Ramzan Mubarak: रमज़ान के मौके पर रूहअफ्ज़ा क्यों गायब है? जानिए...
Ramzan Mubarak के मौके पर रोज़ा खोलने के लिए इफ्तारी करते समय सामने पकौड़े, खजूर और फ्रूट चाट के साथ जब तक रूहअफ्ज़ा (RoohAfza) का ग्लास ना हो, कुछ अधूरा सा रह जाता है.
-
Total Shares
रमज़ान की शुरुआत हो चुकी है और इसी के साथ शुरू हुई है एक बहस कि इसे रमज़ान कहते हैं या फिर रमादान. खैर, ये बहस तो तब भी छोटी है, असली मामला तो कुछ और ही है. Ramzan Mubarak के मौके पर रोज़ा खोलने के लिए इफ्तारी करते समय सामने पकौड़े, खजूर और फ्रूट चाट के साथ जब तक रूह अफ्ज़ा का ग्लास ना हो, कुछ अधूरा सा रह जाता है. खासकर उत्तर भारत के मुस्लिम तो ऐसी इफ्तारी की कल्पना नहीं करते हैं. लेकिन इस बार दस्तरखान रूहअफ्ज़ा (RoohAfza) की ग्लास से महफूज़ है.
रमज़ान के ऐन मौके पर रूहअफ्ज़ा का नहीं मिलना लोगों को खासा परेशान कर रहा है. सोशल मीडिया पर तो तरह-तरह की बातें भी हो रही हैं. दुकानें तो छोड़िए, ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल पर भी रूहअफ्ज़ा ऑउट ऑफ स्टॉक हुआ पड़ा है. हालांकि, मौके का फायदा उठाते हुए ऐसे ही शर्बत बनाने वाली कुछ अन्य कंपनियों में उर्दू अखबारों में अपने बड़े-बड़े पूरे पेज के विज्ञापन निकाल दिए हैं. अब सवाल ये उठता है कि आखिर रूहअफ्ज़ा गया कहां? सब बिक गया या बनना ही बंद हो गया? कहीं कंपनी ही तो बंद नहीं होने वाली है?
इफ्तारी करते समय सामने पकौड़े, खजूर और फ्रूट चाट के साथ जब तक रूह अफ्ज़ा का ग्लास ना हो, कुछ अधूरा सा रह जाता है.
सोशल मीडिया चिंता में डूब रहा है
रूहअफ्ज़ा की कमी होने पर सोशल मीडिया में कुछ लोग कह रहे हैं कि रुह अफ्जा के बिना इफ्तारी का मजा फीका पड़ जाएगा. वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो तंज करते हुए कह रहे हैं कि ये हिंदुओं की एक चाल है, मुस्लिमों का त्योहार खराब करने की, लेकिन उन्हें नहीं पता कि राहुल गांधी मुस्लिमों को रिफ्रेशिंग ड्रिंक मुहैया करा देंगे. इसी बीच हमदर्द के एमडी और सीईओ उसामा कुरैशी ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि हम रमजान के दौरान भारत को रूहअफ्ज़ा और रूहअफ्ज़ा गो मुहैया करा सकते हैं. अगर भारतीय सरकार इजाजत दे तो हम वाघा बॉर्डर से ट्रक भेज सकते हैं. हालांकि, एक यूजर ने रिप्लाई किया है कि अगर रूहअफ्ज़ा के कार्टून्स में आरडीएक्स ना हो तो भेज सकते हैं.
Only if you can assure that the trucks won't have RDX in #RoohAfza cartons. Not that we don't trust you But can't take Shivam lightly, it's a high security risk for India. Hope you understand. #LokSabhaElections2019 https://t.co/rzTxd6ip3F
— Chowkidar Ghose (@GhoseSu) May 7, 2019
कुछ ने तो लाल ड्रेस पहनी लड़की की तस्वीर शेयर कर के भी रूहअफ्ज़ा के कमी पर तंज मारा.
My Rooh Afza coming out of cabinet to stay on kitchen shelves be like.... pic.twitter.com/wqpU8AbQKA
— Irfan Ahmad (@itsirfanahmad) May 5, 2019
Ramzan Mubarak! (With some light humour) https://t.co/Qj0tgzckMH
— adnanmalik (@adnanmalik) May 5, 2019
क्यों नहीं मिल रहा है रूहअफ्ज़ा?
रूहअफ्ज़ा को हमदर्द लेबोरेट्रीज बनाती है. पिछले करीब 5-6 महीनों से बाजार में रूहअफ्ज़ा नहीं है, ना ही ऑनलाइन मिल रहा है. हालांकि, हमदर्द के डायरेक्टर मुफ्ती शौकत ने ये कहा है कि हाल ही में प्रोडक्शन शुरू हो गया है और जल्द ही रूहअफ्ज़ा बाजार में वापस आ जाएगा. हालांकि, हमदर्द के ऑफिस के एक कर्मचारी की मानें तो इसे बाजार में आने में कम से कम 15-20 दिन लग जाएंगे. यानी ये जब तक बाजार में आएग, तब तक रमज़ान खत्म होने की कगार पर होगा. वहीं दूसरी ओर, रूहअफ्ज़ा जितनी देरी करेगा, बाकी कंपनियों के शर्बत उतना ही बिकेंगे और उन्हें खूब फायदा होगा. हमदर्द ने इसे लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन इस कमी का ठीकरा कच्चे माल पर फोड़ दिया है. हालांकि, सूत्रों ने इसकी जो वजह बताई वो कुछ अलग ही है.
तो क्या है रूहअफ्ज़ा गायब होने की असल वहज?
असली मामला है पारिवारिक झगड़े का. झगड़ा है हमदर्द के चीफ मुतावली (सीईओ जैसा) की कुर्सी का. अभी इस पर हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के पड़पोते अब्दुल मजीद काबिज हैं. अब्दुल मजीद के चचेरे भाई हम्माद अहमद कंपनी पर अपना अधिकार करने की कोशिश में हैं. उनका दावा है कि वह इस कंपनी के असली वारिस हैं. इसके लिए तो वह कोर्ट तक चले गए हैं और इस कानूनी लड़ाई के चलते ही रूहअफ्ज़ा का प्रोडक्शन रुक गया है. आपको बता दें कि हमदर्द लेबोरेट्रीज कंपनी की शुरुआत यूनानी दवाओं के प्रैक्टिशनर हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने 1907 में पुरानी दिल्ली में की थी. कंपनी के अन्य कई दवाओं के ब्रांड भी हैं, जिनमें साफी, चिंकारा और जोशीना भी शामिल है.
हमदर्द कंपनी इस्लामिक ट्रस्ट यानी वक्फ के तहत रजिस्टर है और इसके नियमों के अनुसार कंपनी अपने फायदे का 85 फीसदी हमदर्द नेशनल फाउंडेशन को देती है, जो एक एजुकेशनल चैरिटी है. इसी फाउंडेशन के तहत दिल्ली का जामिया हमदर्द इंस्टीट्यूशन भी चलता है. इस डीम्ड यूनिवर्सिटी के तहत ही प्राइवेट मेडिकल कॉलेज चलता है. सूत्रों के अनुसार परिवार के बीच में झगड़े की असल वजह फायदा कमाने वाला यही इंस्टीट्यूशन है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 3 अप्रैल अपना फैसला सुनाते हुए अहमद को कंपनी का अंतरिम डायरेक्टर बनाने से मना कर दिया.
जब देश का बंटवारा हुआ तो हकीम हाफिज के छोटे बेटे हकीम मोहम्मद पाकिस्तान चले गए और वहां पर हमदर्द लेबोरेट्रीज वक्फ पाकिस्तान बनाया. भले ही भारत की कंपनी में उनका हिस्सा ना हो, लेकिन यहां की हमदर्द जब से लीगल मामले में फंसी है, तब से पाकिस्तानी हमदर्द कंपनी खूब पैसे कमा रही है. इस पाकिस्तानी वर्जन की रूहअफ्ज़ा गाजियाबाद में भी बनती है और महज 145 रुपए में बिकती है, लेकिन इन दिनों इसकी एक बोतल 375 रुपए में बिक रही है.
ये भी पढ़ें-
1988 में 'राजीव गांधी चोर है' की गाज एक प्रोफेसर पर गिरी थी...
NYAY के नाम पर एमपी-राजस्थान की जनता के साथ कांग्रेस का 'अन्याय'!
5 कारण, क्यों राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के लिए अमेठी जरूरी है
आपकी राय