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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 01 फरवरी, 2021 11:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) के बजट भाषण में चुनावी राज्यों का ख्याल तो नजर आया ही, किसानों का जिक्र भी जोरदार तरीके से दिखा. MSP को लेकर सरकार की तरफ से किये गये फायदे भी समझाये - और ये भी बताया कि मोदी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का वादा भूली नहीं है, लेकिन किसानों के रुख से नहीं लगता कि वे जरा भी खुश हो पाये. मुमकिन है किसानों की बजट से अपेक्षाएं कहीं ज्यादा हों.

हालांकि, राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) को निर्मला सीतारमण के बजट या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की बजट की तारीफ में कोई दिलचस्पी नहीं नजर आयी है. गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसानों से मुखातिब राकेश टिकैत ने साफ साफ बोल दिया है - 'बिल वापसी नहीं, तो घर वापसी नहीं.'

किसानों को बातचीत के लिए 'एक फोन कॉल...' वाला प्रस्ताव कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दिया था और सर्वदलीय बैठक में यही बात प्रधानमंत्री ने दोहरायी और याद दिला कर सरकार का रुख साफ करने की कोशिश की, लेकिन राकेश टिकैत तो प्रधानमंत्री मोदी का ही नंबर मांगने लगे हैं. ये तो उनको कृषि मंत्री तोमर से भी मिल जाता - लेकिन इसके लिए उनको खुद पहल करके पहले फोन कॉल वाली दूरी मिटानी होगा.

ये सब देख कर ऐसा लगता है जैसे कोई है जो किसान आंदोलन खत्म नहीं होने देना चाह रहा है - लेकिन कौन है वो?

मोदी सरकार 12 संशोधनों के लिए तैयार है, तीनों कानूनों को 18 महीने होल्ड करने के लिए तैयार - एक बात समझ में नहीं आती जब इतना कुछ हो रहा है तो सरकार कानून वापस ही क्यों नहीं ले लेती?

सरकार की तरफ से कानूनों को लेकर अब तक जो उदारता दिखायी गयी है, उसका मतलब तो यही हुआ कि सरकार को भी लग रहा है कि संवैधानिक पैमाने पर तीनों कानून भले ही परफेक्ट हों, लेकिन व्यवहार में वे पॉलिटिकल एरर के शिकार हो गये हैं.

या तो विरोध करने वाले ज्यादा मजबूत हैं - या फिर सरकार कहीं न कहीं कोई कमी महसूस करने लगी है!

हो सकता है CAA के मामले में हाल इसका उलटा हुआ हो - या तो विरोध करने वाले किसानों जितने मजबूत नहीं रहे, या फिर सरकार को कानून में कहीं कोई कमी नहीं लगी होगी.

सीएए के शुरुआती विरोध के बीच तो अमित शाह ने ऐसे संकेत भी दिये थे कि सरकार आपत्तियों पर विचार करने को तैयार है, लेकिन फिर दिल्ली चुनावों के नजदीक आते ही, नागरिकता संशोधन कानून नोटिफिकेशन के साथ ही लागू कर दिया गया.

यही बात राकेश टिकैत भी पूछ रहे हैं - 'सरकार की कोई मजबूरी हो तो बताये.' लगे हाथ राकेश टिकैत प्रॉमिस भी कर रहे हैं कि वो सरकार सिर दुनिया के आगे शर्म से झुकने नहीं देंगे क्योंकि वे लोग पंचायती राज व्यवस्था में यकीन करते हैं.

फिर भला वो कौन है जो आंदोलन को खत्म नहीं होने देना चाहता?

किसानों ने रखी घर वापसी की शर्त

अपने बजट भाषण में निर्मला सीतारमण 2013 से लेकर 2021 तक के आंकड़ों की तुलना करते भी देखी गयीं - जोर देकर ये भी बताया कि कैसे सरकार ने किसानों का फायदा 40 गुना तक बढ़ा दिया है. 2013 वाला बजट, दरअसल, कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए 2 की मनमोहन सिंह सरकार ने पेश किया था - और किसान आंदोलन को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री बार बार कांग्रेस को ही निशाना बना रही थीं. वैसे भी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर तो आरोप लगा ही चुके हैं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही किसान आंदोलन के खत्म होने की राह में रोड़े अटका रहे हैं.

rakesh tikait, nirmala sitharaman, narendra modiबजट आया और चला गया, किसान आंदोलन टस से मस नहीं हुआ.

बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किसानों को बजट का फायदा समझाने की कोशिश की, बोले, 'ये सब निर्णय दिखाते हैं कि बजट के दिल में गांव है, हमारे किसान हैं.'

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश में कृषि क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने और किसानों की आय बढ़ाने के मकसद से बजट में कई प्रावधान किए गये हैं - MSP को और मजबूत करने के लिए एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्टर फंड से मदद का भी उपाय खोज लिया गया है.

ये तो साफ है कि राकेश टिकैत का आत्मविश्वास लौट आया है. सामने बैठी किसानों की भीड़ देख कर जोश से भरे राकेश टिकैत कहते भी हैं, 'जिस तरह की किसानों की फौज अभी तैयार हुई है उसे टूटने नहीं देना है.'

और ये आत्मविश्वास ही है जो वो अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नंबर भी मांगने लगे हैं. असल में सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सरकार कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की बातों पर अब भी कायम है - बातचीत सिर्फ एक फोन कॉल की दूरी पर है. मालूम नहीं राकेश टिकैत प्रधानमंत्री मोदी का नंबर क्यों मांग रहे हैं जब किसानों को प्रस्ताव कृषि मंत्री की तरफ से दिया गया है.

राकेश टिकैत ने किसानों के बीच कहा, 'प्रधानमंत्री अपना नंबर बता दें... कौन से नंबर पर बात करनी है? हम उनसे बात करने का इंतजार कर रहे हैं.' किसानों से राकेश टिकैत ने बहुत सारी बातें कहीं, लेकिन एक महत्वपूर्ण बात लगी दूसरे किसान संगठनों, किसान नेताओं के साथ साथ सरकार को भी मैसेज देने की कोशिश.

राकेश टिकैत के इस बयान का खास मतलब और मकसद भी लगता है. 26 जनवरी की हिंसा के बाद किसान आंदोलन से अलग हो जाने वाले वीएम सिंह ने राकेश टिकैत पर काफी गहरा कटाक्ष किया है - जिसमें इल्जाम की भी बू महसूस की जा सकती है.

वीएम सिंह कहते हैं, 'एक आदमी को नौ घंटे की फुटेज मिलेगी तो वह नेता तो बन ही जाएगा... ये पूरा खेल इसलिए हुआ है, ताकि 2022 में उत्तर प्रदेश में किसानों की सरकार न बनने पाये.'

वीएम सिंह का कहना है, 'सरकार ने टिकैत को हवा दी... एक आदमी जिसके पास सिर्फ तीन-चार सौ लोग थे... बाकी हमारे लोग थे. जब आंदोलन वापस लेने की बात हुई तो सरकार को लगा कि अगर आंदोलन वापस हो जाएगा तो पूरा श्रेय वीएम सिंह को जाएगा - ये कि वीएम सिंह के आदमियों की वजह से ये आंदोलन खड़ा था.'

संयुक्त किसान मोर्चा ने भी राकेश टिकैत और राजनीतिक दलों के नेताओं से फोन पर बातचीत और मुलाकात को लेकर सवाल खड़ा किया है. संयुक्त मोर्चा ने नेताओं को लेकर अपना दिशानिर्देश भी समझा दिया है - नेता सिर्फ मंच के सामने लोगों के बीच ही बैठ सकते हैं, किसान आंदोलन के मंच पर तो हरगिज नहीं.

राकेश टिकैत को भी अपनी अति सक्रियता का अहसास होने लगा है, सरकार से बातचीत को लेकर कहते हैं, 'हम बातचीत को तैयार हैं... किसानों की जो 40 संगठनों की कमेटी है, उससे बात करें... हम कमेटी के ही सदस्य हैं - उससे अलग नहीं हैं.'

किसान आंदोलन का रिमोट किसके हाथ में है

ऐसा तो नहीं कि सरकार की भी मौजूदा हालात में हाल फिलहाल किसान आंदोलन को खत्म कराने को लेकर दिलचस्पी नहीं है? अगर अभी किसानों की मांग मान लेने पर आंदोलन खत्म हुआ तो क्रेडिट राजनीतिक विरोधी ले जाएंगे - और आने वाले सभी चुनावों में भुनाएंगे. अब भला केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह देश में हो रहे किसी भी अच्छे काम का क्रेडिट किसी और राजनीतिक दल के नेता को लेने का मौका क्यों दें?

पहले तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ही किसान आंदोलन को सबसे ज्यादा हवा देते दिखे थे. बल्कि, ये अमरिंदर सिंह ही रहे जो बड़ी ही चालाकी से आंदोलनकारियों को पंजाब की धरती से दिल्ली की सीमाओं की तरफ रवाना कर दिये. ऐसा करके वो अकाली दल से किसानों को लेकर राजनीति करने का मौका छीन लिये - और सूबे में कानून व्यवस्था की संभावित समस्या से भी पहले ही निजात पा लिये.

बाद में कई ऐसे संकेत मिले जो बता रहे थे कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी नहीं चाहते कि किसान आंदोलन किसी भी सूरत में खत्म हो. बड़े दिनों बाद एक ऐसा मौका हाथ लगा है जिसे लेकर केंद्र की मोदी सरकार दबाव महसूस कर रही है. यहां तक कि जब अमरिंदर सिंह आंदोलन खत्म कराने के लिए प्रयासरत थे तब भी राहुल गांधी और उनकी टीम के लोग आंदोलन को बनाये रखने के पक्ष में माहौल बनाये रखने के लिए बयानबाजी कर रहे थे. एक मीडिया रिपोर्ट के जरिये मालूम हुआ था कि अमरिंदर सिंह अपने कुछ अफसरों को किसानों के बीच भेज कर आंदोलन खत्म करने के लिए उनको तैयार कराने की कोशिश भी कर रहे थे.

पंजाब में अकाली नेताओं खासकर हरसिमरत कौर बादल, राजस्थान में हनुमान बेनिवाल, हरियाणा में दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला हों या फिर यूपी वाले अखिलेश यादव और मायावती जैसे नेता - ये सभी किसान आंदोलन के मेहमानों के टेंट में पहले से ही पहुंच गये लगते हैं. मतलब, ये सभी नेता वैसे ही हैं जैसे शादी ब्याह में सामाजिकता के नाते मेहमानों को बुलाया जाता है - और न्योता देकर हंसते मुस्कुराते परिचितों से मिलते जुलते कुछ देर रुक कर वो लौट जाते हैं.

अब तो लगता है ये आंदोलन कैप्टन अमरिंदर और राहुल गांधी के हाथ से भी फिसल चुका है - चाहे राहुल गांधी ट्वीट करें या बयान दें या प्रियंका गांधी वाड्रा फोन पर बात करें या फिर किसानों के पास जाकर मुलाकात का ही प्लान क्यों न कर रही हों, किसानों का राजनीतिक कनेक्शन जो छितराया हुआ लगता था, किसी एक जगह फोकस होता नजर आ रहा है.

राकेश टिकैत पहले ही किसान आंदोलन का हिस्सा भर थे - और अब भी स्टेटस बदला नहीं है. राकेश टिकैत का मतलब संयुक्त किसान मोर्चा का नेता नहीं है, लेकिन मौजूदा दौर में वो सबसे ताकतवर किसान नेता जरूर बन गये हैं.

राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत का ये कहना कि आने वाले चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाना है - और आरएलडी नेता अजीत सिंह का साथ छोड़ कर उन लोगों ने बड़ी गलती की - ये भी उनके राजनीतिक रुख का साफ तौर पर संकते देता है.

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के बाद हिंसा का तांडव तो सिंघु बॉर्डर पर ही दिखा है, लेकिन वो गाजीपुर बॉर्डर हो या टिकरी - किसान आंदोलन के लिहाज से सब के सब OTT प्लेटफॉर्म जैसे लगने लगे हैं - असल में लगता तो ये है कि रिमोट तो किसी और के हाथ में हैं और कहीं दूर बैठे वो किसान आंदोलन को हर तरीके से कंट्रोल कर रहा है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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