राजस्थान कांग्रेस के कार्यकर्ता पायलट-गहलोत नहीं राहुल से नाराज हो गये
राजस्थान कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नाराजगी के लिए जिम्मेदार तो राहुल गांधी ही हैं. या तो उन्हें पैराशूट उम्मीदवारी पर बयान नहीं देना चाहिये था, या फिर किसी भी कीमत पर इसे रोकना चाहिये था.
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सबको खुश रखना एक आदर्श स्थिति होती है. कुदरती व्यवस्था में भी आदर्श स्थिति सिर्फ कल्पनाओं का ही हिस्सा होती है. राजस्थान कांग्रेस में जो घमासान नजर आ रहा है उसके दो बिंदु हैं - एक स्थाई और दूसरा तात्कालिक. स्थाई घमासान दो गुटों के बीच है और तात्कालिक टिकट न मिलने से नाराज स्थानीय नेताओं का है.
महत्वपूर्ण ये नहीं है कि टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हंगामा खड़ा किया, महत्वपूर्ण ये है कि हंगामा करते कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी के घर पहुंच गये - और काबू पाने के लिए पुलिस को उन्हें हिरासत में लेना पड़ा.
पैराशूट एंट्री पर राहुल गांधी से गुस्सा
हैरानी की बात ये रही कि देर रात दिल्ली में विरोध कर रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का गुस्सा राहुल गांधी पर फूट रहा था - न तो राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट न ही दबदबा बनाये रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर.
उम्मीदवारों की सूची के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा. आधी रात के बाद कांग्रेस ने 152 उम्मीदवारों की सूची जारी की. सूची आने के फौरन बाद ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की शिकायतें सामने आ गयीं. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पैराशूट एंट्री पाने वालों को टिकट दिये जाने पर कड़ी आपत्ति जतायी. यहां तक कि पैसे लेकर टिकट दिये जाने तक का इल्जाम लगा डाला.
राहुल गांधी से नाराज राजस्थान कांग्रेस कार्यकर्ताओं का दिल्ली में धरना
अपनी नाराजगी में कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी को उनकी ही बात याद दिलाते रहे. राहुल गांधी ने कहा था कि किसी भी पैराशूट उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया जाएगा - और कांग्रेस कार्यकर्ता यही बात उन्हें याद दिला रहे थे. क्षेत्रीय नेताओं की जगह सीधे राहुल गांधी से राजस्थान कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की नाराजगी की बड़ी वजह भी कुछ कुछ ऐसी ही लगी.
पैराशूट उम्मीदवारों में जिन नामों से कार्यकर्ताओं की नाराजगी बढ़ी वे हैं - हरीश मीणा, हबीबुर्रहमान, सोना देवी और केएल गहलोत. हरीश मीणा दौसा से बीजेपी के सांसद हैं और टिकट दिये जाने से एक दिन पहले ही कांग्रेस ज्वाइन किया है. देवली उनियारा से मैदान में उतारे गये हरीश मीणा पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं और जब अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे, मीणा राज्य के पुलिस महानिदेशक रहे.
हरीश मीणा का एक और परिचय ये भी है कि वो मनमोहन सरकार की दूसरी पारी में वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा के बड़े भाई हैं - और 2014 में बतौर बीजेपी उम्मीदवार हरीश मीणा ने अपने छोटे भाई नमो नारायण मीणा को ही शिकस्त दी थी.
बाहरी नेताओं पर अंदरूनी गुस्सा फूट रहा: सचिन पायलट के साथ हरीश मीणा
राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों में से अभी कांग्रेस के 48 उम्मीदवारों की सूची आनी बाकी है. अब तक आयी 152 उम्मीदवारों की सूची में 19 महिलाएं और 9 मुस्लिम शामिल हैं. कांग्रेस की पहली सूची में दो मौजूदा विधायकों के टिकट काटे गये हैं जबकि 40 नये चेहरों को मौका दिया गया है. राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रह चुकीं गिरिजा व्यास उदयपुर से चुनाव लड़ेंगी जबकि सीनियर नेता सीपी जोशी को नाथद्वारा से चुनाव मैदान में उतारा गया है. पिछली बार इसी सीट ने महज एक वोट से वो चुनाव हार गये थे.
राजस्थान की दो सीटों के उम्मीदवारों के नाम सबसे महत्वपूर्ण हैं - टोंक से राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और सरदारपुरा से कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत.
राहुल गांधी के दो अनमोल रतन
मार्गदर्शक मंडल को लेकर राहुल गांधी भले ही बीजेपी को जीभर कोसें, लेकिन हकीकत यही है कि सबको साथ लेकर चलने की कांग्रेस अध्यक्ष की कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है. यूं तो हर राज्य में सूरत-ए-हाल बराबर ही है, लेकिन राजस्थान के झगड़े की आंच दिल्ली तक दस्तक देने लगी है. गुजरात चुनाव खत्म होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही राहुल गांधी ने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिल्ली में बिठाकर सचिन पायलट की राह आसान करने की कोशिश जरूर की, लेकिन वो माने नहीं. जब जब मौका मिला अशोक गहलोत ने इस बात को पूरी हवा दी कि मुख्यमंत्री पद की रेस से वो कभी बाहर नहीं हुए.
बढ़ते झगड़े को विराम देने के लिए राहुल गांधी ने दोनों को मोटरसाइकल की सवारी भी करायी और खास तौर पर सार्वजनिक रूप से इसका जिक्र कर संदेश देने की कोशिश की कि सब कुछ ठीक ठाक है. राहुल की ये बात इस बात का सबूत भी है कि दोनों के बीच पहले ठीक ठाक नहीं रहा. सच तो ये है कि झगड़ा खत्म होना तो दूरा अभी शांत भी नहीं हुआ है.
मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि राजस्थान कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने आलाकमान को फीडबैक दिया था कि चुनाव मैदान में गहलोत की गैरमौजूदगी भारी पड़ सकती है. फीडबैक में ये भी कहा गया था कि गहलोत समेत उन सभी नेताओं को चुनाव लड़ना चाहिये जिनकी जीत पक्की लगती है. यही वजह है कि पायलट और गहलोत दोनों को मैदान में उतारा गया है. इसके जरिये दोनों नेताओं के समर्थकों को इस तरीके से शांत रखने की कोशिश भी की गयी है. टिकट बंटवारे में देर की जो वजह सचिन पायलट ने बतायी वो भी इसी गुटबाजी की ओर इशारा कर रहा है - और माना ये भी जा रहा है कि चार साल में सचिन पायलट के बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद ज्यादातर सीटों पर टिकट बंटवारे में अशोक गहलोत की ही चली.
दरअसल, सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों अलग अलग तरीके से सोचते हैं. ऐसी सोच भी लाजिमी है जेनरेशन गैप जो है. एक तरफ हाल के उपचुनावों में जीत का भरपूर जोश है तो दूसरी तरह राजनीति का लंबा और प्रत्यक्ष अनुभव. यही वजह है कि सचिन पायलट को राहुल गांधी दिल के करीब पाते हैं और अशोक गहलोत को दिमाग के. जब तक दिलो-दिमाग साथ मिल कर काम नहीं करेंगे जीती हुई लगती जंग में भी फतह दूर लगती रहेगी.
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