राकेश टिकैत यूपी चुनाव तक आहत 'फूफा' बने रहेंगे...
मौजूदा वक़्त में उत्तर प्रदेश की राजनीति में नाराज फूफा की भूमिका में किसान नेता राकेश टिकैत हैं. मतलब टिकैत का तो जैसा चल रहा है कहना गलत नहीं है कि वो इतने नादान हैं कि खुद नहीं जानते की उन्हें क्या करना है. क्योंकि हर फूफा के लिए हैप्पी एंडिंग जरूरी है टिकैत यूपी चुनावों तक नाराज फूफा रहेंगे फिर सब सही हो जाएगा और ये वापस किसान नेता बन जाएंगे.
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हममें से अधिकांश लोगों के लिए कुंवारेपन से गृहस्थ जीवन की तरफ़ जाने या ये कहें की शादियों वाला महीना है दिसंबर. कहीं भी निकल जाइये घोड़ी, बारात नागिन धुन पर नाचते बाराती, खाना पीना मौज मस्ती और सेल्फ़ी... जिक्र शादी का हो और शादी में तमाम पात्रों के बीच एक पात्र सदैव चर्चा का विषय रहता है हां वही जो रिश्ते में फूफा लगता है. मतलब ये प्रजाति ऐसी है कि इनके साथ कुछ कर लो, अच्छे से अच्छा खिला दो इन्हें किसी न किसी बात पर आहत रहना और अटेंशन लेनी है, ये लेकर रहेंगे. अच्छा फूफा बिरादरी का एजेंडा और फंडा हमेशा से ही बड़ा क्लियर रहा है. शादी खत्म नाराजगी खत्म यानी तौबा तौबा का नहीं हैप्पी एंडिंग वाला मुकाम. एक तरफ ये बातें हैं दूसरी तरफ अपनी भारतीय राजनीति उसपर से उत्तर प्रदेश की राजनीति है जहां नाराज फूफा की भूमिका में किसान नेता राकेश टिकैत हैं. मतलब टिकैत का तो जैसा चल रहा है कहना गलत नहीं है कि वो इतने नादान हैं कि खुद नहीं जानते की उन्हें क्या करना है. क्योंकि हर फूफा के लिए हैप्पी एंडिंग जरूरी है टिकैत यूपी चुनावों तक नाराज फूफा रहेंगे फिर सब सही हो जाएगा और ये वापस किसान नेता बन जाएंगे.
सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद पत्रकारों से रू-ब-रू होते राकेश टिकैत
विचलित क्या ही होना हम कोई बात यूं ही थोड़ी न कह रहे हैं. इन बातों के पीछे हमारे पास संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के रूप में मजबूत तर्क हैं. भले ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कृषि बिल 2020 को लेकर सारे देश से माफी मांग चुके हों. कृषि बिल निरस्त कर दिया गया हो लेकिन राकेश टिकैत को इससे कहां कोई मतलब उनकी अपनी ढपली है उनका अपना अलग राग है.
जिक्र क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक का हुआ है तो कुछ और बात करने से पहले ये बता देना बहुत ज्यादा जरूरी है कि भले ही कृषि कानून रद्द हो चुके हों लेकिन किसान आंदोलन बदस्तूर जारी है. चाहे वो एमएसपी हो या फिर किसानों की केस वापसी, धरने पर मरे किसानों की मौत पर मुआवजा प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि जब तक सरकार बाकी मांगों को नहीं मानती, आंदोलन जारी रहेगा.
आगे आंदोलन को किस तरह धार देनी है सिंघु बॉर्डर पर हुई बैठक में भविष्य के लिए रणनीतियों को तय किया गया है. बताया जा रहा है कि सिंघु बॉर्डर पर हुई बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने एक कमेटी का गठन किया है. किसान नेता और यूपी चुनाव से पहले फूफा की भूमिका ने इस बैठक के संबंध में अपनी बात रखी है. टिकैत के अनुसार इस कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के पांच लोग होंगे.
SKM has formed a 5-member committee to talk to the Govt of India. It'll be the authorised body to talk to the Govt. The committee will have Balbir Singh Rajewal, Shiv Kumar Kakka, Gurnam Singh Charuni, Yudhvir Singh & Ashok Dhawale. Next meeting of SKM on 7th Dec: Rakesh Tikait pic.twitter.com/h6LKfrHywl
— ANI (@ANI) December 4, 2021
बात इन पांच लोगों की हो तो अब किसान हितों का सारा दारोमदार बलबीर सिंह राजाबाल, शिव कुमार काका, अशोक भावले, युद्धवीर सिंह और गुरुनाम सिंह चढूनी के कंधों पर होगा. टिकैत के अनुसार इस समिति को तमाम अधिकार दिए गए हैं और यही समिति भविष्य में बातचीत के लिए सरकार के पास जाने वाले लोगों के नाम की घोषणा करेगी. किसानोम का कहना है कि जब तक सरकार उन्हें लिखित में आश्वासन नही4 देती तब तक न तो वो पीछे हटेंगे और न ही सरकार पर भरोसा करेंगे.
गौरतलब है कि बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हुई है जिसमें किसान नेताओं ने यही तर्क दिया है कि उनकी मांग सिर्फ तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने तक ही सीमित नहीं है. किसानों की मांग है कि सरकार एमएसपी पर कानून बनाए वहीं साल 2020 का जो बिजली बिल आया है उसे भी रद्द किया जाए. साथ ही पराली जलाने पर होने वाली कार्रवाई को भी किसानों ने मुद्दा बनाया है और किसान ये भी चाहते हैं कि आंदोलन के दौरान जिन किसानों और अभियोग पंजीकृत हुआ है उन्हें भी सरकार द्वारा फौरन ही वापस लिया जाए.
Leaders of all farmer orgs said that they won't go back unless cases against farmers are withdrawn. Today a clear cut signal has been sent out to Govt that we're not going to take back the agitation unless all cases against farmers are taken back: Farmer leader Darshan Pal Singh pic.twitter.com/E2Zv25giyE
— ANI (@ANI) December 4, 2021
उपरोक्त जिक्र किसान नेता राकेश टिकैत का हुआ है. तो जो इस पूरे किसान आंदोलन में उनकी भूमिका रही है समय समय पर उसपर सवालियां निशान लगते रहे हैं. बात किसान मोर्चा की इसी बैठक की हो यो पूर्व में टिकैत ये कहते पाए गए थे कि वो इसमें शामिल नहीं होंगे. जिस तरह टिकैत ने यू टर्न लिया और सिंघु बॉर्डर पर हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई वो कई मायनों में हैरत में डालने वाला है. इसलिए टिकैत पर सवाल उठना लाजमी भी है.
कानून वापस किये जाने के बाद जो किसानों का रवैया है उनमें भी तमाम पहलू हैं. भले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने कमेटी के रूप में 5 नामों की घोषणा की हो लेकिन सिंघु बॉर्डर पर किसानों के बीच आपस में ही भयंकर गुटबाजी देखने को मिल रही है. स्थिति किस हद तक गंभीर है इसका अंदाजा बस इसी से लगाया जा सकता है कि सिंघु बॉर्डर पर ही किसानों के दो अलग अलग संगठन हैं और मजेदार ये कि दोनों ही संगठनों की सोच एक दूसरे से अलग है.
किसान आंदोलन का ये जिद्दी मिजाज क्या गुल खिलाएगा इसका फैसला वक़्त करेगा लेकिन इस पूरे आंदोलन में जिस तरह राकेश टिकैत ने अपने को पेश किया है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि उन्होंने आपदा में अवसर तलाशा है. राकेश टिकैट कहीं न कहीं इस बात को जानते हैं कि वो एक बुझे हुए कारतूस हैं जो चल तभी सकता है जब उसका अपना जनाधार हो.
चूंकि यूपी में चुनाव है तो साफ़ ये भी है कि राकेश टिकैत भाजपा से लेकर अन्य दलों को अपनी पावर का नमूना दिखा रहे हैं. बाकी बात फिर वही है. जनता समझ चुकी है. जल्द ही चुनाव हो जाएंगे. तब फिर आज नाराज और आहत फूफा की भूमिका में नजर आ रहे टिकैत किसान नेता बनकर बाहर आएंगे.
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