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Updated: 07 फरवरी, 2018 04:37 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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इन दिनों मालदीव मुसीबतों के भंवर में फंसा हुआ है. देश में आपातकाल लागू हो चुका है, सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तोड़कर चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद समेत अन्य जजों को गिरफ्तार किया जा चुका है, पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को गिरफ्तार किया जा चुका है, यानी यूं कहें कि मालदीव इस समय राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के इशारों का मोहताज बनकर रह गया है. जब घर में कोई मुसीबत आती है तो अक्सर ही लोग पड़ोसी से मदद की गुहार लगाते हैं. कुछ ऐसा ही हो रहा है मालदीव में भी. मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने संकट की इस घड़ी में भारत से मदद मांगी है, लेकिन अभी तक मोदी सरकार की ओर से इसे लेकर कोई बयान सामने नहीं आया है. क्या 56 इंच की छाती वाले पीएम मोदी मालदीव की मदद के लिए कुछ करेंगे? क्या मालदीव में भारतीय सेना भेजी जाएगी? क्या मालदीव की मदद के लिए विश्व स्तर पर पीएम मोदी की तरफ से कोई बात की जाएगी? राजीव गांधी तो ये दम दिखा चुके हैं, अब पीएम मोदी की बारी है.

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राजीव गांधी ने मालदीव भेजी थी सेना

आज से करीब 30 साल पहले 1988 में राजीव गांधी ने मालदीव में सेना भेजकर अपनी ताकत का परिचय दिया था. मालदीव के राष्ट्रपति द्वारा मदद की गुहार लगाए जाने के तुरंत बाद भारतीय कमांडो मालदीव पहुंच गए थे. इसे ऑपरेशन कैक्टस का नाम दिया गया था. उस समय मालदीव में अब्दुल गयूम की सरकार थी. भारतीय सेना ने वहां पहुंच कर सब कुछ नियंत्रण में ले लिया था और तख्तापलट करने की योजना को नाकाम कर दिया था. एक बार फिर से ऐसा ही करने का वक्त आ गया है.

श्रीलंका की मदद की थी राजीव गांधी ने

बात उन दिनों की है जब श्रीलंका में जातीय संघर्ष चल रहा था. 1987 में भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ जिससे भारतीय सेना श्रीलंका में हस्तक्षेप करने जा पहुंची थी. समझौते के तहत एक भारतीय शांति रक्षा सेना बनाई गई, जिसका मकसद श्रीलंका की सेना और लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) जैसे उग्रवादी संगठनों के बीच चल रहे ग्रहयुद्ध को खत्म करना था. लिट्टे चाहता था कि सेना वापस चली जाए, क्योंकि भारती सेना के श्रीलंका में जाने की वजह से वह अलग देश की मांग नहीं कर पा रहा था. श्रीलंका दौरे के दौरान ही राजीव गांधी पर एक सैनिक ने हमला भी किया था.

आपको बता दें कि लिट्टे के मंसूबों पर पानी फेरने में राजीव गांधी द्वारा श्रीलंका में सेना भेजने के फैसले का बहुत बड़ा योगदान था. यही कारण था कि जब 1989 में वीपी सिंह सत्ता में आए और उन्होंने भारतीय सेना श्रीलंका से वापस बुला ली तो लिट्टे बहुत खुश हुआ था. लेकिन जब 1991 में दोबारा चुनाव होने वाले थे तो लिट्टे डर गया कि कहीं राजीव गांधी फिर से जीत गए तो सेना दोबारा श्रीलंका भेजी जा सकती है. इसी वजह से 21 मई 1991 को तमिनलाडु की एक चुनावी सभा में धनु नाम की महिला ने आत्मघाती हमला कर उनकी हत्या कर दी.

जिस तरह राजीव गांधी ने अपनी धमकियां मिलने के बावजूद अपनी जान की परवाह किए बिना हिम्मत का परिचय देते हुए पड़ोसी की मदद की, वैसा करने की बारी अब पीएम मोदी की है. सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान को अपनी ताकत तो दिखा दी, लेकिन अपनी ताकत का इस्तेमाल कर के अपने दोस्तों यानी पड़ोसियों की मदद करना भी जरूरी है, ताकि उनका भरोसा जीता जा सके. जो राजीव गांधी ने किया था वही 56 इंच के सीने वाला आदमी करता है. अगर पीएम मोदी 56 इंच का सीना होने का दावा करते हैं तो उन्हें 56 इंच के उस सीने की ताकत भी दुनिया को दिखानी होगी.

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