल लिया है.
आदित्य ठाकरे की अपने चाचा को सलाह है कि अपनी राजनीति का इस्तेमाल वक्त की जरूरत के मुताबिक करना चाहिये. मीडिया के सवाल पर आदित्यनाथ ठाकरे कहते हैं, लाउडस्पीकर हटाने की जगह बढ़ती महंगाई के बारे में बोलना चाहिये... किसी को पेट्रोल, डीजल, सीएनजी की कीमतों के बारे में बोलना चाहिये - और आइये 60 साल पीछे जाये बिना बात करते हैं कि पिछले दो-तीन साल में क्या हुआ?'
आदित्य ठाकरे से पहले शरद पवार ने भी राज ठाकरे को उनके दादा प्रबोधनकर ठाकरे का हवाला देते हुए नसीहत दी थी. प्रबोधनकर ठाकरे, शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पिता थे. शरद पवार ने कहा था कि उनके जीवन पर जिन लोगों का प्रभाव रहा है, प्रबोधनकर ठाकरे भी उनमें से एक हैं.
संजय राउत तो शुरू से ही राज ठाकरे को अपने तरीके से काउंटर करने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन शिवसेना प्रवक्ता के कमेंट का राज ठाकरे के समर्थकों को बहुत बुरा लगा है - और वे अपने अंदाज में धमकाने भी लगे हैं.
संजय राउत को मनसे की धमकी: शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत को धमकी देते हुए एक पुराने वाकये की उनको याद दिलायी गयी है. धमकी भरा ये पोस्टर शिवसेना के मुखपत्र सामने के दफ्तर के बाहर लगाया गया है.
Mumbai:Poster that reads "Whom did you call Owaisi? Sanjay Raut shut down your loudspeaker,whole Maharashtra facing problem due to it or else we'll shut down your loudspeaker in MNS style" seen outside Saamana OfficeRaut reportedly called Raj Thackeray 'Maharashtra ka Owaisi' pic.twitter.com/qMurBPmC0Y
— ANI (@ANI) April 16, 2022
पोस्टर पर मराठी में लिखे मैसेज के जरिये संजय राउत को याद दिलाया गया है कि कैसे मनसे कार्यकर्ताओं ने एक बार उनकी कार पर हमला किया था और गाड़ी को पलट भी दिया था. साथ में पूछा भी गया है - क्या इसे दोहराया जाना चाहिये?
पोस्टर में मनसे नेता राज ठाकरे की भी तस्वीर लगी हुई है. ऐसा लगता है, हाल फिलहाल राज ठाकरे को लेकर संजय राउत की तरफ से दिये गये बयानों से महाराष्ट्र नव निर्माण सेना हद से ज्यादा नाराज है.
संजय राउत ने राज ठाकरे को लेकर उकसाने वाली बातें भी कही थी. कभी वो राज ठाकरे को बीजेपी के लाउडस्पीकर की उपमा दे रहे थे, तो कभी महाराष्ट्र के ओवैसी की. असल में AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी को बीजेपी का मददगार समझा जाता है - और ओवैसी से तुलना कर संजय राउत ने राज ठाकरे को उनके ही बराबर तौल दिया है.
अब ये महाराष्ट्र के लोगों के ऊपर है कि वे बाल ठाकरे की राजनीति का कौन सा अपडेटेड वर्जन चाहते हैं? उद्धव ठाकरे वाला वर्जन या राज ठाकरे वाला? उद्धव ठाकरे वर्जन उदार हिंदुत्व की राजनीति करता है, जबकि राज ठाकरे उग्र हिंदुत्व की - क्या मराठी मानुष को फिर से उग्र हिंदुत्व की राजनीति की जरूरत है? अगर लोग राज ठाकरे को फिर से नकार देते हैं तो उनके लिए नया झटका होगा और बीजेपी को मन मसोस कर रह जाना पड़ेगा - दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह हनुमान जी को थैंक यू बोलने के लिए.
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