दिल्ली आकर मोदी से मिलने के बाद भी बीजेपी ज्वाइन नहीं करेंगे रजनीकांत, आखिर क्यों?
भला रजनीकांत के बीजेपी ज्वाइन करने में क्या अड़चन हो सकती है? कहीं सुपरस्टार को ऐसा तो नहीं लग रहा कि बीजेपी ज्वाइन करने पर उनके फैंस उनसे कट सकते हैं?
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रजनीकांत की राजनीति भी उन्हीं की फिल्मी स्टाइल में ही आगे बढ़ रही है. खबर है कि अगले हफ्ते रजनीकांत दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर सकते हैं. ये तो जगजाहिर है कि दोनों के बीच करीबी रिश्ता है, लेकिन राजनीति को लेकर रजनीकांत के मन में अब तक झिझक बनी हुई थी. उनकी बातों से लगता है कि वो झिझक अब दूर हो चुकी है.
रजनीकांत ने ये तो साफ कर दिया है कि वो राजनीति में आ रहे हैं, लेकिन एक बात और उन्होंने जोर देकर कही है - वो कोई भी पार्टी नहीं ज्वाइन करने जा रहे हैं. रजनीकांत की सियासी पारी का फिलहाल यही सबसे बड़ा सस्पेंस है.
लड़ाई के लिए तैयार रहें...
रजनीकांत ने भी उसी स्टाइल में अपने प्रशंसकों के सामने अपनी बात रखी है जैसे वायुसेनाध्यक्ष बीएस धनोआ ने नौसैनिकों के सामने. एयर चीफ मार्शल धनोआ ने वायुसैनिकों को भेजी अपनी चिट्ठी में कहा है - शॉर्ट नोटिस पर भी ऑपरेशन के लिए तैयार रहें.
ठीक उसी अंदाज में रजनीकांत ने भी अपने प्रशंसकों से कहा, 'मेरा अपना पेशा, अपना काम है. मेरे ऊपर अपनी कुछ जिम्मेदारियां हैं और आपके पास अपने काम. आप अपनी-अपनी जगहों पर जाएं और अपना काम करें. जब लड़ाई की जरूरत होगी, तब हम फिर मिलेंगे.'
रजनीकांत की राजनीति भी फिल्मी अंदाज में...
दक्षिण भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार रजनीकांत ने अब तक ये नहीं बताया है कि जिस लड़ाई की वो बात कर रहे हैं वो कब, कहां और किसके साथ शुरू होगी?
राजनीति रोबोट से नहीं चलती
क्या खुद रजनीकांत इस लड़ाई की अगुवाई करेंगे या फिर किसी के साथ मिलकर? क्या उनकी लड़ाई में कोई मौजूदा राजनीतिक दलों में से भी कोई साथ होगा या फिर सभी चेहरे नये होंगे? ऐसे कई सहज सवाल हैं जो उनके प्रशंसकों के मन में उठ रहे होंगे.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह रजनीकांत ये तो कह रहे हैं कि सिस्टम सड़ चुका है, लेकिन अब तक ये नहीं मालूम कि इस सड़े हुए सिस्टम को सुधारने का बीड़ा रजनीकांत अकेले उठाएंगे या इसके लिए किसी से हाथ भी मिलाएंगे?
प्रशंसकों से घिरे रजनीकांत ने कहा, 'हमारे पास स्टालिन, अंबुमणि और सीमन जैसे अच्छे नेता है. लेकिन जब सिस्टम ही सड़ चुका है, तब हम क्या करें? इस सिस्टम को बदलने की जरूरत है और यह बदलाव लोगों की सोच से शुरू होनी चाहिए, तभी हमारा देश फले-फूलेगा.'
सही बात है. लेकिन यही तो चुनौती है. अब इस चुनौती से निबटने का वो तरीका तो हो नहीं सकता जो रजनीकांत की फिल्मों में नजर आता है. राजनीति की सबसे बड़ी खासियत है कि वो हर किसी को रोबोट बना देती है, लेकिन खुद राजनीति कभी रोबोट से नहीं चलती.
नयी पार्टी, नया गठबंधन या फिर बीजेपी ही?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक रजनीकांत आने वाले दिनों में दिल्ली पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर सकते हैं. वैसे प्रधानमंत्री मोदी भी चेन्नई जाते हैं तो वक्त मिलने पर रजनीकांत से मिलते हैं. पिछली मुलाकात का फोटो ट्वीटर पर हर किसी को याद होगा - और उसके बाद के कयास भी. ये चर्चा तभी शुरू हो गयी थी कि रजनीकांत बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं.
सच तो ये है कि रजनीकांत के बीजेपी ज्वाइन करने पर अब भी उतना ही सस्पेंस बरकरार है.
आखिर ये सस्पेंस बनाये रखने की वजह क्या हो सकती है? पहले तो रजनीकांत ने 16 साल पहले डीएमके को सपोर्ट करने पर अफसोस जताया था. अब वो स्टालिन की तारीफ भी कर रहे हैं. प्रधानमंत्री से मुलाकात की बात तो होती है, लेकिन वो ये भी कहते हैं कि कोई पार्टी नहीं ज्वाइन करने जा रहे हैं.
एक चर्चा ये भी है कि है कि तमिलनाडु में को पॉलिटकल गठबंधन बन सकता है. अगर ऐसा कोई गठबंधन बनता है तो क्या उसमें स्टालिन भी शामिल होंगे? ऐसा तो नहीं लगता क्योंकि स्टालित तो अभी विपक्षी एकता के लिए प्लेटफॉर्म मुहैया कराने में लगे हैं. करुणानिधि के जन्मदिन पर 3 जून को चेन्नई में तमाम विपक्षी दलों का जमावड़ा अपेक्षित है - जो राष्ट्रपति चुनाव और 2019 के लिए महागठबंधन की नींव भी साबित हो सकता है. अगर रजनीकांत के प्रधानमंत्री से मिलने का कोई राजनीतिक मतलब है तो स्टालिन के हिस्से में तारीफ से ज्यादा कुछ जाने का सवाल भी नहीं उठता.
भला रजनीकांत के बीजेपी ज्वाइन करने में क्या अड़चन हो सकती है? कहीं सुपरस्टार को ऐसा तो नहीं लग रहा कि बीजेपी ज्वाइन करने पर उनके फैंस उनसे कट सकते हैं? हालांकि, 'आजतक एडिटर्स राउंड टेबल' कार्यक्रम में अमित शाह ने बताया कि रजनीकांत से अभी तक उनकी बात नहीं हुई है.
वैसे रजनीकांत के बीजेपी से हाथ मिलाने की अटकलों के बीच उनके बारे में पार्टी सांसद सुब्रहमण्यन स्वामी का बयान भी आ चुका है, 'रजनीकांत महामूर्ख है, अनपढ़ है... भारत और पाकिस्तान का संविधान सामने रखोगे तो उसे पता नहीं चलेगा कि कौन सा किस देश का है?'
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