Ayodhya Ram Mandir Faisla : मोह तो निर्मोही अखाड़े और शिया वक्फ बोर्ड का टूटा है!
अयोध्या मामले में जिस तरह निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड को खारिज किया गया है साफ़ बताता है कि यदि दोनों ही पक्षों ने तैयारी की होती तो कुछ सम्भावना बन सकती थी कह सकते हैं दोनों ने पक्षों ने वही काटा है जो उन्होंने बोया है.
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अयोध्या मामले (Ayodhya Title Dispute) में देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने अपना फैसला (Ayodhya Faisla) सुना दिया है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन का मालिकाना हक़, हिंदू पक्ष यानी राम जन्मभूमि न्यास को सौंपा है. जबकि अदालत ने अपने फैसले में मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर जगह देने के लिए कहा है. सुन्नी वक्फ बोर्ड को कोर्ट ने अयोध्या (अयोध्या) में ही अलग स्थान पर जमीन देने का आदेश दिया है. इन दोनों के बाद बात अगर तीसरे पक्ष, निर्मोही अखाड़ा (Nirmohi Akhara not a Shebait) की हो तो पूरे मामले में उसे मुंह की खानी पड़ी है. फैसला सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया है. इसी तरह शीर्ष अदालत ने 1946 के आदेश को चुनौती देने वाले शिया वक्फ बोर्ड की स्पेशल लीव पिटीशन (एलएलपी) को भी खारिज कर दिया है. निर्मोही अखाड़ा इस मामले में एक मजबूत पक्षकार था तो पहले बात उसपर. अयोध्या मामले (Babri Masjid Ram Mandir Dispute) में निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट में जो दस्तावेज सौंपे थे उसके अनुसार हम रामलला के सेवायत हैं. ये हमारे अधिकार में सदियों से रहा है. कोर्ट में पेश की गई अपनी लिखित दलील में निर्मोही अखाड़े ने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था कि विवादित भूमि का आंतरिक और बाहरी अहाता भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मान्य है इसलिए हमें ही रामलला के मंदिर के पुनर्निर्माण, रखरखाव और सेवा का अधिकार मिलना चाहिए.
अयोध्या मामले में फैसले से सबसे ज्यादा कोई आहात है तो वो और कोई नहीं बल्कि निर्मोही अखाड़ा है
दिलचस्प बात ये है कि जो दलील निर्मोही अखाड़े ने अदालत के सामने पेश की थी उस दलील के अनुसार कोर्ट चाहे तो यूपी सरकार को निर्देश देकर अयोध्या के अधिग्रहित भूमि के बाहरी इलाके में वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए समुचित जगह दिला दे. निर्मोही अखाड़े ने ये दलील क्यों पेश की इसकी एक बड़ी वजह मुस्लिम पक्ष की उस दलील को माना जा सकता है जिसमें मुस्लिम पक्षकारों ने निर्मोही अखाड़ा वहां का सेवादार रहा है.
#BREAKING so far...
1) Shiya Waqf Board and Nirmohi Akhada lost their suits.
2) ASI report on the structure of Babri Masjid is accepted by honorable. That means the mosque was built over a temple. #SupremeCourt #AYODHYAVERDICT pic.twitter.com/JTI0T58of2
— Richa ???????? (@richa_2009_j) November 9, 2019
सवाल होगा कि आखिर क्यों देश की शीर्ष अदालत ने निर्मोही अखाड़े के दावों पर ध्यान नहीं दिया और उसके दावों को खारिज कर दिया? जवाब है सुनवाई के दौरान अदालत में पेश किये गए उसके तर्क.माना जा रहा है कि सुनवाई के दौरान जो तर्क निर्मोही अखाड़ा ने पेश किये थे जहां एक तरफ वो बहुत कमजोर थे तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने कई ऐसी बातें भी कहीं जो अदालत में मामले की सुनवाई कर रहे जजों के गले के नीचे नहीं उतरीं.
Biggest loser is in fact Nirmohi Akhada which since ca. 3 centuries was guardian of Ayodhya. If Muslims were given land, why was Nirmohi Akhada not compensated? A false title suit is a false suit, simply to be cast aside!But #dhimmi #coolie character has entered Hindu blood now! https://t.co/SBvmzLwyif
— Sojourn (@SmitaMukerji) November 9, 2019
सुनवाई के दौरान अखाड़ा इसी बात पर अड़ा रहा कि 'बस ये सारी जमीन हमारी है. कोई रामलला नहीं कोई सुन्नी वक्फ बोर्ड नहीं. हम ही इसके मालिक हैं. हमीं सदियों से रामलला के पुजारी रहे हैं. हमारा ही कब्जा रहा है. हम ही इसके कर्ता-धर्ता हैं.' बात अगर अखाड़े के वकील सुशील जैन की हो तो जब सुनवाई के दौरान अदालत ने वकील से कब्जे के कागजात मांगें तो वो अदालत को गोल गोल बातों में उलझाते या फिर अपनी बगलें झांकते नजर आए.
अगर निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड मजबूत तर्क पेश करता तो मामले में उसकी सम्भावना बन सकती थी
सुनवाई के दौरान अखाड़े का पक्ष रखते हुए सुशील जैन ने अदालत को बताया था कि उनके पास केवल जमीन का कब्जा था. अदालत जैन के इन बेबुनियाद तर्कों से संतुष्ट नहीं था. पूछा कि, दस्तावेज तो होंगे आपके पास ? कोई फरमान, कोई पट्टा या कोई दानपत्र या फिर कोई रसीद. इस पर अखाड़े ने दलील दी थी कि- 'जी था तो सब कुछ हमारे पास लेकिन 1982 में हमारे यहां एक डकैती हुई थी उसमें डकैत सारे दस्तावेज ले गये.'
कोर्ट ने फिर सवाल किया कि आपके पास से ले गये लेकिन भूमि राजस्व विभाग के पास तो होंगे दस्तावेज. खाता खतौनी में कुछ तो होगा. इन सवालों पर अखाड़े ने कहा कि 'हम इस मामले में लाचार हैं. हमारे पास तो कुछ नहीं है.' कोर्ट ने फिर सवाल किया कि आप क्या कहना चाह रहे हैं? क्या डकैत खतौनी भी ले गये? इस पर अखाड़े ने सिर्फ ये कहकर चुप्पी साध ली थी कि 'हम हैंडीकैप हैं.
Supreme Court:
*Nirmohi Akhada Loses.
*Shia Waqf boards Petition rejected.
*ASI (Archeological Survey of India) stand on Ayodhya Important.
* Mosque wasnt made on Empty land.
*Ram Mandir will be made. No compromise.
*For Mosque a different land for 5acres will be given.
— Manjunath S. Gali (@shoman255) November 9, 2019
बात अगर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इतर 2010 में आए फैसले की हो तो तब 2.77 एकड़ की विवादित जमीन के एक तिहाई भू-भाग का मालिकाना हक सौंपा था.हाईकोर्ट ने यहां पर मौजूद राम चबूतरा और सीता रसोई का मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े को सौंपी थी.
बहरहाल बात निर्मोही अखाड़े की चल रही है तो जैसा रवैया अदालत में सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े का रहा था उसी समय ये साफ़ हो गया था कि मालिकाना हक के लिए अखाड़े के पास न तो कोई ठोस तक है और न ही कोई ठोस दलील. अब जबकि फैसला आ गया है तो मामले से निर्मोही अखाड़े को ठीक वैसे ही अलग किया गया है जैसे कोई दूध में से मक्खी अलग करता है.
A good and balanced judgement.Court respected the sentiments of both faith.Nyas to be given charge of Land immediately.Nirmohi Akhada the ritual Rights.Sunni Waqf Board to be given alternate 5 acre Land in Ayoghya.Well done CJI Ranjan Gogoi & Team.
— MUN (@MUN64395753) November 9, 2019
ठीक ऐसा ही हाल शिया वक्फ बोर्ड के साथ भी हुआ है जहां पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए शिया वक्फ बोर्ड की याचिका को खारिज कर दिया है. फैसले से पहले शिया वक्फ बोर्ड के वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा था कि, हमारा कहना था कि मीर बाकी शिया था और किसी भी शिया की बनाई गई मस्जिद को किसी सुन्नी को नहीं दिया जा सकता है. इसलिए इस पर हमारा अधिकार बनता है और इसे हमें दे दिया जाए. शिया वक्फ बोर्ड चाहता था कि वहां इमाम-ए-हिंद यानी भगवान राम का भव्य मंदिर बने, जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की जा सके.
शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से बोर्ड के चेयरमैन सैय्यद वसीम रिजवी ने कहा था कि साक्ष्यों के अधार पर बाबरी मस्जिद शिया वक्फ के अधीन है. यह बात अलग है कि पिछले 71 बरस में शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से इस पर दावा नहीं किया गया. उन्होंने कहा था कि वक्फ मस्जिद मीर बाकी (बाबरी मस्जिद) शिया वक्फ के तहत आती है.
रिजवी ने अनुसार शिया बोर्ड के पास 1946 तक विवादित जमीन का कब्जा था और शिया ही मस्जिद मुत्वल्ली हुआ करते थे, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था. बोर्ड ने कहा कि बाबरी मस्जिद बनवाने वाला मीर बकी भी शिया था. इसीलिए इस पर हमारा पहला हक बनता है.
फैसले में भले ही मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन अलग स्थान पर मिल गई हो मगर जो इस पूरे मामले में निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का हाल हुआ है उसके जिम्मेदार वो खुद हैं. चूंकि कोर्ट पहले ही इस बात को कह चुका है कि इतना जरूरी फैसला आस्था और विश्वास को आधार बनाकर नहीं दिया जा सकता इसलिए जब अखाड़ा सुनवाई में अपना पक्ष रख रहा तो उसे तमाम पक्षों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए था.
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