2019 के चुनावों की चाभी भगवान राम के ही पास है
मार्च 2017 में ही मोदी को पता चल गया था कि हालात ने करवट ले ली है. उन्हें पता है कि 2019 में चुनाव जीतने के लिए उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में सीटें जीतनी जरुरी है. इसलिए ही उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ को गद्दी पर बिठाया.
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1992 में जॉर्ज एच बुश के खिलाफ अपने राष्ट्रपति अभियान के दौरान बिल क्लिंटन ने कहा था- "यह अर्थव्यवस्था है बेवकूफ."
आम तौर पर ये होता भी है. हालांकि भारत में ऐसा नहीं होता. 1999 के आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को कारगिल युद्ध के कारण जीत मिली थी अर्थव्यवस्था के कारण नहीं. मार्च 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को बांग्लादेश के शरणार्थी संकट ने जीत दिलाई थी. इस सच के बावजूद की तब हमारी अर्थव्यवस्था 3 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी. राजीव गांधी की दुखद हत्या ने एक दिवालिया राष्ट्रीय राजकोष के बावजूद मई 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस को जीत दिला दी.
तो क्या राम मंदिर का निर्माण 2019 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोट बैंक को बढ़ा पाएगा. खासकर उत्तर प्रदेश में?
मोदी भारत के सबसे चतुर राजनेता हैं. उन्हें पता है कि भाजपा ने मध्यम वर्ग और बिजनेस समुदाय के बीच से अपना भरोसा खोया है. श्रमिकों को आर्थिक मंदी और नौकरी की कमी ने काफी प्रभावित किया गया है. जीएसटी की वजह से बिजनेस खस्ताहाल हो गए हैं.
किसान हताश हैं. छात्र विद्रोह कर रहे हैं. किसी भी तरीके से देखें तो पीएम मोदी को 2019 के लोकसभा चुनाव में हारना चाहिए.
लेकिन वो नहीं हारेंगे. इसके पीछे दो कारण हैं- पहला, राम. दूसरा, राहुल.
चलिए पहले दूसरे कारण के बारे में बात करते हैं. राहुल गांधी के हाथ में राष्ट्रीय महागठबंधन की कमान हो सकती है. ये महागठबंधन मोदी के खिलाफ एकजुट होकर उनका विकल्प पेश करेगी. इस विपक्ष में कांग्रेस, विचार-विहीन वाम दल के साथ-साथ इस्लाम की तरफ झुकाव रखने वाली क्षेत्रीय पार्टियां जैसे समाजवादी पार्टी, राजद, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, नेशनल कांफ्रेंस, जनता दल (सेक्यूलर), एआईएमआईएम और आईयूएमएल.
राम भरोसे 2019 की जीत
अगर राहुल गांधी थोड़े भी स्मार्ट हुए (जिसकी एक संभावना ही हो सकती है), तो वे राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में क्रमशः सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को नियुक्त करेंगे. इन दोनों ही राज्यों में नवंबर-दिसंबर 2018 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और यहां कांग्रेस को जमकर काम करने की जरुरत है.
राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं. वहीं मध्य प्रदेश में 29. हालांकि विधानसभा चुनावों के परिणाम लोकसभा चुनावों में जनता के रूख को नहीं दिखाते, लेकिन फिर भी भाजपा (2014 में राजस्थान में सभी 25 लोकसभा सीटों और मध्य प्रदेश में 29 में से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी) को चिंता करना चाहिए. पंजाब के बाद ये दोनों राज्य भाजपा की कमजोर कड़ी साबित हो सकते हैं.
भले भाजपा समर्थक राहुल का मजाक बनाते हों. लेकिन अभी भी सामंत प्रधान देश में उन्हें कम करके आंकना बेवकूफी होगी. मोदी इस बात से भली-भांति अवगत हैं. राहुल के सूट-बूट की सरकार वाले तंज ने मोदी को अपनी राजनीतिक रणनीति को उद्योगपतियों के समर्थक सरकार से गरीबों की समर्थक में बदलने के लिए मजबूर कर दिया.
मार्च 2017 में ही मोदी को पता चल गया था कि हालात ने करवट ले ली है. उत्तर प्रदेश में भारी जीत के बाद भी वो अपनी रणनीति को नहीं भूले. उन्हें पता है कि 2019 में चुनाव जीतने के लिए उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में सीटें जीतनी जरुरी है. इसलिए ही उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ को गद्दी पर बिठाया.
आदित्यनाथ को अपनी प्रशासनिक प्रतिभा के कारण नहीं चुना गया था. बल्कि उन्हें हिंदू महंत के रूप में प्रसिद्धि के कारण चुना गया था. मोदी को ये भी पता है कि अगर मायावती की बसपा, कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एकजुट मोर्चे में प्रतिद्वंदी एसपी के साथ शामिल हो जाती है तो उन्हें यहां कड़ी टक्कर मिल सकती है.
चुनावी गणित
पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और मोदी ने 2019 के चुनावों के लिए बड़े ही ध्यान से अपना गुना-भाग किया है. 2019 में भाजपा को उत्तर प्रदेश में कम से कम 65-70 सीटों पर जीत दर्ज करनी ही होगी. तभी उनका बेड़ा पार हो सकता है.
भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में 80 में से 78 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसमें राजस्थान (25/25), मध्य प्रदेश (27/29) और गुजरात (26/26) शामिल हैं. ये तीन राज्य 2019 में भी इसी तरह का रिजल्ट देंगे इसकी उम्मीद कम है.
महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में 59 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. खासकर तब जब महाराष्ट्र में (शिवसेना) आम चुनाव से पहले एनडीए से बाहर निकल जाती है.
यही कारण है कि अमित शाह केरल, पूर्वोत्तर के राज्यों, ओडिशा और बंगाल में एड़ी-चोटी का जोर लगाते नजर आ रहे हैं. लेकिन बंगाल और केरल में भाजपा की डगह कठिन ही है.
दो राज्य बिहार (जहां बीजेपी और जद (यू) को राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 30 में जीत मिलनी चाहिए) और तमिलनाडु (जहां एआईएडीएमके और एनडीए को रजनीकांत का साथ मिल सकता है) भाजपा के लिए राहत की बात हैं.
तो क्या सिर्फ इतने से भाजपा को 350 लोकसभा सीटें मिल जाएंगी? नहीं.
क्या यह पार्टी को कम से कम 272 सीटें देगी? शायद.
क्या ये संख्या 272 से कम हो सकती है? संभावना नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं है.
2019 में एनडीए (न सिर्फ बीजेपी) को जितनी संख्या में सीटें लानी ही होंगी- उत्तर प्रदेश (65), बिहार (35), तमिलनाडु (एआईएडीएमके, 25), गुजरात (20) और महाराष्ट्र (25, शिव सेना को छोड़कर). इन पांच प्रमुख राज्यों में 170 सीटें हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश (टीडीपी), ओडिशा, कर्नाटक और उत्तर-पूर्व को अगर जोड़ दें तो एनडीए की संख्या 300 से पार कर सकती है. कुछ छोटे राज्य जैसे- हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और अन्य राज्य भले ही खाई को कम कर देंगे लेकिन उत्तर प्रदेश में बड़ी हार एनडीए को बैकफुट पर ले आएगी. 300 का आंकड़ा पार करने के लिए लोकसभा चुनावों में उसे यूपी पर कब्जा करना ही होगा.
2019 की लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट अपना निर्णय देगा. अब फैसला चाहे जिस के भी पक्ष में हो लेकिन 2019 के चुनावों में जीत की चाभी तो भगवान राम के ही पास है.
( DailyO से साभार )
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